ईष्वर ने इंसान की सृष्टि उनके अनंत सुख व आनन्द में भागीदार होने के लिए की थी परन्तु मानव ने आज्ञा भंग द्वारा उस ईष्वरीय उपहार को खो दिया। हमने अपने स्वर्गीय पिता के उस आरामदायक मकान को ठुकरा कर, ऐसे मकान को अपनाया जहांँ पर सारी सुविधायें होने के बाद भी शांँति व सुकून नहीं। हमारे स्वर्गीय पिता ने हमारे भरण-पौषण की सारी व्यवस्था की परन्तु हमारे आदि माता पिता ने उनकी इस व्यवस्था पर भरोसा नहीं किया। उन्हें लगा कि उस भले और बुरे के ज्ञान के वृक्ष का फल खाकर वे ईष्वर से भी ज्यादा ताकतवर व ज्ञानवान बन जायेंगे। फिर तो उन्हें किसी बात की चिंता नहीं रहेगी। जो था उससे संतुष्ट नहीं हो कर अधिक की लालच में उन्होंने अनंत जीवन को खो दिया। जीवन के सारे रहस्य जान लेने की जिज्ञासा में उन्होंने अपनी जिंदगी एक अनसुलझी पहेली बना लिया। इंसान की जिंदगी एक ऐसी जटील पहेली बन गई कि कब बात बनती कब बिगड जाती हमें पता ही नहीं चलता। सब कुछ ठीक-ठाक चलते-चलते कब मुसीबतों का पहाड टूट पडता है कुछ पता ही नहीं चलता। एक मजदूर दिन भर कडी धूप, ठंड या बारीष में काम करने के बाद रात को रूखा-सुखा खाकर चैन की नींद सोता है पर अरबों खरोबों के मालीक स्वादिष्ट-स्वादिष्ट भोजन खाकर भी तृप्ती का अहसास नहीं करते। उन्हें न रात में नींद आती है और न दिन में चैन। कुल मिलाकर जीवन में कोई स्थिरता नहीं है। अषांति, दुख, विपत्तियां, पीडायें और कष्ट ये सब पाप का परिणाम है।
परन्तु हम जानते हैं कि जीवन की ये उलझनें कुछ ही समय की हैं। जब तक हम इस संसार में हैं हमें इन सब चीज़ों से रूबरू होना पडता है। परन्तु इसके बाद हमें एक ऐसा जीवन मिलेगा जिसकी हम दुनिया में कल्पाना भी नहीं कर सकते। संत पौलुस आज के पहले पाठ में हमसे कहते हैं - ‘‘मैं उन बातों के विषय में बोलता हूँ जिनके संबंध में धर्मग्रंथ यह कहता है- ‘‘ईष्वर ने अपने भक्तों के लिए जो कुछ तैयार किया है, वह किसी ने कभी देखा नहीं, उसके विषय में किसी ने कभी सुना नहीं और कोई उसकी कल्पना कभी नहीं कर पाया।’’ उस स्वर्गीय आनन्द, खुषी एवं ईष्वर के सामिप्य की, उनके प्रांगण में निवास करने के उस अनुभव की हम कल्पना भी नहीं कर सकते। कितना महान, व कितना सुखद होगा हमारा प्रभु के साथ अनन्तकाल तक निवास करना!!!
