इसायाह 5,7-10
1 कोरिंथियो 2, 1-5
मत्ती 5,13-16
क्या आपने कभी अपने आप से पूछा है कि मैं ईसाई क्यों हूँ? क्या सिर्फ इसलिए कि मैं एक ईसाई परिवार में पैदा हुआ/हुई? क्या यह एक संयोग मात्र है? प्रभु येसु के अनुयायी बनना कोई संयोग नहीं, एक बुलावा है। कई बार जो लोग ईसाई धर्म अपनाते हैं वे यह घोषणा करते हैं कि मैं बिना किसी दबाव के, अपनी पूरी मर्ज़ी व स्वेच्छा से इस धर्म को अपना रहा हूँ। कानूनी तौर पर यह कहना उचित है। परन्तु यह घोषणा वास्तविकता से काफी दूर होती है। कोई भी अपनी मर्ज़ी से ईसा का अनुयायी नहीं बन सकता। प्रभु हमें बुलाता है, हमें वो ही चुनता है। संत योहन 15, 16 में प्रभु कहते हैं - ‘‘तुमने मुझे नहीं चुना, बल्कि मैं ने तुम्हें चुना और नियुक्त किया है, कि तुम जा कर फल उत्पन्न करो।’’ और योहन 6,44 में प्रभु कहते हें - ‘‘कोई मेरे पास तब तक नहीं आ सकता, जब तक कि पिता, जिसने मुझे भेजा, उसे आकर्षित नहीं करता।’’ हमारा ख्रीस्तीय होने का बुलावा कोई आज या कल की बात नहीं है। वचन कहता है रोमियो 8,30 में - ‘‘उसने जिन्हें पहले से निश्चित किया, उन्हें बुलाया भी है।’’ हमारा बुलावा पहले से ही निश्चित किया गया है। हाँ उसने हमें संसार की सृष्टि से पहले से ही चुन लिया है - एफेसियों 1, 4.
इन सब से यह तो स्पष्ट हो जाता है कि मेरा ईसाई होना कोई संयोग अथवा कोई इत्तफाक नहीं है। मैं सदियों पहली बनाई एक योजना के मुताबिक चुना गया हूँ। मुझे ईश्वर ने अपना अनुयायी चुन कर अलग कर लिया है। सारे ब्रह्माण्ड को बनाने व उसे चलाने वाले ईशवर ने मुझे इस जीवन के लिए चुना है। पूरे विश्व का मास्टर प्लान बनाने वाले इश्वर ने यदि मुझे चुना है तो इसके पीछे कोई न कोई उद्देष्य रहा होगा। उसने युँ ही मुझे नहीं चुना होगा! इन दिनों देश के कई राज्यों में चुनाव होने वाले हैं। लोग अपना प्रतिनिधी चुनेंगे। अपने प्रतिनिधी का चुनाव करते समय लोगों के मन में कोई मकसद होता है, कई उम्मिदें रहती हैं, कई अभिलाषायें रहती हैं। जब प्रभु ने हमें अपना बनने के लिए चुना तो हमको लेकर उनके हृदय में भी कई उम्मिदें थीं, किसी विषेश मकसद को लेकर हमें चुना गया था। पर इस दुनिया की भीड में, दुनिया के मेले में, दुनिया की चकाचौंध में, दुनिया के आकर्षण में हम उस मकसद को हमारी नज़रों से दूर कर देते हैं। आज प्रभु हमारे प्रति जो उम्मीद व आशा करते हैं उसे फिर से हमारे सामने रखते हैं। आज वे हमें याद दिलाते हैं कि उसने हमें क्यों बुलाया है, क्यों चुना है इस दुनिया की भीड मेंसे। आज प्रभु हमसे कहते हैं - ‘‘तुम पृथ्वी के नमक हो। यदि नमक फ़ीका पड जाये तो वह किस से नमकीन किया जायेगा? वह किसी काम का नहीं रह जाता। वह बाहर फैंका और पैरों तले रौदा जाता है। ?’’ यदि हमारे ख्रीस्तीय जीवन में ख्रिस्तीयता नहीं है, हमारे जीवन में ईसाईयत का नमक नही तो हम बेकार हैं। यदि हमें देखकर, औरों को ये न लगे कि हम येसु के अनुयायी हैं। तो फिर हमारा ईसाई होना व्यर्थ है। प्रभु कहते हैं तुम संसार की ज्योति हो। तुम्हारी ज्योति मनुष्यों के सामने चमकती रहे, जिससे वे तुम्हारे भले कार्यों को देखकर तुम्हारे स्वर्गीक पिता की महिमा करें। सुसमाचारीय सदगुण हमारे आचरण में, हमारी बोल-चाल में सदैव झलकना चाहिए। हम जहांँ कहीं भी रहें, जो कुछ भी करें, हमारा जीवन एक दीपक की तरह दमकते रहना चाहिए। हम जानते हैं कि यह संसार विभिन्न प्रकार की बुराईयों एवं पाप के अंधकार से भरा हुआ है। हम उस अंधकार के भागीदार न बनें। वचन कहता है - ‘‘भाईयों और बहनों आप तो अंधकार में नहीं है. . . आप सब ज्योति की संतान हैं’’ (1थेसलनिकियों 5, 4)। यदि हम वास्तव में ज्योति की संतानें हैं यदि हमें प्रभु ने एक ज्योति बनाकर इस संसार में भेजा है, तो फिर हमारा आचरण वास्तव में एक जलते दीपक समान होना चाहिए। अंधकार में कहीं पर भी यदि एक दीपक जल रहा हो तो वह दिखेगा ज़रूर। यदि हम प्रभु के वचनों के मुताबिक जीवन जियेंगे तो लाखों की भीड में भी हमारी अलग पहचान होगी। प्रभु कहते हैं - ‘‘तुम एक दूसरे को प्यार करो। जिस प्रकार मैं ने तुम लोगों को प्यार किया। यदि तुम एक दूसरे को प्यार करोगे, तो उसी से सब लोग जान जायेंगे कि तुम मेरे शिष्य हो’’ (योहन 13, 34)। कुछ साल पहले डिसाइपलशिप ट्रेनिंग करके एक वर्कशोप था उसमें भाग लेने का मौका मिला। उसमें हमें एक दिन इंदौर शहर में कहीं भी जाकर किसी न किसी ज़रूरतमंद व्यक्ति की मदद करके शाम को वापस जाकर अपने अनुभव सबों के साथ साझा करना था। एम वाई हॉस्पिटल के सामने एक बुजूर्ग व्यक्ति की मदद करते समय किसी ने हम से पूछा आप लोग ईसाई हो क्या? हमने कहा - हांँ, पर आप ऐसा क्यों पूछ रहे हैं? तो उसने उत्तर दिया वे ही ऐसा काम कर सकते हैं। जि हाँ ख्रीास्त में प्यारे भाईयों और बहनों, यदि हम इस दुनिया में ज्योति बनकर जियेंगे तो हमारे कार्यों को देखकर ही लोग हमें पहलचान जायेंगे कि हम ख्रीस्त के अनुयायी हैं। हमें किसी को हमारा बपतिस्मा सर्टिफिकेट दिखाने की ज़रूरत नहीं। हमारे कार्य हमारी और से गवाही देंगे। हर रविवार को मिस्सा में आना मात्र हमें ईसा के अनुयाई नहीं बनाता। उस मिस्सा बलिदान में जो होता है उसे हमारे रोज़ के कार्यों में परिणित करना, हमें वास्तविक ईसाई बनाता है। हर मिस्सा बलिदान में प्रभु येसु अपने आपको तोडकर हमें देते हुए कहते हैं - यह मेरा शरीर है, तुम सब इसे लो और खाओ। इसके द्वारा वे हमें सिखलाते हैं कि हमें भी औरों के लिए अपने शरीर को तोडना है। दूसरों की भलाई के लिए हमारी सुख सुविधावों मेंसे थोडा त्याग कर हमें दूसरों को देना चाहिए, जिस प्रकार से प्रभु अपना सर्वस्व हमारे लिए अर्पित करते हैं। आज के पाठ में प्रभु हमसे कहते हैं - ‘‘अपनी रोटी भूखों के साथ खाओ, बेघर दरिद्रों को अपने यहांँ ठहराओ। जो नंगा है, उसे कपडे पहनाओ और अपने भाई-बहनों से मुख मत मोडो। तब तुम्हारी ज्योति उषा की तरह फूट निकलेगी।’’ हम मेंसे कितने लोग हैं जो वास्तव में भूख लगने पर ही खाना खाते हैं। हमें समय-समय पर खाना मिल जाता है और शायद आवश्यक्ता से भी अधिक मिलता है। पर इस दुनिया में कई लोग हैं जिन्हें भूख लगने पर भी खाना नसीब नहीं होता। ऐसा ही कोई अभागा बच्चा किसी दिन डॉक्टर के पास जाकर उनसे एक सवाल करता है जिसे सुनकर डॉक्टर की भी आंँखें भर आती है। वह पुछता है - ’’ऐसी कोई दवाई है, डॉक्टर साहब, जिस से भूख ही न लगे।?’’ किस परिस्थिति व मज़बूरी में यह सवाल किया होगा उसने वही जानता है। भूख की ज्वाला भयानक होती है। आज के पहले पाठ में प्रभु हमें हमारे पास जो कुछ है उसे जिनके पास वास्तव में नहीं है उनके साथ बांँटने का आह्वान कर रहे हैं। क्योंकि देने में जो सुख है वह अपने पास जमा करके रखने में कभी नहीं मिलता, उससे तो बेचैनी और अशांँति ही बढती है। यहांँ देने से मतलब सिर्फ रूपये पैसे दान करने से नहीं है, पर जो कुछ भी हमारे पास है - हमारा समय, हमारा धन, हमारी प्रतिभा, हमारा ज्ञान, हमारी क्षमताऐं, हमारा प्यार, हमारे संसाधन, हमारी गाडी, और हमारा भोजन, और सबसे उत्तम हमारा जीवन। ये सब हम दूसरों के साथ बांटना सिखें। तब हम गर्व के साथ कह सकेंगें कि हम प्रभु येसु के शिष्य हैं। हम उनके दिखाए मार्ग पर चलते हैं। तब हमारी उपस्थिति से ये अंधकारमय संसार जगमगा उठेगा और हम ख्रीास्त की ज्योति के राजदूत बनकर शैतान के अंधकारमय कार्यों को समाप्त कर देंगे। आमेन।
1 कोरिंथियो 2, 1-5
मत्ती 5,13-16
क्या आपने कभी अपने आप से पूछा है कि मैं ईसाई क्यों हूँ? क्या सिर्फ इसलिए कि मैं एक ईसाई परिवार में पैदा हुआ/हुई? क्या यह एक संयोग मात्र है? प्रभु येसु के अनुयायी बनना कोई संयोग नहीं, एक बुलावा है। कई बार जो लोग ईसाई धर्म अपनाते हैं वे यह घोषणा करते हैं कि मैं बिना किसी दबाव के, अपनी पूरी मर्ज़ी व स्वेच्छा से इस धर्म को अपना रहा हूँ। कानूनी तौर पर यह कहना उचित है। परन्तु यह घोषणा वास्तविकता से काफी दूर होती है। कोई भी अपनी मर्ज़ी से ईसा का अनुयायी नहीं बन सकता। प्रभु हमें बुलाता है, हमें वो ही चुनता है। संत योहन 15, 16 में प्रभु कहते हैं - ‘‘तुमने मुझे नहीं चुना, बल्कि मैं ने तुम्हें चुना और नियुक्त किया है, कि तुम जा कर फल उत्पन्न करो।’’ और योहन 6,44 में प्रभु कहते हें - ‘‘कोई मेरे पास तब तक नहीं आ सकता, जब तक कि पिता, जिसने मुझे भेजा, उसे आकर्षित नहीं करता।’’ हमारा ख्रीस्तीय होने का बुलावा कोई आज या कल की बात नहीं है। वचन कहता है रोमियो 8,30 में - ‘‘उसने जिन्हें पहले से निश्चित किया, उन्हें बुलाया भी है।’’ हमारा बुलावा पहले से ही निश्चित किया गया है। हाँ उसने हमें संसार की सृष्टि से पहले से ही चुन लिया है - एफेसियों 1, 4.
