Saturday, 24 September 2016

वर्ष का 26 वां रविवार , वर्ष c

आमोस 6ः1. 4-7
1 तिमथी 6ः11-16
लूकस 16ः19-31

आज के सुसमाचार में हमने पढा, एक धनी व गरीब कंगाल लाज़रूस के बारे में। इस दृष्टाँत में गौर करने लायक बात यह है कि गरीब का नाम इसमें दिया गया है - ‘लाज़रूस’ पर धनवान का कोई नाम नहीं दिया गया। इस दुनिया में धनवानों का बडा नाम होता है, उनकी पहचान होती है, उनकी शौहरत होती है, और गरीब बेनाम, तिरस्कृत, व निंदीत लोग होते हैं। पर स्वर्ग राज्य के माप-दंड हमारे माप-दंड से भिन्न हैं। ख््रास्त में प्यारे भाईयां और बहनों जब नाम की बात आती है तो मेरा ध्यान प्रकाषना ग्रंथ की ओर जाता है, जहाँ अंतिम न्याय के बारे में बताते हुवे संत योंहन कहते हैं कि “जिसका नाम जीवन ग्रंथ में लिखा हुआ नहीं मिला, वह अग्निकुंड में डाल दिया गया“ (प्रकाषना ग्रंथ 20ः15)। आज के सुसमाचार को पढ कर ऐसा लग रहा था, जैसे प्रभु येसु जीवन की पुस्तक से पढ रहे हैं, उसमें लाज़रूस नामक कंगाल का तो नाम है पर उस धनी का नहीं है। और वह धनी अब हमेषा के लिए बेनाम रहेगा। जीवन ग्रंथ से उसका नाम मिटा दिया गया है। यही उसके विलासितापूर्ण जिंदगी व गरीबों के प्रति उदासिनता का पुरस्कार है।
प्रभु आज के सुसमाचार के द्वारा उस धनी के धन की उतनी निंदा नहीं करते जितनी उसके गरीबों के प्रति उदासीनतापूर्ण व्यवहार की। उसके पास गरीबों व तडपते लोगों के लिए कोई जगह नहीं थी। गरीब लाज़रूस को रोज दिन अपनी खाने की मेज़ के सामने भूख से तडपते देख कर भी वह उसकी पीडा से अनजान रहा। शायद उसने कभी भूख क्या होती है, उसका अनुभव ही नहीं किया था। क्योंकि वह रोज दिन दावत उडाता था। आज की दुनिया में ऐसे लोगों की कमी नहीं है। शोपिंग मॉल में जाना, 5 रू. की चाय को 50 रू. देकर पीना, मंहगे व फैषन वाले कपडे पहनना, ए.सी. वाली आरामदायक कार में घुमना ये सब उन्हें बेहद पसंद है। पहली मंजिल तक सिढी चढकर जाना उनसे नहीं होता, उन्हें लिफ्ट चाहिए होती है। पर वहीं दिन भर ईंट, रेत व सिमेंट की बोरी उठाकर पहली दूसरी और तीसरी मंजिल तक सिढी चढने वाले मज़दूरों पर उन्हें रहम नहीं आती। यदि वे घडी भर भी बैठ गये तो उनपर डाँट व गालियों का पहाड टूट पडता है। बिना ए.सी. की कार में सवारी करना उनके लिए एक मुष्किल काम होता है, लेकिन दिनभर कडी धूप में ठेलागाडी धकेलकर सब्जी बेचने वाले गरीब से 20 रू. किलो वाली सब्जी 15 रू. में मोल -भाव करते उन्हें न तो शरम आती है और न ही उनके दिल में मानवता जागती है। ऐसे कई उदाहरण दिये जा सकते हैं। आज के पहले पाठ में ऐसे ऐषो आराम की जिंदगी जिने वालों पर गहरा प्रहार किया गया है और कहा गया है कि इनके भोग-विलास का अंत हो जायेगा।
