Thursday, 19 November 2020

The Solemnity of Christ the King 22, Nov. 2020: Reflection in Hindi by #Fr. Preetam



 एजे. 34:11—12,15—17

1 कुरिंथियों 15:20—28

मत्ती 25:31—46

आज हम राजाधिराज प्रभु येसु का माहोत्सव मना रहे हैं। प्रभु येसु के जन्म के पहले उनकी मॉं मरियम को स्वर्गदूत गाब्रिएल ने उनके विषय में कहा था — ''मरियम डरिये नहीं, आपको ईश्वर की कृपा प्राप्त है। देखिए, आप गर्भवती होंगी, पुत्र प्रसव करेंगी और उनका नाम ईसा रखेंगी। वे महान् होंगे और सर्वोच्च प्रभु के पुत्र कहलायेंगे। प्रभु-ईश्वर उन्हें उनके पिता दाऊद का सिंहासन प्रदान करेगा, वे याकूब के घराने पर सदा-सर्वदा राज्य करेंगे और उनके राज्य का अन्त नहीं होगा। प्रभु येसु वह राजा है जिनके राज्य का कभी अंत नहीं होगा। "कोलो 1:15-18 में प्रभु का वचन कहता है — ‘‘येसु अदृष्य ईश्वर के प्रतिरूप तथा समस्त सृष्टी के पहलौटे हैं, क्योंकि उन्हीं के द्वारा सब कुछ की सृष्टी हुई है... वह समस्त सृष्टी के पहले से विद्यमान है और समस्त सृष्टी उन में ही टीकी हुई है।...इसलिए वह सभी बातों में सर्वश्रेठ है। ईश्वर ने चाहा कि उनमें सब प्रकार की परिपूर्णता है’’ ()। इसलिए प्रभु येसु एक सर्वश्रेष्ठ व सर्वोपरी राजा है। पर वे कहते हैं - ‘‘मेरा राज्य इस संसार का नहीं है। यदि मेरा राज्य इस संसार का होता तो मेरे अनुयायी लडते और मैं यहूदियों के हवाले नहीं किया जाता। परन्तु मेरा राज्य यहाँ का नहीं है’’ (योहन 18:36)। यह साफ तौर पर ज़ाहिर है कि येसु का राजत्व इस संसार के लिए नहीं है। वे दुनिया के सब राजाओं से भिन्न हैं। उनका राज-मुकुट काँटों का था; जो राजकीय वस्त्र उन्हें पहनाया गया था, वो मज़ाक व बेइज्जती का प्रतीक लाल चौगा था; उनका राजदंड था सरकंडा जिसे दुशमनों ने उनके ही सिर मारा था। ख्रीस्त ने, न तो दुनिया के जाने-माने राजाओं की श्रेणी में खुद को गिने जाने का दावा किया और न ही किसी राजा की बराबरी करना चाहा। उन्होंने हर प्रकार के सांसारिक वैभव व शानो-शौकत  को ठुकरा दिया। उनका जन्म एक छोटी सी गौशाला में हुआ क्योंकि उनके लिए सराय में जगह नहीं थी (लुक 2:7), उनके सार्वजनिक जीवन की शुरूआत के पहले जब शैतान उन्हें ‘‘अत्यंत ऊँचे पहाड पर ले गया और संसार के सभी राज्य और वैभव दिखला कर बोला, ‘यदि आप दंडवत कर मेरी आराधना करें, तो मैं आप को यह सब दे दूँगा।’ येसु ने उत्तर दिया, ‘‘हट जा शैतान क्योँकि  लिखा है - अपने प्रभु  ईश्वर की आराधना करो और केवल उसी की सेवा करो’’ (मत्ती 4ः8-10)। क्रूस पर मरते समय जब सैनिकों ने उनकी हंसी उडाते हुए उनसे कहा है - ‘‘यदि तू यहूदियों का राजा है तो अपने को बचा।’’ तो प्रभु ने वहां पर भी अपने निजी महिमा दिखाने के लिए अपनी शक्ति का प्रदर्शन  नहीं किया। 

