Saturday, 3 October 2020

27th Sunday in Ordinary Time, (A) Hindi Reflection by Fr. Preetam Indore

 


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इसायाह 5 : 1-7 

फिलि 4:6-9 

मत्ती 21:३३-43 

क्या आपने कभी पेड लगाया है अथवा फसल बोई है? कोई भी बेवजह और बिना उम्मीद के न तो पेड लगाता है और न ही फसल बोता है। हर माली और हर किसान अपने पेडों और फसलों से अच्छे फल अथवा उत्पादन की उम्मीद करते हैं। और इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए वे बहुत सारे जतन करते हैं। सबसे पहले खेत को जोता जाता है, हल चलाया जाता है, मिट्टी को नरम किया जाता है, लेवल किया जाता है, फिर बीच बोया जाता है, अधिक फसल आने के लिए खाद डाला जाता है, पौधे की अच्छी बढोतरी के लिए खरपतवार अर्थात अनावश्यक  जंगली घास को उखाडने के लिए निंदाई-गुडाई की जाती है, डोरा, बखर आदि चलाया जाता है। कोई बाहरी तत्व जैसे जंगली जानवर अथवा गाय ढोर अंदर घुसकर नुकसान न पहुंचाए इसलिए चारों ओर घेरा अर्थात् बाडा या बागड बनाई जाती है। चडियों के नुकसान से बचाने के लिए काक-भगौडा बनाया जाता है। किडे मकोडों के नुकसान से बचाने के लिए कीटनाशक  दवाई क छिडकाव किया जाता है। याने अच्छी पैदावार पाने के लिए किसान बहुत ही मेहनत करता है। और इतना सब करने के बाद भी यदि उसे अच्छी फसल नहीं मिलती तो वह बहुत ही निराश  हो जाता है; वह अंदर ही अंदर टूट जाता है। कभी-कभी यह हताश  उसे आत्महत्या तक करने को मजबूर कर देती है। इस घोर निराशा  के पीछे क्या कारण है? कारण ये है कि खेत तैयार करने से लेकर फसल काटने तक किसान पग-पग पर वह कई सपने संजोता है। वह अपनी फसल को लेकर कई सारी सुखद कल्पनायें करता है। कई सारे जोड-घटाव, गुणा भाग करता है कि जब फसल बडी होगी तो उसको अच्छी पैदावार प्राप्त होगी। जब वह अपनी उगती हुई फसल, बढ़ते हुए पौधों और लहलहाते फसल को देखता है तो उसके चेहरे पर एक प्रसन्नता की लकीर उभर जाती है, और उम्मीदों का सैलाब उसके अंदर हिलोरें मारता है कि यह फसल उसको भरपूर अन्न देने जा रही है। और इन सब के बाद यदि वह अपेक्षित फल नहीं पाता तो उसका घोर निराषा में डूब जाना स्वाभाविक है। 

प्यारे विश्वासियों  आज के वचन में प्रभु खुद को एक माली के रूप में पेष करते हुए अपने मन की बात हमारे सामने रखते हैं, वो बात यह हैं कि एक माली होकर उन्होंने अपनी प्रजा को रोपा है। अच्छी फसल की उम्मीद में एक माली जो कुछ भी अपनी फसल के लिए करता है, प्रभु ने हमारे लिए किया। प्रभु ने अपनी तरफ से कोई भी कसर नहीं छोडी और उन्होंने यह उम्मीद लगाई कि हम अच्छे फल उत्पन्न करेंगे। प्रभु ने हमें यह मानव जीवन दिया, हमें ख््राीस्तीय विश्वास दिया, अपने वचन का बीज बोया, संस्कारों द्वारा उसे पोषित कियाः पाप स्वीकार के द्वारा पाप रूपी खरपतवार की सफाई की, पवित्र युखरीस्त के द्वारा आत्मा की उर्वरकता बढाई, दृढीकरण संस्कार के द्वारा हमें आत्मा द्वारा मज़बूती प्रदान की, प्रार्थनाओं, और संतों की मध्यस्थता, माता मरियम की प्रार्थनायें, द्वारा जो कुछ भी कमी घटी रही उसे पूरा किया, पुरोहितों और धर्मबहनों व अन्य प्रभु के दास दासियों की सेवकाई द्वारा समय-समय आत्मा की सिंचाई निंदाई और गुढाई की, इस प्रकार के अनेकों अनेक प्रयास ईश्वर ने हमारे लिए किये। अब हम खुद से पूछें क्या हमने अच्छे फल उत्पन्न किये? क्या मेरा मसीही जीवन ईश्वर की इच्छा के अनुरूप फल ला रहा है? जैसी ईश्वर  मेरा माली मुझसे उम्मीद रखता है, क्या मैं पौधा वैसा फल ला रहा हूँ? हमारे ख््राीस्तीय जीवन में अच्छे फल क्या है? 

