Wednesday, 30 December 2020

ईश माता का पर्व 1 January 2020

 


आज हम नये साल की शुरूआत ईश माता मरियम के पर्व के साथ करते हैं। मा मरियम कृपाओं से भरपूर की गयी थी। उनको प्राप्त सब कृपाओं में  ईश्वर की माता बनना सबसे श्रेष्ठ था। मरियम की महानता इसमें है कि उनके हाँ कहने पर हमारी मुक्ति का द्वार खुल गया। उन्होंने कहा ‘‘देख, मैं प्रभु की दासी हूँ तेरा कथन मुझमें पूरा हो जाए’’ और उसी क्षण शब्द ने उनके गर्भ में देहधारण किया; उसी क्षण ईश्वर  शब्द उनके गर्भ में शरीर धारण कर मनुष्य बन गया। इस प्रकार मरियम ईश्वर की माता बन गई; हमारे मुक्तिदाता की माता बन गई और हमारी मुक्ति में एक महान सहायक बन गई।

ईश-माता का समारोह यद्यपि कलीसिया के आरम्भ से  मनाया जाता रहा है किंतु इसे हमारे काथलिक धर्मसिद्धांत के रूप में मान्यता एफेसुस की परिषद में सन् 431 में दिया गया। हम संत योहन के सुसमाचार में पढते हैं कि - ‘‘आदि में शब्द था, शब्द ईश्वर के साथ था और शब्द स्वयं ईश्वर था। उसके द्वारा सब कुछ उत्पन्न हुआ और उसके बिना कुछ भी उत्पन्न नहीं हुआ........(और उसी) शब्द ने शरीर धारण कर हमारे बीच निवास किया।’’ (योहन 1:14 )याने प्रभु येसु, पिता के एकलौते पुत्र अनादि वचन है जो आदि में पिता के साथ विद्यमान था, जिसे ‘‘समय पूरा हो जाने पर ईश्वर  ने इस संसार में भेजा। वह एक नारी से उत्पन्न हुआ और संहिता के अधीन रहा, जिससे वह संहिता के अधीन रहने वालों को छुडा सकें और हम ईश्वर के दत्तक पुत्र-पुत्रियां बन जाये’’ ( गला 4:4-5) इसका मतलब ये हुआ कि प्रभु येसु स्वयं ईष्वर थे जो अनन्तकाल से विद्यमान है। तथा मानव मुक्ति के लिए वे स्वयं एक मनुष्य बन गये। मनुष्य बनने के लिए ईश्वर  ने एक कुँवारी को अपने बेटे की माँ बनने के लिए चुना। इसलिए माँ मरियम ईश्वर  की माँ है। उनके शरीर में रहकर ईष्वर जो अदृष्य थे; जिसका शरीर नहीं था एक शरीर धारण करते हैं। यही कलीसिया का वोश्वास  है; यही पवित्र बाईबल हमें सिखलाती है। 

परन्तु कई विश्वासी भाई बहनें मरियम को ईश् माता के रूप में समुचित आदर सम्मान नहीं देते। एक बार एक कैथोलिक भाई किसी नयी जगह पर गया। वहां सन्डे को प्रार्थना के लिए चर्च ढ़ुढ़ते-ढुंढ़ते एक चर्च गया। उनसे प्रार्थना का समय पूछा। वे अंदर गए और उन्होंने उस चर्च के पास्टर से पूछा कि आपके चर्च में माता मरियम के लिए कोई जगह नहीं है क्या। वे बोले जी नहीं। हम मरियम को कोई जगह नहीं देते। तो कैथोलिक भाई बोला- जहाँ प्रभु की माँ के लिए जगह नहीं वहाँ मेरे लिए भी जगह नहीं। इस पर उस कलीसिया के व्यक्ति ने उसे समझाते हुए कहा- देखो हम ये तो मानते हैं कि मरियम येसु की माँ है। पर येसु को जन्म देने के बाद उनका रोल या फिर उनकी भूमिका खत्म हो जाती है। जैसे चूजा निकलने के बाद अंडे के छिलके का क्या कोई महत्व नहीं वैसे ही येसु के जन्म के बाद मरियम का कोई महत्व तो नहीं रह जाता। ईश्वर  की योजना में मुक्तिदाता को जन्म देने लिए एक नारी का होना था। और वह योजना  मसीह के जन्म के साथ पुरी हो जाती है। उसके बाद मसीह का काम शुरू होता है।

