मेरे प्रिय भाईयों बहनों आज की पूजनविधि में हम प्रभु केहमने बीते दिनों में प्रभु येसु के दुखभोग एवं मरण की यादगारी मनाई। उनकी मृत्यु के बाद उनके कुछ शिष्यों ने उनकी पवित्र लाश उतारी और उन्हें कब्र में रख दिया। प्रभु येसु के विरोधियों ने उनकी कब्र पर बडा सा पत्थर रखकर उस पर मूहर लगा दी यह सोचकर कि इसने पहले से कहा था कि वह तीसरे दिन जी उठेगा। न जाने कब उन के शिष्य आयेंगे और इसकी लाश को ले जायेंगे। प्रभु के विरोधियां ने सोचा सारी कहानी का अंत वहां हो गया। सब कुछ खत्म हो गया। लेकिन हम प्रेरित चरित 2, 24 में हम पढते हैं, जहां संत पेत्रुस कहते हैं - ‘‘ ईश्वर ने मृत्यु क बंधन खोलकर उन्हें पुनर्जीवित किया। यह असंभव था कि प्रभु येसु मृत्यु के वश में रहे।’’ मृत्यु के अधीन, उसके अधिकार में उसके बंधन में रहना प्रभु येसु के लिए असंभव था।
पुनरूत्थान पर मनन चिंतन करेंगे। योहन 11,33 में वचन कहता है - पुनरूत्थान और जीवन मैं हूँ। .......
प्रभु येसु के शिष्यों के अंदर भी डर था। और इसिलिए वे लोग भी सोच रहे थे कि सारी कहानी खत्म हो गई है, और वे जाकर एक कमरे में अपने-आप को बंद कर के छिप गये। अपने आप में ग्लानी महसूस कर रहे थे। अपने किये कार्यों पर ग्लानी व दुःख महसूस कर रहे थे कि दुखित क्षणों में हमने प्रभु को छोड दिया। हमने प्रभु का तिरस्कार किया। सबों पर उदासी छायी हुई थी। सब डरे हुए थे एक बंद कमरे में, मानो वे मरे हुए थे।
संत योहन 20, में हम पढते हैं उनके बंद कमरे में पुनर्जिवित प्रभु येसु प्रवेश करते हैं। और पुनर्जिवित प्रभु येसु का सामर्थ्य उस कमरे में भर जाता है। उनका प्रकाश उस कमरे में भर जाता है। उनका जीवन उस कमरे में भर जाता है। इस तरह 2 तिमथी 1,10 में वचन कहता है - ‘‘ईसा ने मृत्यु का विनाश किया और अपने सुसमाचार के द्वारा अमर जीवन को अलोकित किया है।’’ जो शिष्य डरे हुए थे, असुरक्षा मसूस कर रहे थे कमरे में बंद थे, उन में प्रभु येसु ने एक नये जीवन का संचार किया। वे मरे -मरे थे उन पर प्रभु येसु ने जीवन का संचार किया। उनके उपर जो ग्लानी की भावना थी दुख से भरे थे, उन्हें प्रभु येसु ने आनन्द से भर दिया। जैसे कि एक पौधा, जो पानी के आभाव में मुरझा रहा हो, सूखने-सूखने को हो और अचानक उसे पानी किल जाए तो वह फिर से खिल उठता है। हरा-भरा हो जाता है वैसे ही प्रभु के शिष्यों में नई जान आ जाती है।
हम सुसमाचार में पढते हैं कि प्रभु येसु के प्रिय शिष्याओं में से एक मरियम मगदलेना और कुछ नारियां प्रभु येसु की कब्र की ओर जाती है। प्रातः का समय था वे आपस में सोच रहे थे कि हमारे लिए कौन कब्र को खोल देगा ताकि हम उनकी लाश पर इत्र लगाएं। और ऐसा सोचते हुए वे कब्र के पास जा रही थी, सुसमाचार हमें बताता है कि जब वे वहां पहुंचती है तो कब्र खुली हुई थी। मरियम दौड कर आयी पेत्रुस और योहन को बुला लाई उन्होंने भी देखा कि कब्र खुली है और येसु की लाश उसमें नहीं है। और वह वहीं खडी रह गई और रोने लगी। तो स्वर्ग दूतों ने पूछा नारी क्यों रोती हो। उसने कहा कि क्योंकि वे मेरे गुरू की लाश को ले गए हैं और मैं नहीं जानती कि वह कहां है। बाद में प्रभु येसु स्वयं उससे पूछते हैं, नारी तुम क्यों रोती हो! और वह वही जवाब देती है। अंत में प्रभु येसु उन्हें नाम लेकर उसे पुकारते हैं "मरियम " और मरियम प्रभु येसु को पहचान लेती है। पुनर्जीवित प्रभु येसु का सामार्थ्य उसके अंदर प्रवेश कर जाता है।
इस तरह हम देखते हैं कि सुसमाचार में पढते हैं कि करीब चालिस दिनों तक प्रभु येसु अपने शिष्यों के साथ रहे और उनको बार-बार विविध रूपों में दर्शन देते हुए इस बात का अनुभव करा रहे थे कि देखो मैं मर गया था लेकिन अभी जी गया हूँ। जैसा कि प्रकाशना 1 :18 ग्रंथ में हम पढते हैं - ‘‘जीवन का स्रोत मैं हूँ। मैं मर गया था और देखो, मैं अनन्त काल तक जीवित रहूँगा। मृत्यु और अधोलोक की कुंजियां मेरे पास है। तो इस प्रकार करीब चालिस दिन तक प्रभु येसु ने बारम्बार अपनेशिष्यों को दर्शन देकर इस बात का अनुभव कराया कि वे जीवित हैं और पुनरूत्थान पर उनका विश्वास दृढ करवाया। और उनका जीवन परिवर्तित हो गया।
