Thursday, 18 February 2021

Ash Wednesday 2021 Hindi Reflection by Fr Preetam

  उपवास के आह्वान के साथ आज हम दुःखभोग काल का आगाज़ कर रहे हैं। आत्मा के  शुद्धिकरण एवं प्रभु तथा एक-दूसरे के साथ मेल-मिलाप करने का यह उपयुक्त समय है। यह अनुग्रह का समय है, आत्माओं के उद्धार का समय है, यह अत्यंत कीमती समय है। इसे हम यूँ ही न जाने दें। आज के दूसरे पाठ में प्रभु हमसे कहते हैं - ‘‘आप को ईश्वर की जो कृपा मिली है, उसे व्यर्थ न जाने दें; क्योंकि वह कहता है - उपयुक्त समय में मैंने तुम्हारी सुनी; कल्याण के दिन मैंने तुम्हारी सहायाता की। और देखिए, अभी उपयुक्त समय है, अभी कल्याण का दिन है’’ (2 कुरिंथियों 6, 2)


पाप से विकृत हमारे मानवीय स्वभाव को आज एक सही दिशा  की ज़रूरत है। पाप की अज्ञानता में खोए मानव को आज प्रभु की ज्योति की ज़रूरत है। रोम. 3,23 में वचन कहता है - ‘‘क्योंकि सब ने पाप किया और सब ईश्वर की महिमा से वंचित हो गये। ईश्वर की कृपा से सबों को मुफ्त में पापमुक्ति का वरदान मिला है।’’ हममें शायद ही कोई ऐसा होगा जो निष्पाप है, जिसने कभी पाप ही नहीं किया हो। हम सब पापी हैं। और यदि हम यह स्वीकार करते हैं कि हम सब पापी हैं, हम ईश्वर की महिमा से वंचित हैं, अनन्त जीवन हमारे हाथों से फिसलता जा रहा है, हम प्रभु से दूर होते जा रहे हैं, हमारा जीवन अनन्त विनाश  की ओर खींचा चला जा रहा है तो अब यह उचित समय है, हमारे उद्धार का समय है।

आज के पहले पाठ की शुरुआत में प्रभु का वचन कहता है - अब तुम लोग उपवास करो और रोते तथा शोक मनाते हुएपूरे हृदय से मेरे पास आओ" अपने वस्त्र  फाड कर नहींबल्कि हृदय से पश्चात्ताप करो और अपने प्रभु-ईश्वर के पास लौट जाओक्योंकि वह करूणामयदयालुअत्यन्त सहनशील और दयासागर है और वह सहज की द्रवित हो जाता है।हम यहाँ पर तपस्याकाल  का मूलभूत आह्वान सुन रहे हैं। इस आह्वन की सबसे पहली अवधारणा यह है कि हम सब पापी हैं और विभिन्न प्रकार से हम ईश्वर से दूर हो  गए हैं।   जैसा कि संत पौलुस कहते हैं - "सबों ने पाप किया और ईश्वर की महिमा से वंचित हो गए। " इस आह्वान की दूसरी अवधारणा यह  है कि जिस ईश्वर  से हम दूर हो गए हैं वह करूणामयदयालुअत्यन्त सहनशील और दयासागर है जो हमारी वापसी के लिए तरसता है। वह  केवल हमारी वापसी के लिए तरसता है पर जैसा कि संत पौलुस आज के दूसरे पाठ बतलाते हैं कि जिस ईश्वर से  हम दूर हो गए हैं वह अपने बेटे येसु के द्वारा हमें ढूढ़ने निकल पड़ा है।  वे कहते हैं - "मसीह का कोई पाप नहीं था। फिर भी ईश्वर ने हमारे कल्याण के लिए उन्हें पाप का भागी बनायाजिससे हम उनके द्वारा ईश्वर की पवित्रता के भागी बन सकें। " कितना शक्तिशाली वचन  है!  ईश्वर  ने अपने पुत्र को हमारे जैसा बनने के लिए भेजा ताकि हम भी उनके  समान बन सकें। अपने पुत्र में ईश्वर  हमारी पापमय स्थिति की ओर कूच किया ताकि हम परमेश्वर की भलाई की ओर यात्रा कर सकें। कितनी सुन्दर बात है।  

