Monday, 16 December 2019

आगमन का चौथा रविवार २२ दिसबर २०१९




इसायाह 7: 10-14 
रोमियों 1:1-10 
मत्ती 1:18-24 

हमारी रोज़मर्रा की ज़िन्दगी में, हमारे सामने कई विकल्प होते हैं और उनमें से हमें सही व उचित विकल्प का चुनाव करना होता है। कुछ बातें बहुत हल्की तो कुछ बहुत गंभीर होती है। बहुत सारी बातों बीच कई बार हम उलझ कर रह जाते हैं कि क्या चुनें और क्या नहीं।

आज हम आगमन के अंतिम इतवार में पहुंच गये हैं और आज माता कलीसिया हमारे सामने हमारे मुक्ति इतिहास के दो विशेष किरदारों की तरफ हमारा ध्यान आकर्षित करती है जो अपने जीवन की भिन्न परिस्थितियों में विशेष निर्णय लेते हैं, विशेष चुनाव करते हैं।

आज का पहला पाठ हमें करीब 725  ई.पू. की दुनिया में लेकर जाता है जहाॅं आहाज इस्राएल के दक्षिणी राज्य, यूदा का राजा है जो कि यहूदियों के महान राजा दाउद का वंशज है, जिनसे मसीहा के आने का वादा किया गया था। वह अपने को एक बहुत ही जटिल स्थिति में पाता है। दक्षिणी राज्य दुश्मनों  से घिरा हुआ है। ऐसे में ईश्वर नबी  के द्वारा राजा से कहते हैं कि डरो मत।विश्वास में दृढ बने रहो और जो राज्य तुम पर चढाई कर रहे हैं उनसे समझौता अथवा संधी मत करो। सिर्फ ईश्वर  पर भरोसा रखो जो तुम्हें छुडायेगा। नबी के द्वारा ईश्वर राजा आहाज़ से एक चिन्ह मांगने के लिए कहता है। ईश्वर  कहता है के जो वादा ईश्वर  कर रहा है उसके लिए सबूत के तौर पर चिन्ह मांगो आहाज़ क्या करता है। वह चिन्ह मांगने से मना कर देता है। वह ईश्वर के निमंत्रण को अस्वीकार करता है। और वह जैसा नबी इसायाह ने उससे कहा उसके विपरीत करता है। ईश्वर ने नबी इसायाह के द्वारा उससे कहा कि जो राजा उनके विरुद्ध चढ़ाई कर रहे हैं वे ये सोच रहे हैं कि वे उसे पराजित कर देंगे, पर प्रभु ऐसा नहीं होने देंग। आहाज़ प्रभु पर भरोसा नहीं करता। राज्यों के ग्रन्थ १६:७ में हम पढ़ते हैं राजा आहाज ने अस्सूर के राजा से संधि करके आपने भरोसा उसमें जताया। उसने अपने ईश्वर का दस मानने की जगह तिगलक पिलेसर का दस माना. 

अब हम कहानी को फास्ट फॉरवर्ड करके 725 सदी आगे आ जाते हैं जहाॅं एक अन्य किरदार हमें देखने को मिलता हैं वो भी दाउद के घराने और वंश का ही है। लेकिन यह कोई राजा नहीं पर साधारण बढई हैं। और वह अपने को बहुत ही गंभीर व  दुविधाजनक व जटिल परिस्थिति में पाता है। उसकी समस्या किसी देश के लिए खतरा और दुश्मनों का आक्रमण नहीं पर यह समस्या उसके लिए बहुत ही मायने रखती थी। और वो समस्या थी कि उसकी सगाई या मंगनी एक कन्या से हुई थी जो कि कुंवारी है पर उसे अब बताया गया है कि वह अब गर्भवती है। वह कहती है कि यह किसी पुरूष से नहीं है।  जिस पर जोसफ पूरी तरह से हिल गया होगा। पर ईश्वर की कृपा ने उसे संभाला। इसायाह की भविष्यवाणी कीपरिपूर्णता  मरियम में हो रही है यह सन्देश अहाज और जोसफ की दानों घटनाओं को जोडता है। आहाज ने चिन्ह को लेने के लिए मना कर दिया पर योसफ उसे स्वीकार करता है। जैसा स्वर्गदूत ने कहा वैसे ही मरियम को वह अपने यहां ले आता है। आज ख्रीस्त जयंति की तैयारियां करते समय हम किसका किरदार अदा करने वाले हैं? आहाज़ का या फिर जोसफ का? जब हम आहाज़ की तरहदुश्मनों से, समस्याओं से घिर जाते हैं तो ऐसी परिस्थिति में हम आहाज़ की तरह ईश्वर  की आज्ञा की अवहेलना करते है या फिर जोसफ की तरह ईश्वर  की बात मानकर जैसा ईश्वर  बोलते हैं वैसा ही करते हैं। ईश्वर  के वचन आज भी वही हैं जो उसने जोसेफ से कहे - मत डरो.....ईश्वर  हमारे साथ है ......ईश्वर  का बेटा 2000 साल पहले आया, हम सब को अपने पापों से बचाने आया, वह कलीसिया के साथ रहता है, पवित्र संस्कारों और वचनों के माध्यम से। वह हमार जीवन के हर पहलु, हर परिस्थिति में हमारे साथ है। ताकि वह हमें अपने सामर्थ्य, प्रेम व शांति से भर दे। दूसरे पाठ में संत पौलुस कहते हैं - मुझे प्रेरित बनने का वरदान मिला है, जिससे मैं उनके नाम पर गैर यहूदियों में प्रचार करूं और वे लोग विश्वास की अधिनता स्वीकार करें। 

