Monday, 30 December 2019

1 जनवरी ईश माता का पर्व 2020




आज हम नये साल की शुरूआत ईश माता मरियम के पर्व के साथ करते हैं। मा मरियम कृपाओं से भरपूर की गयी थी। उनको प्राप्त सब कृपाओं में  ईश्वर की माता बनना सबसे श्रेष्ठ था। मरियम की महानता इसमें है कि उनके हाँ कहने पर हमारी मुक्ति का द्वार खुल गया। उन्होंने कहा ‘‘देख, मैं प्रभु की दासी हूँ तेरा कथन मुझमें पूरा हो जाए’’ और उसी क्षण शब्द ने उनके गर्भ में देहधारण किया; उसी क्षण ईश्वर  शब्द उनके गर्भ में शरीर धारण कर मनुष्य बन गया। इस प्रकार मरियम ईश्वर की माता बन गई; हमारे मुक्तिदाता की माता बन गई और हमारी मुक्ति में एक महान सहायक बन गई।
ईश-माता का समारोह यद्यपि कलीसिया के आरम्भ से  मनाया जाता रहा है किंतु इसे हमारे काथलिक धर्मसिद्धांत के रूप में मान्यता एफेसुस की परिषद में सन् 431 में दिया गया। हम संत योहन के सुसमाचार में पढते हैं कि - ‘‘आदि में शब्द था, शब्द ईश्वर के साथ था और शब्द स्वयं ईश्वर था। उसके द्वारा सब कुछ उत्पन्न हुआ और उसके बिना कुछ भी उत्पन्न नहीं हुआ........।(और उसी) शब्द ने शरीर धारण कर हमारे बीच निवास किया।’’ (योहन 1:14 )याने प्रभु येसु, पिता के एकलौते पुत्र अनादि वचन है जो आदि में पिता के साथ विद्यमान था, जिसे ‘‘समय पूरा हो जाने पर ईश्वर  ने इस संसार में भेजा। वह एक नारी से उत्पन्न हुआ और संहिता के अधीन रहा, जिससे वह संहिता के अधीन रहने वालों को छुडा सकें और हम ईश्वर के दत्तक पुत्र-पुत्रियां बन जाये’’ ( गला 4:4-5) इसका मतलब ये हुआ कि प्रभु येसु स्वयं ईष्वर थे जो अनन्तकाल से विद्यमान है। तथा मानव मुक्ति के लिए वे स्वयं एक मनुष्य बन गये। मनुष्य बनने के लिए ईश्वर  ने एक कुँवारी को अपने बेटे की माँ बनने के लिए चुना। इसलिए माँ मरियम ईश्वर  की माँ है। उनके शरीर में रहकर ईष्वर जो अदृष्य थे; जिसका शरीर नहीं था एक शरीर धारण करते हैं। यही कलीसिया का वोश्वास  है; यही पवित्र बाईबल हमें सिखलाती है।  परन्तु कई विश्वासी भाई बहनें मरियम को ईश् माता के रूप में समुचित आदर सम्मान नहीं देते। एक बार एक कैथोलिक भाई किसी नयी जगह पर गया। वहां सन्डे को प्रार्थना के लिए चर्च ढ़ुढ़ते-ढुंढ़ते एक चर्च गया। उनसे प्रार्थना का समय पूछा। वे अंदर गए और उन्होंने उस चर्च के पास्टर से पूछा कि आपके चर्च में माता मरियम के लिए कोई जगह नहीं है क्या। वे बोले जी नहीं। हम मरियम को कोई जगह नहीं देते। तो कैथोलिक भाई बोला- जहाँ प्रभु की माँ के लिए जगह नहीं वहाँ मेरे लिए भी जगह नहीं। इस पर उस कलीसिया के व्यक्ति ने उसे समझाते हुए कहा- देखो हम ये तो मानते हैं कि मरियम येसु की माँ है। पर येसु को जन्म देने के बाद उनका रोल या फिर उनकी भूमिका खत्म हो जाती है। जैसे चूजा निकलने के बाद अंडे के छिलके का क्या कोई महत्व नहीं वैसे ही येसु के जन्म के बाद मरियम का कोई महत्व तो नहीं रह जाता। ईश्वर  की योजना में मुक्तिदाता को जन्म देने लिए एक नारी का होना था। और वह योजना  मसीह के जन्म के साथ पुरी हो जाती है। उसके बाद मसीह का काम शुरू होता है।

