Ez 33:7-9
Rom 13:8-10
Mathew 18:15-20
मसीह येसु में मेरे अजीज़ मित्रों भाइयों और बहनों आप सबों को मेरा प्यार भरा जय येसु। खुदावंद येसु मसीह के सामर्थी नाम में आप सबों का मैं आज के मनन चिंतन में स्वागत करता हूँ।
आज प्रभु हमें एक बहुत ही महत्वपूर्ण ख्रीस्तीय अथवा मसीही गुण ऊपर मनन चिंतन करेंगे, और वो गुण है - भाई का सुधार। हम सब अपने जीवन में कभी न कभी, कुछ न खुश गलती अवश्य करते हैं। कई बार हमें गलती का एहसास होता है तो कई बार हम अपनी गलती को पहचान नहीं पाते। हम कई बार बुराई के अंधकार में रहते हैं। यदि हमें अँधेरे में कुछ देखना हों तो हमें प्रकाश की ज़रूरत पड़ती है। प्रभु येसु ने कहा है - "तुम संसार की ज्योति हो। " जब हमारा कोई भाई अंधकार में हो तो एक ज्योति बनकर उनको पाप व अंधकार से बहार लाना हमारा फ़र्ज़ है। प्रभु येसु हमें अपने भाइयों और बहनों को सही मार्ग पे लाने के लिए चार चरण प्रस्तावित करते हैं : १. उसे अकेले ,में समझाओ। यह बहुत ही महत्ववूर्ण कदम है। किसी की गलती मालूम पड़ने पर हम क्या करते हैं ? पूरी दुनिया को जाकर बताते ही फलाना व्यक्ति ने ऐसा किया है। कई लोग दूसरों की गलतियां दूसरों के सामने बताने अथवा प्रकट करने में आनंद आता। हम कई बार किसी गलती के बारे में उस व्यक्ति को छोड़कर पूरी दुनिया को जा कर काबती हैं। वचन कहता है यदि तुम्हारा भाई कोई अपराध करता है, तो उसे अकेले में समझाओ, दुनियाँ में जाकर ढिंढोरा मत पीटो। यदि वह तुम्हारी बात मान जाता है, तो तुमने अपने भाई को बचा लिया। यहाँ बचा लिया से क्या आशय है ? किस चीज़ से बचा लिया ? ज़रूर यह नरकदण्ड की और इंगित करता है। यदि हमने हमारे भाई अथवा बहन को गलत मार्ग से, अथवा अंधकार से प्रकश में आने के लिए मदद की तो वचन कहता है हमने उसे बचा लिया है। अन्यथा वह अपने पाप में मर जायेगा। याने उसका नर्क में विनाश होगा। जैसा की आज पहले पाठ में नबी एजेकिएल कहते हैं - "तुम कुमार्ग छोड़ने उसे चेतावनी नहीं दोगे, तो वह अपने पाप के कारण में जायेगा।" अब हम ये सोचेंगे कि कौन दूसरों के चक्कर में पड़े। हम क्यों किसी की गलती बता कर अपनी उँगली जलायें। गलती करने वाले गलती करें, और मरें तो मरने दो, मुझे तो मेरे जीवन को सुधारना है। कई बार ऐसी सोच हम में, होती है। क्या ऐसा सोचना एक ख्रीस्तीय के लिए उचित है। कदापि नहीं। एक गैर ख्रीस्तीय ऐसा सोच सकता है लेकिंन ख्रीस्तीय नहीं। नबी एजेकिएल 33:8 में प्रभु कहते है - "यदि तुम दुष्ट को कुमार्ग छोड़ने के लिए उसे चेतावनी नहीं दोगे, तो वह अपने पाप के कारण मर जायेगा, किन्तु तुम उसकी मृत्यु के लिए उत्तरदायी होंगे। "
तो प्रभु का वचन कहता है कि यदि एक पापी अपने पाप के कारण मरता है और में यह जानकर भी उसका सुधर नहीं करता, तो उसकी पापमय मौत के लिए ईश्वर मुझे उत्तरदाई मानेगा। उत्त्पत्ति ग्रन्थ 4:9 में प्रभु ईश्वर ने काईन से पूछा - "तुम्हारा भाई हाबिल कहाँ है?" इसपर उसने उत्तर दिया - "क्या मैं मेरे भाई का रखवाला हूँ ?"