धनी लोग ईष्वर के प्रति अपने दिलों को बंद कर लेते हैं। वे सिर्फ इस जीवन के सुखों से तृप्त हैं। वे अपने भावी जीवन को भूल जाते हैं। वे अपना हृदय गरिबों के प्रति बंद कर देते हैं। वे अपने में ही सीमित रहना चाहते हैं।
लज़रूस उन लाखों करोडों बिमार, पीडित, दुखित, समाज द्वारा ठुकराये, तिरस्कृत, व शोषित लोगों का प्रतिनिधित्व करता है जिनकी पुकार सुनने वाला कोई नहीं। वे न तो अपने अधिकारों के लिए रैली निकालते और न ही उसके लिए सभायें करते हैं। वे सदियों से अपने इन दुःख दर्दों को अपना भग्य समझकर चुपचाप सहते आये हैं। संत लूकस के सुसमाचार 9ः24 में प्रभु का वचन कहता है - “जो अपना जीवन सुरक्षित रखना चाहता है वह उसे खो देगा और जो मेरे कारण अपना जीवन खो देता है वह उसे सुरक्षित रखेगा।“ उस धनी व्यक्ति ने अपना जीवन सुरक्षित रखने की कोषिष की, लेकिन अंत में जीवन. . .अनन्त जीवन उसके हाथों से फिसल जाता है, वह अपना अनन्त जीवन का पुरस्कार खो देता है वहीं लाज़रूस उसे हासिल करता है।
प्रभु आज के वचनों द्वारा हमें मुख्यरूप से निम्न तीन बातें बतलाना चाहते हैं?
पहली बात - हमसे ज्यादा गरीब व ज़रूरतमंद लोगों के प्रति हम उदार व दयालु बनें उनके दुख दर्दों को दरकिनार न करें, अपितु उन्हें समझने की कोषिष करें, उनके प्रति सहानुभुति व प्रेम की भावना रखें।
दूसरी बात - कि पश्चाताप का अवसर हमारे अंतिम सांस लेने तक ही हमें मिलता है। प्रभु हमें हमारे मरण तक सुधरने का अवसर देते हैं। लेकिन मरने के बाद हमें कोई मौका नहीं मिलने वाला। जैसा कि उस धनी के साथ हुआ।
तीसरी बात - हमारे सुधार के लिए हमें धर्ममार्ग पर चलाने के लिए हमारे पास प्रभु के वचन हैं। हमें रोज़ उन्हें पढना व उन पर मनन करना चाहिए। पिता इब्राहिम उस धनी से कहते हैं कि तुम्हारे भाईयों के पास मूसा का ग्रंथ है, वे उसे पढकर, सुधर जायें। इस पर हव धनी बोलता है कि वे कहाँ धर्मग्रंथ पढते व उसको सुनते हैं। याने उनके पास धर्मग्रंथ था लेकिन उन्होंने उसे न तो पढा और न सुना। इसलिए उसमें सदबुद्धी नहीं आयी, उसने दया, करूणा व प्रेम का पाठ नहीं पढा। अन्यथा वह उस गरीब की प्रति दया दिखाता और फलस्वरूप स्वर्गराज्य में प्रवेष करता। उसे भी पिता इब्राहिम की गोद में स्थान मिलता। हम भी हमारे घरों में रखी पवित्र बाइबल की धूल साफ कर उसे उठाकर रोज पढें। उसमें हमारे अनन्त जीवन का पूरा राज छिपा हुआ है। वही हमें उद्धार व मुक्ति के मार्ग पर ले जायेगा। आमेन।


