Friday, 19 February 2021

Gen. 9: 8-15

1 Pet. 3:18-22

Mk. 1:12-15

चालीसा काल एक ऐसा समय जब हम खुद को, खुद के मन दिल को टटोलकर देखते हैं। यह एक ऐसा समय है जब पूरी कलीसिया एक तरह से आध्यात्मिक साधना करती है। जब हम आध्यात्मिक साधना अथवा रिट्रीट के बारे में सोचते हैं, तो हम जीवन की सामान्य दिनचर्या से दूर एक विशेष स्थान पर जाने की सोचते हैं जहाँ एक अलग दिनचर्या होती है। सुसमाचार में हम पाते हैं कि येसु बस यही कर रहे हैं वह आत्मा द्वारा निर्जन स्थान में, ले जाये जाते हैं, जहाँ वे भीड़ से दूर अकेले रहकर प्रार्थना करते हैं। वे चालीस दिनों तक वहीं रहे, जो हमारे तपस्याकाल की अवधी है।

हमारे लिए, हालांकि, चालिसा काल उस अर्थ में एक रिट्रीट नहीं है। चालीसे के आगमन का मतलब यह नहीं है कि हमारे जीवन की लय किसी भी मौलिक तरीके से बदल जाती है। दिन-प्रतिदिन के जीवन की मांग कम नहीं होती है; हम निर्जन स्थानों में नहीं जा सकते। हमें हमारे सामान्य जीवन के बीच में चालीसे को जीना है; हमारी चालीसे की रिट्रीट आध्यात्मिक साधना का अर्थ शाब्दिक, भौतिक अर्थों में सामान्य जीवन से दूर भागना नहीं है। इसका मतलब यह है कि हम अधिक आत्म-चिंतनशील बनने की कोशिश करते हैं। हालाँकि चालीसे के समय हम सुसमाचार के प्रकाश में खुद के भीतर झाँकने का प्रयास करते हैं और ईश्वर से बातचीत करते हैं, तो ऐसे में यह कहना बेहतर होगा कि चालीसा वह समय है जब हमें अधिक प्रार्थनाशील बनने के लिए कहा जाता है। प्रार्थना में, हम प्रभु को अपने जीवन के उन क्षेत्रों को दिखाने के लिए आमंत्रित करते हैं जो वास्तव में सुसमाचार के मूल्यों के अनुरूप नहीं हैं और हम प्रभु से हमारे जीवन की बेहतरी के लिए माँग करते हैं।

जब येसु निर्जन स्थान में गए तो शैतान ने उनकी परीक्षा ली। दूसरे शब्दों में, कहें तो वे उस शक्ति का सामना करने के लिए सामने आये जो सुसमाचार की विरोधी है। येसु ने सुसमाचार को अपने जीवन में बिना संघर्ष के नहीं जीया हालाँकि, सुसमाचार बताता है कि उस संघर्ष में वे अकेले नहीं थे पिता ईश्वर उनका साथ दे रहे थे। हम पढ़ते हैं, स्वर्गदूत उनकी देखभाल परिचर्या के लिए आते हैं। यदि येसु को उस शक्ति का सामना करना पड़ा जो सुसमाचार के विरोध में है, वही उनके अनुयायियों के साथ होना स्वाभाविक है। हमें उतना ही यथार्थवादी होना चाहिए जितना येसु थे। हमारे बाहर और हमारे भीतर गहरी बड़ी ताकतें हैं जो सुसमाचार के विरुद्ध हैं और जो हमें सुसमाचार से दूर ले जाने का काम करती हैं। यदि हम इन ताकतों को गंभीरता से नहीं लेंगे, तो हम उन्हें अपने में जमा करते रहेंगे।  यदि उन पर काबू पाने के लिए पहला कदम उनका सामना करना है जैसा येसु ने किया। याकूब  के पत्र : में प्रभु का वचन कहता है -  आप लोग ईश्वर के अधीन रहें। शैतान का सामना करें और वह आपके पास से भाग जायेगा। जब शैतान से जंग की बात आती है तो ये कभी ना सोचना कि मैं अपने दम पर उसे हरा दूंगा।  जैसा कि  याकूब कहते हैं हमें  ईश्वर के अधीन रहना होगा।