क्या यह तर्क सही है?  क्या मरयम महज एक अंडे का छिलका है? क्या परम् पिता ईश्वर की निगाह में यह नारी बस एक अंडे के छिलके के बराबर है? क्या ईश्वर के आदेश पर ही गेब्रियल दूत मरियम को प्रणाम नहीं करता? (लूक 1,28); क्या एलिज़ाबेथ पवित्र आत्मा से भरकर यह नहीं कहती - आप नारियों में धन्य है, और धन्य है आपके गर्भ का फल। मुझे यह सौभाग्य कैसे मिला कि मेरे प्रभु की माँ मुझसे मिलने आयी? क्या वास्तव में उनका रोल जन्म के बाद ख़त्म हो जाता है। तो फिर जन्म के बाद हेरोद जब शिशु येसु को मारना चाह रहा था तब कौन योसेफ के साथ बालक को मिस्र देश लेकर भागती हैं? संत लुकस के अनुसार कौन येसु को मन्दिर में समर्पित करती है? (लूक 2,22-23) कौन तीन दिन तक येसु को खोजते हुए येरूसलम मन्दिर तक जाती है?(लूक 2,48); कौन येसु की सेवकाई के समय उनसे मिलने जाती थी? (मत्ती 12,46-50); किसके कहने पर येसु ने काना के विवाह में अपना पहला चमत्कार दिखाया?(योहन 2,1-12); कौन क्रूस ढोते येसु के साथ-साथ चली? और कौन कलवारी पहाड़ी पर क्रूस के नीचे बेटे येसु के साथ खड़ी रही(19,25) और वो कौन थी जिसे येसु ने क्रूस से योहन को अपनी माता के रूप में दे दिया? (योहन 19,27) प्रभु के स्वर्गारोहण के बाद कौन शिष्यों को एक साथ लेकर पवित्रात्मा के अभिषेक के लिए तैयार करती है? (प्रे.. 1,12-14)

 

अब बताईये क्या येसु के जन्म के बाद मरियम की भूमिका ख़त्म हो जाती है? कोई कितना भी विरोध कर ले, कितने भी तर्क लगाले, पर मरियम का आदर सम्मान हर विश्वासी को करना चाहिए। क्योंकि वह येसु (ईश्वर )की माँ है। और क्योंकि पवित्र बाइबिल में भी उन्हें सम्मान का दर्ज़ा मिला है।

ईश माता होने के साथ ही साथ वो हम सब की, सारी कलीसिया की माँ है।  क्योंकि स्वयं येसु ने क्रूस पर से उन्हें हमारी माता के रूप में हमें सौंपा है। हम संत योहन के सुसमाचार में पढते हैं येसु संत योहन से कहते हैं - ‘‘यह तुम्हारी माता है’’ और माँ मरियम से कहते हैं - ‘‘यह आपका पुत्र है’’ (यो 1927) और वचन आगे कहता है उस समय से उस शिष्य ने अपने यहाँ उसे आश्रय दिया।’’ संत योहन ने क्या किया? तब से माँ मरियम को अपने घर में जगह दी। अपनी ही माँ के रूप में, अपने ही परिवार के एक सदस्य के रूप में। हम सब यदि यसु की माँ को अपनी माता मानते हैं, स्वीकरते हैं तो हमें भी उन्हें अपने घरों में ले जाना होगा। माता मरियम को हमारे परिवारों में जगह देना होगा; हमारे परिवार के ही एक सदस्य के रूप में माँ को स्वीकार करना होगा। क्योंकि उनके पुत्र की यही आखिरी ख्वाहीश थी अपनी माँ को लेकर कि उसका हर अनुयायी उनकी माँ को अपनी माँ समझे उसे अपने घर ले जाये। उसने अपनी माँ को हमें इसलिए दे दिया कि वह हमारे साथ रहकर हमारी ज़रूरतों में हमारे लिए प्रार्थना करती रहे। वह हमारी परिवार में रहकर हमारे परिवारों को नाज़रेथ के पवित्र परिवार की तरह एक पवित्र आदर्श परिवार बनानें में हमारी मदद करे। हमें धर्म मार्ग पर चलाये शैतान के प्रलोभनों से हमारी रक्षा करे क्योंकि ईश्वर  ने शैतान की सारी शक्तियों को माँ मररियम के पैरों तले डाल दिया है।