Saturday, 17 September 2016

वर्ष का 25 वां रविवार

वर्ष का 25वां रविवार

अमोस 8: 4-7
1 तिमथि 2:1-8
लूकस 16:1-13
आज के मनन-चिंतन का विषय है - धन-संपत्ति का सही उपयोग करना एवं ऐसा काम करना जो हमें स्वर्ग राज्य में प्रवेष करने में सहायक हो।
आज के सुसमाचार में प्रभु येसु बेईमान कारिंदा का दृष्टांत सुनाते हैं जिसमें अपनी बेईमानी के कारण उसे उसका मालिक अपने काम से हटाने वाला था। पर वह कारिंदा चतुराई से काम लेता है व अपने भविष्य के जीवन के लिए बडी ही चतुराई से काम करता है। यद्यपि उसने काम बेईमानी का किया फिर भी प्रभु उसके तारीफ करते हैं। अब यह सवाल उठता है कि प्रभु येसु ने इस बेईमान कारिंदे की तारीफ क्यों की? संत लूकस के सुसमाचार 16रू8 में हम देखते हैं कि स्वामी ने बेईमान कारिन्दे को इसलिए सराहा कि उसने चतुराई से काम किया। उसने अपने भविष्य के जीवन के बारे में सोचा कि आगे क्या होगा, प्रभु यहाँ हमें स्वर्ग राज्य के हकदार बनने व स्वर्गराज्य के मूल्यों पर चलने के लिए उस करिंदा की बेईमानी का अनुसरण करने नहीं पर उसकी चतुराई से सिख लेने को कहते हैं। क्योंकि इस संसार की संतान आपसी लेन-देन में ज्योति की संतान से अधिक चतुर हैं। संत मत्ती 10रू16 में प्रभु का वचन कहता है - ‘‘देखो मैं तुम्हें भेडियों के बीच भेडों की तरह भेजता हूँ। इसलिए साँप की तरह चतुर और कपोत की तरह निष्कपट बनो।’’ विरोधी तत्वों के सामने, अत्याचार करने वालों के सामने, हमें सताने वालों के सामने हमें निष्कपट, निर्दोष व पाप रहित बनना है, परन्तु साथ ही हमें सांँप की तरह चालाक बनने को प्रभु कहते हैं। ईष्वर के राज्य स्थापना व उसे प्राप्त करने के लिए हमे मुर्खतापूर्ण काम नहीं चतुराईपूर्ण काम करना चाहिए। प्रभु की दृष्टि में वे लोग मूर्ख हैं जो धन संपत्ति को अपना भगवान मानते हैं। जो अपना विष्वास व भरोसा पर अपने पैसों पर ही रखते हैं।
वास्तव में यदि देखा जाये तो हम हमारी सम्पत्ति के पूर्ण मालिक नहीं है; याने हम ये नहीं कह सकते कि जो कुछ मेरे पास है वह मेरा ही है, मैंने इसे बिना किसी की मदद से प्राप्त किया है। नहीं। सब कुछ प्रभु का है, सच्चा मालिक तो वही है हर चीज़ का। हम तो बस प्रबंधक अथवा कारिन्दा है। (लूकस 19रू11-27)। संत अंब्रोस कहते हैं - ‘‘जब तुम किसी गरीब को कुछ उपहार दे रहे हो तो तुम तुम्हारे अपने में से कुछ भाग उसे नहीं दे रहे हो, पर जो उसका अपना है उसे वापस लौटा रहे हो।’’ किसी दिन एक छोटा बालक अपने पिता के साथ बाज़ार जा रहा था। कडाके की ठंड पड रही थी और लोग घरों से बाहर निकलने से कतरा रहे थे। ऐसे में उन्हें रास्ते में उन्हें एक अत्यंत गरीब महिला दिखाई दी जिसके तन पर नाममात्र के लिए कोई कपडा था। लडके के पिता ने तुरन्त पास वाली दुकान से उसके लिए एक गरम कोट खरीदा और उसे उस महिला को देकर आगे बढ गया। बेटे ने पिताजी से पुछा पिताजी ईष्वर ने क्यों किसी को अमीर तथा