Saturday, 17 September 2016

वर्ष का 25 वां रविवार

वर्ष का 25वां रविवार

अमोस 8: 4-7
1 तिमथि 2:1-8
लूकस 16:1-13
आज के मनन-चिंतन का विषय है - धन-संपत्ति का सही उपयोग करना एवं ऐसा काम करना जो हमें स्वर्ग राज्य में प्रवेष करने में सहायक हो।
आज के सुसमाचार में प्रभु येसु बेईमान कारिंदा का दृष्टांत सुनाते हैं जिसमें अपनी बेईमानी के कारण उसे उसका मालिक अपने काम से हटाने वाला था। पर वह कारिंदा चतुराई से काम लेता है व अपने भविष्य के जीवन के लिए बडी ही चतुराई से काम करता है। यद्यपि उसने काम बेईमानी का किया फिर भी प्रभु उसके तारीफ करते हैं। अब यह सवाल उठता है कि प्रभु येसु ने इस बेईमान कारिंदे की तारीफ क्यों की? संत लूकस के सुसमाचार 16रू8 में हम देखते हैं कि स्वामी ने बेईमान कारिन्दे को इसलिए सराहा कि उसने चतुराई से काम किया। उसने अपने भविष्य के जीवन के बारे में सोचा कि आगे क्या होगा, प्रभु यहाँ हमें स्वर्ग राज्य के हकदार बनने व स्वर्गराज्य के मूल्यों पर चलने के लिए उस करिंदा की बेईमानी का अनुसरण करने नहीं पर उसकी चतुराई से सिख लेने को कहते हैं। क्योंकि इस संसार की संतान आपसी लेन-देन में ज्योति की संतान से अधिक चतुर हैं। संत मत्ती 10रू16 में प्रभु का वचन कहता है - ‘‘देखो मैं तुम्हें भेडियों के बीच भेडों की तरह भेजता हूँ। इसलिए साँप की तरह चतुर और कपोत की तरह निष्कपट बनो।’’ विरोधी तत्वों के सामने, अत्याचार करने वालों के सामने, हमें सताने वालों के सामने हमें निष्कपट, निर्दोष व पाप रहित बनना है, परन्तु साथ ही हमें सांँप की तरह चालाक बनने को प्रभु कहते हैं। ईष्वर के राज्य स्थापना व उसे प्राप्त करने के लिए हमे मुर्खतापूर्ण काम नहीं चतुराईपूर्ण काम करना चाहिए। प्रभु की दृष्टि में वे लोग मूर्ख हैं जो धन संपत्ति को अपना भगवान मानते हैं। जो अपना विष्वास व भरोसा पर अपने पैसों पर ही रखते हैं।
वास्तव में यदि देखा जाये तो हम हमारी सम्पत्ति के पूर्ण मालिक नहीं है; याने हम ये नहीं कह सकते कि जो कुछ मेरे पास है वह मेरा ही है, मैंने इसे बिना किसी की मदद से प्राप्त किया है। नहीं। सब कुछ प्रभु का है, सच्चा मालिक तो वही है हर चीज़ का। हम तो बस प्रबंधक अथवा कारिन्दा है। (लूकस 19रू11-27)। संत अंब्रोस कहते हैं - ‘‘जब तुम किसी गरीब को कुछ उपहार दे रहे हो तो तुम तुम्हारे अपने में से कुछ भाग उसे नहीं दे रहे हो, पर जो उसका अपना है उसे वापस लौटा रहे हो।’’ किसी दिन एक छोटा बालक अपने पिता के साथ बाज़ार जा रहा था। कडाके की ठंड पड रही थी और लोग घरों से बाहर निकलने से कतरा रहे थे। ऐसे में उन्हें रास्ते में उन्हें एक अत्यंत गरीब महिला दिखाई दी जिसके तन पर नाममात्र के लिए कोई कपडा था। लडके के पिता ने तुरन्त पास वाली दुकान से उसके लिए एक गरम कोट खरीदा और उसे उस महिला को देकर आगे बढ गया। बेटे ने पिताजी से पुछा पिताजी ईष्वर ने क्यों किसी को अमीर तथा किसी को इतना गरीब बनाया। क्या