Saturday, 1 October 2016

वर्ष का 27 वां रविवार

27 वां रविवार
हब 1:2-3,2:2-4
तिम 1:6-8,13-14
लुक 17:5-10

प्रभु ने कहा है और हमने सुना है, आज के सुसमाचार में - “यदि तुम्हारा विष्वास राई के दाने के बराबर भी होता और तुम शहतूत के इस पेड से कहते, उखड कर समुद्र में लग जा, तो वह तुम्हारी बात मान लेता।“ संत मत्ती के सुसमाचार में इसी संदर्भ में प्रभु कहते हैं कि यदि तुम्हारा विष्वास राई के दाने के बराबर भी हो तो तुम इस पहाड से कहते कि वह समुद्र में जाकर गिर जाये तो ऐसा ही होता। यहां पर प्रभु अलंकारिक भाषा का प्रयोग कर रहे हैं। उनके कहने का तात्पर्य यह है कि यदि हमारे पास थोडा सा भी विष्वास है तो हम बडे से बडे मुसिबतों का पहाडों का ढा सकते हैं। बडी सी बडी बिमारियों से चंगाई पा सकते हैं। बस दिल में विष्वास होना चाहिए।
सुसमाचार के प्रचारकों के जीवन में राई के दाने के बराबर प्रार्थनामय विष्वास ने मुसिबतों व परेषानियों के दिग्गज पहाडों का धराषाही कर दिया। हम प्रेरित चरित में पढते हैं कि राजा हेरोद ने याकूब और उसके भाई योहन की हत्या के बाद संत पेत्रुस को बंदी बना लिया था तथा उन्हें कडी सुरक्षा के घरे में कारावास में बंद कर दिया। वो उन्हें भी मौत के घाट उतार देना चाह रहा था। प्रेरित चरित 12ः5 में हम पढते हैं “जब पेत्रुस पर इस प्रकार बंदीगृह में पहरा बैठा हुआ था, तो कलीसिया उसके लिए आग्रह के साथ प्रार्थना करती रही।“ कलीसिया पूर्ण विष्वास व आग्रह से प्रभु से प्रार्थना करती रही और तब प्रभु एक महान चमत्कार दिखाते हैं। प्रभु का दूत कारावास में से चमत्कारिक ढंग से उन्हें बाहर निकाल ले जाता है। संत मत्ती 19ः26 में वचन कहता है - “ईष्वर के लिए सब कुछ सम्भव है।“ तथा मत्ती 17ः20 में वचन कहता है कि यदि तुम्हारे पास विष्वास है तो तुम्हारे लिए भी कुछ भी असम्भव नहीं है।
आज के पहले पाठ में वचन हमसे कहता है कि धर्मी अपने विष्वास के कारण जीता है। नबी ये शब्द उन लोगों को तब सुनाये जाते हैं जब बाबुल के राजा नबूकदनेज़र ने येरूसलेम पर हमला किया, प्रभु के मंदिर को तहस-नहस कर दिया, प्रभु की वेदी को अपवित्र किया, कईयों का खून बहाया व कईयों को गुलाम बनाकर बाबुल के निर्वासन में ले गया। इस्राएली लोग अपने आप को हारे हुए, निस्सहाय, व परित्यक्त महसूस कर रहे थे। तब नबी उनसे कहते हैं कि आप लोगों ने अपने दुष्मन के हाथों गहरे घाव पाये हैं परन्तु फिर भी आप विकट परिस्थिति में भी प्रभु में प्रति विष्वास बनाये रखो। वही तुम्हारा उद्धार करेगा।
