Saturday, 21 January 2017

वर्ष का तीसरा रविवार, 22 जन 2017



इसायाह 8,23.9,३
1 कुरिन्थियों 1, 10-13.17
मत्ती 4,12-23
आज के पहले पाठ में हम नबी इसायस को यह भविष्यवाणी करते सुनते हैं - अंधकार में भटकने वाले लोगों ने एक महत्ती ज्योति देखी है, अंधकारमय प्रदेष में रहने वालों पर ज्योति का उदय हुआ है। (इसायाह 9,1)। यह ज्योति क्या है? ऐसा कौन सा प्रकाष है जिसके बारे में नबी कह रहे हैं? क्या यह चंद्रमा की रोषनी है या फिर सूरज का तेज प्रकाष? हरगिज नहीं। नबी जिस रोषनी की बात कर रहे हैं वह हज़ारों सूरज की रोषनी से भी तेज है। यह एक ऐसा तेज है जिसके सामने किसी भी प्रकार का अंधकार टिक नहीं सकता है।
उत्पत्ति ग्रंथ 1,1-3 में हम पढते हैं कि प्रारम्भ में पृथ्वी उजाड और सुनसान थी। अथाह गर्त पर अंधकार छाया हुआ था और ईष्वर का आत्मा सागर पर विचरता था। ईष्वर ने कहा प्रकाष हो जाये, और प्रकाष हो गया। प्रकाष ईष्वर की पहली सृष्टि है। प्रभु ने सबसे पहले प्रकाष बनाया। पेड-पौधे और जीव-जन्तु बनाने से पहले ईष्वर ने प्रकाष बनाया क्योंकि यह हर प्रकार के जीवन के लिए एक अति आवष्यक घटक है। पूर्ण अंधकार में जीवन संभव नहीं।
विभिन्न धर्मों में प्रकाष को ईष्वर की उपस्थिति का प्रतीक माना जाता है। पवित्र बाइबल में ईष्वर ने कभी प्रकाष के स्तम्भ के रूप में, कभी जलती झाडी में इस्राएलियों को दर्षन दिये। तथा प्रभु येसु के आगमन के बारे में बतलाते हुए संत मत्ती कहते हैं - अंधकार में रहने वालों ने एक महत्ती ज्योति देखी, मृत्यु के अंधकारमय प्रदेष, में रहने वालों पर ज्योति का उदय हुआ है। अंधकार! अंधकार और कुछ नहीं ज्योति का अथवा प्रकाष का आभाव है। प्रकाष और अंधकार एक साथ नहीं रह सकते। जहाँ प्रकाष है वहांँ अंँधेरा नहीं टिक सकता। प्रभु येसु ख्रीस्त ने कहा है - ‘‘ससार की ज्योति मैं हूँं। जो मेरा अनुसरण करता है, वह अंधकार में भटकता नहीं रहेगा। उसे जीवन की ज्योति प्राप्त होगी’’ (संत योहन 8,12)। जहांँ प्रभु येसु है वहांँ अंँधकार की कोई शक्ति प्रबल नहीं हो सकती। यदि कोई कहता है प्रभु येसु मुझमें है, वो मेरे साथ है और वह पाप के अंँधकार में जीवन बिताता तो वह स्वयं को धोखा देता है। क्योंकि प्रभु येसु वह ज्योति है जिसके प्रकाष में हमें स्वर्ग का मार्ग साफ-साफ दिखाई देता है। जो प्रभु की ज्योति में चलता है पापमय अंधकार में नहीं चल सकता। प्रभु का वचन वह ज्योति है जो हमें सही मार्ग दिखाता हैं।  वचन कहता है - ‘‘तेरी षिक्षा मुझे ज्योति प्रदान करती और मेरा पथ आलोकित करती है’’ (स्तोत्र 119,105)। इसका मतलब यह हुआ कि प्रभु येसु की ज्योति के उजाले में जो जीता है उसे क्या भला क्या बूरा, क्या पाप और क्या धार्मिकता, यह सब साफ-साफ दिखाई देता है। वह न भटकता और न ही ठोकर खाता है। हम अपने आप को ईसाई कहते तो हैं परन्तु यदि हमारा आचरण अंधकारमय है, हमारे कर्म अंधकारमय है तो हम खोखले ईसाई हैं। ईसाई होते हुए भी हम यदि इस दुनिया में अंधकार में जीवन बिताते हैं, तो हमने मसीह को व उसकी षिक्षाओं को नहीं पहचाना। हम प्रभु की ज्योति से अब भी दूर हैं। संत योहन 1,9-12 में वचन हमसे कहता है - ‘‘शब्द वह सच्ची ज्योति था, जो प्रत्येक मनुष्य का अंधकार दूर करती है। वह संसार में आ रहा था। वह संसार में था, संसार उसके द्वारा उत्पन्न हुआ, किंतु संसार ने उसे नहीं पहचाना। जितनों ने उसे अपनाया, और जो उसके नाम में विष्वास करते हैं उन सब को उसने ईष्वर की संतत्ति बनने का अधिकार दिया।’’ सारे संसार को सत्य का प्रकाष देने, सारी मानवता को मुक्ति की राह दिखाने के लिए संसार की ज्योति प्रभु येसु ख्रीस्त संसार में आ चुके हैं। उनकी ज्योति में चलकर अपनी जीवन नैया पार लगाना या फिर पापमय अंधकार में चलकर अपने जीवन को हमेषा के लिए नष्ट करना ये हमारे व्यक्तिगत चुनाव के ऊपर निर्भर करता है। प्रभु हमें पूर्ण स्वतंत्रता देते हैं वे अपनी राहें, अपनी षिक्षाएं हम थोपना नहीं चाहते पर फिर भी वे यही चाहते हैं कि हम हमारी स्वतंत्रता में जीवन का चयन करें। वचन कहता है - ‘‘मैं तुम्हारे सामने जीवन और मृत्यु, भलाई और बुराई रख रहा हूँ। तुम लोग जीवन को चुन लो, जिससे तुम और तुम्हारे वंषज जीवित रह सकें’’ (विधिविवरण 30,19)। ये चयन हमारे लिए, हमारे जीवन के लिए बहुत ही ज़रूरी है। आज के सुसमाचार में हमने सुना प्रभु येसु पेत्रुस और उनके भाई अंद्रेयस, जे़बेदी के पुत्र याकूब और योहन को अपना अनुसरण करने के लिए बुलाते हैं। वे मछुवारे थे और अपनी नाव, जाल व रिष्तेदारों के साथ समुद्र से मछली पकड रहे थे। उनके सामने दो विकल्प थे - अपनी जाल व नाव के साथ अपना मछुवारे का काम जारी रखना या फिर सब कुछ पीछे छोडकर प्रभु येसु का अनुसरण करना। उन्होंने संसार की ज्योति को चुना। हमारे जीवन में हमें पग-पग यह चयन करना है। यदि हमने एक बार येसु को चुना है उनकी षिक्षाओं को चुना है तो हमें जीवन के हर पढाव में उन्हें ही चुनते रहना है। हर एक बुराई, हर एक पाप की परिस्थिति हमारे सामने दो विकल्प खडे करती है। या तो हम बुराई को चुनें या फिर प्रभु के वचनों को, प्रभु की राहों। हम दोनों नहीं चुन सकते। प्रभु कहते हैं - ‘‘कोई भी दो स्वामियों की सेवा नहीं कर सकता या तो वह एक से बैर और दूसरे से प्रेम करेगा या फिर एक का आदर और दूसरे का तिरस्कार करेगा’’ (मत्ती 6,24)। मैं प्रभु की संतान और शैतान की संतान एक साथ नहीं हो सकता। मैं या तो प्रभु का हूँ या फिर शैतान का, मैं या तू प्रभु की राहों पर चलता हूँ या फिर शैतान की। मैं दोनों राहों पर एक साथ नहीं चल सकता। मैं जीवन के मार्ग पर चलता हूँ या फिर मौत के मार्ग पर, धार्मिकता के मार्ग पर या फिर अधार्मिकता मार्ग पर, मैं ज्योति में चलता हूँ या फिर अंधकार में। प्रकाष और अंधकार, पाप व पूण्य, प्रभु व शैतान ये दोनों ताकतें हर पग पर हमें प्रभावित करती हैं और हमें चुनौति देती है। जो कोई पेत्रुस और अंद्रेयस, योहन और याकूब की तरह जीवन के हर पडाव में येसु को चुनेंगे उनके बारे में वचन कहता है - ‘‘ऐसे लोगों पर द्वितीय मृत्यु का कोई अधिकार नहीं है। वे ईष्वर और मसीह के पुरोहित होंगे और उनके साथ . . . राज्य करेंगे’’ (प्रकाषना 20,6)।
आईये हम अंधकार को त्यागकर संसार की ज्योति प्रभु येसु को चुनें, पाप को छोडकर धार्मिकता को चुनें, अनन्त मृत्यु छोडकर अनन्त जीवन को चुनें। आमेन।















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