क्या यह तर्क सही है?  क्या मरयम महज एक अंडे का छिलका है? क्या परम् पिता ईश्वर की निगाह में यह नारी बस एक अंडे के छिलके के बराबर है? क्या ईश्वर के आदेश पर ही गेब्रियल दूत मरियम को प्रणाम नहीं करता? (लूक 1,28); क्या एलिज़ाबेथ पवित्र आत्मा से भरकर यह नहीं कहती - आप नारियों में धन्य है, और धन्य है आपके गर्भ का फल। मुझे यह सौभाग्य कैसे मिला कि मेरे प्रभु की माँ मुझसे मिलने आयी? क्या वास्तव में उनका रोल जन्म के बाद ख़त्म हो जाता है। तो फिर जन्म के बाद हेरोद जब शिशु येसु को मारना चाह रहा था तब कौन योसेफ के साथ बालक को मिस्र देश लेकर भागती हैं? संत लुकस के अनुसार कौन येसु को मन्दिर में समर्पित करती है? (लूक 2,22-23) कौन तीन दिन तक येसु को खोजते हुए येरूसलम मन्दिर तक जाती है?(लूक 2,48); कौन येसु की सेवकाई के समय उनसे मिलने जाती थी? (मत्ती 12,46-50); किसके कहने पर येसु ने काना के विवाह में अपना पहला चमत्कार दिखाया?(योहन 2,1-12); कौन क्रूस ढोते येसु के साथ-साथ चली? और कौन कलवारी पहाड़ी पर क्रूस के नीचे बेटे येसु के साथ खड़ी रही(19,25) और वो कौन थी जिसे येसु ने क्रूस से योहन को अपनी माता के रूप में दे दिया? (योहन 19,27)। प्रभु के स्वर्गारोहण के बाद कौन शिष्यों को एक साथ लेकर पवित्रात्मा के अभिषेक के लिए तैयार करती है? (प्रे.च. 1,12-14)।

अब बताईये क्या येसु के जन्म के बाद मरियम की भूमिका ख़त्म हो जाती है? कोई कितना भी विरोध कर ले, कितने भी तर्क लगाले, पर मरियम का आदर व सम्मान हर विश्वासी को करना चाहिए। क्योंकि वह येसु (ईश्वर )की माँ है। और क्योंकि पवित्र बाइबिल में भी उन्हें सम्मान का दर्ज़ा मिला है।
ईश माता होने के साथ ही साथ वो हम सब की, सारी कलीसिया की माँ है।  क्योंकि स्वयं येसु ने क्रूस पर से उन्हें हमारी माता के रूप में हमें सौंपा है। हम संत योहन के सुसमाचार में पढते हैं येसु संत योहन से कहते हैं - ‘‘यह तुम्हारी माता है’’ और माँ मरियम से कहते हैं - ‘‘यह आपका पुत्र है’’ (यो 19ः27)। और वचन आगे कहता है उस समय से उस शिष्य ने अपने यहाँ उसे आश्रय दिया।’’ संत योहन ने क्या किया? तब से माँ मरियम को अपने घर में जगह दी। अपनी ही माँ के रूप में, अपने ही परिवार के एक सदस्य के रूप में। हम सब यदि यसु की माँ को अपनी माता मानते हैं, स्वीकरते हैं तो हमें भी उन्हें अपने घरों में ले जाना होगा। माता मरियम को हमारे परिवारों में जगह देना होगा; हमारे परिवार के ही एक सदस्य के रूप में माँ को स्वीकार करना होगा। क्योंकि उनके पुत्र की यही आखिरी ख्वाहीश थी अपनी माँ को लेकर कि उसका हर अनुयायी उनकी माँ को अपनी माँ समझे व उसे अपने घर ले जाये। उसने अपनी माँ को हमें इसलिए दे दिया कि वह हमारे साथ रहकर हमारी ज़रूरतों में हमारे लिए प्रार्थना करती रहे। वह हमारी परिवार में रहकर हमारे परिवारों को नाज़रेथ के पवित्र परिवार की तरह एक पवित्र व आदर्श परिवार बनानें में हमारी मदद करे। हमें धर्म मार्ग पर चलाये व शैतान के प्रलोभनों से हमारी रक्षा करे क्योंकि ईश्वर  ने शैतान की सारी शक्तियों को माँ मररियम के पैरों तले डाल दिया है।
ख्रीस्त में प्यारे भाईयों और बहनों प्रभु येसु द्वारा हमें प्रद्त इस अमुल्य उपहार को हम हमारे घरों में, हमारे परिवारों में कैसे रख सकते हैं। मैं सोचता हूँ पवित्र रोज़री माला से उत्तम और कोई साधन नहीं जिसके द्वारा हम माँ मरियम को अपने घरों में बुला सकते हैं उनका आह्वान कर सकते हैं, उनसे प्रार्थना की अरज कर सकते हैं। जिस घर में रोज़री माला विनती होती है माँ मरियम उस घर में रहती है, उस घर का, उस परिवार का एक अभिन्न अंग बनकर। उनकी प्रार्थनायें माँ प्रभु तक जल्दि पहुँचा देती है।