किसी को इतना गरीब बनाया। क्या वह सबसे प्यार नहीं करते? इस पर पिताजी ने उससे कहा - ‘‘बेटा ईष्वर सबसे बराबर प्यार करते हैं और शायद गरीबों से और अधिक। और हाँ उनके हिस्से का धन उसने अमीरों को  दिया है ताकि वे उसका उपयोग इन गरीबों के लिए करके अपने लिए पुण्य कमा सकें। याने गरीब जिन्हें हम हीनता की दृष्टि से देखते हैं। जिन्हें हम काम वाली बाई, नौकर, भिखारी, पागल, आदि नामों से पुकारते हैं वे वास्तव में हमारी जिंदगी में फरिष्ते बनकर, हमें स्वर्ग राज्य पहुँचाने में मदद करने आते हैं। इन लोगों के प्रति हमारा नज़रिया क्या है?
आज की दुनिया में ज़्यादतर लोग अधिक से अधिक धन बटोरने, व मुनाफा कमाने लगे हैं। बहुतों के लिए पैसा ही भगवान है। पूरा भरोसा व विष्वास धन-दौलत पर ही टिका रहता है। धन व धनवानों के बारे में संत जेरोम कहते हैं - ‘‘सारा धन अन्याय की उपज है। जो धनी है वह या तो अन्यायपूर्ण आदमी है या फिर किसी अन्यायपूर्ण व्यक्ति का उत्तराधिकारी।’’  
भौतिक चिज़ें संचय करने वालों का अंत दौलत की वेदी पर होगा, लेकिन जो आत्मदान करता है जो दीन-दुःखियों की सेवा करता है, उनकी मदद करता है, वह सच्चे ईष्वर तक पहुँचेगा। भौतिक सम्पत्ति अल्पकालिक है। ऐषो-आराम व मौज मस्ती में उडाये धन से हम दोस्तों व यारों को तो जीत सकते हैं पर वे धन समाप्त होने पर हमें छोडकर चले जायेंगे जैसा कि उडाव पुत्र के साथ हुआ। हमें संत फ्राँसिस असिसी से सिखना चाहिए जिन्होंने, इस जीवन की असारता को त्यागकर आने वाले जीवन की महानता को महत्व दिया। मदर तेरेसा हमारे लिए एक जिवंत उदाहरण है। जिन्होंने परहित में अपना सारा जीवन न्योछावर कर दिया।
जहाँ धन है वहाँ डर है, वहाँ खतरा है। धन की प्राप्त करने की अंधी दौड में कहीं ऐसा न हो कि हम हमारी कारिंदगरी अथवा प्रबंधक के पद से हमें हटा दिया जाये। पैसा केवल अपना ही भविष्य सुनिष्चित कर सकता है। वह हमारा भविष्य सुनिष्चित नहीं कर सकता। यदि हम दुसरों की भलाई में अपनी सम्पत्ति का सदुपयोग करते हैं तो हम उसे हमेषा के लिए बनी रहने वाली संपत्ति के रूप में परिवर्तित कर देते हैं, एक ऐसी संपत्ति जो कि स्वर्ग में हमेषा के लिए जमा रहती है। (मत्ती 6रू19)।
आइए आज हम संत पौलुस के साथ प्रार्थना करें कि जिन लागों को ईश्वर ने सत्ता का कार्यभार सौंपा है वे अपनी जिम्मेदारी पूरी ईमानदारी से निभायें जिससे समाज में अन्याय न फैलें। आइए हम गरीबों के लिए प्रार्थना करें कि वे प्रभु येसु के प्रेम का अनुभव करें। साथ ही हम धनी व्यक्तियों के लिए भी प्रार्थना करें कि ईश्वर उनका हृदय परिवर्तन करें जिससे वे गरीबों का शोषण न करें बल्कि मदद करें। हम स्वयं के लिए प्रार्थना करें कि हमारे खीस्तीय समुदाय में कोई अन्याय न हो। आइए हम सब ईमानदार कारिंदे बनें तथा छोटी से छोटी बातों में भी ईमानदार बने रहें जिसे परमेश्वर ने हमें सौंपा है ताकि हम अनंत जीवन के भागी बन सकें।

