Saturday, 28 January 2017

वर्ष का चौथा इतवार



सफन्या 2,3-3,12-13
1 कुरिंथ 1, 26-31
मत्ती 5, 1-12


इस दुनिया में हर कोई खुशी और शांति चाहता है। शांति और ख़ुशी की जुगाड में इंसान क्या-क्या नहीं करता। पढाई-लिखाई, मेहनत-मज़दूरी, नौकरी-पैशा अथवा मंदिर, मस्ज़िद और गिरजाघरों के चक्कर भी हम मन मी शांति और खुशी के लिए ही तो लगाते हैं। आजकल टी. वी. चैनलों पर तो ऐसे कई तरीकों एवं मंत्रों का प्रचार-प्रसार होता है जो क्षण भर में हमारे जीवन को बदलने एवं हमारे भाग्य को पलटने का दावा करते हैं। इंसान को धनी बनाने, नौकरी दिलाने व करोबार में सफलता दिलाकर रूपये-पैसे एवं शौहरत दिलाने के खोखले वादे करके लोगों को मोहित करने का बाज़ार आजकल बहुत ही गर्म है। कई लोग इन अंधे विज्ञापनों के जाल में फंसकर अपने जीवन में सफलता और शौहरत की तलाश करते हैं। कई लोग रातों-रातों अमीर बनने के ख्वाब देखकर, तो कई अपने आपको ऊंचाईयों पर पहुँचाने के सपने संजोकर अपना जीवन धन्य बनाने का प्रयास करते हैं। दुनिया की निगाहों में तो वे लोग धन्य व आशिषित कहे जा सकते हैं जिनके पास रूपये-पैसे, धन-दौलत, शानो-शौहरत एवं एक आरामदायक ज़िंदगी जीने के सारे साधन उपलब्ध हैं। परन्तु प्रभु का नज़रिया दुनिया के नज़रिये से भिन्न है। प्रभु की नज़रों में वह व्यक्ति धन्य है जो अपने को दीन-हीन समझता है, जो गरीब है, जो आभावों में जीता है। उसका धन, उसकी दौलत और शौहरत सब कुछ प्रभु ही है। प्रभु की निगाहों में वह व्यक्ति धन्य नहीं है जो खुद को इस समाज में अथवा इस संसार में बहुत बडा मानता हो अथवा बडा बनने का प्रयास करता हो परन्तु वह व्यक्ति प्रभु के लिए धन्य है जो विनम्र है, जो बडा होते हुए भी, बडे पद पर रहते हुए भी स्वयं को सबों का सेवक एवं सबसे छोटा मानता है।
यदि किसी के घर में, परिवार में कोई अनहोनी हो जाती है, किसी की मृत्यु हो जाती है, या फिर कोई घोर विपत्ति हमें घेर लेती है और हम हमारे दुःखों पर शोक मनाते हैं तो दुनिया कहती है - इनका भाग्य खराब है, दुर्भाग्य का पहाड इन पर टूट पडा है अथवा पता नहीं अपने किस कर्म का फल ये भुगत रहे हैं आदि। पर प्रभु कहते हैं धन्य हो तुम जो शोक करते हो, तुम्हें सान्तवना मिलेगी। हमारे दुखों में हमारा प्रभु हमारे साथ रहता है।
गौतम बुद्ध कहा करते थे इस संसार में दुःख का कारण तृष्णा है। आज की युवा पिढी में विभिन्न प्रकार की भूख एवं तृष्णा है धन-दौलत की भूख, विलासितापूर्ण जीवन की भूख, अच्छे घर, अच्छे मकान की भूख, सुख-सुविधाओं की भूख, लेटेस्ट मोबाइल एवं अन्य इलेक्ट्रोनिक गैजेट्स पाने की भूख, पार्टी जाने व मौज मस्ती करने की भूख, प्यार करने व प्यार पाने की भूख। एक तृष्णा मिटती है तो दूसरी पैदा होती है। एक ज़रूरत पूरी होती है दो उसके बदल दस ज़रूरतें और खडी हो जाती है। हमारा खालीपन, जीवन का अधूरापन कभी खत्म नहीं होता। हमारे जीवन के अधूरेपन को सिर्फ प्रभु ही पूरा कर सकते हैं। हमें परिपूर्ण तृप्ति प्रभु ही दे सकते हैं। पर हम उनके लिए तरसते ही नहीं। आज की पीढी में प्रभु के लिए, और धार्मिकता के लिए भूख एवं रूची की कम होती जा रही है। प्रभु कहते हैं जो धार्मिकता के भूखे और प्यासे हैं वे तृप्त किये जायेंगे। संत मत्ती 6, 33 में प्रभु हमसे कहते हैं - तुम सब से पहले ईश्वर के राज्य और उसकी धार्मिकता की खोज में लगे रहो और ये सब चीजे़ं तुम्हें यों ही मिल जायेंगी। हम हमारे मन की शांति और दिल की तसल्ली की तलाश गलत जगहों पर करते हैं इसलिए तृप्ती नहीं मिलती। छोटों से लेकर बडों तक सब जीवन में असंतुष्ट रहते हैं। क्योंकि हम दुनियाई चीज़ों में तसल्ली ढुंढते हैं। हम अनष्वर खज़ाने को छोडकर नष्ट हो जाने वाले खज़ाने में अपना मन लगाते हैं और उसे पाने की कोशिश करते रहते हैं। इस जीवन में सच्चा सुख सिर्फ प्रभु से ही हमें मिल सकता है।