आईये हम माँ मरियम को अपने घरों में जगह दें, रोज उनका स्मरण करें, वो ईष्वर की माता व हम सब की माता है।
आमेन।

May you have a year filled with mighty anointing of the Spirit of God who came upon Mary to make her the Mother of God. 
Happy New Year to all. 

Friday, 27 December 2019

पवित्र परिवार का पर्व 29 दिसम्बर 2019


प्रवक्ता 3:3 - 7, 14-17
कोलोसियों 3:12-21
मत्ती 2:13-15, 19-23

आज हम पवित्र परिवार का पर्व मना रहे है. एक परिवार में जन्म लेकर प्रभु येसु ने परिवारों को पवित्र कर दिया है।  नाज़रेथ का पवित्र परिवार सभी ख्रीस्तीय परिवारों के लिए आदर्श है।  येसु, मारिया और जोसफ तीनो मिलकर परिवार में  हर एक सदस्य की सच्ची भूमिका का आदर्श हमारे सामने  रखते हैं।  आइये आज हम नाज़रेथ के परिवार को अपने  परिवारों की आधारशीला मानते हुए आज के परिवेश में ख्रीस्तीय परिवारों पर मनन चिंतन करें।

ख्रीस्तीय परिवारों में  माता-पिताओं का दायित्व 

जिस प्रकार से समर्पित धर्मसंघी  जीवन एक धार्मिक बुलाहट है, ठीक उसी प्रकार वैवाहिक जीवन भी एक पवित्र बुलाहट है। जब ईश्वर आदम  हेवा का जोडा बनाया तो उन्न्हें आशीर्वाद देते हुए कहा- फलो फूलो और संसार में फैल जाओ। आज माता-पिता इसी पावन कार्य को निभा रहे हैं। अतः माता-पिता का दायित्व कितना महान है। वे आज ईश्वर की सृष्टि के उसी कार्य को जारी रख रहे हैं। वे भावी कलीसियाा और राष्ट्र के निर्माता हैं। भावी कलीसिया और राष्ट्र उनके हाथ में हैं। वे बच्चों के प्रथम शिक्षक - शिक्षिकाएं हैं । उन्हें वे जैसे  संस्कारों  से विभूषित करेंगे, भावी कलीसिया भी वैसी ही होगी। बच्चों का मन एक कोरा कागज है। वे उसमें जैसा लिखेंगे, वह सदा वैसी ही रह जायेगा। वे कुम्हार की तरह है, तो बच्चे गीली मिट्टी की तरह। बच्चों का भावी स्वरूप माता-पिता के हाथों में है। वे कुशल माली तरह हैं। माली यदि निष्ठापुर्वक फूलवारी की देखभाल करता है, तो फूलवारी की सुन्दरता में चार चाॅंद लगना ही है। उसी प्रकार यदि माता-पिता अपने बाल-बच्चों तथा परिवार के प्रति निष्ठावान होंगे, तो परिवार को आदर्श  परिवार बनने तथा होनहार सन्तानों के पैदा होने से  काई नहीं रोक सकता। अतः माता-पिता को निम्नलिखित बिंदुओं पर विषेष ध्यान देना है-