वह सबसे प्यार नहीं करते? इस पर पिताजी ने उससे कहा - ‘‘बेटा ईष्वर सबसे बराबर प्यार करते हैं और शायद गरीबों से और अधिक। और हाँ उनके हिस्से का धन उसने अमीरों को  दिया है ताकि वे उसका उपयोग इन गरीबों के लिए करके अपने लिए पुण्य कमा सकें। याने गरीब जिन्हें हम हीनता की दृष्टि से देखते हैं। जिन्हें हम काम वाली बाई, नौकर, भिखारी, पागल, आदि नामों से पुकारते हैं वे वास्तव में हमारी जिंदगी में फरिष्ते बनकर, हमें स्वर्ग राज्य पहुँचाने में मदद करने आते हैं। इन लोगों के प्रति हमारा नज़रिया क्या है?
आज की दुनिया में ज़्यादतर लोग अधिक से अधिक धन बटोरने, व मुनाफा कमाने लगे हैं। बहुतों के लिए पैसा ही भगवान है। पूरा भरोसा व विष्वास धन-दौलत पर ही टिका रहता है। धन व धनवानों के बारे में संत जेरोम कहते हैं - ‘‘सारा धन अन्याय की उपज है। जो धनी है वह या तो अन्यायपूर्ण आदमी है या फिर किसी अन्यायपूर्ण व्यक्ति का उत्तराधिकारी।’’  
भौतिक चिज़ें संचय करने वालों का अंत दौलत की वेदी पर होगा, लेकिन जो आत्मदान करता है जो दीन-दुःखियों की सेवा करता है, उनकी मदद करता है, वह सच्चे ईष्वर तक पहुँचेगा। भौतिक सम्पत्ति अल्पकालिक है। ऐषो-आराम व मौज मस्ती में उडाये धन से हम दोस्तों व यारों को तो जीत सकते हैं पर वे धन समाप्त होने पर हमें छोडकर चले जायेंगे जैसा कि उडाव पुत्र के साथ हुआ। हमें संत फ्राँसिस असिसी से सिखना चाहिए जिन्होंने, इस जीवन की असारता को त्यागकर आने वाले जीवन की महानता को महत्व दिया। मदर तेरेसा हमारे लिए एक जिवंत उदाहरण है। जिन्होंने परहित में अपना सारा जीवन न्योछावर कर दिया।
जहाँ धन है वहाँ डर है, वहाँ खतरा है। धन की प्राप्त करने की अंधी दौड में कहीं ऐसा न हो कि हम हमारी कारिंदगरी अथवा प्रबंधक के पद से हमें हटा दिया जाये। पैसा केवल अपना ही भविष्य सुनिष्चित कर सकता है। वह हमारा भविष्य सुनिष्चित नहीं कर सकता। यदि हम दुसरों की भलाई में अपनी सम्पत्ति का सदुपयोग करते हैं तो हम उसे हमेषा के लिए बनी रहने वाली संपत्ति के रूप में परिवर्तित कर देते हैं, एक ऐसी संपत्ति जो कि स्वर्ग में हमेषा के लिए जमा रहती है। (मत्ती 6रू19)।
आइए आज हम संत पौलुस के साथ प्रार्थना करें कि जिन लागों को ईश्वर ने सत्ता का कार्यभार सौंपा है वे अपनी जिम्मेदारी पूरी ईमानदारी से निभायें जिससे समाज में अन्याय न फैलें। आइए हम गरीबों के लिए प्रार्थना करें कि वे प्रभु येसु के प्रेम का अनुभव करें। साथ ही हम धनी व्यक्तियों के लिए भी प्रार्थना करें कि ईश्वर उनका हृदय परिवर्तन करें जिससे वे गरीबों का शोषण न करें बल्कि मदद करें। हम स्वयं के लिए प्रार्थना करें कि हमारे खीस्तीय समुदाय में कोई अन्याय न हो। आइए हम सब ईमानदार कारिंदे बनें तथा छोटी से छोटी बातों में भी ईमानदार बने रहें जिसे परमेश्वर ने हमें सौंपा है ताकि हम अनंत जीवन के भागी बन सकें।

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