प्रभु येसु के पुनरूत्थान ने उनके जीवन को परिवर्तित कर दिया। उनका जीवन दर्षन ही बदल गया। जीवन को देखने का नज़रिया बदल गया। उनके लिए जीवन का एक नया रास्ता खुल गया। और प्रभु के पुनरूत्थान का अनुभव इतना गहरा था कि हमें वचन बताता है कि वे जाकर प्रचार करने लगे। फिलिपियों 3,10 में संत पौलुस कहता है - "मैं यही चाहता हूं कि येसु मसीह को जानूं और उनके पुनरूत्थान के सामार्थ्य का अनुभव करूं।’’
संत पेत्रुस प्रे. च. 2, 23-24 में प्रभु येसु के पुनरूत्थान का साक्ष्य देते हैं। यह पहला उपदेश था और प्रभु के शिष्यों का पहला प्रचार। उनके उपदेश की विषय-वस्तु और केंद्र प्रभु का पुनरूत्थान था। वे पुनर्जीवित प्रभु का गहरा अनुभव लोगों के साथ बांटते हैं। प्रे. च. 4, 35 में हम पढते हैं - प्रभु येसु के शिष्य बडे सामार्थ्य के साथ प्रभु येसु के पुनरूत्थान का साक्ष्य देते थे और उन पर बडी कृपा बनी रहती थी। जब हम भी पुनर्जीवित येसु का साक्ष्य देंगे हम पर भी प्रभु की कृपा बनी रहेगी।
हम ईसाईयों को चाहिए कि हम पुनर्जीवित मसीह का साक्ष्य देंवे। कभी-कभी देखने में आता है कि हम प्रभु मसीह के क्रूस पर बलिदान तक ही अपने साक्ष्य को सीमित रखते हैं। और प्रभु येसु के बलिदान के बारे में हम साक्ष्य देते हैं। पर सच्चे मसीही वो हैं जो प्रभु येसु के पुनरूत्थान के बारे में साक्ष्य देते हैं। आज गैर ख्रीस्त से भी यदि हम पूछें कि आप ईसा मसीह के बारे में क्या जानते हैं तो वे बतायेंगे कि उन्होंने सत्य, अहिंसा, दया, प्रेम व क्षमा के मार्ग की न केवल शिक्षा दी परन्तु अपने जीवन में उसे आत्मासात भी किया। उन्होंने क्रूस पर मरते समय भी अपने विरोधियों को क्षमा दी आदि। पर बहुत ही विरले हम उनके मुख से प्रभु के पुनरूत्थान के बार में सुनेंगे। क्यों? क्यों लोग प्रभु के पुनरूत्थान से अनभिज्ञ है? क्योंकि हम पुनर्जीवित प्रभु का साक्ष्य नहीं देते। 1 कुरिं 15,17 में वचन कहता - ‘‘यदि येसु मसीह का पुनरूत्थान नहीं हुआ है तो हमारा विश्वाश व्यर्थ है।’’ हम मसीहियों के विश्वाश का आधार है प्रभु येसु का पुनरूत्थान। हम किसी मरे हुए व्यक्ति की आराधना नहीं कर रहे हैं। हम पत्थरों अथवा मूर्तियों की नहीं, हम एक ज़िदा खुदावन्द की आराधना करते हैं। हम पुनर्जीवित येसु मसीह की आराधना करते हैं। जितनी यह बात हमारे जीवन मजबूत होती जायेगी उतना आधीक हम प्रभु येसु के जीवन का अपने जीवन में अनुभव करने लगेंगे। तो हम हर मसीही पुनर्जीवित येसु के साक्षी हैं। और हमें प्रभु येसु के पुनरूत्थान का साक्ष्य देना है।
यह साक्ष्य हमें हमारे कर्मों एवं वचनों दोनों से देना है। हमें पुनर्जीवित मसीह की घोषणा करना है। हमें लोगों को यह बतलाना है कि हमारा प्रभु जिंदा खुदा है। और अपने कर्मों द्वारा भी यह दिखलाना है कि हमारा प्रभु हममें, हमारे अन्दर, हमारे जीवन में जिंदा है। गलातियों को लिखे पत्र
2 :20 में में संत पौलुस कहते हैं - ‘‘मैं मसीह के साथ क्रूस पर मर गया हूँ। मैं अब जीवित नहीं रहा, बल्कि मसीह मुझ में जीवित है।’’ पुनर्जीवित मसीह मुझमें जीवित है। वो मेरे अंदर कार्य कर रहा है। वो मेरे अंदर अपने राज्य के फल उत्पन्न कर रहा है। कब्र से निकलकर वो मेरे जीवन में समाहित हो गया है। हम सब संत पौलुस के साथ आज यही बोलें - मुझमें अब से येसु जिंदा है। मेरा प्रभु मुझमें ज़िंदा है. मसीह का जीवन मुझमें मुझमें है। मसीह का खून मेरे रगों में बह रहा है. और यदि मसीह मुझमें जीवित है तो फिर मेरे कार्य, मेरी बातें, मेरा व्यवहार और मेरे विचार भी मसीह की तरह ही होना चाहिए। प्रभु का पुनरूत्थान मनाते समय यही भावना और यही घोषणा हम सब की होनी चाहिए। आमेन।
Wish you all a Joyful Easter
Fr. Preetam Vasuniya Indore Diocese
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