1. माता-पिता का जीवन-आदर्श
कहा जाता है कि उदाहरण भाषण से बेहतर होता है। अर्थात् कथनी से करनी बेहतर है। कहने का अर्थ है- बच्चों को उपदेष देने या समझाने से उत्तम है खुद कर के दिखाना, क्योंकि बच्चे नकलबाज हैं। वे उपदेष या भाषणा पर उतना ध्यान नहीं देंगे जितना माता-पिता की कार्यशैली  पर ध्यान देंगे। वे माता-पिता की हरर गतिविधी की नकल करेंगे। जैसे मता-पिता पियक्कड हैं और अपने बच्चों को समझाते हैं कि दारू बिना अच्छा नहीं है, तो क्या वे उनकी बातों को मानेंगे। कभी नहीं। इसलिए माता-पिता को चाहिए कि बच्चों को समझाने से पहले अपने को आदर्श पेश  करें। बच्चे खुद ब खुद मान जायेंगे।

2. अनुशासन
जिस प्रकार घोडे को नियंत्रण में रखने के लिए लगाम की आवश्यकता  होती है उसी प्रकार बच्चों को भटकने से रोकने बचाने के लिए अनुशासन  की नितान्त आवश्यकता  है । इसिलए धर्मग्रंथ कहता है- जो घोडा पालतु नहीं बनाया गया, वह वश  में नहीं रहता। उसी प्रकार यदि पुत्र भी स्वछंद छोडा गया, तो वह उदण्ड बन जायेगा। तुम उसे जवानी में पूरी स्वतंत्रता मत दो और उसके अपराधों को अनदेखा मत करो। वह हठी बनकर तुम्हारी बात नहीं मानेगा और तुमको उसके कारण दुख होगा। तुम अपने पुत्र को शिक्षा दो और अनुशासन में रखो। नहीं तो तुमको उसकी दुष्टता के कारण लज्जा होगी।  (प्रवक्ता 30:8 )

आजकल पतिवार में  बच्चे काम होने के कारण माता पिता अपने बच्चों को आवश्यकता  से अधिक लाड़ प्यार करते व् उनकी हर ख्वाहिश पूरी करते हैं।  वे ये भूल जाते हैं कि वे ऐसा करके अपना व अपने बच्चों का भविष्य अंधकार में कर रहे हैं।  पवित्र वचन कहता हैं -  "जो अपने पुत्र को प्यार करता है, वह उसे कोड़े लगता है, जिससे  बाद में उसे अपने पुत्र से सुख मिलेगा।  जो अपने पुत्र को अनुशासन में रखता है उसे बाद में संतोष मिलेगा।"  (प्रवक्ता 30:१-२)

बहुत बार माता-पिता बच्चों की गलतियों को नजरअंदाज कर देते हैं। वे सोचते हैं कि अरे बच्चा छोटा है। जब बडा हो जायेगा तो अपने आप सुधर जायेगा, लेकिन कभी-कभी यह भयंकर रूप ले लेता है। अंग्रेजी में एक कहावत है -  ए स्टीच इन टाइम सेवस नाइन। याने यदि हम समय रहते कपडे को सील लें तो एक टांके में  ही काम हो जाता है, पर यदि हमने ध्यान नहीं दिया तो भविष्य में हो सकता है नौ टांके लगाने पड़े।  इसलिए हम समय रहते अपने बच्चों को सुधारें।

3. बच्चों को समय देना
माता-पिता का परम कर्त्तव्य  है कि बच्चों को सही मार्गदर्शन  देने और आपसी सम्बन्ध को मधुर बनाने के लिए बच्चों को समय देना एकदम जरूरी है। इसमें माता-पिता और बच्चाों के बीच मधुर सम्बम्ध बनेगा। आपसी ताल-मेल और समझदारी आएगी। बच्चों में माॅं-बाप के प्रति अपनेपन की भावना आएगी। माता-पिता के प्रति विश्वास बढ़ेगा । लेकिन बडे अफसोस के साथ कहना पडता है कि वर्तमान भागम-भाग प्रतियोगितताा के दौर में दोनो माता और पिता को कामकजी बनना पड रहा है। वे ऑफिस  के कामों से परेशान  घर आते हैं पिताजी माइन्ड फ्रेश  करने के लिए अपनी महफिल में चला जाता है और माॅं चुल्हे चौके  में फॅंस जाती है। वे बच्चों को समय नहीं देते। इससे बच्चों और मााता-पिता में अपनापन की भावना समाप्त हो जाती हैं। दूरियां बढती जाती हैं और एक दिन ऐसा भी आ जाता है कि माता-पिता और बच्चों में कोई सम्बंध नहीं रह जाता है। बच्चे माता-पिता के हाथों से निकल जाते हैं। परिवार टूट जाता है, बिखर जाता है।

