Wednesday, 14 October 2020

28th Sunday in Ordinary Time Year A October 11, 2020 #ReflectionbyFr.Preetam

 इसायाह 25ः6-10

मत्ती 22रू1.14

कोरोना के कारण भीड इक्टठा होने पर पाबम्दी लगी हुई है अन्यथा शादी-पार्टी और क्लबों में जाकर खाना-पीना और मौज मस्ती करना आज की पीढी की फैषन बन गई है। 

व्यक्ति चाहे अमीर होे या गरीब, चाहे वो किसी भी जाती या मुल्क और मज़हब का हो दूसरों को भोजन पर बुलाने का प्रचलन सब लोगों में होता है। हम भी कई बार विभिन्न अवसरों पर अपने अजीज मित्रों और संबंधियों को भोजन हेतु बुलाते हैं या फिर भोजन हेतु दूसरों के निमंत्रण पर उनके यहाॅं जाते हैं। 

आज के वचनों के माध्यम से प्रभु सारी मानवजाती को एक बहुत बडी दावत का निमंत्रण दे रहे हैं। 

नबी इसायाह के ग्रंथ 25ः6-7 में वचन कहता है -  विश्वमण्डल का प्रभु इस प्रर्वत पर सब राष्ट्रों के लिए एक भोज का प्रबन्ध करेगाः उस में रसदार मांस परोसा जायेगा और पुरानी तथा बढ़िया अंगूरी।

7द्ध वह इस पर्वत पर से सब लोगों तथा सब राष्ट्रों के लिए कफ़न और शोक के वस्त्र हटा देगाए


नबी कहते हैं कि प्रभु अपने पर्वत पर एक भोज प्रबंध करेगा जिसमें सभी राष्ट्रों के लोग आमंत्रित किये जायेंगे। 

और सुसमाचार में हम विवाह भोज का दृष्टांत सुनते हैं जिसमें राजा ने एक भोज का आयोेजन किया। जब वह आमंत्रित लोगों को बुलाने अपने सेवकों को भेजता है तो वे आने से इनकार कर देते हैं। वे सब अपने-अपने कार्यों में व्यस्त थे उन्हें राजा के निमंत्रण की कोई परवाह नहीं थी। 

विवाह भोज के दृष्टांत में निमंत्रण देने वाला राजा स्वयं ईष्वर है। और विवाह का भोज पवित्र यूखरिस्त जिसे जब तक हम इस दुनिया में हैं हम इसमें भाग लेते और मेमने का माॅंस और रक्त खाते और पीते हैं तथा इस दुनिया से विदा लेने के बाद स्वर्ग में सदा के लिए जिसे हम ग्रहण करने वाले हैं।  यही वह भोजन है जिसे देने की बात प्रभु ने आज के सुसमाचार में की है। 

प्रभु जिस भोज में शामिल होने के लिए हमें बुला रहे हैं वो भोज है वह है अनन्त जीवन का भोज। स्वर्गिक भोज। 

प्रभु ने इस महाभोज में भागिदार होने का सबसे पहला निमंत्रण इस्राएलियों को दिया, पर उन्होंने इस निमंत्रण को ठुकरा दिया। लेकिन प्रभु की भोजषाला में बहुत ही जगह बाकी है, वहां के स्वर्गिक भाोजन की कमी भी नहीं है। प्रभु की अपनी चुनी हुई प्रजा ने जब इस निमंत्रण को ठुकरा दिया तो प्रभु ने सब जातियों और राष्ट्रों को इसका निमंत्रण भेजा है। हम सब को स्वर्ग का यह निमंत्रण दिया गया है। प्रभु ने बिना हमारी परिस्थियों को देखे हमें इस भोज के हकदार बनाया है। हमें स्वर्गराज्य के महाभोज में शामिल होने इसलिए नहीं बुलाये गये कि हम इसके काबिल या लायक हैं। दृष्टांत में राजा ने जब निमंत्रित लोगों ने आने से मना कर दिया तो बाद में  भले-बूरे सबों को,  जो कि वास्तव मेें समाज द्वारा परित्यत, नालायक, और अयोग्य माने जाते हैं उन्हें एक ऐसे महाभोज के लिए बुलाया जाता है जो कि अपने आप में बहुत खास है। 

जि हाॅं प्यारे विष्वासियों, प्रभु के राज्य में अमीर, गरीब, बडे-छोटे, धर्मी-पापी सब बुलाये गये हैं। आप जो भी हो, आपकी पस्थिति जो भी हो, आप जिस भी अवस्था में जी रहे हो प्रभु उन सब को नज़रअंदाज करके आपको अपने राज्य में शामिल होने बुला रहे हैं। आप पापी हैं, गरीब हैं, समाज में बदनाम हैं, जाती की बिरादरी में छोटे हैं, बुद्धी से कमजोर हैं, या अनपढ हैं, प्रभु इन सब बातों को नज़रअंदाज करते हुए आपको निमंत्रण दे रहे हैं अपने स्वर्गिक भोज में सम्मिलित होने के लिए। यह मुक्ति का भोज है अनन्त जीवन का भोज है। हमारे मृत्यपरांत स्वर्ग में हमेषा के लिए मिलना वाला भोज है। यह वह भोज हैं जिसमें संत और दूत भागिदार होते हैं।  