इस दुनिया में कई लोग ऐसे हैं जो किसी की चुगली करके दूसरों के सामने किसी का नाम खराब करते हैं। जलन एवं ईर्ष्या के कारण तथा अपनी स्वार्थ सिद्धी हेतु दो पक्षों में मतभेद, मनमुटाव अथवा झगडा करा देते हैं। ऐसे चापलूस जो खुद को अच्छा दिखाने के चक्कर में दूसरों के रिष्तों में दरार पैदा करते हैं वे प्रभु की संतान नहीं हो सकते। प्रभु की संतान तो वे लोग हैं जो टूटे रिष्तों को जोडने की बात करते हैं, जो मेल मिलाप कराते हैं। प्रभु कहते हैं - ‘‘धन्य है वे जो मेल-मिलाप कराते हैं वे ईशवर के पुत्र-पुत्रियां कहलायेंगे।
कलीसिया पर अत्याचार कोई नई बात नहीं है। कलीसिया के प्रारम्भ से ही प्रभु के भक्तों के ऊपर घोर अत्याचार किया जाता रहा है। स्वयं प्रभु येसु ने घोर अत्याचार सहा एवं सूली पर कुर्बानी दी। उनके बाद उनके शिष्यों ने भी प्रभु के नाम पर आये हर दुःख विपत्ति को खुशी-खुशी झेला और शहादत प्राप्त की। कुछ दिनों पहले सोशयल मिडिया पर एक मेसेज सरक्युलेट हो रहा था जिसमें एक वेबसाइट की लिंक थी, जिस पर जाकर उन इसाईयों को साईन करना था जो सुप्रिम कोर्ट से ईसाई मिशनरियों पर हाथ उठाने वालों को सश्रम कारावास का कानून दिलाने की मांग करते हों। दो हज़ार से भी अधिक ईसाई यह पेटिशन साईन कर चुके हैं। मैं बाइबल का कोई ज्ञाता तो नहीं हूँ पर मेरे सीमित ज्ञान से यह तो कह सकता हूँ कि पवित्र बाइबल में ऐसा करना तो कहीं नहीं सिखाया गया है। प्रभु का वचन कहता है - ‘‘अपने आप को बुद्धिमान न समझें। बुराई के बदले बुराई नहीं करें। दुनिया की दृष्टि में अच्छा आचरण करने का ध्यान रखें। जहांँ तक हो सके अपनी ओर से सबों के साथ मेल-मिलाप बनाये रखें। प्रिय भाईयों आप स्वयं बदला न चुकायें बल्कि उसे ईशवर के प्रकोप पर छोड दें, क्योंकि लिखा है प्रतिषोध मेरा अधिकार है, मैं ही बदला चुकाऊंगा’’ (रोम12, 16-19)। इसलिए धार्मिकता के कारण अत्याचार सहना हमारा दुर्भाग्य नहीं, ये तो हमारा सौभाग्य है। प्रभु कहते हैं - धन्य है वे जो धार्मिकता के कारण अत्याचार सहते हैं स्वर्ग राज्य उन्हीं का है। धन्य हो तुम जब लोग मेरे कारण तुम्हारा अपमान करते हैं, तुम पर झूठे दोष लगाते हैं। खुश हो और आनन्द मनाओ स्वर्ग में तुम्हें महान पुरूस्कार प्राप्त होगा।
आईये ख्रीस्त में प्यारे भाईयों और बहनों हम इस दुनिया के निमित नहीं पर प्रभु के वचनों के अनुसार अपना जीवन जियें। हम दीन-हीन बनें, विनम्र तथा दयालु बनें, मन के निर्मल एवं पवित्र बनें, अपने भाई-बहनों के बीच मेल-मिलाप एवं भाईचारे की एक कडी बनकर लोगों को प्रेम के सूत्र में बांधने की कोशीश करें। और हमेशा प्रभु की व उसकी धार्मिकता की खोज में लगे रहें। तथा प्रभु के नाम पर आने वाले हर कष्ट-पीडा को धैर्य एवं हिम्मत के साथ ख़ुशी-खुशी स्वीकार करें क्योंकि स्वर्ग में हमारे लिए एक महान पुरस्कार हमारा इंतज़ार कर रहा है। आमेन।


