Sunday, 22 December 2019

क्रिसमस प्रवचन




आज भी दिल की सरायों  में 
जगह ढूंढ़ता येसु

प्रभु येसु मसीह में, ईश्वर  मनुष्य के रूप में सिर्फ प्रकट नहीं हुआ जैसा कि 'अवतार' को लेकर मान्यता है, अपितु वह  स्वयं मनुष्य बन गया। उसने इंसान का शरीर धारण कर पूरी तरह से हमारी तरह इस धरा पर जीवन व्यतित किया। उन्हांने मानवीय हाथों से काम किया, अपने मानवीय दिमाग से सोचा, और एक मानवीय हृदय से प्रेम किया। वह एक कुंवारी से जन्मा, उन्होंने अपने आपको पाप को छोड बाकि सब बातों में हमारे समान बना लिया। जब वह इंसान बना उन्होंने अपनी ईश्वरता को नहीं छोड़ा । वे पूरी तरह से ईश्वर थे और पूरी तरह से मनुष्य भी. ईश्वरता और मानवता का उनमे एक परिपूर्ण समागम था।

ख्रीस्त जयंति प्रभु के साथ घनिष्टता का पर्व है। ईश्वर के साथ इंसान का जो घनिष्ट संबंध था वह आदि माता पिता के पाप के कारण खत्म हो गया था। जब आदम ने पाप किया तो वह ईश्वर से छिप गया (उत्पत्ति 3:8),। उसी प्रकार, जब काईन ने अपने भाई की हत्या की तो वह ईश्वर से दूर भाग गया (उत्पत्ति 4:16)। इंसान पाप पर पाप करता रहा है, परन्तु ईश्वर फिर भी वफादार बना रहा। हमारे मुक्ति इतिहास में यदि हम देखेंगे तो पायेंगे कि वह ईश्वर मानव के साथ रहने के लिए तडपता रहा। हमको पुनः अपने से मिलाने के लिए जब ईश्वर ने प्राचीन काल में अब्राहम को चुना तो उन्होंने उनको अपनी उपस्थिति में चलते रहने को कहा (उत्पत्ति 17ः1)। जब इस्राएलियों को मिस्र की गुलामी से छुडाया तब वह ईश्वर उनके साथ-साथ चला। चालीस वर्षों की लम्बी मरूस्थलीय यात्रा में ईश्वर उनके साथ विधान की मंजूषा में प्रतिकात्मक रूप से विद्यमान रहा । जब ईस्राएली लोग प्रतिज्ञात देष में आकर बस गये तब ईश्वर मंदिर में उनके बीच में उपस्थित रहता था। पुराने विधान में वह विभिन्न रूपों में अपनी प्रजा के साथ रहा। इब्रानियों के नाम पत्र 1ः1 में वचन कहता है- ‘‘प्राचीन काल में ईश्वर बारम्बार और विविध रूपों में हमारे पुरखों से नबियों द्वारा बोला था। अब अन्त में वह हमसे पुत्र द्वारा बोला है।
ख्रीस्त  जयंति के दिन कुछ असाधरण सा हुआ। उस दिन ईश्वर साक्षत रूप में हमारे बीच आ गये। वह ईश्वर जो कभी जलती हुई झाडी, कभी बादल के खम्बे, तो कभी विधान की मंजूषा, कभी मंद समीर तो कभी गर्जन के रूप में लोगों के पास आता था, अब वह स्वयं मनुष्य बनकर हमारे बीच में आ गया। ईश्वर ने हमारे खातिर हमारा सा स्वाभाव धारण  किया और उस दिव्या ‘‘शब्द ने शरीर धारण कर हमारे बीच निवास किया।’’ येसु ‘इम्मानुएल’ है जिसका अर्थ है ईश्वर हमारे साथ। वो आज , यहां हमारे बीच में विद्यमान है। जीवित प्रभु येसु आज हमारे साथ है।