ख्रीस्त में प्यारे भाईयों और बहनों प्रभु येसु द्वारा हमें प्रद्त इस अमुल्य उपहार को हम हमारे घरों में, हमारे परिवारों में कैसे रख सकते हैं। मैं सोचता हूँ पवित्र रोज़री माला से उत्तम और कोई साधन नहीं जिसके द्वारा हम माँ मरियम को अपने घरों में बुला सकते हैं उनका आह्वान कर सकते हैं, उनसे प्रार्थना की अरज कर सकते हैं। जिस घर में रोज़री माला विनती होती है माँ मरियम उस घर में रहती है, उस घर का, उस परिवार का एक अभिन्न अंग बनकर। उनकी प्रार्थनायें माँ प्रभु तक जल्दि पहुँचा देती है।

 

आईये हम माँ मरियम को अपने घरों में जगह दें, रोज उनका स्मरण करें, वो ईष्वर की माता हम सब की माता है।

आमेन।

Saturday, 26 December 2020

Feast of Holy फॅमिली पवित्र परिवार का पर्व 27 दिसंबर 2020 हिंदी मनन चिंतन फादर preetam द्वारा

 पवित्र परिवार का पर्व 27 दिसंबर 2020


प्रवक्ता 3:3 - 7, 14-17

कोलोसियों 3:12-21

मत्ती 2:13-15, 19-23

आज हम पवित्र परिवार का पर्व मना रहे है. एक परिवार में जन्म लेकर प्रभु येसु ने परिवारों को पवित्र कर दिया है। नाज़रेथ का पवित्र परिवार सभी ख्रीस्तीय परिवारों के लिए आदर्श है। येसु, मारिया और जोसफ तीनो मिलकर परिवार में हर एक सदस्य की सच्ची भूमिका का आदर्श हमारे सामने रखते हैं। आइये आज हम नाज़रेथ के परिवार को अपने परिवारों की आधारशीला मानते हुए आज के परिवेश में ख्रीस्तीय परिवारों पर मनन चिंतन करें।


ख्रीस्तीय परिवारों में माता-पिताओं का दायित्व 


जिस प्रकार से समर्पित धर्मसंघी जीवन एक धार्मिक बुलाहट है, ठीक उसी प्रकार वैवाहिक जीवन भी एक पवित्र बुलाहट है। जब ईश्वर आदम हेवा का जोडा बनाया तो उन्न्हें आशीर्वाद देते हुए कहा- फलो फूलो और संसार में फैल जाओ। आज माता-पिता इसी पावन कार्य को निभा रहे हैं। अतः माता-पिता का दायित्व कितना महान है। वे आज ईश्वर की सृष्टि के उसी कार्य को जारी रख रहे हैं। वे भावी कलीसियाा और राष्ट्र के निर्माता हैं। भावी कलीसिया और राष्ट्र उनके हाथ में हैं। वे बच्चों के प्रथम शिक्षक - शिक्षिकाएं हैं । उन्हें वे जैसे संस्कारों से विभूषित करेंगे, भावी कलीसिया भी वैसी ही होगी। बच्चों का मन एक कोरा कागज है। वे उसमें जैसा लिखेंगे, वह सदा वैसी ही रह जायेगा। वे कुम्हार की तरह है, तो बच्चे गीली मिट्टी की तरह। बच्चों का भावी स्वरूप माता-पिता के हाथों में है। वे कुशल माली तरह हैं। माली यदि निष्ठापुर्वक फूलवारी की देखभाल करता है, तो फूलवारी की सुन्दरता में चार चाॅंद लगना ही है। उसी प्रकार यदि माता-पिता अपने बाल-बच्चों तथा परिवार के प्रति निष्ठावान होंगे, तो परिवार को आदर्श परिवार बनने तथा होनहार सन्तानों के पैदा होने से काई नहीं रोक सकता। अतः माता-पिता को निम्नलिखित बिंदुओं पर विषेष ध्यान देना है-


