Thursday, 29 October 2020

31st Sunday in Ordinary Time, year A, Nov. 1,2020 Hindi Reflection by Fr. Preetam Vasuniya

 


ख्रीस्त में प्यारे भाईयों और बहनों हम हर रवीवार व पर्वों की मिस्सा में तथा अन्य प्रार्थनाओं में प्रेरितों का धर्मसार बोलते हैं और उसमें यह कहते हैं - मैं एक ही पवित्र, काथलिक व प्रेरितिक कलीसिया में विश्वास करता हूँ। हम ऐसी कलीसिया में विश्वास करते हैं जो पवित्र है। जि हाँ कलीसिया पवित्र है। तथा आज हम उस पवित्रता को विशेष  रूप से मना रहे हैं जो कि सब संतो के जीवन में विशेष  रूप से प्रकट की गयी है। 
आज हम सब संतों का पर्व मना रहे हैं। पूजन-विधी के कैलंडर में यद्यपि कुछ ही संतों के पर्व निर्धारित किये गये हैं। लेकिन आज कलीसिया उन असंख्य धर्मी संत आत्माओं को याद करती है जो ईश्वर के स्वर्गिक सिंहासन के सामने निरंतर ईश्वर की महिमा गातीं हैं ।  
शायद कलीसिया के इतिहासकार ही ये बता पायेंगे कि सबसे पहले कलीसिया ने किसे संत घोषित किया था। पर हमें यह तो अच्छी तरह से पता है कि पवित्र बाईबल के अनुसार सबसे पहले संत की घोषणा स्वयं प्रभु येसु ने की थी - उस भले डाकू को यह कहते हुवे, ’’आज ही तुम मेरे साथ स्वर्ग में होंगे।’’
इस प्रकार कलीसिया ने कई व्यक्तियों को उनके जीवन-चरित्र व प्रभु से उनके करीबी रिश्ते के कारण संत घोषित किया है। इन्हें देखकर, इनके जीवन पर मनन-चिंतन करके हमें भी उस स्वर्गीय धाम की ओर आगे बढते रहने के लिए प्रोत्साहन व प्रेरणा मिलती है। इन आत्माओं में जो कि हमारी ही तरह इन्सान थे, इस दुनिया में हमारी ही तरह परिवारों में जन्में व अपने स्थानीय समाज में पले बढे। पर इस भौतिक संसार के मोहों से ऊपर उठकर इन्होंने स्वयं को ख्रीस्त के अनुरूप बना लिया। अब इनके द्वारा प्रभु हमसे बोलते हैं, प्रभु हमसे कहते हैं - ’’तुम्हारी मानवीय कमज़ोरियाँ मैं जानता हूँ, इनके बावजूद भी तुम संत बन सकते हो। ये संतगण भी तुम्हारी ही तरह इस दुनिया में थे पर इन्होंने सदा पिता ईश्वर की ईच्छा को पुरा किया; सदा पिता की मरजी पूरी करने के लिए जीए। इसलिए अब ये तुम्हारे लिए आदर्श हैं एक नमूना है। इन्हें देखकर उन राहों पर तुम भी चले आओ जो राहें मेरे स्वर्गीय धाम की ओर जाती हों। कुछ दिन पहले हम काँकरिया आश्रम में रिटरीट के लिए गये थे। वहाँ बहुत पेड पौधे, घना जंगल व पहाड है। एक दिन हम फादर के साथ पहाड पर चढे। ऊपर चढने के लिए कोई रास्ता नहीं था। कुछ ब्रदरगण झाडियों मेंसे रास्ता खोजते हुवे पहले ऊपर चढ गये व वहाँ से बाकी लोगों को बताने लगे उधर से नहीं इधर से आओ.....हाँ इस तरफ से...। मैं सोचता हूँ ये संतगण भी इसी तरह हमसे पहले स्वर्ग पहूँचकर हमें इशारा कर-करके बुला रहे हैं - ये वाला रास्ता सही है....इसी पर चले आओ। ये संत स्त्री पुरूष व बच्चे हमारे मार्गदर्शक व प्रेरणा स्रोत हैं। इसलिए यह उचित है कि हम प्रभु येसु की अति प्रिय इन मित्रों व उनके सच्चे अनुयायों को प्यार करें उनका उनुकरण करें व उनका आदर सम्मान करें। आज हम ईश्वर को धन्यवाद दें कि उन्होंने हमारे इन असंख्य संत लोगों के जीवन में अपने मुक्ति कार्य को सम्पन्न किया है।
