Saturday, 28 January 2017

वर्ष का चौथा इतवार



सफन्या 2,3-3,12-13
1 कुरिंथ 1, 26-31
मत्ती 5, 1-12


इस दुनिया में हर कोई खुशी और शांति चाहता है। शांति और ख़ुशी की जुगाड में इंसान क्या-क्या नहीं करता। पढाई-लिखाई, मेहनत-मज़दूरी, नौकरी-पैशा अथवा मंदिर, मस्ज़िद और गिरजाघरों के चक्कर भी हम मन मी शांति और खुशी के लिए ही तो लगाते हैं। आजकल टी. वी. चैनलों पर तो ऐसे कई तरीकों एवं मंत्रों का प्रचार-प्रसार होता है जो क्षण भर में हमारे जीवन को बदलने एवं हमारे भाग्य को पलटने का दावा करते हैं। इंसान को धनी बनाने, नौकरी दिलाने व करोबार में सफलता दिलाकर रूपये-पैसे एवं शौहरत दिलाने के खोखले वादे करके लोगों को मोहित करने का बाज़ार आजकल बहुत ही गर्म है। कई लोग इन अंधे विज्ञापनों के जाल में फंसकर अपने जीवन में सफलता और शौहरत की तलाश करते हैं। कई लोग रातों-रातों अमीर बनने के ख्वाब देखकर, तो कई अपने आपको ऊंचाईयों पर पहुँचाने के सपने संजोकर अपना जीवन धन्य बनाने का प्रयास करते हैं। दुनिया की निगाहों में तो वे लोग धन्य व आशिषित कहे जा सकते हैं जिनके पास रूपये-पैसे, धन-दौलत, शानो-शौहरत एवं एक आरामदायक ज़िंदगी जीने के सारे साधन उपलब्ध हैं। परन्तु प्रभु का नज़रिया दुनिया के नज़रिये से भिन्न है। प्रभु की नज़रों में वह व्यक्ति धन्य है जो अपने को दीन-हीन समझता है, जो गरीब है, जो आभावों में जीता है। उसका धन, उसकी दौलत और शौहरत सब कुछ प्रभु ही है। प्रभु की निगाहों में वह व्यक्ति धन्य नहीं है जो खुद को इस समाज में अथवा इस संसार में बहुत बडा मानता हो अथवा बडा बनने का प्रयास करता हो परन्तु वह व्यक्ति प्रभु के लिए धन्य है जो विनम्र है, जो बडा होते हुए भी, बडे पद पर रहते हुए भी स्वयं को सबों का सेवक एवं सबसे छोटा मानता है।
यदि किसी के घर में, परिवार में कोई अनहोनी हो जाती है, किसी की मृत्यु हो जाती है, या फिर कोई घोर विपत्ति हमें घेर लेती है और हम हमारे दुःखों पर शोक मनाते हैं तो दुनिया कहती है - इनका भाग्य खराब है, दुर्भाग्य का पहाड इन पर टूट पडा है अथवा पता नहीं अपने किस कर्म का फल ये भुगत रहे हैं आदि। पर प्रभु कहते हैं धन्य हो तुम जो शोक करते हो, तुम्हें सान्तवना मिलेगी। हमारे दुखों में हमारा प्रभु हमारे साथ रहता है।
गौतम बुद्ध कहा करते थे इस संसार में दुःख का कारण तृष्णा है। आज की युवा पिढी में विभिन्न प्रकार की भूख एवं तृष्णा है धन-दौलत की भूख, विलासितापूर्ण जीवन की भूख, अच्छे घर, अच्छे मकान की भूख, सुख-सुविधाओं की भूख, लेटेस्ट मोबाइल एवं अन्य इलेक्ट्रोनिक गैजेट्स पाने की भूख, पार्टी जाने व मौज मस्ती करने की भूख, प्यार करने व प्यार पाने की भूख। एक तृष्णा मिटती है तो दूसरी पैदा होती है। एक ज़रूरत पूरी होती है दो उसके बदल दस ज़रूरतें और खडी हो जाती है। हमारा खालीपन, जीवन का अधूरापन कभी खत्म नहीं होता। हमारे जीवन के अधूरेपन को सिर्फ प्रभु ही पूरा कर सकते हैं। हमें परिपूर्ण तृप्ति प्रभु ही दे सकते हैं। पर हम उनके लिए तरसते ही नहीं। आज की पीढी में प्रभु के लिए, और धार्मिकता के लिए भूख एवं रूची की कम होती जा रही है। प्रभु कहते हैं जो धार्मिकता के भूखे और प्यासे हैं वे तृप्त किये जायेंगे। संत मत्ती 6, 33 में प्रभु हमसे कहते हैं - तुम सब से पहले ईश्वर के राज्य और उसकी धार्मिकता की खोज में लगे रहो और ये सब चीजे़ं तुम्हें यों ही मिल जायेंगी। हम हमारे मन की शांति और दिल की तसल्ली की तलाश गलत जगहों पर करते हैं इसलिए तृप्ती नहीं मिलती। छोटों से लेकर बडों तक सब जीवन में असंतुष्ट रहते हैं। क्योंकि हम दुनियाई चीज़ों में तसल्ली ढुंढते हैं। हम अनष्वर खज़ाने को छोडकर नष्ट हो जाने वाले खज़ाने में अपना मन लगाते हैं और उसे पाने की कोशिश करते रहते हैं। इस जीवन में सच्चा सुख सिर्फ प्रभु से ही हमें मिल सकता है।
