प्रवक्ता 27:33—28:29
रामियों 14:7—9
मत्ती 18:21—35
आज के वचन के द्वारा प्रभु हमें क्षमा का पाठ पढाते हैं। पहले पाठ में जो कि प्रवक्तता ग्रंथ से लिया गया है प्रभु का वचन कहता है — ''अपने पडोसी का अपराध क्षमा कर दो और प्रार्थना करने पर तुम्हारे पाप क्षमा किये जायेंगे। यदि कोई अपने मन में दूसरों पर क्रोध बनाये रखता है, तो वह प्रभु से क्षमा की आशा कैसे कर सकता है? (प्रवक्ता ग्रंथ (28:2—3)
आज के सुसमाचार में येसु ने एक निर्दय सेवक के बारे में बताया जो अपने स्वामी से क्षमा का उपहार प्राप्त करता तो है, लेकिन वह अपने सह- सेवक को क्षमा करने से इंकार कर देता है। यह दृष्टान्त जहाँ एक ओर ईश्वर की क्षमाशीलता को दर्शाता है, वहीँ हमें अपने अपराधियों को क्षमा करने के लिए आह्वान करता है।
पाप मानव जीवन की एक कडवी सच्चाई है। रोमियों 3:23 में प्रभु का वचन कहता है — ''क्योंकि सबों ने पाप किया और सब ईश्वर की महिमा से वंचित किये गये।'' तथा 1 योहन 1:8 में वचन कहता है — '' यदि हम कहते हैं कि हम निष्पाप हैं, तो हम अपने आप को धोखा देते हैं और हम में सत्य नहीं है।''
तो इस बात को कोई झुठला नहीं सकता कि पाप करना, गुनाह करना इंसान की एक बडी कमज़ोरी है। दुनिया के करीब—करीब सभी धर्म पाप व बुराई के अस्तित्व को मानते हैं और यह भी मानते हैं कि पाप करना गलत बात है और पाप जो हैं वो हमें हमारी मुक्ति से वंचित करता है। याने पाप के रहते कोई भी अनन्त जीवन हासिल नहीं कर सकता। रामियों 6:23 में वचन कहता है — क्योंकि पाप का वेतन मृत्यु है। इसलिए अधिकतर ध्रर्मों में पापों से छुटकारा पाने के अलग—अगल तरीके सुझाये गये हैं — कोई यज्ञ करके, कोई तीर्थ यात्रा करके, तो कोई पवित्र नदियों में स्नान करके अपने पाप के दाग धोने के प्रयत्न करते हैं।
हमें हमारे पापों के लिए न कोई यज्ञ चढाने की ज़रूरत है और न किसी नदी में डूबकी लगाने की। क्योंकि वचन कहता है रोमियों 3:24 में — ''ईश्वर की कृपा से हमें मुफ्त में पापमुक्ति का वरदान मिला है।'' हमारे प्रभु येसु ने हम सब के पापों की कीमत क्रूस पर मरकर चुका दी है। ईश्वर की हम मनुष्यों को लेकर यही इच्छा है कि हम सब पाप मुक्त रहें। संत पौलुस रोमियों को लिखे पत्र 3:25 में कहते हैं — ''ईश्वर ने चाहा कि येसु अपना रक्त बहाकर पाप का प्रायश्चित करे और हम विश्वास द्वारा उसका फल प्राप्त करें।'' पाप से मुक्ति व धार्मिक बनने का और आसान रास्ता क्या हो सकता है? येसु में विश्वास करिये, अपने गुनाहों का बोझ उन्हें दीजिए, सच्चे मन व दिल से पश्चाताप कीजिए और गुनाह की राहों को छोडकर येसु का अनुसरण कीजिए।
प्यारे साथियों इसमें कोई शक नहीं की येसु हमारे सभी पापों को क्षमा करते हैं। परन्तु क्षमा पाने वाले हर एक व्यक्ति से यह उम्मीद की जाती है कि वह भी अपने अपराधियों को क्षमा करे।