आज के दिन हमारे माथे पर लगाई जाने वाली राख दुनिया को बताती है कि हम पापी हैं। फिर भीहमें जो राख मिली हैवह एक क्रूस  के आकार में हैजो यह घोषणा करता है कि हम एक ऐसे  ईश्वर  को मानते हैं जिसका प्यार हमारे पाप से अधिक सामर्थ्यवान  है। जैसा कि पौलुस  ने रोमियों  को लिखे अपने पत्र में घोषणा की है, - "किन्तु हम पापी ही थेजब मसीह हमारे लिए मर गये थे। इस से ईश्वर ने हमारे प्रति अपने प्रेम का प्रमाण दिया है।" (रोमी 5 :8)  क्रूस पर मसीह की क़ुरबानी आपके और मेरे प्रति उनके प्रेम की निशानी है।  योहन १५:१३ में प्रभु येसु स्वयं कहते हैं - "इस से बडा प्रेम किसी का नहीं कि कोई अपने मित्रों के लिये अपने प्राण अर्पित कर दे।" 

आज के सुसमाचार में बतलाई गयी  प्रार्थनाउपवास और दान देने की तीन प्रथाएँमसीह में हमारे लिए ईश्वर  के प्रेम का जवाब देने के तीन पारंपरिक तरीके हैंउस ईश्वर की ओर यात्रा करने के तीन तरीके हैं जो हमारी ओर यात्रा करते हैं। ये तीनों कार्यईश्वर के पास लौट आने के आह्वान का प्रत्युत्तर है - "अब तुम लोग उपवास करो और रोते तथा शोक मनाते हुएपूरे हृदय से मेरे पास आओ"  


इन तीनों  पुण्यकर्मों को करने का हमारा उद्देश्य  हमारे सामने बिल्कुल साफ होना चाहिए। हमारे धर्म कर्मों की जानकारी सिर्फ मुझे और मेरे प्रभु को हो। हमारा उपवास, हमारी प्रार्थना दूसरों को प्रभावित करने के लिए नहीं लेकिन प्रभु को प्रसन्न करने के लिए होना चाहिए। यदि हम दूसरों को दिखाने के लिए, दूसरों की वाह-वही लूटने के लिए, दूसरों से तारीफ पाने के लिए हमारे धर्म-कर्म करते हैं तो आज का सुसमाचार हमसे कहता है हम हमारे स्वर्गीक पिता के पुरस्कार से वंचित हो जायेंगे। प्रार्थना का उद्देष्य यह नहीं कि मैं धार्मिक कहलाऊँ पर यह कि मैं प्रभु से अपना संबंध जोडूं। दान देने का उद्देष्य यह नहीं कि दूसरे लोग, मेरी उदारता को जानें पर यह कि मेरे द्वारा किसी गरीब, किसी बेसहारा, किसी पीडित की मदद हो जाये, मेरा धन, मेरी शक्ति व गुण दूसरों के काम आये।। अथवा यह कि मैं दूसरों की पीड़ा में, दर्द और दुःख में येसु की पीड़ा को देख सकूँ व उनके प्रति किये हर काम को येसु के लिए किया कार्य मानूँ।   मेरे उपवास का मतलब यह नहीं कि लोग मेरी धार्मिकता से वकिफ़ हो जायें, पर यह कि मेरी शारीरिक भूख मुझमें अध्यात्मिक भूख जगाये। रोटी की भूख मुझमें प्रभु व उसके वचनों की भूख जगाये। और मेरे उपवास व त्याग से जो कुछ बचता है उससे मैं किसी ज़रूरतमंद की मदद करूंँ। आने वाले इन चालीस दिनों में यदि मैं इन बातों पर ध्यान देता हूँ तो यह पावन समय मेरे लिए बहुत ही अर्थपूर्ण व प्रभु की आशीष व कृपा का एक स्रोत बनकर मेरे जीवन में मसीह के उद्धार व मुक्ति को प्राप्त करने में मेरी सहायाता करेगा।
आमेन।

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