इन सब से यह तो स्पष्ट हो जाता है कि मेरा ईसाई होना कोई संयोग अथवा कोई इत्तफाक नहीं है। मैं सदियों पहली बनाई एक योजना के मुताबिक चुना गया हूँ। मुझे ईश्वर ने अपना अनुयायी चुन कर अलग कर लिया है। सारे ब्रह्माण्ड को बनाने व उसे चलाने वाले ईशवर ने मुझे इस जीवन के लिए चुना है। पूरे विश्व का मास्टर प्लान बनाने वाले इश्वर ने यदि मुझे चुना है तो इसके पीछे कोई न कोई उद्देष्य रहा होगा। उसने युँ ही मुझे नहीं चुना होगा! इन दिनों देश के कई राज्यों में चुनाव होने वाले हैं। लोग अपना प्रतिनिधी चुनेंगे। अपने प्रतिनिधी का चुनाव करते समय लोगों के मन में कोई मकसद होता है, कई उम्मिदें रहती हैं, कई अभिलाषायें रहती हैं। जब प्रभु ने हमें अपना बनने के लिए चुना तो हमको लेकर उनके हृदय में भी कई उम्मिदें थीं, किसी विषेश मकसद को लेकर हमें चुना गया था। पर इस दुनिया की भीड में, दुनिया के मेले में, दुनिया की चकाचौंध में, दुनिया के आकर्षण में हम उस मकसद को हमारी नज़रों से दूर कर देते हैं। आज प्रभु हमारे प्रति जो उम्मीद व आशा करते हैं उसे फिर से हमारे सामने रखते हैं। आज वे हमें याद दिलाते हैं कि उसने हमें क्यों बुलाया है, क्यों चुना है इस दुनिया की भीड मेंसे। आज प्रभु हमसे कहते हैं - ‘‘तुम पृथ्वी के नमक हो। यदि नमक फ़ीका पड जाये तो वह किस से नमकीन किया जायेगा? वह किसी काम का नहीं रह जाता। वह बाहर फैंका और पैरों तले रौदा जाता है। ?’’ यदि हमारे ख्रीस्तीय जीवन में ख्रिस्तीयता नहीं है, हमारे जीवन में ईसाईयत का नमक नही तो हम बेकार हैं। यदि हमें देखकर, औरों को ये न लगे कि हम येसु के अनुयायी हैं। तो फिर हमारा ईसाई होना व्यर्थ है। प्रभु कहते हैं तुम संसार की ज्योति हो। तुम्हारी ज्योति मनुष्यों के सामने चमकती रहे, जिससे वे तुम्हारे भले कार्यों को देखकर तुम्हारे स्वर्गीक पिता की महिमा करें। सुसमाचारीय सदगुण हमारे आचरण में, हमारी बोल-चाल में सदैव झलकना चाहिए। हम जहांँ कहीं भी रहें, जो कुछ भी करें, हमारा जीवन एक दीपक की तरह दमकते रहना चाहिए। हम जानते हैं कि यह संसार विभिन्न प्रकार की बुराईयों एवं पाप के अंधकार से भरा हुआ है। हम उस अंधकार के भागीदार न बनें। वचन कहता है - ‘‘भाईयों और बहनों आप तो अंधकार में नहीं है. . . आप सब ज्योति की संतान हैं’’ (1थेसलनिकियों 5, 4)। यदि हम वास्तव में ज्योति की संतानें हैं यदि हमें प्रभु ने एक ज्योति बनाकर इस संसार में भेजा है, तो फिर हमारा आचरण वास्तव में एक जलते दीपक समान होना चाहिए। अंधकार में कहीं पर भी यदि एक दीपक जल रहा हो तो वह दिखेगा ज़रूर। यदि हम प्रभु के वचनों के मुताबिक जीवन जियेंगे तो लाखों की भीड में भी हमारी अलग पहचान होगी। प्रभु कहते हैं - ‘‘तुम एक दूसरे को प्यार करो। जिस प्रकार मैं ने तुम लोगों को प्यार किया। यदि तुम एक दूसरे को प्यार करोगे, तो उसी से सब लोग जान जायेंगे कि तुम मेरे शिष्य हो’’ (योहन 13, 34)। कुछ साल पहले डिसाइपलशिप ट्रेनिंग करके एक वर्कशोप था उसमें भाग लेने का मौका मिला। उसमें हमें एक दिन इंदौर शहर में