इसायाह 49, 14-15
1 कुरिथियों 4, 1-5
मत्ती 6, 24-34
चिंता, डर और ख्याल हर किसी की जिंदगी का एक भाग है। छोटी से छोटी समस्या भी हमें परेशान कर देती हैं। ये हमसे हमारा चैनो-सकून छीन लेती हैं। चिंता हमारे मन में कडवाहट, गुस्सा क्रोध एवं चिडचिडापन लाती हैं और दूसरों के साथ हमारे संबंधों को कमजोर बनाती हैं। लालच एक दूसरी मानवीय कमज़ोरी है, जो हमारे जीवन से खुशियों को नदारद कर देती है। अधिक से अधिक हासिल करने की लालसा इंसान को ऐसी चीज़ों के लिए बांवरा होने को मजबूर कर देती है जो उसके जीवन के लिए वास्तव में उतनी ज़रूरी नहीं होती।
मन में असुरक्षा की भावना उन्हें अपने उस भविष्य के लिए चीजें जमा कर के रखने को मजबूर करती हैं जो अनिश्चिताओं से भरा है। आने वाले पल मेरे साथ क्या होने वाला मैं यह नहीं जानता फिर भी उस पल को संवारने के लिए, उस आने वाले पल और आने वाले कल की खुशियों के लिए, मैं मेरे वर्तमान की खुशियों को कुर्बान कर देता हूँ। जो खुशियाँ, जो सुकून आज मेरी जिंदगी में है, कल मुझे मिले या न मिले पर मैं उस निश्षित कल के लिए वर्तमान में जो सुख, जो शांति, जो तस्सली है उसका भी आनन्द नहीं ले पाता। यह है हमारे जीवन की विडम्बना।
प्रभु कहते हैं खेत के फूलों और आकाश के पक्षियों से सिखो जिन्हें अपने कल की कोई चिंता नहीं, वे अपने वर्तमान को खुल की जीते हैं। प्रभु कहते हैं अपने जीवन की हद से भी ज़्यादा चिंता मत करो, न अपने भोजन की, कि क्या खायें, और न अपने शरीर की कि क्या पहनें। प्रभु येसु हमारे जीवन की मूलभूत आवश्यक्ताओं से पूरी तरह से वाकिफ़ हैं। कठोर परिश्रम करके अपनी जीविका चलाने का महत्व उन्हें भी पता है। तीस साल तक मरियम और युसूफ के साथ नाज़रेथ में रहते समय उन्होंने भी अपने पालक पिता के साथ पसीना बहाया था और अपनी रोजी रोटी कमाई थी। जब प्रभु हम से कहते हैं - ‘‘चिंता मत करो’’ तो उनका कहने का मतलब यह नहीं है कि हम हमारा काम धंधा करना, मेहनत करना, सब छोड दें और आराम से अपने-अपने घरों में बैठे रहें। और प्रभु स्वर्ग से हमारे लिए रोटियाँ बरसायेंगे। नहीं ऐसा हरगीज नहीं है। प्रभु का वचन साफ़ शब्दों में हम से कहता हैं 2 थेसलनिकियों 3,10-12 में - ‘‘जो काम नहीं करना चाहता, उसे भोजन नहीं दिया जाये। हम ऐसे लोगों से मसीह के नाम पर यह आदेश देतें हैं और उनसे अनुरोध करते हैं कि वे चुपचाप काम करते रहें और अपनी कमाई की रोटी खायें।’’
मैं आप लोग से कुछ सवाल करना चाहता हूँ। आप में से कितने लोग काम करने वाले है? नौकरी या व्यवसाय करते हैं? .................... तो अपनी रोजी रोटी का इंतज़ाम आप करते हैं? आपके पास, या आपके घर में जो कुछ है वो या तो आपका कमाया हुआ है या फिर आपके माता-पिता या पुर्वर्ज़ों की देन है। है ना?