आज के  पहले पाठ में जो कि प्रकाशना ग्रंथ अघ्याय 7 से लिया गया है, हम ये पाते हैं कि संत योहन एक दिव्यदर्शन में संत जनों के एक विशाल जनसमूह  को देखते हैं इतने अधिक लोग कि उनकी गिनती कोई भी नहीं कर सकता। क्या हम उस संतों के समुदाय में शामिल होंगे..? क्या हमारी गिनती उनमें होगी? जी हाँ सम्भावना बहुत ज्यादा है। आप और मैं संतों की उस भीड में से एक हो सकते हैं। प्यारे भाईयों-बहनों वचन कहता है - मैं ने सभी राष्ट्रों ,वंशों , प्रजातियों, और भाषाओं का ऐसा जनसमूह देखा जिसकी गिनती कोई भी नहीं कर सकता। याने वो सभी राष्ट्रों अथवा  देशों से होंगे - अमेरिका, रोम, येरूसालेम, पाकिस्तान, भारत...; सब  वंशों से - आप के से मेरे वंश से मेेरे पूर्वज आपके पूर्वज और आने वाली संतती; सब प्रजातियाँ चाहे आर्यन हो या द्रवीडियन, मैंगोलियन हो या फिर निग्रो मद्रासी हो या फिर आदिवासी सब उसमें शामिल है; सब भाषा-भाषी - अंग्रजी बोलने वाले या फिर हिन्दी, मलयालम या कोंकणी, उर्दू या मराठी या तमील सबके सब इस दल में शामिल हैं। प्रभु ने अपने झूंड में हम सबको गिन रखा है। अब हम चाहे तो इसी के अंदर रहें या फिर इसमें से बाहर हो जायें। इस झूंड में बने रहने के लिए आज का वचन कहता है- ’’ये वे लोग हैं जिन्होंने मेमने रक्त से अपने वस्त्रों को धोकर उजले कर लिये हैं। इसलिए ईश्वर के सिंहासन के सामने खडे रहते और दिन रात उसके मंदिर में उसकी सेवा करते हैं।’’ संतो के समूदाय में बने रहने के लिए हमें मेमने रक्त से अपने वस्त्रों को धोकर, अपने आप को साफ करना है। हमें क्रूसित मेमने के रक्त से खुद को धोकर साफ करने की ज़रूरत है। संत योहन का 1ला पत्र 1ः7 में प्रभु का वचन कहता है - ‘‘उसके पुत्र प्रभु ईसा मसीह का रक्त हमें हर पाप से शुद्ध करता है।’’ प्रभु येसु का लहू है दुनिया का सबसे शक्तिशाली डिटर्जेंट जो पाप के गहरे से गहरे, काले से भी काले दाग को धोकर  साफ कर देता है। प्रभु का वचन हमें कहता है नबी इसायाह के ग्रंथ 1ः18 में ‘‘तुम्हारे पाप सिंदूर की तरह लाल ही क्यों न हो वे हीम की तरह उज्ज्वल हो जायेंगे। वे किरमिज की तरह मटमैले क्यों न हो वे ऊन की तरह श्वेत हो जायेंगे।’’
बपतिस्मा संस्कार में हमें शुद्धता के प्रतीक स्वरूप श्वेत वस्त्र प्रदान किया गया था जिसे हमने अंत तक शुद्ध रखने की प्रतीज्ञा की थी। याने उस वस्त्र के समान अंत तक शुद्ध बने रहने की प्रतीज्ञा की थी। हम जानते हैं कि हमारी मानवीय कमज़ोरियों के कारण हम वैसे ही नहीं रहे जैसे कि हम बपतिस्मा के समय थे। पर मेमने का रक्त, हमारे प्रभु येसु का रक्त हमें फिर से शुद्ध कर सकता है। हर मेल-मिलाप संस्कार व पवित्र युखरिस्त में सच्चे मन व सच्ची तैयारी से भाग लेने पर यही होता है। हमारे सारे पाप दोष धुल जाते हैं और हम पुनः शुद्ध, श्वेत हो जाते हैं।