विष्वास करने के लिए नम्रता बहुत ज़रूरी है। वही व्यक्ति विष्वास में दृढ़ हो सकता है जो यह स्वीकार करता है कि मेरी क्षमताएँ सीमित है, मेरे साधन सीमित है, परन्तु प्रभु के पास असीमित सम्भावनायें है। हम जहाँ सोचना बंद करते हैं प्रभु वहाँ से शुरूआत करते हैं। जब हम सोचते हैं मुसिबतों की आँधी इतनी अधिक है कि हमारे जीवन का चिराग और आगे जल नहीं पायेगा। तब प्रभु कहते हैं मैं इस दीपक को अपनी हथेलियों से ढंक कर रखता हूँ तू मुझपर भरोसा रखकर आगे बढ़। जब हम जीवन में निराष व हताष हो जाते असफलताओं का पहाड हम टूट पडता है। हमें आगे बढने के लिए कोई रास्ता, कोई विकल्प नहीं सुझता तब प्रभु हमसे कहते हैं कि सारी सफलताओं और खुषियों की चाभी मेरे पास है। तू मुझ पर विष्वास रख यदि एक दरवाज़ा बंद होता है तो मैं तेरे लिए दस दरवाजे़ खोल दूँगा।
विष्वास की ताकत को मैं ने मेरे जीवन में कई दफा़ अनुभव किया है। मैं मेरे जीवन की एक घटना को आप लोगों के साथ साझा करना चाहता हूँ। बात उन दिनों की है जब मैं आष्टा में ईष शास्त्र का अध्ययन कर रहा था। आस-पास के किसानों की गेंहू-चने की फसल पक कर तैयार थी। कईयों ने फसल काट ली थी, पर खेत में ही पूले पडे हुए थे। करीब दोपहर के समय काले, घने बादल, बिजली व गरजन के साथ बारीष का माहौल बन गया। जैसे ही हमारी क्लास खत्म हुई बूँदा बांँदी शुरू हो गई। मैं ने मेरे एक दोस्त से कहा देख बारीष हो रही है अब बेचारे किसानों का क्या होगा। मेरे साथी ने मुझसे कहा लेट अस प्रे फॉर देम। पता नहीं मुझमें ऐसा हुआ कि मैं सीधे अपने कमरे में भागकर गया। अपने नोट्स टेबल पर रखे व वहीं घूटनों टेकर अनुरोध के साथ प्रार्थना करने लगा कि प्रभु तून ही इन गरीबों को यह फसल दी है। तू ही तो इनका रखवाला है। प्रभु इन पर दया दृष्टि डाल और यह बारीष अभी इसी वक्त रोक दे। अन्यथा इनकी फसल बरबाद हो जायेगी। और प्रभु ने प्रार्थना सुन ली। मुझे खुद ही विष्वास नहीं हो रहा था कि वास्तव में थोडे ही समय में बादल छंट गये और सब कुछ सामान्य हो गया।
आज के सुसमाचार में विष्वास की शक्ति के बारे में बताने के बाद प्रभु हमें विनम्रतापूर्ण सेवा के बारे में बताते हैं। प्रभु कहते हैं कि एक सेवक अपने स्वामी की भरपूर सेवा करने के बाद कभी धन्यवाद की आषा नहीं करता क्योंकि वह तो यह कहता है कि मैं ने तो मेरा कर्तव्य मात्र पूरा किया है। प्रभु हमसे भी यही कहते हैं कि हम प्रभु व उसके लोगों की दिलो जान से सेवा करने के बाद यही कहें -‘हम तो अयोग्य सेवक भर हैं; हमने अपना कर्तव्य मात्र पूरा किया है। कल हमने बालक येसु की संत तेरेसा का पर्व मनाया। वे अपने जीवन में हर एक छोटे से बडे काम को बडी ही तत्परता, लगन व प्रेम से करती थी। हर कार्य करते समय वह यही सोचती थी कि वह उसके द्वारा प्रभु की ही सेवा कर रही है। प्रभु ने हम सब को ऐसी ही विनम्र सेवा करने के लिए बुलाया है।
आईये  प्रभु हम प्रभु के षिष्यों के साथ प्रार्थना करें जैसा कि आज के सुसमाचार में उन्होंने किया - ‘‘प्रभु हमारे विष्वास को बढाईये।’’ तथा प्रभु व लोगों की सेवा करने में हम उदार, प्रेमी व पूर्ण रूप से समर्पित बन जायें।

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