पवित्र परिवार का पर्व 27 दिसंबर 2020
प्रवक्ता 3:3 - 7, 14-17
कोलोसियों 3:12-21
मत्ती 2:13-15, 19-23
आज हम पवित्र परिवार का पर्व मना रहे है. एक परिवार में जन्म लेकर प्रभु येसु ने परिवारों को पवित्र कर दिया है। नाज़रेथ का पवित्र परिवार सभी ख्रीस्तीय परिवारों के लिए आदर्श है। येसु, मारिया और जोसफ तीनो मिलकर परिवार में हर एक सदस्य की सच्ची भूमिका का आदर्श हमारे सामने रखते हैं। आइये आज हम नाज़रेथ के परिवार को अपने परिवारों की आधारशीला मानते हुए आज के परिवेश में ख्रीस्तीय परिवारों पर मनन चिंतन करें।
ख्रीस्तीय परिवारों में माता-पिताओं का दायित्व
जिस प्रकार से समर्पित धर्मसंघी जीवन एक धार्मिक बुलाहट है, ठीक उसी प्रकार वैवाहिक जीवन भी एक पवित्र बुलाहट है। जब ईश्वर आदम हेवा का जोडा बनाया तो उन्न्हें आशीर्वाद देते हुए कहा- फलो फूलो और संसार में फैल जाओ। आज माता-पिता इसी पावन कार्य को निभा रहे हैं। अतः माता-पिता का दायित्व कितना महान है। वे आज ईश्वर की सृष्टि के उसी कार्य को जारी रख रहे हैं। वे भावी कलीसियाा और राष्ट्र के निर्माता हैं। भावी कलीसिया और राष्ट्र उनके हाथ में हैं। वे बच्चों के प्रथम शिक्षक - शिक्षिकाएं हैं । उन्हें वे जैसे संस्कारों से विभूषित करेंगे, भावी कलीसिया भी वैसी ही होगी। बच्चों का मन एक कोरा कागज है। वे उसमें जैसा लिखेंगे, वह सदा वैसी ही रह जायेगा। वे कुम्हार की तरह है, तो बच्चे गीली मिट्टी की तरह। बच्चों का भावी स्वरूप माता-पिता के हाथों में है। वे कुशल माली तरह हैं। माली यदि निष्ठापुर्वक फूलवारी की देखभाल करता है, तो फूलवारी की सुन्दरता में चार चाॅंद लगना ही है। उसी प्रकार यदि माता-पिता अपने बाल-बच्चों तथा परिवार के प्रति निष्ठावान होंगे, तो परिवार को आदर्श परिवार बनने तथा होनहार सन्तानों के पैदा होने से काई नहीं रोक सकता। अतः माता-पिता को निम्नलिखित बिंदुओं पर विषेष ध्यान देना है-
1. माता-पिता का जीवन-आदर्श
कहा जाता है कि उदाहरण भाषण से बेहतर होता है। अर्थात् कथनी से करनी बेहतर है। कहने का अर्थ है- बच्चों को उपदेष देने या समझाने से उत्तम है खुद कर के दिखाना, क्योंकि बच्चे नकलबाज हैं। वे उपदेष या भाषणा पर उतना ध्यान नहीं देंगे जितना माता-पिता की कार्यशैली पर ध्यान देंगे। वे माता-पिता की हरर गतिविधी की नकल करेंगे। जैसे मता-पिता पियक्कड हैं और अपने बच्चों को समझाते हैं कि दारू बिना अच्छा नहीं है, तो क्या वे उनकी बातों को मानेंगे। कभी नहीं। इसलिए माता-पिता को चाहिए कि बच्चों को समझाने से पहले अपने को आदर्श पेश करें। बच्चे खुद ब खुद मान जायेंगे।
2. अनुशासन
जिस प्रकार घोडे को नियंत्रण में रखने के लिए लगाम की आवश्यकता होती है उसी प्रकार बच्चों को भटकने से रोकने बचाने के लिए अनुशासन की नितान्त आवश्यकता है । इसिलए धर्मग्रंथ कहता है- जो घोडा पालतु नहीं बनाया गया, वह वश में नहीं रहता। उसी प्रकार यदि पुत्र भी स्वछंद छोडा गया, तो वह उदण्ड बन जायेगा। तुम उसे जवानी में पूरी स्वतंत्रता मत दो और उसके अपराधों को अनदेखा मत करो। वह हठी बनकर तुम्हारी बात नहीं मानेगा और तुमको उसके कारण दुख होगा। तुम अपने पुत्र को शिक्षा दो और अनुशासन में रखो। नहीं तो तुमको उसकी दुष्टता के कारण लज्जा होगी। (प्रवक्ता 30:8 )