1. माता-पिता का जीवन-आदर्श

कहा जाता है कि उदाहरण भाषण से बेहतर होता है। अर्थात् कथनी से करनी बेहतर है। कहने का अर्थ है- बच्चों को उपदेष देने या समझाने से उत्तम है खुद कर के दिखाना, क्योंकि बच्चे नकलबाज हैं। वे उपदेष या भाषणा पर उतना ध्यान नहीं देंगे जितना माता-पिता की कार्यशैली पर ध्यान देंगे। वे माता-पिता की हरर गतिविधी की नकल करेंगे। जैसे मता-पिता पियक्कड हैं और अपने बच्चों को समझाते हैं कि दारू बिना अच्छा नहीं है, तो क्या वे उनकी बातों को मानेंगे। कभी नहीं। इसलिए माता-पिता को चाहिए कि बच्चों को समझाने से पहले अपने को आदर्श पेश करें। बच्चे खुद ब खुद मान जायेंगे।

2. अनुशासन

जिस प्रकार घोडे को नियंत्रण में रखने के लिए लगाम की आवश्यकता होती है उसी प्रकार बच्चों को भटकने से रोकने बचाने के लिए अनुशासन की नितान्त आवश्यकता है । इसिलए धर्मग्रंथ कहता है- जो घोडा पालतु नहीं बनाया गया, वह वश में नहीं रहता। उसी प्रकार यदि पुत्र भी स्वछंद छोडा गया, तो वह उदण्ड बन जायेगा। तुम उसे जवानी में पूरी स्वतंत्रता मत दो और उसके अपराधों को अनदेखा मत करो। वह हठी बनकर तुम्हारी बात नहीं मानेगा और तुमको उसके कारण दुख होगा। तुम अपने पुत्र को शिक्षा दो और अनुशासन में रखो। नहीं तो तुमको उसकी दुष्टता के कारण लज्जा होगी। (प्रवक्ता 30:8 )


आजकल पतिवार में बच्चे काम होने के कारण माता पिता अपने बच्चों को आवश्यकता से अधिक लाड़ प्यार करते व् उनकी हर ख्वाहिश पूरी करते हैं। वे ये भूल जाते हैं कि वे ऐसा करके अपना व अपने बच्चों का भविष्य अंधकार में कर रहे हैं। पवित्र वचन कहता हैं - "जो अपने पुत्र को प्यार करता है, वह उसे कोड़े लगता है, जिससे बाद में उसे अपने पुत्र से सुख मिलेगा। जो अपने पुत्र को अनुशासन में रखता है उसे बाद में संतोष मिलेगा।" (प्रवक्ता 30:१-२)


बहुत बार माता-पिता बच्चों की गलतियों को नजरअंदाज कर देते हैं। वे सोचते हैं कि अरे बच्चा छोटा है। जब बडा हो जायेगा तो अपने आप सुधर जायेगा, लेकिन कभी-कभी यह भयंकर रूप ले लेता है। अंग्रेजी में एक कहावत है - ए स्टीच इन टाइम सेवस नाइन। याने यदि हम समय रहते कपडे को सील लें तो एक टांके में ही काम हो जाता है, पर यदि हमने ध्यान नहीं दिया तो भविष्य में हो सकता है नौ टांके लगाने पड़े। इसलिए हम समय रहते अपने बच्चों को सुधारें।


3. बच्चों को समय देना

माता-पिता का परम कर्त्तव्य है कि बच्चों को सही मार्गदर्शन देने और आपसी सम्बन्ध को मधुर बनाने के लिए बच्चों को समय देना एकदम जरूरी है। इसमें माता-पिता और बच्चाों के बीच मधुर सम्बम्ध बनेगा। आपसी ताल-मेल और समझदारी आएगी। बच्चों में माॅं-बाप के प्रति अपनेपन की भावना आएगी। माता-पिता के प्रति विश्वास बढ़ेगा । लेकिन बडे अफसोस के साथ कहना पडता है कि वर्तमान भागम-भाग प्रतियोगितताा के दौर में दोनो माता और पिता को कामकजी बनना पड रहा है। वे ऑफिस के कामों से परेशान घर आते हैं पिताजी माइन्ड फ्रेश करने के लिए अपनी महफिल में चला जाता है और माॅं चुल्हे चौके में फॅंस जाती है। वे बच्चों को समय नहीं देते। इससे बच्चों और मााता-पिता में अपनापन की भावना समाप्त हो जाती हैं। दूरियां बढती जाती हैं और एक दिन ऐसा भी आ जाता है कि माता-पिता और बच्चों में कोई सम्बंध नहीं रह जाता है। बच्चे माता-पिता के हाथों से निकल जाते हैं। परिवार टूट जाता है, बिखर जाता है।