Saturday, 10 September 2016

वर्ष का 24 वां सामान्य रविवार, 11 सितंबर, 2016


निर्गमन 32:7-11, 13-14
तिमथि 1:12-17
लुकस 15:1-32

आज के पहले पाठ में हमने सुना प्रभु मूसा से कहते हैं - ‘‘पर्वत से उतरो, क्योंकि तुम्हारी प्रजा जिसे तुम मिश्र से निकाल लाये हो, भटक गयी है।’’ मूसा प्रभु से मुलाकात करने उनकी उपस्थिति में सीनई पर्वत पर था। प्रभु अत्यंक व्याकुल होकर ये कह रहे हैं। ये प्रभु के दिल के अंतःस्थल से निकली उनकी एक दारूण पुकार है। वे क्रोधित होकर उन लोगों का सर्वनाष करना चाह रहे थे परन्तु मूसा ने मध्यस्थता की, लोगों की पेरवी की व उनका बीच-बचाव किया। और प्रभु ने जो धमकी दी थी उसका विचार छोड दिया। क्योंकि ‘‘वह एक अत्यंत दयालु, व करूणामय ईष्वर है। वह सहनषील सत्यप्रतिज्ञ औ प्रेममय ईष्वर है।’’ (स्तोत्र 86ः15) हम सब प्रभु के प्यारे बच्चे हैं। वह नबी इसायस 43ः4 में हमसे कहते हैं तुम मेरी दृष्टि में मुल्यवान हो और महत्व रखते हो, मैं तुम्हें प्यार करता हूँ।‘‘ वो हमें कभी भी खोना नहीं चाहते हैं। संत योहन के सुसमाचार 6ः39 में प्रभु येसु हमसे  कहते हैं - ‘‘जिसने मुझे भेजा, उसकी इच्छा यह है कि जिन्हें उसने मुझे सौंपा है, मैं उनक में से एक का भी सर्वनाष न होने दूँ।’’ और मत्ती 18ः14 में प्रभु कहते हैं - ‘‘इसी तरह मेरा स्वर्गिक पिता नहीं चाहता कि उन नन्हों में से एक भी खो जाये।’’ जि, हाँ, ख््रास्त में प्यारे भाईयों प्रभु को हमेषा हमारा ख्याल रखता है। और जब हम हमारे पापमय जीवन द्वारा उनसे दूर हो जाते हैं, भटक जाते हैं तो वे अत्यंत व्याकूल हो उठते हैं। वे उस चरवाहे कि तरह बेचैन व परेषान हो जाते हैं जिसकी एक भेड जिसे वह बेहद प्यार करता था, खो गई हो अथवा उस स्त्री की तरह जिसने अपने पसीने की कमाई का फल, अपना एक सिक्का खो दिया हो। ये दोनो तब तक उसे खोजते रहते हैं जब तक वे उसे नहीं पाते और पाने पर अन्यंत आनन्दित होते हैं, जष्न मनाते हैं।
प्रभु की वही वाणी जो मूसा को सीनई पर्वत पर सुनाई पडी थी आज हमारे कानों में, कलीसिया के अगुवाओं के कानों में गूँज रही है - ‘‘पर्वत से उतरो, क्योंकि तुम्हारी प्रजा, जिसे तुम मिश्र से निकाल लाये हो, भटक गई है।’’ आज का यह वचन हर एक पुरोहित के कानों में प्रतिध्वनित होना चाहिए। तुम्हारी प्रजा भटक गई, तुम्हारी प्रजा जिसे तुमने बपतिस्मा दिया है, तुम्हारी प्रजा जिसे तुमने संस्कार दिये हैं, व पापमय लालसागर से बाहर ले आये हो, तुम्हारी प्रजा जिसका प्रभु ने तुम्हें चरवाहा नियुक्त किया है वह आज भटक गई है। इसलिए पहाड से उतरो। अपने आरामदायक, शाँतिमय, व सुरक्षित पहाड से नीचे उतरो। अपने स्वार्थ, घमंड, अहंकार के पहाड से नीचे उतरो। और अपनी भटकी हुई भेडों को वापस झूंड में लाओ। क्योंकि पिता की यह इच्छा है कि उनमें से एक भी न खो जाये, उनमें से एक का भी सर्वनाष न हो। संत फोस्तीना को दिये दिव्य दर्षन में प्रभु येसु ने उनसे यही कहा था कि हर किसी को यह याद दिलाओ कि मेरी दिव्य करूणा हर एक जन के लिए है। मैं हर एक आत्मा को अपनी दिव्य करूणा के द्वारा स्वर्ग में ले जाना चाहता हूँ।
प्रभु हमें खोना नहीं चाहते। हम अपने ही कुमर्मां द्वारा, स्वयं खो जाना चाहते हैं, हम स्वयं प्रभु से दूर जाने चाहते हैं, हम हमारा विनाष स्वयं करना चाहते हैं। पर प्रभु हमें बचाना चाहते हैं। मुझे बचपन में पढी हुई ‘‘अब्बू खां की बकरी’’ नामक हिंदी का एक पाठ याद आता है जिसमें चांदनी नाम की अब्बू खां की बकरी जिसे अब्बू बेहद प्यार करते थे अपने बाडे से रस्सी तोडकर भाग जाती है। अब्बू खां उसे ढूंढते-ढूंढते थक जाते हैं। अंधेरा होने तक जंगल में घूम-घूमकर आवाज लगाते हैं। पर चांदनी जवाब नहीं देती। वह एक स्वतंत्र जीवन जीना चाहती थी। वह मालिक की आवाज़ को अनसुना कर देती है। रात को भेडियों से उसका सामना हो जाता है। पूरी रात वह हिम्मत के साथ भेडियों से लडती है लेकिन आखिर में दम तोड देती है। हम सब कमजोर इंसान हैं। हमारा भटक जाना, कभी-कभी प्रभु से दूर जाना स्वाभाविक है परन्तु जिस घडी प्रभु की वाणी हमारे कानों पडती है। जब प्रभु हमें पुकारते हैं हमें उनकी और लौट आना चाहिए। हमें हमारा मन फिरा कर पश्चाताप करते हुए प्रभु से मेल-मिलाप करना चाहिए। अन्यथा हमारा भी हाल चांदनी की तरह होगा। शैतान के हाथ हमें हार का सामना करना पड सकता है। वह हमारे शरीर व आत्मा दोनों का नर्क में सर्वनाष कर सकता है। साथ ही जो भी प्रभु की भेडों के रखवाले नियुक्त किये गये हैं वे भी जागरूक व सतर्क रहें। हर खोई हुई भेड का उनसे लेखा लिया जायेगा।