 आज के पाठों के दोनों किरदारों में यही तो फर्क है एक ने ईश्वर  की अधीनता को अस्वीकार किया तो दूसरे ने उसे स्वीकार किया, स्वीकार ही नहीं अंगीकार भी किया। संत जोसफ ने असंभव पर विश्वास  करके अपने को ईश्वर  की इच्छा के प्रति समर्पित कर दिया तो उसे वह महान कृपा मिली जिसके लिए कितने ही राजा और नबी तरसते थे - ईश्वर के पुत्र को अपने हाथों में उठाना। ईश्वर के पुत्र को अपनी गोद में खिलाना। शरीर बने अनादि काल से विद्यमान वचन को अपने बेटे के रूप में पालन पोषण करना। ईश्वरकी योजना के मुताबिक मसीहा तो मरियम के गर्भ में पवित्र आत्मा के सामर्थ्य से आ चुके थे और वे तो जन्म लेते ही परन्तु यदि जोसफ ईश्वर की आज्ञा की अवहेलना करके मरियम को अपने यहां नहीं लाता तो जो परम सौभाग्य उसे मिला उससे वह वंचित हो जाता। मुक्तिदाता का पालक पिता बनने का सौभाग्य। इस क्रिसमस के सीज़न क्या हम इस सौभाग्य को प्राप्त करना चाहेंगे। क्या हम उस गौषाला में मरियम और जोसफ के साथ खडे होकर उस आसमानी जलाल निहार पायेंगे। खुदा का बेटा जो इंसान बन गया है क्या हम उसके करीब आकर मरियम और जोसफ के साथ उसका स्पर्ष कर पायेंगे?

संत मारकुस 3ः34 में येसु ने कहा है - "ये हैं मेरी माता और मेरे भाई। जो ईश्वर  की इच्छा पूरी करता है, वही है मेरा भाई, मेरी बहन और मेरी माता।"

प्रभु येसु हमें अपने स्वर्गीक पिता के उस विशाल स्वर्गीय परिवार के सदस्य बनाने इस संसार में आये हैं। वह हमें इस संसार की, पाप व बुराई व शैतान की दसता से मुक्त कर अपने स्वर्गिक पिता के दत्तक पुत्र पुत्रियां बनाना चाहते हैं - गलातियों 4ः4-5 में प्रभु का वचन कहता है - ‘‘किंतु समय पूरा हो जाने पर ईश्वर ने अपने पुत्र को भेजा। वह एक नारी से उत्पन्न हुए और संहिता के अधिन रहे जिससे वह संहिता के अधीन रहने वालों को छुडा सके और हम ईश्वर के दत्तक पुत्र - पुत्रियां बन जायें।

एक ही शर्त है ईश्वर की अधीनता स्वीकार करना, ईश्वर का आज्ञा के अनुसार चलना, ईश्वर  की मरजी को पूरा करना।

इस क्रिसमस पर हम क्या बनना चाहते हैं - येसु के परिवार के लोग या फिर महज कोईदर्शक, या फिर महज एक उत्सव मनाने वाली भीड। जो दुनियाभर की सजावट करती है, दुनिया भर के पकावान बनाती है। मंहगे-मंहगे कपडे पहनते हैं और केक काटकर पाटीयां मनाते हैं? या फिर येसु के परिवार के सदस्य बनकर मरियम और  युसूफ के साथ उनके करीब रहे व उनके दर्शन से अपना जीवन धन्य कर लें. आमेन 

1 comment:


  1. प्रिया विश्वास के गन. जय येशु. प्रभु क राज्य निकट है .और हर संकट से हमे प्रभु येसु मसीह ही हमे बचा सकता है.

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