पवित्र वचन कहता है मसीहियों के फल हैं आत्मा के फल जिनका वर्णन हम गलातियों 5ः22 में पाते हैं वे हैं - प्रेम, आनन्द, शान्ति,सहनशीलता, मिलनसारी, दयालुता, ईमानदारी, सौम्यता, और संयम। यहाँ पर एक गौर करने लायक बात यह है कि संत पौलुस यहां पर करीब नौ फलों का वर्णन करते हैं परन्तु वे बहुवचन की जगह एक वचन का उपयोग करते हैं। वे कहते हैं किंतु आत्मा का फल है - प्रेम और उसके बाद वे बाकी फलों का वर्णन करते हैं। मेरे मनन-चिंतन में मैंने पाया कि वास्तव में हमारे अंदर बस यह एक फल होना है काफी है। यदि हममें सच्चा प्रेम है तो बाकि सब अच्छे फल, सब अच्छाईयाँ खुद ब खुद हममें आ जायेगी। 

संत पौलुस 1 कुरिंथियों 13 में हमें सच्चे प्रेम की परिभाषा बताते हुए कहते हैं - कि प्रेम सहनशीलता और दयालु है। याने यदि मुझमें सच्चे प्रेम का फल मौजुद है, तो मैं एक सहनशील और दयालु इंसान होउंगा। मैं दूसरों के प्रति दया दिखाऊँगा, और सारे अपमान, निंदा, अत्याचार को येसु मसीह जैसे सह लूंगा।

वे आगे कहते हैं - प्रेम न तो ईर्ष्या  है न डींग मारता न घमंड करता है। याने यदि मुझमें सच्चे प्रेम का फल है तो मैं न तो ईर्ष्या करूँगा, न डिंग मारूँगा और न ही घमंड करूँगा

 प्रेम अशोभनीय व्यवहार नहीं करता। वह अपना स्वार्थ नहीं खोजता। यदि मुझमें सच्चे प्रेम का फल होगा तो मैं खुद का स्वार्थ नहीं खोजूंगा, मैं दूसरों के हित का पहले सोचुंगा, मैं दूसरों की भलाई खोजूंगा, और ऐसा कुछ भी नहीं करूँगा जो अशोभनीय है जो एक ख््राीस्तीय को शोभा नहीं देता- न अशोभनीय बातें, न काम और न ही विचार। पे्रम न तो झुंझलाता है और न बुराई का लेखा रखता है। यदि मुझमें प्रेम का फल होगा तो मैं न झुंझलाउंगा और न ही दूसरों की बुराई का लेखा लूंगा। मैं संयम के साथ दूसरों से पेश आऊँगा और दूसरों की बुराईयों को माफ करूंगा उसका लेखा नहीं रखूंगा। सच्चा प्रेम दूसरों के पाप से नहीं, बल्कि उनके सदाचरण से प्रसन्न होता है। वह सब - कुछ ढाँक देता है, सब कुछ पर विश्वास करता है, सब कुछ की आशा करता और सब कुछ सह लेता है। 

