Saturday, 6 February 2021

4th Sunday in Ordinary Time: Reflection in Hindi by Fr. Preetam Vasuniya

 योब 7ः1-4,6-7

1 कुरिं 9ः16-19,22-23

मार.1ः29-39

आज के पहले पाठ में योब अपने जीवन पर मनन चिंतन करने पर पाता है उसका जीवन बहुत ही छोटा और जल्दी समाप्त होने वाला है। वह कहता है-प्रभु याद रख कि मेरा जीवन एक श्वास मात्र है। हम में से हर एक जीवन की यही हकीकत है। इस पल भर के जीवन को हर इंसान अपने तरीके से जीता है। कोई इसे बहुत ही फलदायक रूप में बिताता है तो कोई इसे यूँ ही गँवा देता है। अलग-अलग लोगों के जीने के तरीके और उद्देश्य अलग-अलग हो सकते हैं। कई लोग तो पग-पग पर अपनी दिशाएँ और उद्देश्य बदल लेते हैं। मैं एक मसीही हूँं। मेरे जीवन का उद्देश्य क्या होना चाहिए? मैं एक शिक्षक हो सकता हूँ; मैं एक समाज सेवी हो सकता हूँ; मैं एक डाॅक्टर हो सकता हूँ; इंजिनियर हो सकता हूँ; किसान हो सकता हूँ; दिहाडी मजदूर हो सकता हूँ; शायद मुझे मेरी जीविका चलाने के लिए कुछ न कुछ काम तो ज़रूर करना पडेगा। पर एक विश्वासी होने के नाते ये सब काम करते हुए मुझे एक काम अनिवार्य रूप से करना है और वो काम है सुसमाचार की घोषणा। 

जब सुसमाचार की घोषणा की बात आती है तो साधारण जनमानस यही सोचता है यह तो फादर-सिस्टर्स का काम है, यह तो समर्पितों का काम है। ज़रूर उन्होंने सुसमाचार की घोषणा हेतु खुद को समर्पित किया है और उन्हें तो यह कार्य करना ही है। परन्तु हर व्यक्ति जिसे बपतिस्मा मिला है, जो कलीसिया का सदस्य बन गया है, उसके कंधों पर सुसमाचार की घोषणा की जिम्मेदारी रखी गई है। प्रभु का यह आदेश हर एक विश्वासी के लिए है - संसार  के कोने.कोने में जाकर सारी सृष्टि को सुसमाचार सुनाओ।

प्यारे विश्वासियों आखिर हमारे प्रभु यह क्यों चाहते हैं कि सारे संसार को सुसमाचार सुनाना चाहिए। आखिर हमारे ईष्वर की वाणी क्यों हर किसी को सुनाई जानी चाहिए? जब मैं इस पर मनन-चिंतन कर रहा था तो पवित्र आत्मा ने मेरा ध्यान उत्पत्ति ग्रंथ की ओर खींचाः जहाँ पर हम पढते हैं कि ईश्वर ने अपने वचन से सब कुछ की सृष्टि की। और उत्पत्ति अध्याय 3ः9 में हम पढते हैं - ईश्वर आदम को पुकारकर कहते हैं - आदम तुम कहाँ हो? इससे ऐसा प्रतीत होता है कि ईश्वर आदम से हर रोज़ इस तरह बातें किया करते थे। इससे हमें यह भी समझ में आता है कि ईश्वर को इंसान से बातें करने में बहुत दिलचस्पी है। वह चाहता है कि हम रोज़ उनकी वाणी सुनें और उसका प्रत्युत्तर दें। 

ईश्वर ने आदम और हेवा से कहा था  तुम  वाटिका के सभी वृक्षों के फल खा सकते हो किन्तु  भले.बुरे के ज्ञान के वृक्ष का फल नहीं खानाय क्योंकि जिस दिन तुम उसका फल खाओगेए तुम अवश्य मर जाओगे। 

आदम और हेवा ने  वह फल खा लिया पर वे मरे नहीं। तो फिर ईश्वर कौनसी मौत की बात कर रहे थे। संत मत्ती 4ः4 -में लिखा है -   मनुष्य रोटी से ही नहीं जीता है। वह ईश्वर के मुख से निकलने वाले हर एक शब्द से जीता है।

