उपवास के आह्वान के साथ आज हम दुःखभोग काल का आगाज़ कर रहे हैं। आत्मा के शुद्धिकरण एवं प्रभु तथा एक-दूसरे के साथ मेल-मिलाप करने का यह उपयुक्त समय है। यह अनुग्रह का समय है, आत्माओं के उद्धार का समय है, यह अत्यंत कीमती समय है। इसे हम यूँ ही न जाने दें। आज के दूसरे पाठ में प्रभु हमसे कहते हैं - ‘‘आप को ईश्वर की जो कृपा मिली है, उसे व्यर्थ न जाने दें; क्योंकि वह कहता है - उपयुक्त समय में मैंने तुम्हारी सुनी; कल्याण के दिन मैंने तुम्हारी सहायाता की। और देखिए, अभी उपयुक्त समय है, अभी कल्याण का दिन है’’ (2 कुरिंथियों 6, 2)
आज के पहले पाठ की शुरुआत में प्रभु का वचन कहता है - अब तुम लोग उपवास करो और रोते तथा शोक मनाते हुए, पूरे हृदय से मेरे पास आओ"। अपने वस्त्र फाड कर नहीं, बल्कि हृदय से पश्चात्ताप करो और अपने प्रभु-ईश्वर के पास लौट जाओ; क्योंकि वह करूणामय, दयालु, अत्यन्त सहनशील और दयासागर है और वह सहज की द्रवित हो जाता है।" हम यहाँ पर तपस्याकाल का मूलभूत आह्वान सुन रहे हैं। इस आह्वन की सबसे पहली अवधारणा यह है कि हम सब पापी हैं और विभिन्न प्रकार से हम ईश्वर से दूर हो गए हैं। जैसा कि संत पौलुस कहते हैं - "सबों ने पाप किया और ईश्वर की महिमा से वंचित हो गए। " इस आह्वान की दूसरी अवधारणा यह है कि जिस ईश्वर से हम दूर हो गए हैं वह करूणामय, दयालु, अत्यन्त सहनशील और दयासागर है जो हमारी वापसी के लिए तरसता है। वह न केवल हमारी वापसी के लिए तरसता है पर जैसा कि संत पौलुस आज के दूसरे पाठ बतलाते हैं कि जिस ईश्वर से हम दूर हो गए हैं वह अपने बेटे येसु के द्वारा हमें ढूढ़ने निकल पड़ा है। वे कहते हैं - "मसीह का कोई पाप नहीं था। फिर भी ईश्वर ने हमारे कल्याण के लिए उन्हें पाप का भागी बनाया, जिससे हम उनके द्वारा ईश्वर की पवित्रता के भागी बन सकें। " कितना शक्तिशाली वचन है! ईश्वर ने अपने पुत्र को हमारे जैसा बनने के लिए भेजा ताकि हम भी उनके समान बन सकें। अपने पुत्र में ईश्वर हमारी पापमय स्थिति की ओर कूच किया ताकि हम परमेश्वर की भलाई की ओर यात्रा कर सकें। कितनी सुन्दर बात है।
आज के दिन हमारे माथे पर लगाई जाने वाली राख दुनिया को बताती है कि हम पापी हैं। फिर भी, हमें जो राख मिली है, वह एक क्रूस के आकार में है, जो यह घोषणा करता है कि हम एक ऐसे ईश्वर को मानते हैं जिसका प्यार हमारे पाप से अधिक सामर्थ्यवान है। जैसा कि पौलुस ने रोमियों को लिखे अपने पत्र में घोषणा की है, - "किन्तु हम पापी ही थे, जब मसीह हमारे लिए मर गये थे। इस से ईश्वर ने हमारे प्रति अपने प्रेम का प्रमाण दिया है।" (रोमी 5 :8) क्रूस पर मसीह की क़ुरबानी आपके और मेरे प्रति उनके प्रेम की निशानी है। योहन १५:१३ में प्रभु येसु स्वयं कहते हैं - "इस से बडा प्रेम किसी का नहीं कि कोई अपने मित्रों के लिये अपने प्राण अर्पित कर दे।"
आज के सुसमाचार में बतलाई गयी प्रार्थना, उपवास और दान देने की तीन प्रथाएँ, मसीह में हमारे लिए ईश्वर के प्रेम का जवाब देने के तीन पारंपरिक तरीके हैं; उस ईश्वर की ओर यात्रा करने के तीन तरीके हैं जो हमारी ओर यात्रा करते हैं। ये तीनों कार्य, ईश्वर के पास लौट आने के आह्वान का प्रत्युत्तर है - "अब तुम लोग उपवास करो और रोते तथा शोक मनाते हुए, पूरे हृदय से मेरे पास आओ"।
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