Saturday, 21 January 2017

वर्ष का तीसरा रविवार, 22 जन 2017



इसायाह 8,23.9,३
1 कुरिन्थियों 1, 10-13.17
मत्ती 4,12-23
आज के पहले पाठ में हम नबी इसायस को यह भविष्यवाणी करते सुनते हैं - अंधकार में भटकने वाले लोगों ने एक महत्ती ज्योति देखी है, अंधकारमय प्रदेष में रहने वालों पर ज्योति का उदय हुआ है। (इसायाह 9,1)। यह ज्योति क्या है? ऐसा कौन सा प्रकाष है जिसके बारे में नबी कह रहे हैं? क्या यह चंद्रमा की रोषनी है या फिर सूरज का तेज प्रकाष? हरगिज नहीं। नबी जिस रोषनी की बात कर रहे हैं वह हज़ारों सूरज की रोषनी से भी तेज है। यह एक ऐसा तेज है जिसके सामने किसी भी प्रकार का अंधकार टिक नहीं सकता है।
उत्पत्ति ग्रंथ 1,1-3 में हम पढते हैं कि प्रारम्भ में पृथ्वी उजाड और सुनसान थी। अथाह गर्त पर अंधकार छाया हुआ था और ईष्वर का आत्मा सागर पर विचरता था। ईष्वर ने कहा प्रकाष हो जाये, और प्रकाष हो गया। प्रकाष ईष्वर की पहली सृष्टि है। प्रभु ने सबसे पहले प्रकाष बनाया। पेड-पौधे और जीव-जन्तु बनाने से पहले ईष्वर ने प्रकाष बनाया क्योंकि यह हर प्रकार के जीवन के लिए एक अति आवष्यक घटक है। पूर्ण अंधकार में जीवन संभव नहीं।
विभिन्न धर्मों में प्रकाष को ईष्वर की उपस्थिति का प्रतीक माना जाता है। पवित्र बाइबल में ईष्वर ने कभी प्रकाष के स्तम्भ के रूप में, कभी जलती झाडी में इस्राएलियों को दर्षन दिये। तथा प्रभु येसु के आगमन के बारे में बतलाते हुए संत मत्ती कहते हैं - अंधकार में रहने वालों ने एक महत्ती ज्योति देखी, मृत्यु के अंधकारमय प्रदेष, में रहने वालों पर ज्योति का उदय हुआ है। अंधकार! अंधकार और कुछ नहीं ज्योति का अथवा प्रकाष का आभाव है। प्रकाष और अंधकार एक साथ नहीं रह सकते। जहाँ प्रकाष है वहांँ अंँधेरा नहीं टिक सकता। प्रभु येसु ख्रीस्त ने कहा है - ‘‘ससार की ज्योति मैं हूँं। जो मेरा अनुसरण करता है, वह अंधकार में भटकता नहीं रहेगा। उसे जीवन की ज्योति प्राप्त होगी’’ (संत योहन 8,12)। जहांँ प्रभु येसु है वहांँ अंँधकार की कोई शक्ति प्रबल नहीं हो सकती। यदि कोई कहता है प्रभु येसु मुझमें है, वो मेरे साथ है और वह पाप के अंँधकार में जीवन बिताता तो वह स्वयं को धोखा देता है। क्योंकि प्रभु येसु वह ज्योति है जिसके प्रकाष में हमें स्वर्ग का मार्ग साफ-साफ दिखाई देता है। जो प्रभु की ज्योति में चलता है पापमय अंधकार में नहीं चल सकता। प्रभु का वचन वह ज्योति है जो हमें सही मार्ग दिखाता हैं।  वचन कहता है - ‘‘तेरी षिक्षा मुझे ज्योति प्रदान करती और मेरा पथ आलोकित करती है’’ (स्तोत्र 119,105)। इसका मतलब यह हुआ कि प्रभु येसु की ज्योति के उजाले में जो जीता है उसे क्या भला क्या बूरा, क्या पाप और क्या धार्मिकता, यह सब साफ-साफ दिखाई देता है। वह न भटकता और न ही ठोकर खाता है। हम अपने आप को ईसाई कहते तो हैं परन्तु यदि हमारा आचरण अंधकारमय है, हमारे कर्म अंधकारमय है तो हम खोखले ईसाई हैं। ईसाई होते हुए भी हम यदि इस दुनिया में अंधकार में जीवन बिताते हैं, तो हमने मसीह को व उसकी षिक्षाओं को नहीं पहचाना। हम प्रभु की ज्योति से अब भी दूर हैं। संत योहन 1,9-12 में वचन हमसे कहता है - ‘‘शब्द वह सच्ची ज्योति था, जो प्रत्येक मनुष्य का अंधकार दूर करती है। वह संसार में आ रहा था। वह संसार में था, संसार उसके द्वारा उत्पन्न हुआ, किंतु संसार ने उसे नहीं पहचाना। जितनों ने उसे अपनाया, और जो उसके नाम में विष्वास करते हैं उन सब को उसने ईष्वर की संतत्ति बनने का अधिकार दिया।’’ सारे संसार को सत्य का प्रकाष देने, सारी मानवता को मुक्ति की राह दिखाने के लिए संसार की ज्योति प्रभु येसु ख्रीस्त संसार में आ चुके हैं। उनकी ज्योति में चलकर अपनी जीवन नैया पार लगाना या फिर पापमय अंधकार में चलकर अपने जीवन को हमेषा के लिए नष्ट करना ये हमारे व्यक्तिगत चुनाव के ऊपर निर्भर करता है। प्रभु हमें पूर्ण स्वतंत्रता देते हैं वे अपनी राहें, अपनी षिक्षाएं हम थोपना नहीं चाहते पर फिर भी वे यही चाहते हैं कि हम हमारी स्वतंत्रता में जीवन का चयन करें। वचन कहता है - ‘‘मैं तुम्हारे सामने जीवन और मृत्यु, भलाई और बुराई रख रहा हूँ। तुम लोग जीवन को चुन लो, जिससे तुम और तुम्हारे वंषज जीवित रह सकें’’ (विधिविवरण 30,19)। ये चयन हमारे लिए, हमारे जीवन के लिए बहुत ही ज़रूरी है। आज के सुसमाचार में हमने सुना प्रभु येसु पेत्रुस और उनके भाई अंद्रेयस, जे़बेदी के पुत्र याकूब और योहन को अपना अनुसरण करने के लिए बुलाते हैं। वे मछुवारे थे और अपनी नाव, जाल व रिष्तेदारों के साथ समुद्र से मछली पकड रहे थे। उनके सामने दो विकल्प थे - अपनी जाल व नाव के साथ अपना मछुवारे का काम जारी रखना या फिर सब कुछ पीछे छोडकर प्रभु येसु का अनुसरण करना। उन्होंने संसार की ज्योति को चुना। हमारे जीवन में हमें पग-पग यह चयन करना है। यदि हमने एक बार येसु को चुना है उनकी षिक्षाओं को चुना है तो हमें जीवन के हर पढाव में उन्हें ही चुनते रहना है। हर एक बुराई, हर एक पाप की परिस्थिति हमारे सामने दो विकल्प खडे करती है। या तो हम बुराई को चुनें या फिर प्रभु के वचनों को, प्रभु की राहों। हम दोनों नहीं चुन सकते। प्रभु कहते हैं - ‘‘कोई भी दो स्वामियों की सेवा नहीं कर सकता या तो वह एक से बैर और दूसरे से प्रेम करेगा या फिर एक का आदर और दूसरे का तिरस्कार करेगा’’ (मत्ती 6,24)। मैं प्रभु की संतान और शैतान की संतान एक साथ नहीं हो सकता। मैं या तो प्रभु का हूँ या फिर शैतान का, मैं या तू प्रभु की राहों पर चलता हूँ या फिर शैतान की। मैं दोनों राहों पर एक साथ नहीं चल सकता। मैं जीवन के मार्ग पर चलता हूँ या फिर मौत के मार्ग पर, धार्मिकता के मार्ग पर या फिर अधार्मिकता मार्ग पर, मैं ज्योति में चलता हूँ या फिर अंधकार में। प्रकाष और अंधकार, पाप व पूण्य, प्रभु व शैतान ये दोनों ताकतें हर पग पर हमें प्रभावित करती हैं और हमें चुनौति देती है। जो कोई पेत्रुस और अंद्रेयस, योहन और याकूब की तरह जीवन के हर पडाव में येसु को चुनेंगे उनके बारे में वचन कहता है - ‘‘ऐसे लोगों पर द्वितीय मृत्यु का कोई अधिकार नहीं है। वे ईष्वर और मसीह के पुरोहित होंगे और उनके साथ . . . राज्य करेंगे’’ (प्रकाषना 20,6)।
आईये हम अंधकार को त्यागकर संसार की ज्योति प्रभु येसु को चुनें, पाप को छोडकर धार्मिकता को चुनें, अनन्त मृत्यु छोडकर अनन्त जीवन को चुनें। आमेन।