रक्त का मतलब होता है जीवन। तो ख्रीस्त के रक्त का मतलब होगा ख्रीस्त का जीवन। अतः ख्रीस्त के रक्त से स्वयं को धाने का मतलब होगा कि हम ख्रीस्तमय हो जायें। ख्रीस्त के पवित्र संस्कारों को ग्रहण कर हम उसके साथ एक हो जाते हैं। संत पौलुस कहते हैं कि हमारा पुराना स्वभाव मसीह के साथ कू्रस पर चढाया जा चुका है। मैं अब जीवित नहीं रहा, बल्कि मसीह मुझमें जीवित हैं। (गला. 2ः19) आज जब हम उस मसीह की देह और रक्त को ग्रहण करेंगे तो हम भी यही कहें कि हे प्रभु अब से मुझमें तू ही जीवित रहे।
संत योहन आज के दूसरे पाठ में हमसे कहते हैं - पिता ने हमें कितना प्यार किया है। हम ईश्वर की सन्तान कहलाते हैं और हम वास्तव में वही हैं। यदि हम वास्तव में ईश्वर की ही संतान हैं; यदि ईश्वर हमारा पिता है तो हम इस लोक में रहते हुवे उस पिता को क्यों न खोजें। हमसे अनन्त प्रेम से प्रेम करने वाले उसे प्रेमी पिता का चेहरा क्यों न खोजें। हमारी इस जीवन यात्रा में हम उस पिता को खोजते रहें जो हमें प्यार करता है। और जो भी उसे सच्चे मन से खोजेगें उनके लिए संत योहन कहते है वे उसे वेैसा ही देंखेंगे जैसा कि वह वास्तव में है। हम उस प्रभु को जैसा वो है वैसा ही देख पायेंगे। इसके लिए आज का सुसमाचार एक शर्त हमारे सामने रखता है - जिनका हृदय निर्मल है वही ईश्वर के दर्शन करेंगे। हम सब ईश्वर के मुख के दर्शन करने के लिए बुलाये गये हैं। सब के सब संत बनने के लिए बुलाये गये हैं। प्रभु हर स्त्री पुरूष, युवक-युवतियों, बडे-बुजूर्गों, छोटे बच्चों, विवाहितों, अविवाहितों, समर्पित भाईयों और बहनों, अमीरों व गरीबों, शिक्षितों व अक्षितों, तथा व्यापारियों व किसानों सभी को संतों की संगती में उनके स्वर्गीय सिंहासन के सामने निवास करने के लिए आह्वान करते हैं। इसलिए हम ये न सोचें कि संत केवल फादर सिस्टर व समर्पित लोग ही बन सकते हैं। नहीं हर बिरादरी कव लोग संत बन सकते हैं। संत पिता फ्राँसिस इस संदर्भ में दो टूक शब्दों में  2013 के  विश्व युवा दिवस के मौके पर युवाओं से कहा था - "हमें बिना कैसक(फादर्स) व वैल (सिस्टर्स) वाले संत चाहिए।" वे आगे कहते हैं हमें जिंस,टीशर्ट व टेनिस शूज पहनने वाले संत चाहिए जो फिल्में देखते हों व म्युजिक सुनते हों परन्तु अपने जीवन में मसीह को प्रथम स्थान देते हों। हमें संत चाहिए जो रोज़ प्रार्थना के लिए समय देते हों, तथा जो ये जानते हों कि पवित्रता, शुद्धता, व अच्छी चिजों से कैसे प्यार करना चाहिए। हमें 21 वीं सदी के लिए संत चाहिए जो इस संसार में रहते हो लेकिन इस संसार के नहीं है। 
बीते अक्टूबर माह की १० तारीख पॉप फ्रांसिस का यह सपना साकार हुआ, जब कंप्यूटर व फुटबॉल के दीवाने, कार्लो अक्युटिस को धन्य  किया गया। इस दिव्य बालक ने इस धरती पर सिर्फ 15 साल गुज़ारे,  उसने अपना जीवन वो सभी साधारण कार्य करते हुवे बिताये जो एक आधुनिक बालक करता है जैसे -  खेलना, घूमने जाना, कप्यूटर चलना, विडिओ गेम खेलना आदि।  पर  हमेशा येसु को अपने जीवन में सबसे ऊपर रखा , पवित्र यूखरिस्त से बेहद प्रेम किया व खुद ही  एक वेबसाइट बनाकर युखारिस्तिक चमत्कारों की जानकारी इंटरनेट  से दुनिया को मुहैया कराई ।  उसके कदम इस  धरती पर थे लेकिन निगाहें स्वर्ग की ओर। 
आज वह न केवल  युवाओं के लिए  बल्कि हम सब के लिए इस उम्मीद की ज्योति  की एक लकीर है कि आज के संसार में भी संत बनना  संभव है।  