और वि.वि. 32ः47 में लिखा है - ये तुम्हारे लिए निरे शब्द नहीं हैंए बल्कि इन पर तुम्हारा जीवन निर्भर है। 

इन वचनों में हमने सुना और समझा की सच्चा जीवन जीने हेतु ईश्वर के वचन की ज़रूरत है। जो ईश्वर का वचन नहीं खाता या नहीं सुनता उसमें जीवन नहीं है। और जिसमें जीवन नहीं है वह मृत कहलाता है। 

पाप करने के बाद आदम और हेवा ईश्वर की वाणी से दूर हो जाते हैं याने जीवन से दूर हो जाते हैं। 

हम जानते हैं कि हमारा ईष्वर एक बहुत प्रेमी, दयालु और करूणामय ईश्वर है। और वह ईश्वर हर युग में अपने वचनों द्वारा हम से बातें करना चाहते हैं। वो हम सब का प्रेमी पिता है और हम सब उनकी ही प्यारी संतांनें हैं। 

हर युग हर जमाने में वो ईश्वर इंसानों से बातें करने के लिए तरसता रहा। पवित्र बाइलब में पढते हैं कि वह ईश्वर नूह, अब्राहम, इसहाक, याकूब, जोसफ, मूसा, योशुआ, दाऊद, सुलेमान, इसायाह, यिरमियाह, योना, मिका जैसा पूर्वजों ओर नबियों के माध्यम से मनुष्यों के साथ निरंतर संवाद बनाए रखता है। 

इब्रानियों 1ः1-2 में हम पढते हैं - ‘‘प्राचीन काल में ईश्वर बारम्बार और विविध रूपों में हमारे पुरखों से नबियों द्वारा बोला था। अब अंत में वह हम से पुत्र द्वारा बोला है।’’ 

प्यारे विश्वासियों यह ईश्वर के वचन का उनकी वाणी का रहस्य है। ईश्वर अपने लोगों से सदा से बातें करना चाहता है। क्योंकि वह हमें अनन्त प्रेम से प्रेम करने वाला ईश्वर है। किसी भी बडे शहर में चले जाईये और वहाँ के उद्यानों अर्थात् पार्कों में देखिए आपको कई प्रेमी युगल जहाँ-तहाँ बैठे बातें करते मिल जायेंगे। मैं यहाँ पर प्रेमी-प्रेमिकाओं के मिलन की कावायद नहीं कर रहा हूँ पर यह बताने की कोशिश कर रहा हूँ कि यदि कोई किसी से प्यार करता है तो वह उससे मिलना और बातें करना उसके प्यार के इज़हार का एक बहुत ही अहम पहलू है। मैं किसी से प्यार करूं और उससे बातें न करूं ये शायद संभव नहीं। यही है ईश्वर की कहानी भी। वह हम से, न केवल ख््राीस्तीयों से पर हर इंसान से बेहद प्यार करता है। और वो हम सब से प्रेम भरी बातें करना चाहता है। वो यह चाहता है कि उसकी प्रेम भरी वाणी हर इंसान सुने। उसके प्रेमी वचन हर एक कान में पडे। हर एक दिल उनके दिव्य वचनों से भर जायें। इसिलिए अनादिकाल से विद्यमान वचन देह धरकर इंसान बना और हमारे बीच रहा ताकि वो हम इंसानों से इंसानों की ज़बान में बात कर सके। आज वही पवित्र बाइबल में समाहित होकर जन-जन तक पहुँचने के लिए बेताब है। पर बडा सवाल यह है कि कौन ईश्वर के इस वचन को लोगों तक ले जायेगा? कौन लोगों को बताएगा कि एक सच्चा खुदा है जो तुम्हें प्यार करता है; जिसने आपको और मुझे बनाया है; जिसने इंसानों को पाप की दासता से छुडाने के लिए मनुष्य बनना स्वीकार किया; जो हमारे उद्धार के खातीर खुद सूली पर कुर्बान हो गया; जिसने हमारे पापों का दाम खुद के लहू की कीमत से चुका दिया है; एक ईष्वर है जो आप और मुझे पाप से बचाना चाहता है; कौन पवित्र बाइबल के इन सांत्वना भरे वचनों को लोगों तक पहुँचाएगा? अपने प्रिय बच्चों से बात करने के लिए तडपता ईश्वर आज फिर से पुछ रहा है - "मैं  किसे भेजूँघ् हमारा सन्देश.वाहक कौन होगा"