Saturday, 14 January 2017

वर्ष का दूसरा रविवार

इसायाह 49,3-6
1 कुरिन्थियों 1-3
योहन
1,29-34

आज के सुसमाचार हमने सुना, योहन बपतिस्ता प्रभु येसु को अपनी ओर आते देख कर उनकी ईशारा करते हुए कहते हैं - ‘‘देखिए यह है ईष्वर का मेमना जो संसार के पाप हर लेता है।’’ हमारा जीवन भी ऐसा ही होना चाहिए, हमें भी अन्य लोगों के सामने प्रभु येसु की ओर ईषारा कर के बताना चाहिए कि यही है ईष्वर का मेमना, यही है उद्धारकर्ता ईष्वर, यही है जो हम सब की नैया को भव पार लगा सकता है, यही है जो हमें पिता के दर्षन करा सकता है और यही है जो हमें स्वर्ग राज्य में ले जा सकता है। प्रभु येसु के सिवा और कोई मार्ग नहीं, प्रभु येसु के सिवा और कोई परिपूर्ण सत्य नही, और उनके बिना कहीं ओर परिपूर्ण जीवन नहीं। उन्होंने कहा है योहन 14ः6 में मार्ग सत्य और जीवन मैं हूँ, मुझसे होकर गये बिना कोई भी पिता के पास नहीं आ सकता। और योहन 10ः10 में वचन कहता है - चोर केवल चारी करने, मारने और नष्ट करने आता है परन्तु मैं इसलिए आया हूँ कि वे जीवन प्राप्त करे और उसे परिपूर्णता में प्राप्त करे।
आज के पहले पाठ में वचन हमसे कहता है कि तुम मेरे दास हो, और आगे वचन कहता है कि तुम्हारा दास बने रहना ही काफी नहीं है। मैं तुम्हें राष्ट्रों की ज्योति बनाऊंगा ताकि मेरी मुक्ति पृथ्वी के सीमांतों तक फैल जाये। हममें और अन्य लोगों में, ख््रास्तीयों में व गैरख््रास्तीयों में जमीन आसमान का फर्क है। हमारे ऊपर ईष्वर के बेटे-बेटियां होने की मुहर लगी हुई है। हम अंधकार से प्रकाष में लाये हुए लोग हैं। संसार सत्य को नहीं पहचानता परन्तु हम सत्य को पहचानते हैं। और वह सत्य है ईष्वर का मेमना प्रभु येसु ख््रास्त जो हमारे उद्धार के लिए बली चढाया गया है। हां इसी नाम से आज के सुसमाचार में संत योहन बपतिस्ता उन्हें पुकारते हैं  - देखिए यह है ईष्वर का मेमना जो संसार के पाप हर लेता है। कुछ दिनों पहले हमने प्रभु येसु के देहधारण अर्थात् ख््रास्त जयंति का पर्व मनाया और हमने यह मनन चिंतन किया की प्रभु येसु हमारे लिए मनुष्य बनकर इस संसार में आये। जब प्रभु येसु हमारे लिए मनुष्य बनकर आये तो फिर आज योहन उन्हें मेमना अर्थात् भेड अथवा बकरी का बच्चा कयों कह रहे हैं?
इस बात को समझने के लिए हमें पुराने विधान एवं यहुदी जाती की मुक्ति इतिहास की गहराई में जाना होगा। जब ईष्वर ने अपनी चुनी हुई प्रजा को मिस्र की गुलामी से आज़ाद करने का निष्चय किया तब उन्होंने हर एक इस्राएली परिवार को अपने-अपने घरों में एक मेेमने का वध करने और उसका रक्त अपने दरवाजों की चौखट पर पोतने का आदेष दिया। क्योंकि उस रात प्रभु का दूत मिस्र का भ्रमण कर मिस्र के सारे पहलोटों को मारने वाला था। प्रभु के दूत ने जिन-जिन घरों की चौखट पर मेमने का रक्त देखा उनको छोड बाकी सबके घरों के पहले बेटों को मार दिया। और इस प्रकार फिराऊ राजा घबराकर उन्हें मिस्र से जाने का आदेष दे देता है। इस प्रकार उनकी धारणा थी कि मेमने के रक्त के द्वारा ईष्वर ने उनका उद्धार किया है।