आईये हम आज ईश्वर से कृपा व आशीष माँगे कि हम इस संसार में रहते हुवे हमारी नज़रें हमारे उस स्वर्गीय निवास की ओर लगाये रखें जहाँ असंख्य दूत व संत  ईश्वर के सम्मुख हमारी राह देख रहे हैं, वे हमारा इंतज़ार कर रहे हैं, हम भी खुद को स्वर्ग के लायक बनायें और संतों की संगती में सदा की ज़िन्दगी के हक़दार बनें । आमेन।  

Wednesday, 28 October 2020

30th Sunday in Ordinary Time Year A 25 Oct. 2020: #ReflectionbyFRPreetam

 

30 वां इतवार

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प्यारे विश्वासियों मनुष्य जीवन जैसा कि हम जानते हैं कि सब जीव-जुतुओं में श्रेष्ठ है। इसकी श्रेष्ठता के कई मायने हैं। जैसा कि दाषर््निक कहते हैं - मैन इस रैशनल आनिमल या मनुष्य एक तार्किक या वैचारिक प्राण है। याने इंसान में सोच विचार करने की शक्ति है। सामजषास्त्रि कहते हैं मानुष्य एक सामजिक प्राणी है। वहीं मनोवैज्ञानिक कहते हैं मनुष्य एक भावनिात्मक प्राणी है। और ये सारे विद्वावन मनुष्य की इस उद्भुत पहचान की तहकिकात करते हैं] vkSj ये पता करने का प्रयास करते हैं कि मनुष्य ऐसा है तो क्यों है। पवित्र बाइबल हमें इंसान की एक परिभाषा देती है जिसमें उससे संबंधित सारे सवालों के जवाब छिपे हैं। वह है उत्पत्ति 127 ईश्वर ने मनुष्य को अपना प्रतिरूप बनया, उसने उसे ईश्वर का प्रतिरूप बनाया।’’ तो पवित्र बाइबल के अनुसार मनुष्य ईश्वर का प्रतिरूप है। ईश्वर का प्रतिरूप या फिर ईश्वर का स्वरूप से क्या आषय है? यहाँ हमारे भौतिक स्वरूप की बात नहीं हो रही है। बल्कि हमारे मौलिक स्वरूप की बात हो रही है। मूल रूप से मनुष्य की सृष्टि ईश्वर के सादृष्य में की गई है, ईश्वर ds स्वभाव में हमें बनाया गया है। ईश्वरीय स्वरूप या स्वभाव क्या है? संत योहन कहते हैं ईश्वर प्रेम है संत योहन 48,16 इसी मूल स्वरूप में हम सब को बनाया गया है। एक इंसान होने की सबसे उत्तम एवं बडी पहचान है ''प्रेम'' जो निस्वार्थ रूप से दूसरों को प्यार करता है, जिसका ह्दय प्रेम से भरपूर है वह सच्चे अर्थों में एक इंसान है। 1 कुरिं. 13: 1 से लेकर आगे के वचनों में संत पौलुस कहते हैंमैं भले ही मनुष्यों तथा स्वर्गदूतों की सब भाषाएँ बोलूं; किन्तु यदि मुझ में प्रेम का अभाव है, तो मैं खनखनाता घडि़याल या झनझनाती झाँझ मात्र हूँ। मुझे भले ही भविष्यवाणी का वरदान मिला हो, मैं सभी रहस्य जानता होऊँ, मुझे समस्त ज्ञान प्राप्त हो गया हो, मेरा विश्वास इतना परिपूर्ण हो कि मैं पहाड़ों को हटा सकूँ; किन्तु यदि मुझ में प्रेम का अभाव हैं, तो मैं कुछ भी नहीं हूँ।