4. जिम्मेदारी

बच्चों को भावी आदर्श बनने के लिए बचपन से ही उनको उनकी क्षमतानुसार जिम्मेदारी सौंपनी चाहिए। इससे वे अपने जिम्मेदारी को समझेंगे। वे अपने को परिवार का हिस्सा समझेंगे। अगर उन्हें किसी भी प्रकार की जिम्मेदारी नहीं दी जायेगी तो वे अपने को उपेक्षित समझेंगे। आपसी सहयोग में कमी आयेगी और अन्त में परिवारर से कोई रह रिश्ता नहीं रह जायेगा। आज अनेक परिवारों के टूटने का यही कारण है। अतः माॅं-बाप को बचपन से बच्चों को जिम्मेददारी सौपनी है। उनको सहारा तथा मार्गदर्शन दे कर प्रोत्साहित करते रहना है। इससे बच्चोें में आत्मविश्वाश बढेगा। वे बडे होने पर अपनी जिम्मेदारी सम्भालने में सक्षम होेंगे।


5. हर माॅंग पूरी नहीं करनी है

कहा जाता है कि बच्चे हर नई चीज जो उसके मन को भाए जाये उसे पाने के लिए जिद्द करते हैं। ऐसी अवस्था में माॅं बाप को देेखना है कि कब तक उसकी माॅंग जायज है अगर उसकी माॅंग जायज है, तो उसे पूरा कर सकते हैं और अगर उसकी माॅंग जायज नहीं है तो प्यार से उसे मना कर उसे टाल देना चाहिए। हर जायज-नाजायज माॅग पूरी करने पर बच्चा जिददी बन जायेगा। बढते उम्र के साथ उसकी माॅंग बढती जाएगी और एक दिन ऐसा भी आएगा कि माता-पिता अपने किये पर पछतायेंगे। क्योंकि कई बार बच्चे अपनी माॅंगे पूरी न होने पर आत्महत्या जैसे कदम उठा लेते हैं। अतः माता पिता को इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि हर माॅंग जायज नहीं होती और लाड प्यार की भी कोई हद होती है। हमारा लाड प्यार कहीं हमसे हमारे बच्चे ही न छीन ले।


6. धार्मिक क्रिया कलाप 

ख्रीस्तीय माता पिता होने के कारण उनका दायित्व भी बढ जाता हैै। अतः बच्चों में धार्मिक रूझान को बढाने के लिए माता-पिता सर्व प्रथम स्वयं धार्मिक-क्रिया कलापों में सक्रिय रूप से भाग लें तथा बच्चों को भी भाग लेने के लिए प्रोत्साहित करें। परिवारर में धार्मिक वातावरण बनाए रखने की कोशिश करें। इसलिए संध्या वंदना, रोज़री माला विनती और पवित्र मिस्सा बलिदान पर विशेष ध्यान देना है। बच्चों को संध्या वंदना संचालन के लिए प्रोत्साहित करना है और उसके लिए उनको उचित मार्गदर्शन देते करना है और उसके लिए उनको उचित मार्गदर्षन देेते रहना है, जिससे बच्चों में धार्मिक रूझान में वृद्धी होगी लेकिन आज यही नहीं हो पा रहा है। ख्रीस्तीय माता-पिता मात्र ख््राीस्तीय बन कर रह गये। ड्युटि का बहाना कर के न तो उनका धार्मिक क्रिया कलापों में भाग लेने को फुर्सत है और न बच्चों को प्रोत्साहित कर रहे है। गिरजा प्रार्थना मात्र औपचारिकता रह गई है। इसलिए धर्मग्रंथ कहता है - कोई भी धार्मिक नहीं रहा एक भी नहीं कोई भी समझदार नहीं। ईश्वर की खोज में लगा रहने वाला कोई नहीं। सब भटक गये, सब समान रूप से भटक गये हैं। वर्तमान में ख््राीस्तीय परिवार की दशा दयनीय है। न परिवार में संध्या वंदना होती है और न धार्मिक क्रिया कलापों में रूची। इससे भावी पीढी धार्मिक रूझान दिन ब दिन घटता जा रहा है। फिर छोटा परिवार सुखी परिवार से कलीसिया बहुत घाटे में चल रही है। आज समर्पित जीवन की बुलाहट में भी बहुत कमी आ गई क्योंकि एक तो भावी पीढी में धार्मिक रूझान घट रहा है, तो ख््राीस्तीय परिवार में एक या दो ही संतान है। ऐसे में कौन वंश को आगे बढायेगा और कौन कलीसिया की सेवा कररेगा?


