30 वां इतवार
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प्यारे विश्वासियों मनुष्य जीवन जैसा कि हम जानते हैं कि सब जीव-जुतुओं में श्रेष्ठ है। इसकी श्रेष्ठता के कई मायने हैं। जैसा कि दाषर््निक कहते हैं - मैन इस अ रैशनल आनिमल या मनुष्य एक तार्किक या वैचारिक प्राण है। याने इंसान में सोच विचार करने की शक्ति है। सामजषास्त्रि
कहते हैं मानुष्य एक सामजिक प्राणी है। वहीं मनोवैज्ञानिक कहते हैं मनुष्य एक भावनिात्मक प्राणी है। और ये सारे विद्वावन मनुष्य की इस उद्भुत पहचान की तहकिकात करते हैं] vkSj ये पता करने का प्रयास करते हैं कि मनुष्य ऐसा है तो क्यों है। पवित्र बाइबल हमें इंसान की एक परिभाषा देती है जिसमें उससे संबंधित सारे सवालों के जवाब छिपे हैं। वह है उत्पत्ति 1ः27
ईश्वर ने मनुष्य को अपना प्रतिरूप बनया, उसने उसे ईश्वर का प्रतिरूप बनाया।’’ तो पवित्र बाइबल के अनुसार मनुष्य ईश्वर का प्रतिरूप
है। ईश्वर का प्रतिरूप
या फिर ईश्वर का स्वरूप से क्या आषय है? यहाँ
हमारे भौतिक स्वरूप की बात नहीं हो रही है। बल्कि हमारे मौलिक स्वरूप की बात हो रही है। मूल रूप से मनुष्य की सृष्टि ईश्वर के सादृष्य में की गई है, ईश्वर ds स्वभाव में हमें बनाया गया है। ईश्वरीय स्वरूप या स्वभाव क्या है? संत योहन कहते हैं ईश्वर प्रेम है संत योहन 4ः8,16 इसी मूल स्वरूप में हम सब को बनाया गया है। एक इंसान होने की सबसे उत्तम एवं बडी पहचान है ''प्रेम''
जो निस्वार्थ रूप से दूसरों को प्यार करता है, जिसका
ह्दय प्रेम से भरपूर है वह सच्चे अर्थों में एक इंसान है। 1 कुरिं.
13: 1 से लेकर आगे के वचनों में संत पौलुस कहते हैं — मैं भले ही मनुष्यों तथा स्वर्गदूतों
की सब भाषाएँ बोलूं; किन्तु यदि मुझ में प्रेम का अभाव है, तो
मैं खनखनाता घडि़याल या झनझनाती झाँझ मात्र हूँ। मुझे भले ही भविष्यवाणी का वरदान मिला हो, मैं सभी रहस्य जानता होऊँ, मुझे
समस्त ज्ञान प्राप्त हो गया हो, मेरा
विश्वास इतना परिपूर्ण हो कि मैं पहाड़ों को हटा सकूँ; किन्तु यदि मुझ में प्रेम का अभाव हैं, तो
मैं कुछ भी नहीं हूँ।
इसलिए आज के सुसमाचार
में प्रभु येसु ने प्रेम की आज्ञा को सबसे श्रेष्ठ बताया है— ''अपने
प्रभु-ईश्वर को अपने सारे हृदय, अपनी
सारी आत्मा और अपनी सारी बुद्धि से प्यार करो। यह सब से बड़ी और पहली आज्ञा है। दूसरी आज्ञा इसी के सदृश है- अपने पड़ोसी को अपने समान प्यार करो। इन्हीं दो आज्ञायों पर समस्त संहिता और नबियों की शिक्षा अवलम्बित हैं।'' प्रभु
येसु की नई आज्ञा में प्रेम के दो आयाम है — ईश्वर के प्रति प्रेम और पडोसी के प्रति प्रेम। पवित्र बाइबल की यह शिक्षा अपने आप में न केवल मनुष्यों के आपसी रिश्तों को परिभाषित करती है, पर यह इंसान के इस दुनिया में आने के उद्देश्य को भी स्पष्ट करती है। वास्तव में हमारे मानवीय जीवन के बहुत सारे उद्देश्य
नहीं है। सिर्फ एक ही उद्देश्य है और वह है — ईश्वर से प्रेम करना और मनुष्यों
से प्रेम करना।
जिस प्रकार से हमारा प्रेम दो आयामी है याने ईश्वर के प्रति और मनुष्यों के प्रति उसी प्रकार हमारे पाप भी दो आयामी है — ईश्वर
के विरूद्ध और मनुरष्यों
