Thursday, 25 February 2021

Second Sunday of Lent 2021

 उत्पत्ति ग्रंथ22:1-2,9-13,15-18

रोमियों 8:31-34
मार्क 9:2-10

एकान्तवास, प्राकृतिक सुंदरता, प्रार्थना एवं भक्ति तथा ईश्वरीय  अनुभव प्राप्त करने के लिए कई जवान लडके लडकियाँ कॉन्वेंट अथवा विभिन्न मठों में प्रवेश  लेते हैं। इस दुनिया की भीड-भाड एवं शोर-गुल से अलग एकांत में प्रभु भक्ति में समय बिताने का अपना अलग ही आनन्द रहता है। कई बार लोग अपने व्यस्ततम जीवन से उबकर एकान्त स्थानों पर, प्रकृति के आंचल तले, सकून और शांति पाने के लिए जाते हैं। कई लोग आश्रमों अथवा इस प्रकार के आध्यात्मिक स्थलों पर जाकर प्रार्थना में समय बिताना पसंद करते हैं, जहां उन्हें ईश्वरीय उपस्थिति का अभास होता है। कई बार फादर-सिस्टर्स जो शिक्षा, स्वास्थ्य एवं समाजिक उत्थान की विभिन्न गतिविधियों में व्यस्त रहते हैं, अपना कुछ समय रिट्रीट एवं प्रार्थना में बिताने के लिए, वे एक शांतिपूर्ण स्थानों पर जाते हैं, जहां वे प्रार्थना एवं मनन ध्यान करते हुए ईश्वर की उपस्थिति का अनुभव करते व ईश्वर से आध्यात्मिक संवाद करते हैं। आजकल रिट्रीट एवं आध्यत्मिक साधना के लिए ऐसे कई केंद्र खोले जा रहे हैं जहां लोग आकर कुछ समय बिताते व अपने जीवन की विभिन्न समस्याओं का निदान पाते हैं। कई लोग इन स्थानों पर आकर अपना पुराना जीवन बदल कर एक नई जिंदगी की शुरूआत करते हैं। कई अपनी पुरानी बूरी आदतों व पापमय जीवन को छोडकर एक नया जीवन ग्रहण कर वापस लौटते हैं। कई लोग अपनी रिट्रीट समाप्त हो जाने पर भी वहां से जाना नहीं चाहते। उन्हें वह स्थान, वहां का प्रार्थनामय माहौल, ईश्वरीय अनुभूति और आत्मिक सुकून अच्छा व सुखद लगता है। उन्हें वापस उस माहौल में जाने से डर  लगता है जहां बुराईयों का संसार है, जहां चुनौतियां है, जहां जीवन का संघर्ष है। वैसा ही आज के सुसमाचार में प्रभु येसु के शिष्यों के साथ होता है।

प्रभु येसु अपने तीन शिष्यों, पेत्रुस, याकूब और योहन को उनके सामने एक रहास्योद्घाटन करने के लिए ताबोर पर्वत पर ले जाते हैं। जब वे उस पहाड पर ही थे कि उनके सामने प्रभु येसु का मुखमंडल सूर्य की तरह दमक उठा और उनके वस्त्र प्रकाश के समान उज्वल्ल हो गये। शिष्यों को मूसा और एलियस येसु के साथ बातचित करते दिखाई पडे तथा उन्होंने आसमान से एक वाणी को यह कहते सुना - यह मेरा प्रिय पुत्र है, मैं इस पर अन्यन्त प्रसन्न हूँ, इसकी सुनो। इन तीन शिष्यों के लिए यह दिव्य दृष्य काफी चौंकाने वाला था क्योंकि अब तक उन्होंने प्रभु येसु को एक साधारण पुरूष के रूप में ही देखा था। उन्होंने उन्हें इस महिमा में नहीं देखा था। प्रभु येसु जान बूझकर अपने शिष्यों को यह दिव्य दृष्य दिखाना चाहते थे ताकि निकट भविष्य में जब वे यहूदियों द्वारा पकडाये व क्रूस पर दर्दनाक मौत मरेंगे, तब उनका मन विचलित न हो जाए। तब उन्हें यह दिव्य दृष्य याद रहे कि प्रभु येसु सिर्फ एक साधरण इंसान नहीं है। वे सच्चे ईश्वर और सच्चे मनुष्य हैं। इस मानव रूप में उनके दुख भोगने के बाद वे अपार महिमा में जी उठेंगे। सांसारिक दुखों व कष्टों के बाद महिमामय आनन्द व उल्लास है। पर वे अपने शिष्यों से इस बात के विषय में उनके पुररूत्थान तक किसी से बात नहीं करने की समझाईश देते हैं। क्योंकि वे ये नहीं चाहते थे कि उनके अनुयायी सिर्फ उनकी महिमा व दिव्य शक्ति को देखकर उनका अनुसरण करे। वे यह चाहते थे कि उनके अनुयायी अपने दैनिक जीवन का क्रूस उठाकर उनका अनुसरण करे। सब लोग यह जानें कि येसु के पीछे जाना मतलब दैनिक जीवन के दुख-दर्द सहते हुए, उनके साथ चलना है। येसु के साथ चलने वाले हर विश्वासी को क्रूस को गले लगाते हुए आगे बढना है। बिना क्रूस के पुनरूत्थान संभव नहीं। स्वर्ग में जाकर ईश्वर की महिमा के भागिदार बनने का कोई शॉर्ट कट नहीं है। इस जीवन के उतार चढाव को पार करते हुए ही हम वहां तक पहुंच सकते हैं। प्रभु कहते हैं स्वर्ग का द्वारा एक संकरा द्वार है। जि हां स्वर्ग का द्वार केवल संकरा ही नहीं, इस मार्ग में पत्थर हैं, कांटे हैं और मुसिबतों के पहाड भी हैं।