कहीं भी जाकर किसी न किसी ज़रूरतमंद व्यक्ति की मदद करके शाम को वापस जाकर अपने अनुभव सबों के साथ साझा करना था। एम वाई हॉस्पिटल के सामने एक बुजूर्ग व्यक्ति की मदद करते समय किसी ने हम से पूछा आप लोग ईसाई हो क्या? हमने कहा - हांँ, पर आप ऐसा क्यों पूछ रहे हैं? तो उसने उत्तर दिया वे ही ऐसा काम कर सकते हैं। जि हाँ ख्रीास्त में प्यारे भाईयों और बहनों, यदि हम इस दुनिया में ज्योति बनकर जियेंगे तो हमारे कार्यों को देखकर ही लोग हमें पहलचान जायेंगे कि हम ख्रीस्त के अनुयायी हैं। हमें किसी को हमारा बपतिस्मा सर्टिफिकेट दिखाने की ज़रूरत नहीं। हमारे कार्य हमारी और से गवाही देंगे। हर रविवार को मिस्सा में आना मात्र हमें ईसा के अनुयाई नहीं बनाता। उस मिस्सा बलिदान में जो होता है उसे हमारे रोज़ के कार्यों में परिणित करना, हमें वास्तविक ईसाई बनाता है। हर मिस्सा बलिदान में प्रभु येसु अपने आपको तोडकर हमें देते हुए कहते हैं - यह मेरा शरीर है, तुम सब इसे लो और खाओ। इसके द्वारा वे हमें सिखलाते हैं कि हमें भी औरों के लिए अपने शरीर को तोडना है। दूसरों की भलाई के लिए हमारी सुख सुविधावों मेंसे थोडा त्याग कर हमें दूसरों को देना चाहिए, जिस प्रकार से प्रभु अपना सर्वस्व हमारे लिए अर्पित करते हैं। आज के पाठ में प्रभु हमसे कहते हैं - ‘‘अपनी रोटी भूखों के साथ खाओ, बेघर दरिद्रों को अपने यहांँ ठहराओ। जो नंगा है, उसे कपडे पहनाओ और अपने भाई-बहनों से मुख मत मोडो। तब तुम्हारी ज्योति उषा की तरह फूट निकलेगी।’’ हम मेंसे कितने लोग हैं जो वास्तव में भूख लगने पर ही खाना खाते हैं। हमें समय-समय पर खाना मिल जाता है और शायद आवश्यक्ता से भी अधिक मिलता है। पर इस दुनिया में कई लोग हैं जिन्हें भूख लगने पर भी खाना नसीब नहीं होता। ऐसा ही कोई अभागा बच्चा किसी दिन डॉक्टर के पास जाकर उनसे एक सवाल करता है जिसे सुनकर डॉक्टर की भी आंँखें भर आती है। वह पुछता है - ’’ऐसी कोई दवाई है, डॉक्टर साहब, जिस से भूख ही न लगे।?’’ किस परिस्थिति व मज़बूरी में यह सवाल किया होगा उसने वही जानता है। भूख की ज्वाला भयानक होती है। आज के पहले पाठ में प्रभु हमें हमारे पास जो कुछ है उसे जिनके पास वास्तव में नहीं है उनके साथ बांँटने का आह्वान कर रहे हैं। क्योंकि देने में जो सुख है वह अपने पास जमा करके रखने में कभी नहीं मिलता, उससे तो बेचैनी और अशांँति ही बढती है। यहांँ देने से मतलब सिर्फ रूपये पैसे दान करने से नहीं है, पर जो कुछ भी हमारे पास है - हमारा समय, हमारा धन, हमारी प्रतिभा, हमारा ज्ञान, हमारी क्षमताऐं, हमारा प्यार, हमारे संसाधन, हमारी गाडी, और हमारा भोजन, और सबसे उत्तम हमारा जीवन। ये सब हम दूसरों के साथ बांटना सिखें। तब हम गर्व के साथ कह सकेंगें कि हम प्रभु येसु के शिष्य हैं। हम उनके दिखाए मार्ग पर चलते हैं। तब हमारी उपस्थिति से ये अंधकारमय संसार जगमगा उठेगा और हम ख्रीास्त की ज्योति के राजदूत बनकर शैतान के अंधकारमय कार्यों को समाप्त कर देंगे। आमेन।

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