आजकल पतिवार में बच्चे काम होने के कारण माता पिता अपने बच्चों को आवश्यकता से अधिक लाड़ प्यार करते व् उनकी हर ख्वाहिश पूरी करते हैं। वे ये भूल जाते हैं कि वे ऐसा करके अपना व अपने बच्चों का भविष्य अंधकार में कर रहे हैं। पवित्र वचन कहता हैं - "जो अपने पुत्र को प्यार करता है, वह उसे कोड़े लगता है, जिससे बाद में उसे अपने पुत्र से सुख मिलेगा। जो अपने पुत्र को अनुशासन में रखता है उसे बाद में संतोष मिलेगा।" (प्रवक्ता 30:१-२)
बहुत बार माता-पिता बच्चों की गलतियों को नजरअंदाज कर देते हैं। वे सोचते हैं कि अरे बच्चा छोटा है। जब बडा हो जायेगा तो अपने आप सुधर जायेगा, लेकिन कभी-कभी यह भयंकर रूप ले लेता है। अंग्रेजी में एक कहावत है - ए स्टीच इन टाइम सेवस नाइन। याने यदि हम समय रहते कपडे को सील लें तो एक टांके में ही काम हो जाता है, पर यदि हमने ध्यान नहीं दिया तो भविष्य में हो सकता है नौ टांके लगाने पड़े। इसलिए हम समय रहते अपने बच्चों को सुधारें।
3. बच्चों को समय देना
माता-पिता का परम कर्त्तव्य है कि बच्चों को सही मार्गदर्शन देने और आपसी सम्बन्ध को मधुर बनाने के लिए बच्चों को समय देना एकदम जरूरी है। इसमें माता-पिता और बच्चाों के बीच मधुर सम्बम्ध बनेगा। आपसी ताल-मेल और समझदारी आएगी। बच्चों में माॅं-बाप के प्रति अपनेपन की भावना आएगी। माता-पिता के प्रति विश्वास बढ़ेगा । लेकिन बडे अफसोस के साथ कहना पडता है कि वर्तमान भागम-भाग प्रतियोगितताा के दौर में दोनो माता और पिता को कामकजी बनना पड रहा है। वे ऑफिस के कामों से परेशान घर आते हैं पिताजी माइन्ड फ्रेश करने के लिए अपनी महफिल में चला जाता है और माॅं चुल्हे चौके में फॅंस जाती है। वे बच्चों को समय नहीं देते। इससे बच्चों और मााता-पिता में अपनापन की भावना समाप्त हो जाती हैं। दूरियां बढती जाती हैं और एक दिन ऐसा भी आ जाता है कि माता-पिता और बच्चों में कोई सम्बंध नहीं रह जाता है। बच्चे माता-पिता के हाथों से निकल जाते हैं। परिवार टूट जाता है, बिखर जाता है।
4. जिम्मेदारी
बच्चों को भावी आदर्श बनने के लिए बचपन से ही उनको उनकी क्षमतानुसार जिम्मेदारी सौंपनी चाहिए। इससे वे अपने जिम्मेदारी को समझेंगे। वे अपने को परिवार का हिस्सा समझेंगे। अगर उन्हें किसी भी प्रकार की जिम्मेदारी नहीं दी जायेगी तो वे अपने को उपेक्षित समझेंगे। आपसी सहयोग में कमी आयेगी और अन्त में परिवारर से कोई रह रिश्ता नहीं रह जायेगा। आज अनेक परिवारों के टूटने का यही कारण है। अतः माॅं-बाप को बचपन से बच्चों को जिम्मेददारी सौपनी है। उनको सहारा तथा मार्गदर्शन दे कर प्रोत्साहित करते रहना है। इससे बच्चोें में आत्मविश्वाश बढेगा। वे बडे होने पर अपनी जिम्मेदारी सम्भालने में सक्षम होेंगे।
5. हर माॅंग पूरी नहीं करनी है