 

इसलिए आज के सुसमाचार में प्रभु येसु ने प्रेम की आज्ञा को सबसे श्रेष्ठ बताया है ''अपने प्रभु-ईश्वर को अपने सारे हृदय, अपनी सारी आत्मा और अपनी सारी बुद्धि से प्यार करो। यह सब से बड़ी और पहली आज्ञा है। दूसरी आज्ञा इसी के सदृश है- अपने पड़ोसी को अपने समान प्यार करो। इन्हीं दो आज्ञायों पर समस्त संहिता और नबियों की शिक्षा अवलम्बित हैं।'' प्रभु येसु की नई आज्ञा में प्रेम के दो आयाम हैईश्वर के प्रति प्रेम और पडोसी के प्रति प्रेम। पवित्र बाइबल की यह शिक्षा अपने आप में केवल मनुष्यों के आपसी रिश्तों को परिभाषित करती है, पर यह इंसान के इस दुनिया में आने के उद्देश्य को भी स्पष्ट करती है। वास्तव में हमारे मानवीय जीवन के बहुत सारे उद्देश्य नहीं है। सिर्फ एक ही उद्देश्य है और वह हैईश्वर से प्रेम करना और मनुष्यों से प्रेम करना।

 

जिस प्रकार से हमारा प्रेम दो आयामी है याने ईश्वर के प्रति और मनुष्यों के प्रति उसी प्रकार हमारे पाप भी दो आयामी हैईश्वर के विरूद्ध और मनुरष्यों के विरूद्ध। वास्तव में पाप और कुछ नहीं सिर्फ प्रेम का आभाव है। जब ईश्वर के प्रति हमारा प्रेम कम हो जाता है; जब हम ईश्वर को  अपनी सारी बुद्धी, शक्ति, आत्मा और दिल से प्यार नहीं करते तो हम उनके विरूद्ध पाप करते हैं। और जब हम अपने पडोसी को अपने समान प्यार नहीं कर पाते तब हम उनके विरूद्ध पाप करने लग जाते हैं।

 हम जानते हैं प्यार ka रिश्ता बहुत ही नाजुक होता है। हम जिसे प्यार करते हैं उसे कभी भी किसी भी प्रकार से नाराज़ करना अथवा उसको ठेस पहुँचाना नहीं चाहेंगे। हम जिससे प्यार करते हैं उसे हम हमेशा खुश देखना चाहते हैं। इसलिए यदि मैं कहता हँ कि मैं ईश्वर से प्रेम करता हूँ तो फिर मैं अपने गलत कार्यों पापों के कारण उनको नाराज़ नहीं कर सकता। संत पौलुस कहते हैं कोल. 3:17 आप जो भी कहें या करें, वह सब प्रभु ईसा के नाम पर किया करें। और 1 कुरि. 10:31— इसलिए आप लोग चाहे खायें, या पियें, या जो कुछ भी करें, सब ईश्वर की महिमा के लिए करें। यदि मैं ईश्वर से प्रेम करने वाला हूँ तो मेरा हर काम उनके नाम पर और उनकी महिमा के लिए होगा। अगर ऐसा नहीं है तो मेरा ईश्वर के प्रति प्रेम सच्चा पूर्ण नहीं है।