के विरूद्ध। वास्तव में पाप और कुछ नहीं सिर्फ प्रेम का आभाव है। जब ईश्वर के प्रति हमारा प्रेम कम हो जाता है; जब हम ईश्वर को अपनी सारी बुद्धी, शक्ति, आत्मा और दिल से प्यार नहीं करते तो हम उनके विरूद्ध पाप करते हैं। और जब हम अपने पडोसी को अपने समान प्यार नहीं कर पाते तब हम उनके विरूद्ध पाप करने लग जाते हैं।
हम जानते हैं प्यार ka रिश्ता बहुत ही नाजुक होता है। हम जिसे प्यार करते हैं उसे कभी भी किसी भी प्रकार से नाराज़ करना अथवा उसको ठेस पहुँचाना
नहीं चाहेंगे। हम जिससे प्यार करते हैं उसे हम हमेशा खुश देखना चाहते हैं। इसलिए यदि मैं कहता हँ कि मैं ईश्वर से प्रेम करता हूँ तो फिर मैं अपने गलत कार्यों व पापों के कारण उनको नाराज़ नहीं कर सकता। संत पौलुस कहते हैं कोल. 3:17 आप जो भी कहें या करें, वह सब प्रभु ईसा के नाम पर किया करें। और 1 कुरि. 10:31— इसलिए
आप लोग चाहे खायें, या पियें, या
जो कुछ भी करें, सब ईश्वर की महिमा के लिए करें। यदि मैं ईश्वर से प्रेम करने वाला हूँ तो मेरा हर काम उनके नाम पर और उनकी महिमा के लिए होगा। अगर ऐसा नहीं है तो मेरा ईश्वर के प्रति प्रेम सच्चा व पूर्ण नहीं है।
संत योहन 4:20 में प्रभु का वचन कहता है — ''यदि कोई यह कहता है कि मैं ईश्वर को प्यार करता हूँ और वह अपने भाई से बैर करता है, तो
वह झूठा है। यदि वह अपने भाई को जिसे वह देखता है, प्यार
नहीं करता तो वह ईश्वर को, जिसे
उसने कभी नहीं देखा, प्यार नहीं कर सकता। तो प्यारे विश्वासियों हमारा मसीही प्रेम सिर्फ ईश्वर तक सीमित नहीं रह सकता जो कोई सचमुच में ईश्वर को प्यार करता है तो उसके दिल से अपने पडोसि अपने भाई बहनों व हर इंसान के प्रति प्रेम स्वत: ही
उमड पडेगा। तो कोई यह कहकर खुद को झूठा साबित न करे कि मैं ईश्वर को तो बहुत प्यार करता हूँ। मैं चर्च जाता हूँ, रोज़ प्रार्थना कर लेता हूँ, और
मिस्सा में भाग लेता हूँ वगैरह पर अपने पडोसी को तो मैं देखना भी पसंद नहीं करता। वो तो पापी है और नर्क में ही जायेगा ityadi । नहीं नहीं ऐसा कभी हो ही नहीं सकता, ईश्वर को प्यार करने वाला हर इंसान मनुष्यों के प्रति भी वैसा ही प्यार दिखायेगा।
लेकिन पाप व शैतान के प्रभाव में आकर हमने हमारे इस प्रेम के रिश्ते को बिगाड दिया है। इस दुनिया में कई लोग तो ऐसे हैं जिनका न तो ईश्वर के प्रति प्रेम है और न ही मनुष्यों के प्रति। कई लोग इस प्रकार का खोखला जीवन जी रहे हैं। वे इस दुनिया में कुछ भी कर गुज़रने से नहीं हिचकते। उनके लिए हत्या, बलात्कार, लूट, चोरी,
हिंसा, भ्रष्टाचार, क्रोध, ईर्ष्या, नफरत
आदि सब प्रकार की बुराईयाँ पाप नहीं होती। उनके मन में ईश्वर का भय नहीं क्योंकि वे ईश्वर से प्यार नहीं करते। उनके मन में अन्य लोगों के प्रति कोई भावना नहीं होती क्योंकि उनके अंदर प्रेम नाम की चीज ही नहीं होती।
मसीह येसु ने हमारे इस बिगडे हुए प्रेम के रिश्ते को अपने क्रूस बलिदान द्वारा पुन: स्थापित किया है। पाप व बुराई ने ईश्वर और मनुष्यों के प्रेम के रिश्ते को तहस—नहस कर दिया था तो येसु मसीह ने उसे अपने क्रूस पर मरण द्वारा फिर से जोड दिया है। क्रूस इस द्विआयामी प्रेम का चिन्ह है। क्रूस से हम सब भलीभॉंति परिचित हैं, यह दो लकडियों का बना होता है — एक खडी और दूसरी आडी। खडी लकडी जमीन से ऊपर की ओर जाती है जो मनुष्यों के ईश्वर के प्रति प्रेम को दर्शाता है और आडी लकडी मनुष्यों के आपसी प्रेम को दर्शाता है। ये दोनों लकडियाँ आपस में जुडकर धन या फिर प्लस का चिन्ह बनाती हैं। याने पवित्र क्रूस पर प्रभु येसु ने इस दो आयामी प्रेम के रिश्ते को फिर से जोड दिया है। मनुष्यों