हमारे जीवन में हम देखते हैं कि जब हमारी बारी आती है, तो हम औरों से हमारी बड़ी से बड़ी गलती की भी क्षमा की उम्मीद करते हैं पर जब दूसरों को क्षमा देने की बात आती है तो फिर हमें, वहाँ पर न्याय चाहिए होता है। यही माविय प्रवृति है।
आज के सुसमाचार में वह स्वामी अपने सेवक का लाखों का कर्जा माफ कर देता है। पर वह निर्दय सेवक जब अपने सहसेवक से मिलता है जो महज सौ दिनार का कर्ज़दार था उसे माफ नहीं करता है। यह दृष्टांत हमें ईश्वर की हमारे प्रति उदार दयालुता की ओर ईशारा करता हुआ हमें यह संदेश देता है कि ईश्वर ने हमारे जीवन में अब तक वाकय हमारे लाखों गुनाहों को माफ कर दिया है। हम जब कभी उनके पास एक पश्चातापी हदय लेकर जाते हैं वचन कहता है मिका 7:18 में — ''वह फिर हम पर दया करेगा, हमारे अपराध पैरों तले रौंदेगा और हमारे सभी पाप गहरे समुद्र मे फैंकेगा।'' वाकय कितना महान है हमारा ईश्वर... यदि वह हमारे असंख्य पापों के अनुसार हमारे साथ व्यवहार करता तो आज कौन जीवित रहता। यदि वह हर-एक गुनाह के अनुसार हमारे साथ बर्ताव करता तो बताओ कौन उनके सामने टिक सकता जैसा के भजन संहिंता 130:3 में हम पढ़ते है - "प्रभु! यदि तू हमारे अपराधों को याद रखेगा, तो कौन टिका रहेगा?"
लेकिन इस दृष्टांत में हमने यह भी देखा है कि जब वह सेवक अपने सह सेवक को माफ नहीं करता है तो जो दया उस पर दिखाई गई थी वो वापस उठा ली गई और जो दंड उसे मिलने वाला था जो माफ किया जा चुका था रिवर्स होकर वापस उस पर पडता है। ईश्वर की क्षमा पाने के लिए हमें औरों को माफ करने की अति आवश्चक्ता है। संत मत्त्ती 6:14 में प्रभु येसु स्पष्ट कहते हैं — ''यदि तुम दूसरों के अपराध क्षमा करोगे, तो तुम्हारा स्वर्गिक पिता भी तुम्हें क्षमा करेगा। परन्तु यदि तुम दूसरों के अपराध क्षमा नहीं करोगे तो तुम्हारा स्वर्गिक पिता भी तुम्हें क्षमा नहीं करेगा।''
हम आज अपने आप से पूछें—जिस तरह से ईश्वर हमारे साथ बर्ताव करता है, हम कितना दूसरों के साथ वैसा ही बर्ताव कर पाते हैं। हम तो हमारी स्वार्थी प्रवृति के शिकार हैं और सिर्फ खुद का भला सोचते हैं। पर हमें याद रहे कि ऐसी प्रवृति तो सांसारिक है, और हम सांसारिक नहीं स्वर्गिक हैं। इसलिए हमारे मनोभाव स्वर्ग के मुताबिक होने चाहिए। संत मत्ती 5:48 में येसु कहते हैं - "इसलिए तुम पूर्ण बनो, जैसे तुम्हारा स्वर्गिक पिता पूर्ण है।" और संत लूकस इसी बात को थोड़ा सा अलग रूप में पेश करते हुए कहते हैं - "अपने स्वर्गिक पिता-जैसे दयालु बनो।" पूर्णता का आह्वान ईश्वर के समान उदार और प्रेममय क्षमा करने का आह्वान है। प्रभु हमें सिर्फ पूर्णता के जीवन का आह्वान ही नहीं देते, पर इस आह्वान को अपने जीवन में साकार करने के लिए साधन भी मुहैया कराते हैं और वह साधन, निश्चित रूप से, पवित्र आत्मा है, जिसे संत पौलुस ईश्वर के प्रेम का आत्मा कहता है, जिसे ईश्वर ने हमारे दिलों में रोपित किया है।
जब हम आत्मा से संचालित जीवन जियेंगे, तो हम हमारे स्वर्गिक पिता जैसा प्यार और क्षमा दूसरों को दिखा पाएंगे।
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