ख्रीस्त में प्यारे भाईयों और बहनों, प्रभु येसु जब हम से कहते हैं कि चिंता मत करो तो अपनी इस शिक्षा के द्वारा वे हमारी इस बहुत बडी गलत फ़हमी को दूर करना चाहते हैं कि हमारे जीवन के लिए ज़रूरी चीज़ें हम खुद जुटाते हैं, बच्चे हम पैदा करते हैं, कोई बिमार होता है तो उसका इलाज हम करवाकर उसे ठीक हम करते हैं, पढाई करके पास हम होते हैं और हम हमारी अपनी योग्यताओं के दम पर नौकरी पाते हैं और हमारे जीवन के लिए कमाई करते हैं आदि। जो कुछ दिखता है और जो वास्तविकता है उसमें बहुत फर्क है। हमारे जीवन की तमाम ज़रूरतों को पूरा करने के पीछे एक अदृष्य शक्ति दिन रात लगी रहती है जिसे देखते नहीं और नज़र अंदाज कर देते हैं।
हम इस वास्तविकता को नकारते हैं कि जो कुछ हमारे पास है वह विधाता ने दिया है और जो कुछ हमें हासिल होने वाला है वह भी विधाता ही हमें देगा। यदि इस सच्चाई को हम स्वीकार कर लेते हैं तो हमारे जीवन में कोई चिंता नहीं रहेगी। हमें चिंता इसलिए होती है कि हम हमारी क्षमताओं, और हमारे पास उपलब्ध साधनों पर भरोसा करते हैं। हमारी क्षमताएं, और योग्यताएं अपरिपक्व व सीमित होती हैं जो अनिष्चितताओं और शंकाओं को जन्म देती हैं। हम जानते हैं कि विभिन्न बिमारियों का ईलाज़ आॅपरेशन से सम्भव है। एक छोटा सा भी आॅपरेशन ही क्यों न हो, और हमारे पास आॅपरेशन के लेटेस्ट साधन और सबसे ज्यादा़ अनुभवी डाॅक्टर ही आॅपरेशन क्यों न कर रहा हो, हमारी चिंता के टावर खडे हो जाते हैं। जब तक आॅपरेशन थिएटर से मरीज़ सकुशल वापस नहीं निकलता हमारे दिल की धडकनें तेज हो जाती है और हमारी सांसें रूक सी जाती है। हमारी चिंता का विषय यह शंका होती है कि आॅपरेशन सफल होगा कि नहीं? डाॅक्टर हमारे परीजन को बचा पायेगा कि नहीं? दवाईयाँ प्रभावशाली साबित होगी या नहीं? इत्यादि। इस दुनिया व दुनिया की किसी भी चीज़ पर भरोसा करना व उस पर निर्भर रहना चिंताओं को जन्म देता है। क्योंकि जैसा कि मैंने कहा वे सीमित व अपरिपक्व है। इसलिए प्रभु येसु हमसे कहते हैं कि हम इस दुनिया की चिज़ों की चिंता करके व्यर्थ में समय व ऊर्जा नष्ट न करें बल्कि निरन्तर ईश्वर के राज्य और उसकी धार्मिकता की खोज में लगे रहंे, और ये चीज़ें तुम्हें यों ही मिल जायेगी। हमारा पूरा ध्यान ईश्वर पर व उसके राज्य पर केंद्रित होना चाहिए। चिंता करने से हममें से कोई अपनी आयु घडी भर भी नहीं बढा सकता। व्यर्थ चिंता करने से कोई अपना भाग्य नहीं बदल सकता। हमारे चिंता करने से हमारा ही मन विचलित हो जाता है। अशांति व बचैनी बढती है।
प्रभु कहते हैं हम इंसान ही अपने जीवन के लिए चिंतित रहते हैं। पशु-पक्षी व वनस्पती ऐसा नहीं करते। वे पूरी तरह से प्रभु पर निर्भर रहते हैं। उनके मन में कोई आशंका नहीं होती। स्तोत्र ग्रंथ 8, 6 में प्रभु का वचन कहता है कि प्रभु ने इंसान को सृष्टि के मुकुट के रूप में बनाया है। यानी इंसान ईश्वर की सर्वश्रेष्ट कृति है। यदि ईष्वर इस दुनिया के हर जीव जंतु को सृष्टि के प्रारम्भ से संभालता आ रहा है, वह चिडियों को दाने देता और मरूभुमि में भी वनस्पिति उगाता है, तो फिर इनंसान को जिसे उसने सृष्टि के शीर्ष के रूप में बनाया है वह क्यों नहीं संभालेगा। उसने तो हमारे उद्धार के लिए अपने एकलौते बेटे तक को कृर्बान कर दिया तो फिर वह हमारी दुनियाई ज़रूरतों को पूरा क्यों नहीं करेगा। वह आज हमसे कहता है - ‘‘स्त्री अपना दुधमुहा बच्चा भुला सकती है पर मैं तुम्हें कभी नहीं भुलाऊंगा। मैंने तुम्हें अपनी हथेलियों पर अंकित किया है’’ (इसा 49,16)। जि हाँ, वह हमें कभी नहीं भुलाएगा, उन्होंने अपनी हथेली पर हमारा चेहरा अंकित किया है। जब भी नज़र हथेली पर पडती है वे हमें देखते हैं। हमारे साथ जो कुछ भी घटित होता है उसे वे देखते हैं। वे कहते हैं तुम्हारी चारदीवारी निरन्तर मेरी आंँखों के सामने है। इसलिए हम न डरें, न ही घबरायें, प्रभु पर, सिर्फ प्रभु पर अपना पूरा भरोसा बनाये रखें। वही हमें संभालता है। आमेन।
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