Saturday, 18 February 2017

सामान्य काल का 7वां रविवार


लेवी 19, 1-२. 17-18
१ कुरिंथियो 3,16-23
मत्ती 5,38-48

आज का सुसमाचार पाठ बहुत ही चुनौतीपूर्ण शिक्षा हमारे सामने रखता है। प्रभु कहते हैं यदि कोई तुम्हारे दाहिने गाल पर थप्पड मारे, तो दूसरा भी उसके सामने कर दो। इस बात को हमें अक्षरशः लेने की ज़रूरत नहीं। कई बार लोग प्रभु की इस शिक्षा का गलत मतलब निकालते व कई बार इस वचन का प्रयोग मज़ाक के तौर पर करते हैं। यहाँ पर बात महज दूसरा गाल दिखाने की नहीं है, प्रभु इससे भी बढकर हमें एक गहरी शिक्षा देना चाहते हैं। प्रभु यहांँ अपनी शिक्षा को एक मुहावरे के रूप में पेश करते हैं। जब कोई आराम से सोता है तो हम कहते हैं मुहावरे वाली भाषा में कहते हैं कि वह घोडे बेच कर सो रहा है। पर वास्तव में वहाँ न कोई घोडे होते हैं और न ही उन्हें कोई बेचता है। वैसे ही जब प्रभु येसु कहते हैं कि एक गाल पर मारने पर दूसरा दिखा दो। तो इसके पीछे उनका आशय यह नहीं कि बेमतलब लोगों की मार खाते रहो। जब प्रभु येसु को अन्नस और कैफस के सामने न्याय के लिए पेश किया गया था तब उनके गाल पर प्यादे ने थप्पड मारा था। याद रहे प्रभु येसु ने वहाँ उन्हें दूसरा गाल नहीं दिखाया। उन्होंने उससे पूछा - ‘‘यदि मैंने गलत कहा, तो मुझे गलती बता दो और यदि ठीक कहा तो मुझे क्यों मारते हो?’’ (योहन 18, 23). प्रभु की इस शिक्षा का अर्थ यह नहीं कि हम हमारे विराधियों द्वारा किये गये हर जुल्म को मुँह बंद किये सहते रहें। जहांँ कहीं भी अन्याय होता है वहाँ हमें उसके विरुद्ध आवाज उठाना चाहिए। हमें हमारा पक्ष रखने का अधिकार है। एक गाल पे मारने पर दूसरा गाल दिखाने का सीधा सा मतलब है कि हमें हमारे विरोधीजन से बदला नहीं लेना चाहिए। बुराई का सामना हमें अच्छाई के साथ करना चाहिए। बुराई के बदले बुराई और अधिक बुराई को जन्म देगी। ईंट के बदले ईंट और ऑंख के बदले आँख, खून खराबा, हिंसा व अशांति ही लाएंगे। प्रभु का वचन कहता है रोमियो 12, 19-20 में - ‘‘बुराई के बदले बुराई नहीं करें।. . .जहांँ तक हो सके सबो के साथ मेल-मिलाप बनाये रखें। प्रिय भाईयों! आप स्वयं बदला न चुकायें, बल्कि उसे ईश्वर के प्रकोप पर छोड दें; क्योंकि लिखा है - प्रतिशोध मेरा अधिकार है, मैं ही बदला चुहाऊँगा।’’ प्रभु हमें मेल-मिलाप व सुलह का रास्ता दिखाते हैं। नकारात्मक भावनाओं और विचारों का तोड नकारत्कता नहीं है। ‘तुम को देख लुँगा’ वाली भावना आपसी रिशते को खत्म कर देती है। जिस दिन हमारे मन में किसी के प्रति ऐसी भावना आती है, उस दिन से हम शैतान को हमारे अंदर निमंत्रण देते हैं। फिर वह हमारे अंदर रहकर हमें हमारी इस सोच को कार्य रूप में परिणित करने के लिए, उकसाता रहता है। यह नकारात्मकता जो एक साधारण गुस्से से प्रारम्भ होकर बैर में तब्दिल हो जाती है, और मन का बैर एक जहर बनकर दुश्मनी को जन्म देता है। प्रभु का वचन कहता है - अपने शत्रुओं से प्रेम करो। जिस तरह सूरज की भीषण गर्मी जल स्रोतों को सुखा देती है वैसे ही मन में बैर की भावना हमारे दिलों से प्रेम को सुखा देती है। इसलिए यदि हमारे भाई बहनों से तू तू-मैं मैं हो जाये, झगडा लडाई हो