4. जिम्मेदारी
बच्चों को भावी आदर्श  बनने के लिए बचपन से ही उनको उनकी क्षमतानुसार जिम्मेदारी सौंपनी चाहिए। इससे वे अपने जिम्मेदारी को समझेंगे। वे अपने को परिवार का हिस्सा समझेंगे। अगर उन्हें किसी भी प्रकार की जिम्मेदारी नहीं दी जायेगी तो वे अपने को उपेक्षित समझेंगे। आपसी सहयोग में कमी आयेगी और अन्त में परिवारर से कोई  रह रिश्ता नहीं रह जायेगा। आज अनेक परिवारों के टूटने का यही कारण है। अतः माॅं-बाप को बचपन से बच्चों को जिम्मेददारी सौपनी है। उनको सहारा तथा मार्गदर्शन  दे कर प्रोत्साहित करते रहना है। इससे बच्चोें में आत्मविश्वाश  बढेगा। वे बडे होने पर अपनी जिम्मेदारी सम्भालने में सक्षम होेंगे।

5. हर माॅंग पूरी नहीं करनी है
कहा जाता है कि बच्चे हर नई चीज जो उसके मन को भाए जाये उसे  पाने के लिए जिद्द करते हैं। ऐसी अवस्था में माॅं बाप को देेखना है कि कब तक उसकी माॅंग जायज है अगर उसकी माॅंग जायज है, तो उसे पूरा कर सकते हैं और अगर उसकी माॅंग जायज नहीं है तो प्यार से उसे मना कर उसे टाल देना चाहिए। हर जायज-नाजायज माॅग पूरी करने पर बच्चा जिददी बन जायेगा। बढते उम्र के साथ उसकी माॅंग बढती जाएगी और एक दिन ऐसा भी आएगा कि माता-पिता अपने किये पर पछतायेंगे। क्योंकि कई बार बच्चे अपनी माॅंगे पूरी न होने पर आत्महत्या जैसे कदम उठा लेते हैं। अतः माता पिता को इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि हर माॅंग जायज नहीं होती और लाड प्यार की भी कोई हद होती है। हमारा लाड प्यार कहीं हमसे हमारे बच्चे ही न छीन ले।

6. धार्मिक क्रिया कलाप 
ख्रीस्तीय माता पिता होने के कारण उनका दायित्व भी बढ जाता हैै। अतः बच्चों में धार्मिक रूझान को बढाने के लिए माता-पिता सर्व प्रथम स्वयं धार्मिक-क्रिया कलापों में सक्रिय रूप से  भाग लें तथा बच्चों को भी भाग लेने के लिए प्रोत्साहित करें। परिवारर में धार्मिक वातावरण बनाए रखने की  कोशिश करें। इसलिए संध्या वंदना, रोज़री माला विनती और पवित्र मिस्सा बलिदान  पर विशेष  ध्यान देना है। बच्चों को संध्या वंदना संचालन के लिए प्रोत्साहित करना है और उसके लिए उनको उचित मार्गदर्शन  देते करना है और उसके लिए उनको उचित मार्गदर्षन देेते रहना है, जिससे बच्चों में धार्मिक रूझान में वृद्धी होगी लेकिन आज यही नहीं हो पा रहा है। ख्रीस्तीय माता-पिता मात्र ख््राीस्तीय बन कर रह गये। ड्युटि का बहाना कर के न तो उनका धार्मिक क्रिया कलापों में भाग लेने को फुर्सत है और न बच्चों को प्रोत्साहित कर रहे  है। गिरजा प्रार्थना मात्र औपचारिकता रह गई है। इसलिए धर्मग्रंथ कहता है - कोई भी धार्मिक नहीं रहा एक भी नहीं कोई भी समझदार नहीं। ईश्वर की खोज में लगा रहने वाला कोई नहीं। सब भटक गये, सब समान रूप से भटक गये हैं। वर्तमान में ख््राीस्तीय परिवार की दशा दयनीय है। न परिवार में संध्या वंदना होती है और न धार्मिक क्रिया कलापों में रूची। इससे भावी पीढी धार्मिक रूझान दिन ब दिन घटता जा रहा है। फिर छोटा परिवार सुखी परिवार से कलीसिया बहुत घाटे में चल रही है। आज समर्पित जीवन की  बुलाहट में  भी बहुत कमी आ गई क्योंकि एक तो भावी पीढी में धार्मिक रूझान घट रहा है, तो ख््राीस्तीय परिवार में एक या दो ही संतान है। ऐसे में कौन वंश  को आगे बढायेगा और कौन कलीसिया की सेवा कररेगा?