क्या मुझमें है ऐसा प्रेम रूपी फल? मुझे एक सुंदर भजन याद आ रहा है - प्रेम की बारी में रोपे गये हम, प्रेम की बारी में......जि हाँ प्यारे अजिजों, हम प्रेम की बारी में रोपे गये हैं, हम पे्रम के बगीचे में लगाये गये हैं। हमें लगाने वाला ईष्वर न केवल प्रेम का स्रोत है पर वह खुद प्रेम है। संत योहन 4ः16 में प्रभु का वचन कहता है - ‘‘ईष्वर प्रेम है।’’ उस ईष्वर ने, जो कि प्रेम है हमें अपने ही स्वरूप में गढा है। उत्पत्ति ग्रंथ 1ः27 में हम पढते हैं - ईष्वर ने मनुष्य को अपना प्रतिरूप बनाया, उसने उसे  ईश्वर का प्रतिरूप बनाया।’’ ईश्वर ने जो कि स्वयं प्रेम है हमें अपने स्वरूप में बनाया याने हम भी प्रेम हैं। ईष्वर ने अपनी प्रजा रूपी जो दाखबारी लगाई है वह प्रेम की दाखबारी है। विष्वासियों की दाखलताओं से प्रेम का फल उत्पन्न होना चाहिए। प्रभु ने जब हमको अपनी दाखबारी में रोपा तब उनके मन में यही खयाल था कि हम बढकर प्रेम का फल लाने वाले बनें। उन्होंने हम पर बहुत बडी उम्मीद रख छोडी है। संत योहन 13ः34 में प्रभु येसु कहते हैं ‘‘ मैं तुम्हें एक नई आज्ञा देता हूँ - तुम एक दूसरे को प्यार करो। जिस प्रकार मैं ने तुम्हें प्यार किया, उसी प्रकार तुम भी एक दूसरे को प्यार करो। यदि तुम एक दूसरे को प्यार करोगे, तो उसी से सब लोग जान जायेंगे कि तुम मेरे शिष्य हो। प्रभु कहते हैं ‘प्रेम’ एक मसीही की पहचान बननी चाहिए। हमारे प्रेम से लोगों को यह पता चले कि हम येसु के चेले हैं। ’’संत मत्ती 7ः18 में प्रभु येसु कहते हैं - ‘‘अच्छा पेड, अच्छे फल देता है और बुरा पेड बुरे फल देता है।’’ हम येसु के द्वारा लगाई गई दाख की लता हैं। पर जब वे फल खोजने आते तो क्या पाते हैं खट्टे अंगूर। ईर्ष्या ,द्वेष , जलन, वासना, व्यभिचार,अशुद्धता, लम्पटता, मूर्तिपूजा, जादू-टोना, बैर, फूट, क्रोध, नशा की आदत, स्वार्थ, मनमुटाव, दलबंदी, रंगरलियाँ और इस प्रकार की बातें। आज के वचन में प्रभु कहते हैं - ‘‘ कौन बात ऐसी थी जो मै ने अपनी दाखबारी के लिए कर सकता थ और जिसे मैंने नहीं किया? मुझे अच्छी फसल की आषा थी, किंतु उसने खट्टे अंगूर पैदा किये’’ प्रभु की दाखबारी ने खट्टे अंगूर पैदा किये। वचन आगे कहता है - विश्वमंडल के प्रभु की यह दाखबारी इस्राएल का घराना है और इसके प्रिय पौधे यूदा की प्रजा हैं। नये विधान में हम सब विश्वासी वह दाखबारी व ईश्वर द्वारा रोपे गये पौधे हैं। वचन कहता है - प्रभु को न्याय की आशा था और भ्रष्टाचार दिखाई दिया। उसे धार्मिकता की आशा थी और अधर्म के कारण हाहाकार सुनाई दिया। प्रभु के लोगों ने बुराईयाँ उत्पन्न की। इसलिए प्रभु कहते हैं अब मैं तुम्हें बताऊँगा कि अपनी दाखबारी का क्या करूँगा।  मैं उसका बाडा हटाऊँगा और पषु उसमें चरने आयेंगे। । प्रभु अपने लोगों के चारों ओर लगा सुरक्षा का बाडा हटायेगा और विनाषकारी ताकतें अंदर घुस आयेंगी। बादलों को आदेश दूंगा कि वे पानी नहीं बरसाये। प्रभु अपनी आशीष  व अनुग्रह के भंडार बंद कर देगा। यदि आज हम अपने जीवन में असुरक्षा का अनुभव कर रहे हैं; हमें ऐसा लग रहा है कि हमारे चारों ओर लगा ईश्वर का सुरक्षा का घेरा हटा लिया गया है। यदि हमारे जीवन में हम आशीष व अनुग्रह की बारिष का अनुभव नहीं कर पा रहे हैं, यदि हमारे अंदर डर है,अनिश्चितताओं के बादल हमारे ऊपर मंडरा रहे हों तो ये जान लें कि हमने प्रेम का फल नहीं पैदा किया। जिस फल की ईष्वर को उम्मीद थी वह उन्हें नहीं मिला। क्योंकि जहाँ, जिस दिल में येसु का प्रेम प्रवाहित होता है वहाँ कोई भी किसी भी प्रकार का डर नहीं सकता।  1 योहन 4ः28 में प्रभु का वचन कहता है - ‘‘प्रेम में भय नहीं होता। पूर्ण प्रेम भय दूर कर देता है, क्योंकि भय में दंड की आषंका रहती है, और जो डरता है, उसका प्रेम पूर्णता तक नहीं पहुँचा है।’’ 

आईये हम खुद को  ईश्वर की प्रिय दाखलता साबित करें। हम अपेक्षित फल पैदा करें। हमारा जीवन ईश्वरीय प्रेम तथा अन्य सदगुणों से भरपूर हो और हम उस ईश्वरीय प्रेम क्षमा और करूणा को बाँटने वाले बनें। आमेन। 


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