तब हम शैतान की शक्तियों का सामना करने के लिए ईष्वर के द्वारा सशक्त किये जायेंगे। प्रभु येसु स्वयं ईश-पुत्र थे पर मानव  शरीर में वे शैतान के प्रलोभन के शिकार हुए परन्तु हर परीक्षा की घडी में वे पिता से जुडे रहे।  और पिता ने उनको सशक्त किया। एफेसियों को लिखे अपने पत्र में संत पौलुस कहते हैं - आप लोग प्रभु से और उसके अपार सामर्थ्य से बल ग्रहण करेंए

आप ईश्वर के अस्त्र.शस्त्र धारण करेंए जिससे आप शैतान की धूर्तता का सामना करने में समर्थ होंय

 क्योंकि हमें निरे मनुष्यों से नहींए बल्कि इस अन्धकारमय संसार के अधिपतियोंए अधिकारियों तथा शासकों और आकाश के दुष्ट आत्माओं से संघर्ष करना पड़ता है।

 इसलिए आप ईश्वर के अस्त्र.शस्त्र धारण करेंए जिससे आप दुर्दिन में शत्रु का सामना करने में समर्थ हों और अन्त तक अपना कर्तव्य पूरा कर विजय प्राप्त करें।

आप सत्य का कमरबन्द कस करए धार्मिकता का कवच धारण कर

और शान्ति.सुसमाचार के उत्साह के जूते पहन कर खड़े हों।

साथ ही विश्वास की ढाल धारण किये रहें। उस से आप दुष्ट के सब अग्निमय बाण बुझा सकेंगे।

इसके अतिरिक्त मुक्ति का टोप पहन लें और आत्मा की तलवार.अर्थात् ईश्वर का वचन.ग्रहण करें।

 

प्यारे  विश्वासियों हम ईश्वर की सैना के सैनिक हैं। हम ईश्वर की ओर से शैतान के विरूद्ध जंग लडने के लिए चुने हुए लोग हैं। हम ईश्वर की तरफ ही रहें। पर जब कभी हम पाप करते हैं हम पार्टी बदल लेते हैं। हमारा हर पाप हमें शैतान की पार्टी में खडा कर देता है। प्रभु का वचन हम से कहता है जब हम शैतान और संसार से मित्रता कर लेते हैं तब हम ईश्वर के शत्रु बन जाते हैं - कपटी और बेईमान लोगो! क्या आप यह नहीं जानते कि संसार से मित्रता रखने का अर्थ है ईश्वर से बैर करनाघ् जो संसार का मित्र होना चाहता हैए वह ईश्वर का शत्रु बन जाता है। (याकूब 4:4)

 

प्यारे वोश्वासियों इस संसार में रहते समय हमें बहुत ही सजग जागरूक रहने की ज़रूरत है। क्योंकि शैतान का जाल इस संसार में पग-पग पर फैला हुआ है। संत पेत्रुस कहते हैं - आप संयम रखें और जागते रहें! आपका शत्रुए शैतानए दहाड़ते हुए सिंह की तरह विचरता है और ढूँढ़ता रहता है कि किसे फाड़ खाये। आप विश्वास में दृढ़ हो कर उसका सामना करें। ( १ पेत्रुस 5: ८-9)

 

संत याकूब कहते हैं - ईश्वर के पास जायें और वह आपके पास आयेगा। पापी! अपने हाथ शुद्ध करें। कपटी! आपना हृदय पवित्र करें।

हमें ईश्वर के पास आने और ईश्वर के सान्निध्य में रहने की बहुत ज़रूरत है। हम जितना ईश्वर के सान्निध्य रहेंगे उतने ही सषक्त बनेंगे और बुराई की सारी शक्तियों का दमन करने उनसे लडने के लिए हम मजबूत बनेंगे। और हम ईश्वर के साथ उन शक्तियों का सामना करते सकते हुवे संत पौलुस के साथ कह सकते हैं - जो मुझे बल प्रदान करते हैं, मैं उनकी सहायता से सब कुछ कर सकता हूँ।

ईश्वर के करीबीपन उनके सान्निध्य में रहते हुए उनकी शक्ति से भरपूर होने का पवित्र चालिसा काल से अच्छा समय और क्या हो सकता है?

 

 

 


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