इस्राएली कैलेंडर के मुताबिक सातवें महिने के दसवें दिन इस्राइली लोग योम किपुर नामक पर्व मनाते हैं। इस दिन वे उपवास एवं प्रार्थना करते हुए अपने पापों के लिए प्रायष्चित करते हैं। इस पर्व के बारे में हम लेवी ग्रंथ 16 में पढते हैं कि इस प्रायष्चित विधी में पुरोहित दो मेेमनों को लेकर आता है। उनमें से एक मेमना जनता के पापों के प्रायष्चित के लिए बली चढाया जाता है, और उसका रक्त लोगों पर छिड़का जाता था तथा दूसरे मेमने के ऊपर इस्राएलियों के सारे कुकर्मों और सब प्रकार के अपराधों को स्वीकार कर, उन्हें उसके सिर पर डाल कर उसे रेगिस्तान में पहुंचा दिया जाता है। उनका मानना था कि वह मेमना उनके पापों को लेकर ऐसे स्थान पर चला गया है जहां से वह वापस नहीं आ सकता अर्थात् वे अपने पापों से पूर्ण रूप से मुक्त हो गए हैं।
परन्तु इब्रानियों के पत्र 10ः4-5 में वचन साफ-साफ कहता है - ‘‘सांडों तथा बकरों का रक्त पाप नहीं हर सकता, इसलिए मसीह ने संसार में आकर यह कहा- ‘‘तूने न तो यज्ञ चाहा और न चढावा, बल्कि तूने मेरे लिए एक शरीर तैयार किया है। . . . ईसा मसीह के शरीर के एक ही बार बलि चढाए जाने के कारण हम ईष्वर की ईच्छा के अनुसार पवित्र किये गये हैं।’’ और इब्रानियों 9ः12 में हम पढते हैं - उन्होंने बकरों तथा बछडों का नहीं, बल्कि अपना रक्त ले कर सदा के लिए एक ही बार परपावन स्थान में प्रवेष किया और इस तरह हमारे लिए सदा-सर्वदा रहने वाला उद्धार प्राप्त किया है।’’
यह है प्रभु येसु को ईष्वर का मेमना कहे जाने का अर्थ। पुराने विधान के मेमनों का रक्त पाप हरने में असमर्थ था परन्तु प्रभु येसु का अति मुल्यवान रक्त हमारे हर गुनाह के दाग को धोने समर्थ है। प्रभु येसु इसिलिए नये विधान का मेमना बनकर बलि चढे ताकि उनके सामार्थ्यवान लहू से हमारा उद्धार हो जाये। मिस्सा बलिदान और कुछ नहीं उसी बलित मेेमने के बलिदान का स्मरण है। वही मेमना नित्य हमारे लिए अपने आपको अर्पित करता है। प्याले में अर्पित दाख का रस उसी मेमने के रक्त में तब्दिल हो जाता है और वह रोटी उसके शरीर में। जो कोई सच्चे मन व पूर्ण तैयारी के साथ मेमने के इस भोज में भाग लेता है, और प्रभु के शरीर एवं रक्त का पान करता है वह उस मुक्ति में भागीदार होता है जिसे प्रभु येसु ने हमें प्रदान किया है।
संत योहन के प्रकाषना ग्रंथ 7ः14 में यह साफ लिखा हुआ है, कि अंतिम महासंकट से अर्थात् नरक में विनाष से केवल वे ही बच सकते हैं, जिन्होंने अपने वस्त्र मेमने के रक्त से धोकर उज्वल कर लिये हैं। इसलिए आईये हम आज जब पुनः एक बार मेमने के भोज में भाग लेने आये हैं, उसके पवित्र लहू में अपने आप को भिगो लें। मुक्ति का लहू, दुनिया का सबसे शक्तिषाली डिटर्जेंट जो पाप के गहरे से गहरे दाग को भी मिटा देता है, आज हमारे लिए बहाया जा रहा है। हम उस लहू से धोकर अपने वस्त्रों को उज्वल कर लें।
आमेन।