नबी इसायाह की भाँति -‘‘मैं प्रस्तुत हूँ, मुझको भेज’’ कहने के लिए आज कौन तैयार है? बेजिझक, और बेबाक लहजे में येसु के वचनों को हर इंसान तक पहुंचाने का जज्बा किसमें है? आज मैं खुद से पुछूँ क्या मैं यह काम कर सकता हूँ? या फिर मुझे ऐसा करने में हिचकिचाहट होती है या फिर मैं शर्माता हूँ? संत पौलुस रोमियों 1ः16 में कहते हैं -  मुझे सुसमाचार से लज्जा नहीं।

वही पौलुस आज के वचनों मंे कहते हैं - मैं  इस पर गौरव नहीं करता कि मैं सुसमाचार का प्रचार करता हूँ। मुझे तो ऐसा करने का आदेश दिया गया है। धिक्कार मुझेए यदि मैं सुसमाचार का प्रचार न करूँ! 

दूसरे शब्दों में कहें तो लानत है मुझपर यदि मैं सुसमाचार का प्रचार न करूँ अथवा अगर मैं सुसमाचार का प्रचार न करूँ तो यह मेरे लिए शर्म की बात है। तो सुमाचार का प्रचार करना हमारे लिए शर्म का विषय नहीं हो सकता लेकिन प्रचार नहीं करना ज़रूर एक विश्वासी के लिए शर्म की बात है। संत पौलुस कहते हैं सुसमाचार का प्रचार करना किसी के लिए एक विकल्प नहीं यह ईष्वर की ओर से आदेश हैं। संत मत्ती 28ः16-20 में हम पढते हैं - मुझे स्वर्ग में और पृथ्वी पर पूरा अधिकार मिला है। तुम लोग जा कर सब राष्ट्रों को शिष्य बनाओ और उन्हें पिताए पुत्र और पवित्र आत्मा के नाम पर बपतिस्मा दो। मैंने तुम्हें जो.जो आदेश दिये हैंए तुम.लोग उनका पालन करना उन्हें सिखलाओ और याद रखो. मैं संसार के अन्त तक सदा तुम्हारे साथ हूँ।

प्यारे विश्वासियों आज के इस टूटे, बिखरे, निराश, बिमार, धोखा खाए हुए, विभिन्न प्रकार की बेडियों से जकडे हुए, शैतान और उसकी चालों से त्रस्त इंसान से येसु बातें करना चाहता है। येसु अपना वचन सुनाना चाहता है। और आज येसु अपको और मुझे इस कार्य हेतु एक माध्यम बनाना चाहता है; आज येसु अपनी वाणी आपके मुख में रखना चाहता है जैसा कि वह नबी यिरमियाह 1ः9 में कहते हैं -  श्मैं तुम्हारे मुख में अपने शब्द रख देता हूँ। 

आईये हम सब विश्वासी भाई-बहन अपने-अपने क्षेत्र में अपने अडोस-पडोस में अपने काम की जगहों पर, यात्रा करते समय, स्कूलों में पढते-पढाते समय, हर जगह, हर समय लोगों को येसु के वचन बाँटते रहें। संत पौलुस कहते हैं 2 तिम. 4ः2 मेें - सुसमाचार सुनाओए समय.असमय लोगों से आग्रह करते रहो। बड़े धैर्य से तथा शिक्षा देने के उद्देश्य से लोगों को समझाओए डाँटो और ढारस बँधाओय हमारे जीवन का खास मकसद यही है, हम चाहे जो कुछ भी हों प्रभु हम से यही चाहते हैं। इस धरती पर से विदा लेने से पहले उनका अंतिम आदेश यही था - ‘‘संसार के कोने-कोने में सुसमाचार की घोषणा करो। आज यह जिम्मे हमें अपने हाथों में लेना होगा, येसु के वचनों वाहक हमें बनना होगा। अनन्त प्रेम से सारी मानवजाती को प्रेम करने वाले ईष्वर की वाणी लोगों को हमें सुनाना होगा। आमेन। 


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