तीन शिष्यों  को ताबोर पर्वत पर ईश्वरीय उपस्थिति वाला अनुभव बहुत अच्छा लगा। वे आत्मविभोर हो जाते हैं और उन्हें लगता है कि वहीं ऐसे सुखद अनुभव में ही रह जायें। पेत्रुस प्रभु से कहते हैं कि हम यहीं रह जायें। आप कहे तो तीन तम्बूओं की व्यस्था कर दूं। वे वहां बहुत सुरक्षित व आरामदायक महसूस कर रहे थे। वे पहाड के नीचे जाकर विरोधी तत्वों जैसे शास्त्री एवं फरिसीयों का सामना करना नहीं चाहते थे। वे भीड जो कि दिन रात प्रभु के पीछे रहती थी उससे बचना चाहते थे। प्रभु पेत्रुस के प्रस्ताव पर प्रतिक्रिया नहीं देते। प्रभु उन्हें लेकर सीधे पहाड के नीचे की ओर चल देते हैं। और उन्हें अपने दुःखभोग मरण एवं पुररूत्थान के बारे में बतलाते हैं। प्रभु यह नहीं चाहते थे कि वे उस ईश्वरीय अनुभव में ही खोए रहें बल्कि जीवन की सच्चाई से भी रूबरू हों। जिस ईश्वरीय महिमा व प्रभु की पावन  उपस्थिति का अनुभव उन्हें हुआ उसे वे अपनी परिपूर्णता में इस जीवन के बाद प्राप्त करेंगे। लेकिन तब तक पिता ने जो मिशन उन्हें सौंपा है उसे उन लोगों को पूरा करना है। और इस मिशन को पूरा करने के लिए जीवन में आये हर दुःख व कष्ट को सहना है। प्रभु येसु तो अपना मिशन पूरा करने के लिए पूरी तरह से तैयार थे, यहां तक कि क्रूस पर मरने के लिए भी। इसलिए वे अपने शिष्यों को भी उसी प्रकार पूरी तरह से तैयार रहने की शिक्षा दे रहे थे।

आज प्रभु हम सबसे यही आह्वान करते हैं कि हम हमारे दैनिक जीवन के क्रूस से दूर न भागें। जिस प्रकार से प्रभु ने उसे अपने जीवन में स्वीकार किया हम भी उसे स्वीकार करें। हमारे जीवन में भी हम कई बार व्यक्तिगत प्रार्थनाओं में मिस्सा बलिदान में, तीर्थ स्थानों में या फिर आध्यात्मिक साधनाओं (रिट्रीट) आदि में कई प्रकार के ईश्वरीय आध्यात्मिक अनुभव प्राप्त करते हैं। हमें उसी माहौल में रहना अच्छा लगता है। पर हमें यह याद रहे कि प्रभु हमें ऐसे अनुभव इसलिए देते हैं कि हम हमारे इस दुनियाई जीवन की समाप्ति के बाद इसे परिपूर्णता में प्राप्त करें। ये उस स्वर्गीय आनन्द व शांति का एक अंश मात्र है जिसे ईश्वर हमें भरपूरी से देने वाले हैं। उस भरपूर ईश्वरीय अनुभव को प्राप्त करने के लिए हमें पहाड से नीचे उतरकर जीवन की सच्चाई से रूबरू होते हुए, शैतान और उसकी ताकतों से लडते हुए, सब प्रकार के प्रलोभनों व बुराईयों पर विजय पाते हुए प्राप्त करना होगा। इसलिए हम हमारे जीवन में प्रभु के लिए समय निकालें। प्रभु के साथ लीन होकर अपने जीवन की कठानिईयों व चुनौतियों का सामना करने के लिए पर्याप्त शक्ति व कृपा हासिल करें। तथा उस कृपा के साथ हम प्रभु येसु के समान जीवन में आए हर क्रूस को गले लगाते हुए उनका अनुसरण करें। तभी हमें उनके ही समान मुक्ति का मुकूट हासिल होगा।

आमेन। 

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