जाये तो इसकी नकारात्मकता लंबे समय तक हमारे दिलों में नहीं होनी चाहिए। वचन कहता है - ‘‘यदि आप क्रूध हो जाये तो इसके कारण पाप न करें। सूरज डूबने तक अपना क्रोध कायम नहीं रहने दें'' (एफेसियों 4, 26)। हमारी नकारात्मक भावनाओं का सबसे अच्छा उपचार प्यार है। इसीलिए प्रभु हमसे कहते हैं अपने दुष्मनों से प्यार करो। हमारे दुश्मन कौन हैं? चीनी? पाकिस्तानी? ज़रूरी नहीं। हमारे दुष्मन वे सभी हैं जो हमें पसन्द नहीं करते। हमारे दुष्मन वे हैं जो हमें गुस्सा दिलाते हैं। हमारे दुष्मन वे हैं जो हमें चिढाते हैं, दूसरों के सामने हमारी बुराई व निंदा करते हैं, जो हमें गिराने के लिए षडयंत्र रचते हैं, जो हमारी उन्नती को देखकर जलते हैं। प्रभु न कवल ऐसे लोगों से प्रेम करने के लिए बल्कि उनके लिए प्रार्थना करने के लिए भी कहते हैं। प्रभु ने स्वयं यह किया। सूली पर से अपने दुष्मनों को न केवल क्षमा दी पर उनके लिए प्रार्थना की। संत स्टीफन ने जब यहूदियों ने उन्हें पत्थरों से मारा तब मरने से पहले यही कहा - हे प्रभु यह पाप इन पर न लगा। वासना की आग में जलते हुए एलेक्ज़ांन्ड्रो को जब फूलों सी कोमल व नादान मरिया गोरेती ने उसके पाप में भागीदार होने से इनकार किया तो एलेक्ज़न्ड्रो ने उसकी हत्या कर दी। अस्पताल में अंतिम सांसे लेते हुए मरिया गोरेते कह उठती है। मैं उसे माफ करती हूँ। जब सिस्टर रानी मरिया को उनके दुष्मन ने चाकुओं से गोद कर मरवा डाला तो उसकी बहने सि. सेलमी ने हत्यारे के खुनी हाथों पर राखी बांध कर उसे अपना भाई बना लिया। आज कहने को दुनिया मे ईसाईयों की संख्या बहुत है। पर ईसा के अनुयाईयों की संख्या बहुत कम है। महात्मा गांँधी ने इंग्लैंड में रहते हुए ईसाई धर्म का अध्ययन किया। लेकिन वे कभी एक ईसाई नहीं बनें। क्योंकि उन्होंने देखा कि जिन लोगों पर ईसाई होने के लेबल लगे हैं उनमें ईसा की झलक नहीं दिखाई देती थी, ईसा की शिक्षा ईसाईयों के कार्यों में दिखाई नहीं देती थी। वहीं महात्मा गांधी नाम से नहीं परन्तु अपने कार्यों से ईसा के अनुयायी बन गये। उन्होंने प्रभु ईसा की शिक्षा को अपने जीवन में उतारा। उसे अपने जीवन व कार्यों का सिद्धांत बना लिया। एक गाल पर थप्पड मारने पर दूसरा दिखाने का सिद्धांत महात्मा गांधि के अंहिसावाद का पर्याय बन गया। इसीलिए आज दुनिया उन्हें महान अत्मा कह कर उनका सम्मान करती है।
प्रभु की इन शिक्षाओं को सुनना तो बडा अच्छा लगता है। पर इन पर अमल करना, व अपने जीवन में इन्हें उतारना एक मुशकील काम है। क्योंकि हमारा मानवीय स्वभाव तो अपने दुष्मनों से घृणा, अपने भाईयों से प्रेम करना सिखलाता है। दुष्मनों से प्रेम करना तो ईश्वरीय स्वभाव है। और हमें यही ईष्वरीय स्वभाव प्राप्त करना है। इसीलिए प्रभु येसु आज हमसे कहते हैं - अपने पिता जैसे परिपूर्ण बनो। आईये हम आज हमारे मन की सारी कडवाहट को, सारी नकारात्मकता को, दु्शमनी व घृणा के भावों को हमारे दिलों से निकाल दें ताकि प्रभु हमारे दिलों को अपने प्रेम से भर दें। ताकि हम उनकी तरह हमारे दुशमनों व हमारी विरोधियों से भी प्रेम करे सकें। आमेन।




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