के ईश्वर के प्रति और मनुष्यों के मनुष्यों के प्रति प्रेम आपसी प्रेम को प्रभु येसु ने अपने क्रूस पर फिर से जोड दिया है।
इस संदर्भ में जब मैं आज की कोरोना वैश्विक महामारी को देखता हूँ तो पाता हूँ कि शैतान ने इस महामारी के द्वारा सीधे क्रूस पर और क्रूस के इस दो आयामी प्रेम के रिश्ते के ऊपर हमला किया है। इस महामारी ने इंसान को ईश्वर और उसके प्रेम से दूर करने का प्रयास किया है। जब से यह वाइरस फैला है करीब—करीब पूरी दुनिया में गिरजाघर बंद हो गये, मिस्सा नहीं, संस्कार नहीं। यह एक तरह से मनुष्यों के ईश्वर से संबध को कमज़ोर करने की एक चाल है। और मुझे लगता है शैतान काफी हद तक इसमें कामयाब होता नज़र आ रहा है क्योंकि कई स्थानों पर गिरजाघर खुल चुके हैं पर लोग अपने ईश्वर के पास लौटकर नहीं आये हैं। क्रूस का दूसरा आयाम है हमारे आपसी संबंध, आपसी
रिश्ते, हमारा आपसी प्रेम — उसको भी इस महामारी ने काफी हद तक प्रभावित
किया है। सामाजिक दूरी रखने के चक्कर में हम व्यक्तिगत
संबंधों और रिश्तों को भूलाने लगे हैं। हर किसी को आज संदेह की निगाह से देखा जाता है। अजनबी से ही नहीं हमें आज अपनों से ही डर लगता है कि कहीं उनके पास कोरोना वाइरस तो नहीं। अपने मित्रों की टोलियों में खेलने वाले बच्चे, स्कूलों और कोलेजों में विभिन्न जाती व धर्म के होते हुए भी एक साथ बैठकर पढने वाले बच्चे अब अपनी चार दिवारी में ही सिमट गये हैं। उनको अपनों से बिलकुल अलग कर देने के लिए ऊपर से ओन लाइन क्लासेस। ओन लाइन क्लासेस के चलते हर बच्चे के हाथ में स्मार्ट फोन या लाप टोप है। अब उनकी जिंदगी इन गैजैटस तक ही सिमट गई है। हम नहीं जानते इस प्रकार की व्यस्था के साथ हमारे बच्चे कितने सुरक्षित हैं। हम ज़रा मंथन करें कि कहीं इन सब के पीछे शैतान की कोई चाल तो नहीं।
अगर hamko लगता है कि आज शैतान ने न केवल कोरोना महामारी के द्वारा परन्तु अन्य तरीकों से भी इंसान को ईश्वर से और एक दूसरों के प्रति प्रेम से दूर किया है। व खुद की जिंदगी में भी झाँककर देखने yadi
hamko yxrk है कि मेरा ईश्वर के प्रति प्रेम गहरा नहीं है और मैं अपने भाई बहनों को खुद के समान प्यार नहीं कर पाता हूँ तो aiye प्यारे भाई ओर बहनों हम येसु के क्रूस तले खुद की जिंदगी को एक बार फिर से लायें। पाप व बुराई से दुषित, प्रेम रहित हमारे हृदयों को येसु के पवित्र लहू से धोने के लिए खोल दें। येसु के लहू से खुद को धोकर, गुनाहों के दागों को धोकर क्रूस के चिंन्ह से ईश्वर व एक दूसरे के प्रति अपने प्रेम के रिश्ते को हम एक बार फिर से कामय करें। क्योंकि यही हम मसीहियों की पहचान है, यही
प्रेम हमें ईश्वर की संतान बनाता है जैसा कि संत योहन कहते हैं 1 योहन 4:7—8 — ''प्रिय भाइयो! हम
एक दूसरे को प्यार करें, क्योंकि प्रेम ईश्वर से उत्पन्न होता है। जौ प्यार करता है, वह ईश्वर की सन्तान है और ईश्वर को जानता है। आमेन।
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