इस अनन्त सुख के भागीदार बनने के लिए ईष्वर हमें जबरदस्ती नहीं करते, जैसा कि उन्होंने आदि माता-पिता के साथ किया। आज के पहले पाठ में प्रभु का वचन हमसे कहता है - ‘‘ईष्वर के प्रति ईमानदार रहना तुम्हारी इच्छा पर निर्भर है। उसने तुम्हारे सामने अग्नि और जल दोनों रख दिया, हाथ बढाकर कर उन में से एक को चुन लो। मनुष्य के सामने जीवन और मरण दोनों रखे हुए हैं। जिसे मनुष्य चुनता है, उसी वही मिलता जाता है।’’ हमारे सामने सारे विकल्प रखने के बाद प्रेमी पिता हमसे कहते हैं विधिविवरण ग्रंथ 30,19 में - ‘‘मैं तुम्हारे सामने जीवन और मृत्यु, भलाई और बुराई दोनों रख रहा हूँ। तुम लोग जीवन को चुन लो।’’ उन्होंने हमें पूर्ण स्वतंत्रता दी है। पर ये नहीं चाहते कि हम उस स्वतंत्रता का दुरउपयोग कर मृत्यु को चुनें। वे चाहतें हैं कि हम स्वतंत्र रूप से जीवन को चुनें, उस अनन्त जीवन को जिसे हमें दिलाने के लिए हमारे मुक्तिदाता प्रभु येसु इस संसार में आये हैं। आज के सुसमाचार में प्रभु येसु पर्वत प्रवचन में अपने दिव्य वचनों द्वारा उस अनन्त जीवन को प्राप्त करने का मार्ग हमें बतलाते हैं। जैसा कि संत पेत्रुस कहते हैं - ‘‘प्रभु हम किसके पास जायें! आपके की शब्दों में अनन्त जीवन का संदेष है।’’ योहन 6, 68। प्रभु कहते हैं यदि हम स्वर्ग में प्रवेष पाना चाहते हैं तो हमें न केवल अपने भाई-बहनों की हत्या करने से बचना चाहिए परन्तु उनसे बैर घृणा एवं क्रोध करने से भी बचना चाहिए। किसी की हत्या करना जितना गंभीर पाप है, उतना ही गंभीर होता है उनसे क्रोध करना। प्रभु कहते हैं जो सजा हत्यारे को दी जानी चाहिए वही क्रोधी व्यक्ति को भी मिलनी चाहिए। प्रभु हमें अपने भाई बहनों के प्रति प्रेम, क्षमा व एकता बनाये रखने को कहते हैं। जब हम प्रभु की वेदी के पास आते हैं तो अपने भाई-बहनों से किसी प्रकार की कोई षिकायत हमारे अंदर नहीं होनी चाहिए। प्रभु के सम्मुख हमें शुद्ध हृदय लेकर आना चाहिए। मलीन हृदय के साथ चढाई गई भेंट प्रभु को प्रिय नहीं। याद रहे प्रभु ने काईन की भेंट के साथ क्या किया था। जो पाप बाहरी रूप से दिखता है उससे अधिक गंभीर हमारे अंदर के पाप होते हैं। हमारे बूरे विचार हमारे बूरे कर्मों से ज्यादा घातक होते हैं। बूरे कर्म तो बूरे विचारों का प्रकट रूप मात्र है। यदि हम हमारे बूरे विचारों के ऊपर नियंत्रण रख लेते हैं तो हमारे कर्म स्वतः ही अच्छे हो जायेंगे। इसलिए प्रभु कहते हैं कि यदि तुम किसी स्त्री को बुरी निगाह से देखते हो तो तुमने अपने मन में उसके साथ व्यभिचार कर लिया है। प्रभु कहते हैं ऐसी सभी चिजें जो हमें पाप की और खींच ले जाती है, हमें उन्हें त्याग देना, उनके होते हुए नरक में जाने से बेहतर है। आज प्रभु के वचनों को यदि हम हमारे आज की दुनिया से जोडकर देखें तो प्रभु हमसे यही कहेंगे - यदि तुम्हारा मोबाइल तुम्हारे लिए पाप का कारण बनता है तो उसे अपने से दूर रखो, यदि तुम्हारा कम्प्युटर तुम्हें पाप कराता है तो उसे त्याग दो। यदि तुम्हारे दोस्त तुम्हें पाप कराते हैं, तो उन्हें छोड दो। इन सब के साथ नरक में जाने से बेहतर है हम इनके बिना स्वर्ग में जायें।
आज हम पवित्र बालकपन का पर्व मना रहे हैं। आजकल के बच्चों को सही षिक्षा देना हर माता-पिता, षिक्षक-षिक्षिकाओं एवं सब जिम्मेदार लोगों का फर्ज है। उन्हें क्या सही है क्या गलत, कौन सी बातें व कौन सी चिजें उनके लिए लाभदायक हैं और किन चिजों से उन्हें दूर रहना चाहिए ये सब हम ही उन्हें बता सकते हैं। यदि आज हम बच्चों की नींव पवित्रता के ऊपर रखेंगे तो कल हमें एक ऐसा भविष्य मिलेगा जो ईष्वर के राज्य के मुल्यों पर आधारित होगा। जहाँ शैतान के कार्यों का दमन होगा और हमारी संतानें इस दुनिया में प्रभु के नाम व उसके सुसमाचार की एक मिसाल बनकर इस जग में उसके नाम की महिमा को प्रदर्षित करेंगी। आमेन।
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