बच्चों के कर्तव्य

इसके आलावा पवित्र वचन बच्चों से स्पष्ट शब्दों में कहता है - " अपने माता पिता का आदर करो जिससे तुम बहुत दिनों तक जीवित रह सको। " (निर्गमन २०:१२ ) "बच्चो! अपने माता-पिता की आज्ञा मानों, क्योंकि यह उचित है।अपने माता-पिता का आदर करो। यह पहली ऐसी आज्ञा है, जिसके साथ एक प्रतिज्ञा भी जुड़ी हुई है,जो इस प्रकार है- जिससे तुम्हारा कल्याण हो और तुम बहुत दिनों तक पृथ्वी पर जीते रहो।"  
एफेसियों 6: 1-3
 अतः हर ख्रीस्तीय बच्चे का यह परम कर्त्तव्य है कि वे अपने माता पिता का कहना माने।  संत लुकस 2: 51 में वचन कहता है - "येसु उनके साथ नाज़रेथ गए और उनके अधीन रहे।  जी हैं ईश्वर होते हुवे भी येसु माँ मरियम और पालक पिता युसूफ के अधीन रहे।  इसलिए हमें भी अपने माता पिता की अधीनता स्वीकार करनी चाहिए।

आइये आज हम नाज़रेथ के परिवार के सामान अपने परिवार को ईश्वर के वचन व उसकी के अनुसार चलने वाला परिवार बनायें।  आमीन।  

Sunday, 22 December 2019

क्रिसमस प्रवचन




आज भी दिल की सरायों  में 
जगह ढूंढ़ता येसु

प्रभु येसु मसीह में, ईश्वर  मनुष्य के रूप में सिर्फ प्रकट नहीं हुआ जैसा कि 'अवतार' को लेकर मान्यता है, अपितु वह  स्वयं मनुष्य बन गया। उसने इंसान का शरीर धारण कर पूरी तरह से हमारी तरह इस धरा पर जीवन व्यतित किया। उन्हांने मानवीय हाथों से काम किया, अपने मानवीय दिमाग से सोचा, और एक मानवीय हृदय से प्रेम किया। वह एक कुंवारी से जन्मा, उन्होंने अपने आपको पाप को छोड बाकि सब बातों में हमारे समान बना लिया। जब वह इंसान बना उन्होंने अपनी ईश्वरता को नहीं छोड़ा । वे पूरी तरह से ईश्वर थे और पूरी तरह से मनुष्य भी. ईश्वरता और मानवता का उनमे एक परिपूर्ण समागम था।

