Wednesday, 14 October 2020

29th Sunday in Ordinary Time Year A 18, Oct, 2020: #HindiReflectionbyFr.PreetamVasuniya


यशायाह 45: 1,4&6 
थेस. 1:1-5 
मत्ती 22:15 - 21 

आज का पहला पाठ बाबुल निर्वासन के उत्तरार्द्ध की एतिहासिक पुष्ठभूमि को हमारे सामने पेश करता है। हम जानते हैं कि अपनी निरंतर अवज्ञा व विद्रोह के चलते यहोवा ने अपनी प्रजा इस्राएल का परित्याग कर दिया था जिससे वे करीबन 70 सालों तक बाबुल निर्वासन में विदेशी राजाओं के अधीन गुलाम बनकर रहे। ये 70 साल उनके लिए आत्ममंथन का समय रहा। इन निर्वासन के सालों में कईयों ने ईश्वर के महान कार्यों के ऊपर मनन चिंतन किया जिसे उनके पूर्वजों ने अपनी आॅंखों से देखा था। वे अपनी वर्तमान परिस्तिथि को देखकर सवाल पूछते थे कि आखिरकार उनके साथ ऐसा क्यों हुआ। और वे अपने किये पर पश्चाताप करते हुए वापस अपने मुल्क लौट जाने को आतूर थे। नबियों और ​भजनकारों ने अपनी तत्कालीन रचनाओं में इसका मार्मिक वर्णन किया है जैसे कि हम भजन संहिता 79 में पढते हैं — ''प्रभु तू कब तक हम पर अप्रसन्न रहेगा? तर क्रोध कब तक हम पर अग्नि की तरह जलता रहेगा?. . .अपने नाम की महिमा के लिए हमारी सहायाता कर। अपने नाम की मर्यादा के लिए हमारा उद्धार कर, हमारे पाप क्षमा कर।

और भजन संहिता 80 में लिखा है — ''विश्वमंडल के प्रभु! हमारा उद्धार कर। हम पर दयादृष्टि कर और हम सुरक्षित रहेंगे। वचन 15 — विश्वमंडल के ईश्वर! वापस आने की कृपा कर, स्वर्ग से हम पर दयादृष्टि कर। आ कर उस दाखबारी की रक्षा कर, जिसे तेरे दाहिने हाथ ने रोपा है। 

इस पृष्ठभूमि में एक नाम उभरकर आता है, राजा साइरस या सिरूस का जिसे ईश्वर ने अपनी प्रजा को निर्वासन से छुडाकर पुन: अपने मुल्क अपने देश लौटाने के लिए एक माध्यम बनाया। 538 ईसा पूर्व फारस के राजा सिरूस ने बाबूल पर चढाई की, और बाबुल को पराजित किया तथा एक आदेश जारी कर इस्राएलियों को अपने मूल वतन लौट जाने की अनुमति प्रदान की। आज के पहले पाठ में नबी इसायाह इसी घटना का वर्णन करते हुए कहते हैं — ''प्रभु ने अपने अभिषिक्त सीरूस का दाहिना सॅंभाला है। उसने राष्टों को सीरूस के अधीन कर दिया और राजाओं के शस्त्र ले लिये।''

प्यारे साथियों जब इस्राएली प्रजा पर विपत्ति् आ पडी, तो उस संकट और विपत्ती के दिनों में उन्होंने आत्ममंथन किया। पश्चताप किया और प्रभु से प्रार्थना की। क्या हमने कोरोना संकट में आत्मा मंथन किया है? क्या हमने ये सवाल पूछा है कि आखिर 2020 में जो कुछ हुआ है उसके पीछे क्या वजह है। आज दुनिया के ऊपर जो बीत रही है आखिर ये दिन हमें क्यों देखने पड रहे हैं? क्या ये महज एक इत्फाक है या फिर कोई सबक? इस्राएली लोग बाबुल की नदियों के तट पर बैठ कर सियोन अपनी जन्मभूमि की याद में रोते थे जैसा कि स्तोत्र 137 में लिखा है — ''बाबुल की नदियों के तट पर बैठ कर हम सियोन की याद करते हुए रोते थे। आसपास खडे मजनूॅं के पेडों पर हमने अपनी वीणायें टॉंग दी थी।'' उनके मुख से आनन्द के स्वर गायब हो गये थे। उनके दिल से खुशियॉं नदारद हो गईं थीं। और हम क्या कर रहे हैं? हाथरस का दुषकर्म और गोंडा का आसिड अटैक तो महज एक सैम्पल है। हमारा देश और समाज और हमारे राजनेता घीनौने कामों लिप्त हैं। हर कोर्इ् आज अपने आप से पूछे कहीं मैं भी तो इनमें शामिल नहीं हूॅं? क्या मेरी कोरोना के पहले की जिंदगी और अब इस महासंकट का सामने करते हुए मेरी जिंदगी में कोई परिवर्तन आया है? क्या मैंने इस महासंकट से कुछ मूल्यों और जीवन के सिद्धॉंतों को पाया है? कोराना ने मुझे ईश्वर से वंचित किया है या फिर मैं इस दौरान ईश्वर के करीब आया हूॅं? मेरी आध्यात्मिकता बढी है या फिर कम हो गई है? मैं ईश्वर से दूर हो गया हूॅं या उनके करीब आ गया हूॅं या फिर मैं ईश्वर को लेकर उदासीन हो गया हूॅं याने मेरा धर्मोत्साह कम हो गया है? 