जब हमारे प्रभु ने पाँच रोटियों और दो मछलियों से पाँच हज़ार लोगों को भोजन कराया, तो लोग उन्हें राजा बनाना चाहते थे। लेकिन प्रभु येसु राजा बनने से इनकार कर देते हैं क्योंकि वे उन्हें सांसारिक राजा बनाना चाहते थे (योहन 6:15)। उनका राज्य इस दुनिया के राजायों जैसा धन-दौलत, शक्ति, सेना, साम्राज्य, ज़मीन-जायदाद वाला राज्य नहीं है। 


वह तलवार, बंदुक और हत्यार लेकर लडने वाले राजा नहीं परन्तु एक चरवाहे की तरह अपनी भेडों की देखभाल करने वाला राजा है। जैसा कि आज के पहले पाठ में हम पढते हैं — ''मैं स्वयं अपने भेड़ें चराऊँगा और उन्हें विश्राम करने की जगह दिखाऊँगा। जो भेड़ें खो गयी हैं, मैं उन्हें खोज निकालूँगा; जो भटक गयी हैं, मैं उन्हें लौटा लाऊँगा; घायल हो गयी हैं, उनके घावों पर पट्टी बाँधूगा; जो बीमार हैं, उन्हें चंगा करूँगा; जो मोटी और भली-चंगी हैं, उनकी देखरेख करूँगा। मैं उनका सच्चा चरवाहा होऊँगा।''यह है हमारा राजा और ऐसा है उनका राज्य। 


ईश्वर का यह राज्य हम मनुष्यों की आसान पहुँच से दूर था। इसलिए हमारे राजा स्वयं इसे हमारे करीब लेकर आये हैं। प्रभु के आगमन पर संत योहन बपतिस्ता कहते हैं - ‘‘समय पूरा हो चुका है। ईश्वर का राज्य निकट आ गया है’’ (मारकुस 1:15)। प्रभु येसु के इस धरा पर आगमन के साथ ईश्वर का राज्य हमारे निकट, हमारे बीच आ गया। और इसमें प्रवेश  करने के लिए वचन कहता है - ‘‘पश्चाताप करो और सुसमाचार में विश्वास  करो’’ (मारकुस 1:15)। यदि हमें ख्रीस्त राजा की प्रजा बनना है, शैतान व उसके पाप व अंधकार के राज्य तथा उसकी शक्तियों से छुटकरा पाना है तो हमें हमारे गुनाहों पर पश्चताप करना होगा व सुसमाचार में विश्वास करना होगा, स्वयं को ईश्वर के आत्मा व उसके सामर्थ्य के सम्मुख समर्पित करना होगा। ईश्वर के राज्य की स्थापना करने का आधार है इन्सान का ईश्वर से मेल-मिलाप कराना। उस सदियों पुराने रिश्ते को पुनः जोडना जिसे हमारे आदि माता-पिता के पाप के द्वारा तोड दिया गया था। इस मेल-मिलाप का जिम्मा हमारे प्रभु येसु, हमारे राजा ने अपने ऊपर ले लिया है। उन्होंने अपने दुःखभोग, मरण एवं पुनरूत्थान द्वारा पिता से हमारा मेल कराया है। प्रभु येसु हमारे लिए क्रूस पर इसलिए मरे कि शैतान के राज्य का अंत हो जाये और प्रभु हम सब पर, हमारे दिलों पर हमेशा शासन करते रहें। बपतिस्मा में प्रभु येसु को धारण करके हम ज्योति की संतान बन गये हैं संत पौलुस हमसे कहते हैं ‘‘भाईयों आप लोग अंधकार में नहीं हैं ... आप सब ज्योति की संतान है,...हम रात या अंधकार के नहीं हैं’’ (1 थेस. 5:4)। अतः यदि हम ख्रीस्त राजा की प्रजा बन गये हैं, तो हम सब का ये फर्ज़ बनता है, कि हम उसके राज्य को फैलायें।