इतने महान भोज का निमंत्रण हम जैसे नाकाबिल़ इंसानों को मिला है। इस निमंत्रण के प्रति हमारा रवैया क्या है? क्या हमने इस निमंत्रण को गंभिरता से लिया है? या फिर हम उन लोगों की तरह इसका नज़रअंदाज कर रहे हैं जो अपने-अपने कामों में व्यस्त थे और राजा के निमंत्रण को ठुकरा रहे थे। कहीं हम भी दुनिया के कामों में  इतने व्यस्त तो नहीं हैं कि हम ईष्वर के निमंत्रण को ठुकरा रहे हैं? इस बात पर आज हम गंभिरता से चिंतन करें। क्या हमारी निगाहें स्वर्ग की ओर लगी हुई हैं? क्या हम स्वर्ग राज्य के भोज में सम्मिलित होने के लिए तरस रहे हैं। या फिर हमें इस बात को लेकर कोई फिक्र अथवा रूची नहीं। 

दो सप्ताह पहले के रविवारीय चिंतन में हमने संत मत्ती 21ः31 में पढा था जहाॅं प्रभु येसु कहते हैं - ‘‘ मैं तुम लोगांे से कहता हूॅं नाकेदार और वैष्याएॅं तुम लोगों से पहले ईष्वर के राज्य में प्रवेष करेंगे।’’ यदि हमें रूची नहीं है, यदि हम स्वर्ग राज्य की ख्वाहिष नहीं रखते, तो बहुत सारे और लोग भी हैं, जिन्हें हो सकता है हम अयोग्य, पापी व तिरस्कृत मानते होंगे पर शायद वे हम से पहले स्वर्ग राज्य के भोज में शामिल हो जायेंगे।

दूसरी बात हमें ऐसे महान और अनन्त भोज में, ऐसी आनन्दमय दावत में जाने के लिए निमंत्रण तो मिला है पर इसके योग्य बने बिना, यदि हम वहाॅं जायेंगे तो हमें वहाॅं प्रवेष नहीं मिलेगा। हम पापी हैं फिर भी हमें स्वर्ग राज्य का निमंत्रण मिला है इसका मतलब यह नहीं कि हमें स्वर्ग राज्य में जाने का लाइसेंस मिल गया है। हम जैसे हैं उसी अवस्था में यदि हम वहाॅं जाने की जुर्रत करेंगेे तो हमें उठाकर अनंत अंधकार में याने नर्क में फैंक दिया जायेगा, जैसा कि उस व्यक्ति को फैंक दिया गया जो बिना विवाहोत्सव के वस्त्र पहने प्रवेष करने की कोषिष कर रहा था। 

प्यारे श्रोताओं, मैं और आप वास्तव में इस योग्य नहीं हैं कि हम अपने बलबूते स्वर्गराज्य के भोज के हकदार कहलायंे। क्योंकि हम जानते हैं कि हम तो पापी हैं, हम अयोग्य हैं पर ईष्वर ने अपनी अपार उदारता और दयालुता के कारण हम पर बडी कृपा की है। प्रभु चाहते हैं कि हम सब उनके स्वर्गिक भोज के हिस्सेदार बनें। पर उसके लिए हमें अपनी वर्तमान परिस्थिति से बाहर आना होगा। पापमय वस्त्रों को उतारना होगा और स्वर्गराज्य के योग्य नये धार्मिकता के वस्त्र धारण करना होगा।

संत योहन प्रकाषना ग्रंथ 7ः14 में एक दिव्य दृष्य में उन लोगों को देखते हैं जो अंत में स्वर्गिम मेेमने याने प्रभु येसु के विवाहोत्सव में सम्मिलित होने के लिए जाते हैं उनका वर्णन स्वगदूत इन शब्दों में करते हैं - ‘‘ये वे लोग हैं जो महासंकट से निकल कर आये हैं , इन्होंने मेमने के रक्त में अपने वस्त्र धो कर उजले कर लिये हैं।’’ 

जि हाॅं दोस्तों स्वर्ग में प्रवेष के लिए बुलाये गये तो सब लोग हैं पर प्रवेष उन्हें ही मिलेगा जिनके वस्त्र मेमने याने प्रभु येसु क रक्त से धुले हुए हैं। आज के सुसमाचार के अंत में प्रभु येसु कहते हैं बुलाये गये तो बहुत हैं पर चुने हुए थोडे ही हैं। प्यारे साथियों हमारी पूरी कोषिष चुने हुए लोगों में गिने जाने की होनी चाहिए न कि सिर्फ बुलाये गये। 


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