बच्चों के कर्तव्य


इसके आलावा पवित्र वचन बच्चों से स्पष्ट शब्दों में कहता है - " अपने माता पिता का आदर करो जिससे तुम बहुत दिनों तक जीवित रह सको। " (निर्गमन २०:१२ ) "बच्चो! अपने माता-पिता की आज्ञा मानों, क्योंकि यह उचित है।अपने माता-पिता का आदर करो। यह पहली ऐसी आज्ञा है, जिसके साथ एक प्रतिज्ञा भी जुड़ी हुई है,जो इस प्रकार है- जिससे तुम्हारा कल्याण हो और तुम बहुत दिनों तक पृथ्वी पर जीते रहो।"  

एफेसियों 6: 1-3

 अतः हर ख्रीस्तीय बच्चे का यह परम कर्त्तव्य है कि वे अपने माता पिता का कहना माने। संत लुकस 2: 51 में वचन कहता है - "येसु उनके साथ नाज़रेथ गए और उनके अधीन रहे। जी हैं ईश्वर होते हुवे भी येसु माँ मरियम और पालक पिता युसूफ के अधीन रहे। इसलिए हमें भी अपने माता पिता की अधीनता स्वीकार करनी चाहिए।

आइये आज हम नाज़रेथ के परिवार के सामान अपने परिवार को ईश्वर

Sunday, 20 December 2020

आगमन का चौथा इतवार


समुएल का दुसरा ग्रन्थ 7:1-5.8b-12.14a.16

रोमियों के नाम सन्त पौलुस का पत्र 16:25-27

सन्त लूकस 1:26-38

 

प्यारे साथियो, हम ख्रीस्त जयंती के बहुत ही करीब गए हैं।  पिछले तीन सप्ताहों से हम येसु के जन्म की तैयारियां करते रहे हैं। आगमन के इस अंतिम सप्ताह में माता कलीसिया हमारा आह्वान करती है कि हम इन आने वाले पांच दिनों में  अपना मन ध्यान उस व्यक्ति पर करें जो आने वाला है।  कई बार होता क्या है कि हम आखरी सप्ताह में बिजी हो जाते हैं।  सजावट में, शॉपिंग में, प्रोग्राम्स में आदि। इस भाग-दौड़ में कई दफा हम उसी को भूल जाते हैं जिसका जन्मदिन है। हमें सबका ख्याल रहता है - हमरे कपड़ों का, हमारे घर का, हमारे पकवानों का, हमारे बच्चों का, मित्रों का, पार्टी का पकवानो का आदि।  आइये इस सप्ताह हम हमारा अधिक से अधिक ध्यान येसु की लगाएं।

जितना अधिक हम येसु के देहधारण के रहस्य पर मनन चिंतन करेंगे उतनी ही अधिक उन्हें अपने जीवन में पाने की , अपने दिल में उनका स्वागत करने की उन्हें अपने जीवन में बसाने  की तीव्रता गहरी मज़बूत होगी।

 

आज का सुसमाचार हमारा ध्यान उस महान घटना की ओर  ले जाता है, जिसके द्वारा घटना ने इतिहास को एक नया रुख प्रदान किया।  जी हाँ जब गेब्रियल फरिश्ता मरियम के पास येसु के जन्म का सन्देश लेकर आता है।  येसु की माता बनने के निमंत्रण को मरियम स्वीकार भी कर सकती थी और ठुकरा भी सकती थी, और उनके सकारात्मक या नकारात्मक उत्तर पर दुनिया  मुक्ति का भविष्य निर्भर करता था। मरियम अचानक आये इस सन्देश से डर जाती है।  पर जब स्वर्गदूत ने मरीम से कहा - "वे महान् होंगे और सर्वोच्च प्रभु के पुत्र कहलायेंगे। प्रभु-ईश्वर उन्हें उनके पिता दाऊद का सिंहासन प्रदान करेगा, वे याकूब के घराने पर सदा-सर्वदा राज्य करेंगे और उनके राज्य का अन्त नहीं होगा।’’