कहा जाता है कि बच्चे हर नई चीज जो उसके मन को भाए जाये उसे पाने के लिए जिद्द करते हैं। ऐसी अवस्था में माॅं बाप को देेखना है कि कब तक उसकी माॅंग जायज है अगर उसकी माॅंग जायज है, तो उसे पूरा कर सकते हैं और अगर उसकी माॅंग जायज नहीं है तो प्यार से उसे मना कर उसे टाल देना चाहिए। हर जायज-नाजायज माॅग पूरी करने पर बच्चा जिददी बन जायेगा। बढते उम्र के साथ उसकी माॅंग बढती जाएगी और एक दिन ऐसा भी आएगा कि माता-पिता अपने किये पर पछतायेंगे। क्योंकि कई बार बच्चे अपनी माॅंगे पूरी न होने पर आत्महत्या जैसे कदम उठा लेते हैं। अतः माता पिता को इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि हर माॅंग जायज नहीं होती और लाड प्यार की भी कोई हद होती है। हमारा लाड प्यार कहीं हमसे हमारे बच्चे ही न छीन ले।
6. धार्मिक क्रिया कलाप
ख्रीस्तीय माता पिता होने के कारण उनका दायित्व भी बढ जाता हैै। अतः बच्चों में धार्मिक रूझान को बढाने के लिए माता-पिता सर्व प्रथम स्वयं धार्मिक-क्रिया कलापों में सक्रिय रूप से भाग लें तथा बच्चों को भी भाग लेने के लिए प्रोत्साहित करें। परिवारर में धार्मिक वातावरण बनाए रखने की कोशिश करें। इसलिए संध्या वंदना, रोज़री माला विनती और पवित्र मिस्सा बलिदान पर विशेष ध्यान देना है। बच्चों को संध्या वंदना संचालन के लिए प्रोत्साहित करना है और उसके लिए उनको उचित मार्गदर्शन देते करना है और उसके लिए उनको उचित मार्गदर्षन देेते रहना है, जिससे बच्चों में धार्मिक रूझान में वृद्धी होगी लेकिन आज यही नहीं हो पा रहा है। ख्रीस्तीय माता-पिता मात्र ख््राीस्तीय बन कर रह गये। ड्युटि का बहाना कर के न तो उनका धार्मिक क्रिया कलापों में भाग लेने को फुर्सत है और न बच्चों को प्रोत्साहित कर रहे है। गिरजा प्रार्थना मात्र औपचारिकता रह गई है। इसलिए धर्मग्रंथ कहता है - कोई भी धार्मिक नहीं रहा एक भी नहीं कोई भी समझदार नहीं। ईश्वर की खोज में लगा रहने वाला कोई नहीं। सब भटक गये, सब समान रूप से भटक गये हैं। वर्तमान में ख््राीस्तीय परिवार की दशा दयनीय है। न परिवार में संध्या वंदना होती है और न धार्मिक क्रिया कलापों में रूची। इससे भावी पीढी धार्मिक रूझान दिन ब दिन घटता जा रहा है। फिर छोटा परिवार सुखी परिवार से कलीसिया बहुत घाटे में चल रही है। आज समर्पित जीवन की बुलाहट में भी बहुत कमी आ गई क्योंकि एक तो भावी पीढी में धार्मिक रूझान घट रहा है, तो ख््राीस्तीय परिवार में एक या दो ही संतान है। ऐसे में कौन वंश को आगे बढायेगा और कौन कलीसिया की सेवा कररेगा?
बच्चों के कर्तव्य
इसके आलावा पवित्र वचन बच्चों से स्पष्ट शब्दों में कहता है - " अपने माता पिता का आदर करो जिससे तुम बहुत दिनों तक जीवित रह सको। " (निर्गमन २०:१२ ) "बच्चो! अपने माता-पिता की आज्ञा मानों, क्योंकि यह उचित है।अपने माता-पिता का आदर करो। यह पहली ऐसी आज्ञा है, जिसके साथ एक प्रतिज्ञा भी जुड़ी हुई है,जो इस प्रकार है- जिससे तुम्हारा कल्याण हो और तुम बहुत दिनों तक पृथ्वी पर जीते रहो।"
एफेसियों 6: 1-3
अतः हर ख्रीस्तीय बच्चे का यह परम कर्त्तव्य है कि वे अपने माता पिता का कहना माने। संत लुकस 2: 51 में वचन कहता है - "येसु उनके साथ नाज़रेथ गए और उनके अधीन रहे। जी हैं ईश्वर होते हुवे भी येसु माँ मरियम और पालक पिता युसूफ के अधीन रहे। इसलिए हमें भी अपने माता पिता की अधीनता स्वीकार करनी चाहिए।
आइये आज हम नाज़रेथ के परिवार के सामान अपने परिवार को ईश्वर
Thank you fr preetam for beautiful Sunday Reflection
ReplyDeleteMay God be praised dear Fr. John God bless us all.
ReplyDelete