ख्रीस्त जयंति प्रभु के साथ घनिष्टता का पर्व है। ईश्वर के साथ इंसान का जो घनिष्ट संबंध था वह आदि माता पिता के पाप के कारण खत्म हो गया था। जब आदम ने पाप किया तो वह ईश्वर से छिप गया (उत्पत्ति 3:8),। उसी प्रकार, जब काईन ने अपने भाई की हत्या की तो वह ईश्वर से दूर भाग गया (उत्पत्ति 4:16)। इंसान पाप पर पाप करता रहा है, परन्तु ईश्वर फिर भी वफादार बना रहा। हमारे मुक्ति इतिहास में यदि हम देखेंगे तो पायेंगे कि वह ईश्वर मानव के साथ रहने के लिए तडपता रहा। हमको पुनः अपने से मिलाने के लिए जब ईश्वर ने प्राचीन काल में अब्राहम को चुना तो उन्होंने उनको अपनी उपस्थिति में चलते रहने को कहा (उत्पत्ति 17ः1)। जब इस्राएलियों को मिस्र की गुलामी से छुडाया तब वह ईश्वर उनके साथ-साथ चला। चालीस वर्षों की लम्बी मरूस्थलीय यात्रा में ईश्वर उनके साथ विधान की मंजूषा में प्रतिकात्मक रूप से विद्यमान रहा । जब ईस्राएली लोग प्रतिज्ञात देष में आकर बस गये तब ईश्वर मंदिर में उनके बीच में उपस्थित रहता था। पुराने विधान में वह विभिन्न रूपों में अपनी प्रजा के साथ रहा। इब्रानियों के नाम पत्र 1ः1 में वचन कहता है- ‘‘प्राचीन काल में ईश्वर बारम्बार और विविध रूपों में हमारे पुरखों से नबियों द्वारा बोला था। अब अन्त में वह हमसे पुत्र द्वारा बोला है।
ख्रीस्त  जयंति के दिन कुछ असाधरण सा हुआ। उस दिन ईश्वर साक्षत रूप में हमारे बीच आ गये। वह ईश्वर जो कभी जलती हुई झाडी, कभी बादल के खम्बे, तो कभी विधान की मंजूषा, कभी मंद समीर तो कभी गर्जन के रूप में लोगों के पास आता था, अब वह स्वयं मनुष्य बनकर हमारे बीच में आ गया। ईश्वर ने हमारे खातिर हमारा सा स्वाभाव धारण  किया और उस दिव्या ‘‘शब्द ने शरीर धारण कर हमारे बीच निवास किया।’’ येसु ‘इम्मानुएल’ है जिसका अर्थ है ईश्वर हमारे साथ। वो आज , यहां हमारे बीच में विद्यमान है। जीवित प्रभु येसु आज हमारे साथ है।

आजकल हमारे क्रिसमस की विडम्बना यह है कि हम हमारे क्रिसमस समाराहों से प्रभु येसु को दूर कर दे रहे हैं। कई बार हमारे पास सांता क्लॉज़ रहता है, क्रिसमस ट्री रहती है, मीठे पकवान रहते हैं, मित्रगण रहते हैं। लेकिन बालक येसु के लिए कोई जगह नहीं। पवित्र बाइबल में सबसे हृदय विदारक वाक्य यह है - उनके लिए सराय में कोई जगह नहीं थी।(लूकस 2ः7)। पूरे ब्रह्माण्ड को रचने वाले के लिए कहीं जगह नहीं थी। सारी धरती और जो कुछ भी उसमें है, उसके मालिक के लिए कहीं जगह नहीं थी। जिस यहूदी जाती के उद्धार के लिए के लिए वे आये, उनके घरों में, उनके देश  में उनके लिए जगह नहीं थी। उन्होंने मुक्तिदाता को स्वीकार नहीं किया। उन्होंने उसे क्रूस पर चढा कर मार डाला। सदियों से आज तक यही होता आ रहा है। करीब तीन सौ सालों तक रोमी साम्राज्य में प्रभु येसु के लिए कोई जगह नहीं थी। उनके अनुयायों पर अत्याचार किये जाते रहे। जापान, चीन, कोरिया, और वियेतनाम में कई सालों तक प्रभु के लिए कोई स्थान नहीं था। और उन सभी देशों  व राज्यों में प्रभु येसु के लिए कोई स्थान नहीं जहाँ पर  मिशनरियों, अथवा प्रभु के अनुयायों को उनके जन्म का, उनके राज्य का सुसमाचार सुनाने नहीं दिया जाता। हम पापियों को बचाने के लिए, पाप में भटकती मानवता की खोज में वे अपना स्वर्गीय सुख छोडकर इस धरा पर आए हैं। मुझे बचाने, मेरा उद्धार करने, पिता के साथ मेरा मेल-मिलाप कराने के लिए प्रभु येसु मेरे पास आ आये हैं।  वे मेरे दिल के द्वार पर आकर आज खटखटा रहे हैं। जो कोई द्वार खोलेगा प्रभु उनके यहां, उनके जीवन में आयेंगे। यदि हमारा कोई मित्र बड़े दूर से हमसे मिलने आता है और हम यदि उसके लिए दरवाज़ा नहीं खोलते तो  सोचो उन्हें कैसा लगेगा! उसी प्रकार सोचिये, कितने दुःख की बात होगी यदि हम हमारे प्रभु ईश्वर जो सिर्फ और सिर्फ हमारे लिए हमारे प्रति अपने असीम प्यार का इज़हार  करने के लिए हमारे पास आये है, यदि हम हमारे जीवन में उन्हें  स्वीकार नहीं करेंगे तो उन्हें कैसा लगेगा!। यदि उद्धार पाना है तो उन्हें अपने जीवन में स्वीकार करना ही होगा। उन्होंने कहा है- ‘‘मार्ग सत्य और जीवन में हूँ, मुझसे होकर गये बिना कोई भी पिता के पास नहीं आ सकता।’’ आईये आज प्रभु येसु को हमारे दिल में हमारे जीवन में हम जगह दें। उन्हें हमारे दिलों की गौशाला में जन्म लेने दें। वो हमारे दिलों की सराय से होकर आज भी गुजरता है; मरियम और युसूफ आज भी खटखटाते हैं; जो द्वार खोलेगा  वो मसीहा को अपने अंदर पायेगा। शब्द उसके जीवन में शरीर बन जायेगा। और वह उद्धार व मुक्ति पायेगा।