आजकल हमारे क्रिसमस की विडम्बना यह है कि हम हमारे क्रिसमस समाराहों से प्रभु येसु को दूर कर दे रहे हैं। कई बार हमारे पास सांता क्लॉज़ रहता है, क्रिसमस ट्री रहती है, मीठे पकवान रहते हैं, मित्रगण रहते हैं। लेकिन बालक येसु के लिए कोई जगह नहीं। पवित्र बाइबल में सबसे हृदय विदारक वाक्य यह है - उनके लिए सराय में कोई जगह नहीं थी।(लूकस 2ः7)। पूरे ब्रह्माण्ड को रचने वाले के लिए कहीं जगह नहीं थी। सारी धरती और जो कुछ भी उसमें है, उसके मालिक के लिए कहीं जगह नहीं थी। जिस यहूदी जाती के उद्धार के लिए के लिए वे आये, उनके घरों में, उनके देश  में उनके लिए जगह नहीं थी। उन्होंने मुक्तिदाता को स्वीकार नहीं किया। उन्होंने उसे क्रूस पर चढा कर मार डाला। सदियों से आज तक यही होता आ रहा है। करीब तीन सौ सालों तक रोमी साम्राज्य में प्रभु येसु के लिए कोई जगह नहीं थी। उनके अनुयायों पर अत्याचार किये जाते रहे। जापान, चीन, कोरिया, और वियेतनाम में कई सालों तक प्रभु के लिए कोई स्थान नहीं था। और उन सभी देशों  व राज्यों में प्रभु येसु के लिए कोई स्थान नहीं जहाँ पर  मिशनरियों, अथवा प्रभु के अनुयायों को उनके जन्म का, उनके राज्य का सुसमाचार सुनाने नहीं दिया जाता। हम पापियों को बचाने के लिए, पाप में भटकती मानवता की खोज में वे अपना स्वर्गीय सुख छोडकर इस धरा पर आए हैं। मुझे बचाने, मेरा उद्धार करने, पिता के साथ मेरा मेल-मिलाप कराने के लिए प्रभु येसु मेरे पास आ आये हैं।  वे मेरे दिल के द्वार पर आकर आज खटखटा रहे हैं। जो कोई द्वार खोलेगा प्रभु उनके यहां, उनके जीवन में आयेंगे। यदि हमारा कोई मित्र बड़े दूर से हमसे मिलने आता है और हम यदि उसके लिए दरवाज़ा नहीं खोलते तो  सोचो उन्हें कैसा लगेगा! उसी प्रकार सोचिये, कितने दुःख की बात होगी यदि हम हमारे प्रभु ईश्वर जो सिर्फ और सिर्फ हमारे लिए हमारे प्रति अपने असीम प्यार का इज़हार  करने के लिए हमारे पास आये है, यदि हम हमारे जीवन में उन्हें  स्वीकार नहीं करेंगे तो उन्हें कैसा लगेगा!। यदि उद्धार पाना है तो उन्हें अपने जीवन में स्वीकार करना ही होगा। उन्होंने कहा है- ‘‘मार्ग सत्य और जीवन में हूँ, मुझसे होकर गये बिना कोई भी पिता के पास नहीं आ सकता।’’ आईये आज प्रभु येसु को हमारे दिल में हमारे जीवन में हम जगह दें। उन्हें हमारे दिलों की गौशाला में जन्म लेने दें। वो हमारे दिलों की सराय से होकर आज भी गुजरता है; मरियम और युसूफ आज भी खटखटाते हैं; जो द्वार खोलेगा  वो मसीहा को अपने अंदर पायेगा। शब्द उसके जीवन में शरीर बन जायेगा। और वह उद्धार व मुक्ति पायेगा।

प्यारे भाईयों और बहनों हम जानते हैं कि जो जन्म लेता है वो बढता भी है। एक शिशु जन्म लेता है उसकी वृद्धी होती है, विकास होता है। यदि हम कहते हैं कि प्रभु येसु ने हमारे दिल में हमारे जीवन में जन्म लिया है तो फिर हमें उन्हें हमारे जीवन में बढने देना चाहिए। जब प्रभु येसु हममें बढेंगे तो हम, धीरे-धीरे उनके समान बनने लगेंगे और वे हमें एक दिन पूरी तरह से बदल देंगे। आईये बालक येसु को हमारे दिलों में आकर जन्म लेने दें व उन्हें हमारे जीवन में बढने दें ताकि हमारे मानोभाव उनके मनोभावों के सदृश्य बन जाये, हमारे विचार उनके विचारों के समान बन जाये, हमारी वाणी उनकी वाणी के समान बन जाये, हमारा व्यवहार उनके व्यहकार के समान बन जाये। आज प्रभु येसु को अपने जीवन में पाकर हम संत पौलुस के समान कहें - ‘‘मुझमें अब मैं नहीं, प्रभु येसु मुझमें जीवित है’’ (गलातियों 2:20)। 

Wish you a very happy Christmas

Fr Preetam Vasuniya

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