इस दुनिया में कई लोग ऐसे हैं जो किसी की चुगली करके दूसरों के सामने किसी का नाम खराब करते हैं। जलन एवं ईर्ष्या के कारण तथा अपनी स्वार्थ सिद्धी हेतु दो पक्षों में मतभेद, मनमुटाव अथवा झगडा करा देते हैं। ऐसे चापलूस जो खुद को अच्छा दिखाने के चक्कर में दूसरों के रिष्तों में दरार पैदा करते हैं वे प्रभु की संतान नहीं हो सकते। प्रभु की संतान तो वे लोग हैं जो टूटे रिष्तों को जोडने की बात करते हैं, जो मेल मिलाप कराते हैं। प्रभु कहते हैं - ‘‘धन्य है वे जो मेल-मिलाप कराते हैं वे ईशवर के पुत्र-पुत्रियां कहलायेंगे।
कलीसिया पर अत्याचार कोई नई बात नहीं है। कलीसिया के प्रारम्भ से ही प्रभु के भक्तों के ऊपर घोर अत्याचार किया जाता रहा है। स्वयं प्रभु येसु ने घोर अत्याचार सहा एवं सूली पर कुर्बानी दी। उनके बाद उनके शिष्यों ने भी प्रभु के नाम पर आये हर दुःख विपत्ति को खुशी-खुशी झेला और शहादत प्राप्त की। कुछ दिनों पहले सोशयल मिडिया पर एक मेसेज सरक्युलेट हो रहा था जिसमें एक वेबसाइट की लिंक थी, जिस पर जाकर उन इसाईयों को साईन करना था जो सुप्रिम कोर्ट से ईसाई मिशनरियों पर हाथ उठाने वालों को सश्रम कारावास का कानून दिलाने की मांग करते हों। दो हज़ार से भी अधिक ईसाई यह पेटिशन साईन कर चुके हैं। मैं बाइबल का कोई ज्ञाता तो नहीं हूँ पर मेरे सीमित ज्ञान से यह तो कह सकता हूँ कि पवित्र बाइबल में ऐसा करना तो कहीं नहीं सिखाया गया है। प्रभु का वचन कहता है - ‘‘अपने आप को बुद्धिमान न समझें। बुराई के बदले बुराई नहीं करें। दुनिया की दृष्टि में अच्छा आचरण करने का ध्यान रखें। जहांँ तक हो सके अपनी ओर से सबों के साथ मेल-मिलाप बनाये रखें। प्रिय भाईयों आप स्वयं बदला न चुकायें बल्कि उसे ईशवर के प्रकोप पर छोड दें, क्योंकि लिखा है प्रतिषोध मेरा अधिकार है, मैं ही बदला चुकाऊंगा’’ (रोम12, 16-19)। इसलिए धार्मिकता के कारण अत्याचार सहना हमारा दुर्भाग्य नहीं, ये तो हमारा सौभाग्य है। प्रभु कहते हैं - धन्य है वे जो धार्मिकता के कारण अत्याचार सहते हैं स्वर्ग राज्य उन्हीं का है। धन्य हो तुम जब लोग मेरे कारण तुम्हारा अपमान करते हैं, तुम पर झूठे दोष लगाते हैं। खुश हो और आनन्द मनाओ स्वर्ग में तुम्हें महान पुरूस्कार प्राप्त होगा।
आईये ख्रीस्त में प्यारे भाईयों और बहनों हम इस दुनिया के निमित नहीं पर प्रभु के वचनों के अनुसार अपना जीवन जियें। हम दीन-हीन बनें, विनम्र तथा दयालु बनें, मन के निर्मल एवं पवित्र बनें, अपने भाई-बहनों के बीच मेल-मिलाप एवं भाईचारे की एक कडी बनकर लोगों को प्रेम के सूत्र में बांधने की कोशीश करें। और हमेशा प्रभु की व उसकी धार्मिकता की खोज में लगे रहें। तथा प्रभु के नाम पर आने वाले हर कष्ट-पीडा को धैर्य एवं हिम्मत के साथ ख़ुशी-खुशी स्वीकार करें क्योंकि स्वर्ग में हमारे लिए एक महान पुरस्कार हमारा इंतज़ार कर रहा है। आमेन।


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