यहूदियों ने अपनी भूल मानी और ईश्वर के करीब आने की ठानी तो ईश्वर ने उन्हें तत्कालीन संकट से बचाया और अपनी पुरानी जमीन और अपना देश लौटा दिया। उनकी खुशियॉं लौटा दी, अनकी जिंदगी को एक बार फिर से पटरी पर ला दिया। 

प्रभु शीघ्र ही हमारी ज़िंदगी को भी पटरी पर वापस लाना चाहते हैं। पर शायद मनुष्य प्रभु की ओरे लौटना नहीं चाह रहा है।  क्या कैसर का है और क्या ईश्वर का है इसकी समझ हमें अभी तक नहीं आई है। आज के सुसमाचार में प्रभु कैसर याने तत्कालीन सम्राट को कर अदा करने के सवाल के संदर्भ में जवाब देते हुए कहते हैं कि जो कैसर याने संसार का है उसे संसार को दे दो और जो ईश्वर का है उसे ईश्वर को दे दो। इंसान ने बडी—बडी मंजिलें हासिल कर ली है। चॉंद और ग्रहों पर जाकर जिंदगी बसाने की योजनायें चल रहीं है पर उस अभी तक यह समझ नहीं आई है कि क्या ईश्वर का है और क्या संसार का है। इंसान सब कुछ को अपना मानता है। मैं, मरा, और मुझे के अहंकार में वह ईश्वर जो कि सब कुछ का दाता और विधाता है उसे ही भूल जाता है। हम भूल जाते हैं कि हमारी हर सफलता के पीछे, हर आविष्कार के पीछे, हर नई खोज के पीछे, हर तकनिकी और विज्ञान के पीछे ईश्वर की प्रज्ञा का हाथ है। हम सोचते हैं ये सब हमारा है, हमारी उपलब्धि है। कुछ महिनों बाद कोरोना वाइरस की वैक्सिन बाजार में आ जायेगी और इंसान इस बात का दम्भ भरेगा कि उसने इस महामारी पर विजय पाई है। अरे मिट्टी के पुतले यदि यह तेरी विजय है तो तू इसे तभी साबित कर देता जब यह महामारी शुरू हुई थी। जो ईश्वर का है उसे ईश्वर को दो। सवाल ईश्वर का क्या है? हमें ईश्वर को क्या देना है? जवाब है 2 ​इतिहास 29:11—13 — ''प्रभु! तुझे प्रताप, सामर्थ्य, महिमा, विजय और स्तुति! क्योंकि जो कुछ स्वर्ग में और पृथ्वी पर है, वह तेरा है। प्रभु! राज्याधिकार तेरा है। तू सब शासकों में महान् है। धन और सम्मान तुझ से मिलता है। तू समस्त सृष्टि का शासन करता है। तेरे हाथ में सामर्थ्य और बल है। तू लोगों को महान् और शक्तिशाली बनाता है। हमारे ईश्वर! इसलिए हम तुझे धन्वाद देते हैं और  —तेरे महिमामय नाम की स्तुति करते हैं।'' 

जि हॉं ईश्वर की ये चीजें है हमें ईश्वर को ये देना है — प्रताप, सामर्र्थ्य, विजय और ​स्तुति। 

प्रकाशना ग्रंथ 5:12—13 — वे याने स्वर्गदूत ऊँचे स्वर से कह रहे थे, "बलि चढ़ाया हुआ मेमना सामर्थ्य, वैभव, प्रज्ञा, शक्ति, सम्मान, महिमा तथा स्तुति का अधिकारी है"। तब मैंने समस्त सृष्टि को- आकाश और पृथ्वी के, पृथ्वी के नीचे और समुद्र के अन्दर के प्रत्येक जीव को- यह कहते सुना, "सिंहासन पर विराजमान को तथा मेमने को युगानुयुग स्तुति, सम्मान, महिमा तथा सामर्थ्य!"

आज के पहले पाठ में प्रभु कहते हैं — ''मैं ही प्रभु हूॅं मेरे सिवा कोई दूसरा कोई नहीं।'' 

और संत पौलुस फिलिपियों 2:9 में कहता है — इसलिए ईश्वर ने उन्हें महान् बनाया और उन को वह नाम प्रदान किया, जो सब नामों में श्रेष्ठ है, जिससे येसु येसु का नाम सुन कर आकाश, पृथ्वी तथा अधोलोक के सब निवासी घुटने टेकें और पिता की महिमा के लिए सब लोग यह स्वीकार करें कि येसु मसीह प्रभु हैं।

अंतिम दिनों में ये आवश्यक है कि हर घुटना उनके सामने झुके और हर ज़बान यह कबूल करे कि येसु ही प्रभु है। 


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