संत योहन 4:20 में प्रभु का वचन कहता है — ''यदि कोई यह कहता है कि मैं ईश्वर को प्यार करता हूँ और वह अपने भाई से बैर करता है, तो वह झूठा है। यदि वह अपने भाई को जिसे वह देखता है, प्यार नहीं करता तो वह ईश्वर को, जिसे उसने कभी नहीं देखा, प्यार नहीं कर सकता। तो प्यारे विश्वासियों हमारा मसीही प्रेम सिर्फ ईश्वर तक सीमित नहीं रह सकता जो कोई सचमुच में ईश्वर को प्यार करता है तो उसके दिल से अपने पडोसि अपने भाई बहनों हर इंसान के प्रति प्रेम स्वत: ही उमड पडेगा। तो कोई यह कहकर खुद को झूठा साबित करे कि मैं ईश्वर को तो बहुत प्यार करता हूँ। मैं चर्च जाता हूँ, रोज़ प्रार्थना कर लेता हूँ, और मिस्सा में भाग लेता हूँ वगैरह पर अपने पडोसी को तो मैं देखना भी पसंद नहीं करता। वो तो पापी है और नर्क में ही जायेगा ityadi नहीं नहीं ऐसा कभी हो ही नहीं सकता, ईश्वर को प्यार करने वाला हर इंसान मनुष्यों के प्रति भी वैसा ही प्यार दिखायेगा।

लेकिन पाप शैतान के प्रभाव में आकर हमने हमारे इस प्रेम के रिश्ते को बिगाड दिया है। इस दुनिया में कई लोग तो ऐसे हैं जिनका तो ईश्वर के प्रति प्रेम है और ही मनुष्यों के प्रति। कई लोग इस प्रकार का खोखला जीवन जी रहे हैं। वे इस दुनिया में कुछ भी कर गुज़रने से नहीं हिचकते। उनके लिए हत्या, बलात्कार, लूट, चोरी, हिंसा, भ्रष्टाचार, क्रोध, ईर्ष्या, नफरत आदि सब प्रकार की बुराईयाँ पाप नहीं होती। उनके मन में ईश्वर का भय नहीं क्योंकि वे ईश्वर से प्यार नहीं करते। उनके मन में अन्य लोगों के प्रति कोई भावना नहीं होती क्योंकि उनके अंदर प्रेम नाम की चीज ही नहीं होती।

 

मसीह येसु ने हमारे इस बिगडे हुए प्रेम के रिश्ते को अपने क्रूस बलिदान द्वारा पुन: स्थापित किया है। पाप बुराई ने ईश्वर और मनुष्यों के प्रेम के रिश्ते को तहसनहस कर दिया था तो येसु मसीह ने उसे अपने क्रूस पर मरण द्वारा फिर से जोड दिया है।  क्रूस इस द्विआयामी प्रेम का चिन्ह है। क्रूस से हम सब भलीभॉंति परिचित हैं, यह दो लकडियों का बना होता हैएक खडी और दूसरी आडी। खडी लकडी जमीन से ऊपर की ओर जाती है जो मनुष्यों के ईश्वर के प्रति प्रेम को दर्शाता है और आडी लकडी मनुष्यों के आपसी प्रेम को दर्शाता है। ये दोनों लकडियाँ आपस में जुडकर धन या फिर प्लस का चिन्ह बनाती हैं। याने पवित्र क्रूस पर प्रभु येसु ने इस दो आयामी प्रेम के रिश्ते को फिर से जोड दिया है। मनुष्यों के ईश्वर के प्रति और मनुष्यों के मनुष्यों के प्रति प्रेम आपसी प्रेम को प्रभु येसु ने अपने क्रूस पर फिर से जोड दिया है।