मरियम ज़रूर एक धार्मिक बालिका थी उसे धर्मग्रन्थ का ज्ञान था तभी स्वर्गदूत ने अपने सन्देश की सार्थकता दिखने के लिए उन्हें आने वाले मसीहा की भवष्यवाणी जो यहूदियों के ग्रंथों में लिखी थी उन्हें दुहराता है। 

नबी यशायाह 9:6 में नबी कहते है - वह दऊद के सिंहासन पर विराजमान हो कर सदा के लिए शन्ति, न्याय और धार्मिकता का साम्राज्य स्थापित करेगा। विश्वमण्डल के प्रभु का अनन्य प्रेम यह कार्य सम्पन्न करेगा।

यह प्रतिज्ञा यहोवा ईश्वर ने राजा दाऊद से की थी जिसका वर्णन आज के पहले पथ में हम पते हैं।  - इस तरह तुम्हारा वंश और तुम्हारा राज्य मेरे सामने बना रहेगा और उसका सिंहासन अनन्त काल तक सुदृढ़ रहेगा।’’

राजा दाऊद को  यह सौभाग्य  याकूब के उस आशीर्वाद से मिला जिसे उसने मरने से पहले युदा को यह कहते हुए दिया था - राज्याधिकार यूदा के पास से तब तक नहीं जायेगा, राजदण्ड उसके वंश के पास तब तक रहेगा, जब तक उस पर अधिकार रखने वाला आयें। सभी राष्ट्र उसकी अधीनता स्वीकार करेंगे।

 

ये सारी भविष्यवाणियाँ प्रभु येसु की और संकेत करती हैं। प्रभु येसु ही वह राजा हैं जिनके राज्य का कभी अंत नहीं होगा और सभी राष्ट्र उनकी अधीनता स्वीकार करेंगे। जी हाँ आज नहीं तो कल सब एक दिन यह काबुल करेंगे येसु ही प्रभु है। ये मैं नहीं कहता वचन में लिखा है - इसलिए ईश्वर ने उन्हें महान् बनाया और उन को वह नाम प्रदान किया, जो सब नामों में श्रेष्ठ है, जिससे येसु का नाम सुन कर आकाश, पृथ्वी तथा अधोलोक के सब निवासी घुटने टेकें और पिता की महिमा के लिए सब लोग यह स्वीकार करें कि  येसु मसीह प्रभु हैं।

 

मरियम ने इस महान ईश्वर को अपने गर्भ में स्वीकार किया; अदृश्य ईश्वर को अपनी कोख में रखकर एक शरीर दिया ; आदि से विद्यमान वचन को देह धारण करने के लिए मरियम ने अपने कोख रुपी मञ्जूषा को ईश्वर की मर्ज़ी पूरी करने हेतु सौंप दिया।  उसके बाद मरियम ने बालक येसु को इस दुनिया को दिया, जिस दुनिया पर वे सदा के लिए शासन करेंगे। 

प्यारे साथियों आज प्रभु इस ख्रीस्तमस पर हम सब को बुलाते हैं कि हम भी मरियम की ही तरह सबसे पहले तो येसु को अपने जीवन में पुरे दिल मन से स्वीकार करें उसके बाद जैसे माँ मरियम ने येसु को जन्म देकर सरे संसार के लिए दे दिया हम भी जीवन में येसु को जन्म दें और उन्हें दुनिया के लिए देने वाले बने।  जी हाँ संसार को येसु की ज़रूरत है।  येसु के प्यार की, येसु की करुणा की,येसु के दिव्य स्पर्श की, येसु की क्षमा की, चंगाई की और उनके द्वारा मुक्ति की। आइये हम येसु को इस क्रिसमस पर येसु को अपने जीवन में स्वागत करें जैसे मरियम ने किया और उस येसु को हम पुरे संसार को देने वाले बनें। आमीन।