आज का यह पर्व ‘ख्रीस्त राजा की जय!‘ ‘प्रभु हमारा राजा है!‘ आदि नारे लगाने व गीत गाने भर तक सीमित नहीं रहना चाहिए। प्रभु आज हमें हमारी आध्यात्मिक निंद से जगाना चाहते हैं। प्रभु हमें अंधकार की शक्तियों से लडने को कहते हैं। प्रभु कहते हैं - ‘‘आप संयम रखें और जागते रहें। आपका शत्रु, शैतान, दहाडते हुवे सिंह की तरह विचरता है और ढूँढता रहता है कि किसे फाड खाये। आप विश्वास में दृढ़ रहकर उसका सामना करें’’ (1 पेत्रुस 5:8)। क्योंकि हम देखते हैं कि आज शैतान विभिन्न रूपों में अपने राज्य का विस्तार करते जा रहा है। किसी भी दिन का अखबार उठा कर देख लिजिए 70 से 80 प्रतिशत खबरें शैतान के राज्य से ताल्लुक रखती हैं - कहीं लडाई तो कहीं दंगे, कहीं बलात्कार तो कहीं हत्या, कहीं आतंकी हमला तो कहीं नरसंहार, कहीं चोरी तो कहीं धर्म के नाम पर खून-खराबा, कहीं ठगबाजी तो कहीं राजनैतिक सत्ता के लिए बेईमानी, धोखाधडी व झूठ फरेब। शैतान धीरे-धीरे अपने वर्चस्व, व अपने राज्य का विस्तार करते जा रहा है। उसके लुभावने प्रलोभनों से वह अधिक से अधिक लोगों को अपनी ओर खींच रहा है। इसलिए प्यारे विश्वासियों प्रभु ने हमें अपने राज्य की एक निष्क्रिय  प्रजा बनने के लिए नहीं बुलाया है, परन्तु हम सब को एक सक्रिय सैनिक बनकर शैतान के विरूद्ध लडने के लिए बुलाया है। प्रभु का वचन कहता है - ‘‘आप लोग प्रभु से और उसके अपार सामर्थ्य  से बल ग्रहण करें, आप ईश्वर के अस्त्र-सस्त्र धारण करें, जिससे आप शैतान की धूर्तता का सामना करने में समर्थ हों . . . और अन्त तक अपना कर्तव्य पूरा कर विजय प्राप्त करें’’ (एफे. 6ः10-13) शैतान का सामना करने उसके राज्य पर विजय पाने के लिए हमें लाठी, डंडे, तलवार, बंदुक, व गोला-बारूद आदि की ज़रूरत नहीं। हमें ईश्वर के अस्त्र-सस्त्रों को धारण करने की ज़रूरत है। और ये अस्त्र-सस्त्र क्या हैं? संत पौलुस हमें बतलाते हैं ईश्वर के अस्त्र-सस्त्र हैं - सत्य का कमरबंद, धार्मिकता का कवच, शान्ति व सुसमाचार के जूते, विश्वास  की ढाल, मुक्ति का टोप व आत्मा की तलवार अर्थात ईश वचन। जो इन आध्यात्मिक अस्त्र—शस्त्रों से लेस होगा वह शैतान के द्वारा आसानी से अपने वश में कर लिया जायेगा और शैतान उससे वही सारे कार्य करवायेगा जो ईश्वर के राज्य के विरूद्ध है। 

आज के पहले पाठ में प्रभु का वचन कहता है — ''“मेरी भेड़ो! तुम्हारे विषय में प्रभु-ईश्वर यह कहता है- मैं एक-एक कर के भेड़ों, मेढो़ और बकरों का- सब का न्याय करूँगा।'' जि हॉं यदि हम भेडें अपने चरवाहे की आवाज सुनकर उनके आदेशानुसार नहीं चलीं तो हमें जैसा बॉंये खडे लोगों से कहा गया वैसा ही कहा जायेगा —''’शापितों! मुझ से दूर हट जाओ। उस अनन्त आग में जाओ, जो शैतान और उसके दूतों के लिए तैयार की गई है''

परन्तु यदि हम उनकी वाणी सुनते और उनके आदेशों का पालन करते हैं तो हमारे राजा हम से कहेंगे — ''’मेरे पिता के कृपापात्रों! आओ और उस राज्य के अधिकारी बनो, जो संसार के प्रारम्भ से तुम लोगों के लिए तैयार किया गया है''

आमेन।

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