इस संदर्भ में जब मैं आज की कोरोना वैश्विक महामारी को देखता हूँ तो पाता हूँ कि शैतान ने इस महामारी के द्वारा सीधे क्रूस पर और क्रूस के इस दो आयामी प्रेम के रिश्ते के ऊपर हमला किया है। इस महामारी ने इंसान को ईश्वर और उसके प्रेम से दूर करने का प्रयास किया है। जब से यह वाइरस फैला है करीबकरीब पूरी दुनिया में गिरजाघर बंद हो गये, मिस्सा नहीं, संस्कार नहीं। यह एक तरह से मनुष्यों के ईश्वर से संबध को कमज़ोर करने की एक चाल है। और मुझे लगता है शैतान काफी हद तक इसमें कामयाब होता नज़र रहा है क्योंकि कई स्थानों पर गिरजाघर खुल चुके हैं पर लोग अपने ईश्वर के पास लौटकर नहीं आये हैं। क्रूस का दूसरा आयाम है हमारे आपसी संबंध, आपसी रिश्ते, हमारा आपसी प्रेमउसको भी इस महामारी ने काफी हद तक प्रभावित किया है। सामाजिक दूरी रखने के चक्कर में हम व्यक्तिगत संबंधों और रिश्तों को भूलाने लगे हैं। हर किसी को आज संदेह की निगाह से देखा जाता है। अजनबी से ही नहीं हमें आज अपनों से ही डर लगता है कि कहीं उनके पास कोरोना वाइरस तो नहीं। अपने मित्रों की टोलियों में खेलने वाले बच्चे, स्कूलों और कोलेजों में विभिन्न जाती धर्म के होते हुए भी एक साथ बैठकर पढने वाले बच्चे अब अपनी चार दिवारी में ही सिमट गये हैं। उनको अपनों से बिलकुल अलग कर देने के लिए ऊपर से ओन लाइन क्लासेस। ओन लाइन क्लासेस के चलते हर बच्चे के हाथ में स्मार्ट फोन या लाप टोप है। अब उनकी जिंदगी इन गैजैटस तक ही सिमट गई है। हम नहीं जानते इस प्रकार की व्यस्था के साथ हमारे बच्चे कितने सुरक्षित हैं। हम ज़रा मंथन करें कि कहीं इन सब के पीछे शैतान की कोई चाल तो नहीं।

 

अगर hamko लगता है कि आज शैतान ने केवल कोरोना महामारी के द्वारा परन्तु अन्य तरीकों से भी इंसान को ईश्वर से और एक दूसरों के प्रति प्रेम से दूर किया है। खुद की जिंदगी में भी झाँककर देखने yadi hamko yxrk  है कि मेरा ईश्वर के प्रति प्रेम गहरा नहीं है और मैं अपने भाई बहनों को खुद के समान प्यार नहीं कर पाता हूँ तो aiye प्यारे भाई ओर बहनों हम येसु के क्रूस तले खुद की जिंदगी को एक बार फिर से लायें। पाप बुराई से दुषित, प्रेम रहित हमारे हृदयों को येसु के पवित्र लहू से धोने के लिए खोल दें। येसु के लहू से खुद को धोकर, गुनाहों के दागों को धोकर क्रूस के चिंन्ह से ईश्वर एक दूसरे के प्रति अपने प्रेम के रिश्ते को हम एक बार फिर से कामय करें। क्योंकि यही हम मसीहियों की पहचान है, यही प्रेम हमें ईश्वर की संतान बनाता है जैसा कि संत योहन कहते हैं 1 योहन 4:7—8 — ''प्रिय भाइयो! हम एक दूसरे को प्यार करें, क्योंकि प्रेम ईश्वर से उत्पन्न होता है। जौ प्यार करता है, वह ईश्वर की सन्तान है और ईश्वर को जानता है। आमेन।