आज हम नये साल की शुरूआत ईश माता मरियम के पर्व के साथ करते हैं। मा मरियम कृपाओं से भरपूर की गयी थी। उनको प्राप्त सब कृपाओं में ईश्वर की माता बनना सबसे श्रेष्ठ था। मरियम की महानता इसमें है कि उनके हाँ कहने पर हमारी मुक्ति का द्वार खुल गया। उन्होंने कहा ‘‘देख, मैं प्रभु की दासी हूँ तेरा कथन मुझमें पूरा हो जाए’’ और उसी क्षण शब्द ने उनके गर्भ में देहधारण किया; उसी क्षण ईश्वर शब्द उनके गर्भ में शरीर धारण कर मनुष्य बन गया। इस प्रकार मरियम ईश्वर की माता बन गई; हमारे मुक्तिदाता की माता बन गई और हमारी मुक्ति में एक महान सहायक बन गई।
ईश-माता का समारोह यद्यपि कलीसिया के आरम्भ से मनाया जाता रहा है किंतु इसे हमारे काथलिक धर्मसिद्धांत के रूप में मान्यता एफेसुस की परिषद में सन् 431 में दिया गया। हम संत योहन के सुसमाचार में पढते हैं कि - ‘‘आदि में शब्द था, शब्द ईश्वर के साथ था और शब्द स्वयं ईश्वर था। उसके द्वारा सब कुछ उत्पन्न हुआ और उसके बिना कुछ भी उत्पन्न नहीं हुआ........।(और उसी) शब्द ने शरीर धारण कर हमारे बीच निवास किया।’’ (योहन 1:14 )याने प्रभु येसु, पिता के एकलौते पुत्र अनादि वचन है जो आदि में पिता के साथ विद्यमान था, जिसे ‘‘समय पूरा हो जाने पर ईश्वर ने इस संसार में भेजा। वह एक नारी से उत्पन्न हुआ और संहिता के अधीन रहा, जिससे वह संहिता के अधीन रहने वालों को छुडा सकें और हम ईश्वर के दत्तक पुत्र-पुत्रियां बन जाये’’ ( गला 4:4-5) इसका मतलब ये हुआ कि प्रभु येसु स्वयं ईष्वर थे जो अनन्तकाल से विद्यमान है। तथा मानव मुक्ति के लिए वे स्वयं एक मनुष्य बन गये। मनुष्य बनने के लिए ईश्वर ने एक कुँवारी को अपने बेटे की माँ बनने के लिए चुना। इसलिए माँ मरियम ईश्वर की माँ है। उनके शरीर में रहकर ईष्वर जो अदृष्य थे; जिसका शरीर नहीं था एक शरीर धारण करते हैं। यही कलीसिया का वोश्वास है; यही पवित्र बाईबल हमें सिखलाती है। परन्तु कई विश्वासी भाई बहनें मरियम को ईश् माता के रूप में समुचित आदर सम्मान नहीं देते। एक बार एक कैथोलिक भाई किसी नयी जगह पर गया। वहां सन्डे को प्रार्थना के लिए चर्च ढ़ुढ़ते-ढुंढ़ते एक चर्च गया। उनसे प्रार्थना का समय पूछा। वे अंदर गए और उन्होंने उस चर्च के पास्टर से पूछा कि आपके चर्च में माता मरियम के लिए कोई जगह नहीं है क्या। वे बोले जी नहीं। हम मरियम को कोई जगह नहीं देते। तो कैथोलिक भाई बोला- जहाँ प्रभु की माँ के लिए जगह नहीं वहाँ मेरे लिए भी जगह नहीं। इस पर उस कलीसिया के व्यक्ति ने उसे समझाते हुए कहा- देखो हम ये तो मानते हैं कि मरियम येसु की माँ है। पर येसु को जन्म देने के बाद उनका रोल या फिर उनकी भूमिका खत्म हो जाती है। जैसे चूजा निकलने के बाद अंडे के छिलके का क्या कोई महत्व नहीं वैसे ही येसु के जन्म के बाद मरियम का कोई महत्व तो नहीं रह जाता। ईश्वर की योजना में मुक्तिदाता को जन्म देने लिए एक नारी का होना था। और वह योजना मसीह के जन्म के साथ पुरी हो जाती है। उसके बाद मसीह का काम शुरू होता है।