Friday, 6 January 2017

प्रभु प्रकाश का पर्व 8 जनवरी 2017


इसायाह 60:1-6
एफे 3:2-3,5-6
मत्ती 2:1-12


आज हम प्रभु प्रकाश का पर्व मना रहे हैं। अंग्रजी में इसे द फीस्ट ऑफ एपीफनी कहते हैं। एपीफनी का मतलब होता है - प्रकाशित करना अथवा प्रकट करना। इसप्रकार आज हम दुनिया के मुक्तिदाता बालक येसु का गैरयहूदियों के लिए प्रथम प्रकटिकरण का पर्व मनाते हैं। यह पर्व प्रारंभिक काल से ही कलीसिया द्वारा मनाया जाता आ रहा है। पहले प्रभु येसु के तीन स्थानों पर प्रकटीकरण को एक साथ मनाया जाता था अर्थात् - ज्योतिषियों के द्वारा प्रभु येसु के दर्शन, प्रभू के बपतिस्मा और काना के भोज में येसु द्वारा अपनी ईशवरीय महिमा प्रकट करना। अब इन तीनों घटनाओं की महत्ता को देखते हुए पर्वों को तीन अलग-अलग दिनों का मनाया  जाता है। इस साल प्रभु प्रकाश 8 तारीख को पड़ने से प्रभु के बपतिस्मा का पर्व सोमवार को मनाया जायेगा।

आज के दिन हम उस घटना की याद करते हैं जब तीन गैर यहूदी ज्ञानी एक तारे का पीछा करते हुए प्रभु के पास पहुँचते हैं। यह घटना इस बात को साबित करती है कि प्रभु मसीह का जन्म सारी मानवजाती के उद्धार के लिए हुआ है। संत लूकस 2:8 में हम पढते हैं कि प्रभु के जन्म का संदेश अनपढ एवं गरीब चरवाहों को दिया जाता है और वे जाकर उस प्रभु के दर्शन करते हैं। वहीं आज के सुसमाचार में महान विद्वान, ज्ञानी एवं राजा लोग बालक येसु के दर्शन करने आते हैं। येसु सबके प्रभु हैं।
जिस प्रकार से पास्का पर्व के बाद पेंतेकास्त पर्व के दिन कलीसिया का रूप लोगों के सामने मुखर हो जाता है, शिष्यगण खुलकर मसीह की, उसके कार्यों की व उनकी मृत्यु एवं पुनरूत्थान की घोषणा करते हैं। उसी प्रकार ख्रीस्तजयंती

 के बाद प्रभु प्रकाश के दिन शिशु येसु सारी मानवजाती के लिए प्रकट हो जाता है। पृथ्वी के सीमांतों से आये हुए ज्ञानियों ने जब दुनिया के रचियता को देखा तो वे घूटनों के बल गिरकर उसकी आरधना करते हैं। उस दीन-हीन बालक में छीपे ईष्वर को वे पहचान जाते हैं, क्योंकि उन पर यह विशेष कृपा की गई थी।