आज यदि प्रभु मुझसे पूछे तुम्हारा भाई तुम्हारी बहन कहाँ है ? वे किन पाप की राहों पर भटक हैं , हम काईन की तरह यह नहीं सकते क्या मैं उनका रखवाला हूँ। मैं ज़रूर अपने मैं ज़रूर अपने भाई, अपनी बहने का रखवाला हूं। प्रभु अंत में मुझसे हिसाब मांगेंगे न केवल मेरी नीजि जिंदगी का परन्तु औरों की जिंदगी को लेकर भी। मुझसे अंतिम न्याय में कहा जायेगा — ''तुमने मेरे इन भाईयों में से किसी एक के लिए, चाहे वह कितना ही छोटा क्यों न हो, जो कुछ किया वह तुमने मेरे लिए ही किया।'' मत्ती 25:40 ।
तो एक मसीही को खुद बचना काफी नहीं है , औरों को भी बचाना होगा। कोई गलत रह पर जाये तो उसे सही रह पर होगा। यह संभव नहीं कि मैंने किसी को एक बार समझाया और वह तुरत सुधर जायेगा। व्यक्ति के में समय लगता है। पर हमें प्रयास रोकना नहीं। प्रभु येसु आज सुसमाचार में कहते यदि वह याने जिसे आप सही राह पर लाना चाहते हो, आपकी बात नहीं मानता तो दो - एक व्यक्तियों को साथ जाओ ताकी दो या तीन गवाहों के सहारे सब कुछ प्रमाणित हो जाये। याने हमें व्यक्ति को नहीं सुधर रहा है करके छोड़ना नहीं है। और आगे प्रभु कहते हैं यदि वह उनकी भी नहीं उनकी भी नहीं सुनता तो उसे कलीसिया को बता दो। कलीसिया कलीसिया को बताने से क्या होगा। कलीसिया में उसके लिए प्रार्थना की जायेगी,धर्मगुरू उसे समझाएगा। और यदि वह कलीसिया की भी नहीं सुनता तो उसे यहूदी और नाकेदार जैसा समझो। किसी को यहूदी और नाकेदार जैसा समझने का आशय क्या है? पहले मैं सोचता था कि यदि वे कलीसिया की भी नहीं सुनते तो उन्हें विनाश होने के लिए यहूदी और नाकेदार जैसा समझकर छोड देना चाहिए। पर मैं ने जब इस पर गहराई से मनन चिंतन किया तो पाया कि ये तिरकृत अथवा छोडे हुए लोग नहीं पर प्रभु येसु के प्रिय लोग थे। वे उनके साथ खाते पीते थे। लोगों को इस पर आपत्ति् होने पर उन्होंने कहा था —''नीरोगियों को नहीं, रोगियों को वैद्य की ज़रूरत होती है। मैं धर्मियों को नहीं पापियों को पश्चाताप के लिए बुलाने आया हूं।'' तो प्रभु येसु के जीवन में हम देखते हैं कि जिन्हें लोग पापी समझते थे और उनके बारे में यह सोचते थे कि इनके सुधरने की कोई गुजाईश नहीं येसु ने उनसे दोस्ती की व उनके करीबी रिश्ता कायम कर उन्हें बचाने का पूरा प्रायास किया। तो किसी को नाकेदार जैसा मान लेने का आशय प्रभु येसु के नज़रिये से उसे छोड देना नहीं पर उसका और अधिक ख्याल रखना व उसके सुधार के लिए भरसक प्रयास करना है।
आईये प्यारे भाईयों और बहनों आज के मनन चिंतन द्वारा हमने जो शिक्षा पायी है उसे अपने जीवन में लागु करने, अपने भाई—बहनों को गलत मार्ग से सही मार्ग पर लाने के प्रयास को हम गंभिरता से लेने के लिए प्रभु हमें आशिष व कृपा प्रदान करें। आमेन।
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