क्या यह तर्क सही है? क्या मरयम महज एक अंडे का छिलका है? क्या परम् पिता ईश्वर की निगाह में यह नारी बस एक अंडे के छिलके के बराबर है? क्या ईश्वर के आदेश पर ही गेब्रियल दूत मरियम को प्रणाम नहीं करता? (लूक 1,28); क्या एलिज़ाबेथ पवित्र आत्मा से भरकर यह नहीं कहती - आप नारियों में धन्य है, और धन्य है आपके गर्भ का फल। मुझे यह सौभाग्य कैसे मिला कि मेरे प्रभु की माँ मुझसे मिलने आयी? क्या वास्तव में उनका रोल जन्म के बाद ख़त्म हो जाता है। तो फिर जन्म के बाद हेरोद जब शिशु येसु को मारना चाह रहा था तब कौन योसेफ के साथ बालक को मिस्र देश लेकर भागती हैं? संत लुकस के अनुसार कौन येसु को मन्दिर में समर्पित करती है? (लूक 2,22-23) कौन तीन दिन तक येसु को खोजते हुए येरूसलम मन्दिर तक जाती है?(लूक 2,48); कौन येसु की सेवकाई के समय उनसे मिलने जाती थी? (मत्ती 12,46-50); किसके कहने पर येसु ने काना के विवाह में अपना पहला चमत्कार दिखाया?(योहन 2,1-12); कौन क्रूस ढोते येसु के साथ-साथ चली? और कौन कलवारी पहाड़ी पर क्रूस के नीचे बेटे येसु के साथ खड़ी रही(19,25) और वो कौन थी जिसे येसु ने क्रूस से योहन को अपनी माता के रूप में दे दिया? (योहन 19,27)। प्रभु के स्वर्गारोहण के बाद कौन शिष्यों को एक साथ लेकर पवित्रात्मा के अभिषेक के लिए तैयार करती है? (प्रे.च. 1,12-14)।
अब बताईये क्या येसु के जन्म के बाद मरियम की भूमिका ख़त्म हो जाती है? कोई कितना भी विरोध कर ले, कितने भी तर्क लगाले, पर मरियम का आदर व सम्मान हर विश्वासी को करना चाहिए। क्योंकि वह येसु (ईश्वर )की माँ है। और क्योंकि पवित्र बाइबिल में भी उन्हें सम्मान का दर्ज़ा मिला है।
ईश माता होने के साथ ही साथ वो हम सब की, सारी कलीसिया की माँ है। क्योंकि स्वयं येसु ने क्रूस पर से उन्हें हमारी माता के रूप में हमें सौंपा है। हम संत योहन के सुसमाचार में पढते हैं येसु संत योहन से कहते हैं - ‘‘यह तुम्हारी माता है’’ और माँ मरियम से कहते हैं - ‘‘यह आपका पुत्र है’’ (यो 19ः27)। और वचन आगे कहता है उस समय से उस शिष्य ने अपने यहाँ उसे आश्रय दिया।’’ संत योहन ने क्या किया? तब से माँ मरियम को अपने घर में जगह दी। अपनी ही माँ के रूप में, अपने ही परिवार के एक सदस्य के रूप में। हम सब यदि यसु की माँ को अपनी माता मानते हैं, स्वीकरते हैं तो हमें भी उन्हें अपने घरों में ले जाना होगा। माता मरियम को हमारे परिवारों में जगह देना होगा; हमारे परिवार के ही एक सदस्य के रूप में माँ को स्वीकार करना होगा। क्योंकि उनके पुत्र की यही आखिरी ख्वाहीश थी अपनी माँ को लेकर कि उसका हर अनुयायी उनकी माँ को अपनी माँ समझे व उसे अपने घर ले जाये। उसने अपनी माँ को हमें इसलिए दे दिया कि वह हमारे साथ रहकर हमारी ज़रूरतों में हमारे लिए प्रार्थना करती रहे। वह हमारी परिवार में रहकर हमारे परिवारों को नाज़रेथ के पवित्र परिवार की तरह एक पवित्र व आदर्श परिवार बनानें में हमारी मदद करे। हमें धर्म मार्ग पर चलाये व शैतान के प्रलोभनों से हमारी रक्षा करे क्योंकि ईश्वर ने शैतान की सारी शक्तियों को माँ मररियम के पैरों तले डाल दिया है।
ख्रीस्त में प्यारे भाईयों और बहनों प्रभु येसु द्वारा हमें प्रद्त इस अमुल्य उपहार को हम हमारे घरों में, हमारे परिवारों में कैसे रख सकते हैं। मैं सोचता हूँ पवित्र रोज़री माला से उत्तम और कोई साधन नहीं जिसके द्वारा हम माँ मरियम को अपने घरों में बुला सकते हैं उनका आह्वान कर सकते हैं, उनसे प्रार्थना की अरज कर सकते हैं। जिस घर में रोज़री माला विनती होती है माँ मरियम उस घर में रहती है, उस घर का, उस परिवार का एक अभिन्न अंग बनकर। उनकी प्रार्थनायें माँ प्रभु तक जल्दि पहुँचा देती है।
आईये हम माँ मरियम को अपने घरों में जगह दें, रोज उनका स्मरण करें, वो ईष्वर की माता व हम सब की माता है।
आमेन।
May you have a year filled with mighty anointing of the Spirit of God who came upon Mary to make her the Mother of God.
Happy New Year to all.
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