आज इंसान बहुत कुछ जानने का दावा करता है। अपने ज्ञान एवं विज्ञान के बल पर मानव ने कई आविष्कार किये व कई नई खोजें की है। बहुत सारी बातें जो पहले रहस्य हुआ करती थी आज इंसान उनको बेहतर समझने लगा है। परन्तु फिर भी  अज्ञानता का अंधेरा  बरकरार है। हमारे सामने कई ऐसे सवाल खडे हो जाते हैं जिसका हमारे पास कोई उत्तर नहीं। जिसका विज्ञान के पास कोई उत्तर नहीं। इस संसार में दुःख क्यों है? निर्दोष लोग क्यों मारे जाते हैं? हजारों का ईलाज़ करने वाले डॉक्टर भी क्यों स्वयं की बिमारी के सामने घूटने टेक देते हैं और इस दुनिया से विदा हो जाते हैं? आदि कई ऐसे सवाल है जिसका जवाब सिर्फ प्रभु ही जानते हैं।
जब प्रभु येसु हमारी जिंदगी आते हैं तो हमारी जिंदगी के कठीन से कठीनतम सवालों का जवाब हमें मिल जाता है। हर एक इंसान प्रभु का प्रकाशन है, प्रभु का प्रकटीकरण है। क्योंकि हम प्रभु के रूप एवं सादृष्य में बनाए गये हैं (उत्पत्ति 1:27)। पाप ने हमारे इस रूप को कुरूपित कर दिया, बिगाड दिया लेकिन पाप इसे नष्ट नहीं कर सकता। हमारे उस बिगडे रूप को पुनः सजाने, हमें पुनः ईश्वर का स्वरूप लौटाने के लिए ही प्रभु येसु इस संसार में आये हैं। आज हम वह पर्व माना रहे हैं जब प्रभु हमारे पापमय जीवन की बुझती शमां को पुनः जलाते हैं, प्रभु हमें अंधकारमय अज्ञान से ज्ञान की रोशनि में लाते हैं। आज के पहले पाठ में हमने सुना (इसायाह 60:2-3)- ‘‘पृथ्वी पर अंँधेरा छाया हुआ है और राष्ट्रों पर घोर अंधकार; किंतु तुझ पर प्रभु उदित हो रहा है, तेरे ऊपर उसकी महिमा प्रकट हो रही है।’’ आज प्रभु का वचन हम सब से कह रहा है - ‘‘उठ कर प्रकाशमान हो जा! क्योंकि तेरी ज्योति आ रही है और प्रभु-ईशवर की महिमा तुझ पर उदित हो रही है’’ (इसायाह 60:1)। जिस प्रकार से चंद्रमा सूर्य की रोशनी ग्रहण करके स्वयं प्रकाशमान हो जाता है। और रात्री के अंधकार को चीरते हुए पथिकों को राह दिखाता है, आईये हम भी मुक्तिदाता येसु की रोशनी से अपने आपको आलौकित कर लें। हम उसके तेज से, उसके प्रकाश से भर जायें। इस पापमय अंधकार में डूबी दुनिया में हम एक टिमटिमाता एक तारा बन जायें, एक अनोखा तारा!
ज्यातिषियों ने एक अनोखा तारा देखा और उनमें उत्सुकता जगी। और उस तारे का पीछा करते हुए वे मसीह तक पहुंच गये। आज हम सब इस दुनिया में एक अनोखा तारा बनें जिसे देखकर दुनिया के लोग प्रभु के पास आ सकें। जि हाँ, यदि हम अन्य तारों की तरह ही टिमटिमाते रहे तो कोई भी हमारी तरफ ध्यान नहीं देगा, और न ही प्रभु के पास आ पायेगा। यदि मेरा पडोसी शराब पीता है और मैं भी वही करता हू, मेरी गली वाले लडाई-झगडा करते हैं मैं भी ऐसा ही करता हूँ, मेरे ऑफिस वाले बेईमान है, मैं भी बेईमानी करता हूँ, मेरी सहेली ने गर्भपात करवाया है, मैं भी करवा लेती हूँ, मेरे दोस्त लोग तो नियमित मंदिर नहीं जाते मैं क्यों चर्च नियमित जाऊँ। हम  ऐसा जीवन जीने के लिए नहीं बुलाये गए है। प्रभु का वचन कहता है - ‘‘आप इस संसार के अनुकूल न बनें, बल्कि सब कुछ नयी दृष्टि से देखें और अपना स्वभाव बदल लें’’ (रोमियो 12:2)। हमें इस जग की धारा के विपरीत तैरना है। हमें हज़ारों तारों के बीच एक विचित्र तारे की तरह चमकना है। जिस तरह से उन ज्ञानी लोगों ने उस विचित्र तारे को देख कर सवाल किया कि ये तारा क्यों सब तारों से अलग है? यह क्या संदेश देना चाहता है? और उन्हें जवाब में प्रभु मिल गये। उसी प्रकार अन्य लोग, हमारे पडोसी, हमारे मित्र हमें देखकर ये पुछे कि ये बंदा क्यों बाकि लोगों से अलग है, ये गाली क्यों नहीं देता, क्यों नहीं लडता, ये रिशवत क्यों नहीं लेता, ये क्यों इतना दयालु है, ये क्यों बदला नहीं लेता, सबों को माफ क्यों कर देता है? और अपनी इस खोज में वे प्रभु को उसके वचनों और उनके संदेश को जानने लगेंगे। तब गैर ख्रीस्तीयों पर प्रभु प्रकट हो जायेंगे। यही है प्रभु प्रकाश का पर्व। आईये हम आज की इस दुनिया में हमारे आस-पास के लोगों के लिए एक अनोखे तारे का किरदार निभायें। ताकि हमें देखकर कई लोग प्रभु को जाने व उनके संदेश को अपने जीवन में उतारें और मुक्ति प्राप्त करें। आमने।