प्यारे भाईयों और बहनों हम जानते हैं कि जो जन्म लेता है वो बढता भी है। एक शिशु जन्म लेता है उसकी वृद्धी होती है, विकास होता है। यदि हम कहते हैं कि प्रभु येसु ने हमारे दिल में हमारे जीवन में जन्म लिया है तो फिर हमें उन्हें हमारे जीवन में बढने देना चाहिए। जब प्रभु येसु हममें बढेंगे तो हम, धीरे-धीरे उनके समान बनने लगेंगे और वे हमें एक दिन पूरी तरह से बदल देंगे। आईये बालक येसु को हमारे दिलों में आकर जन्म लेने दें व उन्हें हमारे जीवन में बढने दें ताकि हमारे मानोभाव उनके मनोभावों के सदृश्य बन जाये, हमारे विचार उनके विचारों के समान बन जाये, हमारी वाणी उनकी वाणी के समान बन जाये, हमारा व्यवहार उनके व्यहकार के समान बन जाये। आज प्रभु येसु को अपने जीवन में पाकर हम संत पौलुस के समान कहें - ‘‘मुझमें अब मैं नहीं, प्रभु येसु मुझमें जीवित है’’ (गलातियों 2:20)। 

Wish you a very happy Christmas

Fr Preetam Vasuniya

Monday, 16 December 2019

आगमन का चौथा रविवार २२ दिसबर २०१९




इसायाह 7: 10-14 
रोमियों 1:1-10 
मत्ती 1:18-24 

हमारी रोज़मर्रा की ज़िन्दगी में, हमारे सामने कई विकल्प होते हैं और उनमें से हमें सही व उचित विकल्प का चुनाव करना होता है। कुछ बातें बहुत हल्की तो कुछ बहुत गंभीर होती है। बहुत सारी बातों बीच कई बार हम उलझ कर रह जाते हैं कि क्या चुनें और क्या नहीं।

आज हम आगमन के अंतिम इतवार में पहुंच गये हैं और आज माता कलीसिया हमारे सामने हमारे मुक्ति इतिहास के दो विशेष किरदारों की तरफ हमारा ध्यान आकर्षित करती है जो अपने जीवन की भिन्न परिस्थितियों में विशेष निर्णय लेते हैं, विशेष चुनाव करते हैं।

आज का पहला पाठ हमें करीब 725  ई.पू. की दुनिया में लेकर जाता है जहाॅं आहाज इस्राएल के दक्षिणी राज्य, यूदा का राजा है जो कि यहूदियों के महान राजा दाउद का वंशज है, जिनसे मसीहा के आने का वादा किया गया था। वह अपने को एक बहुत ही जटिल स्थिति में पाता है। दक्षिणी राज्य दुश्मनों  से घिरा हुआ है। ऐसे में ईश्वर नबी  के द्वारा राजा से कहते हैं कि डरो मत।विश्वास में दृढ बने रहो और जो राज्य तुम पर चढाई कर रहे हैं उनसे समझौता अथवा संधी मत करो। सिर्फ ईश्वर  पर भरोसा रखो जो तुम्हें छुडायेगा। नबी के द्वारा ईश्वर राजा आहाज़ से एक चिन्ह मांगने के लिए कहता है। ईश्वर  कहता है के जो वादा ईश्वर  कर रहा है उसके लिए सबूत के तौर पर चिन्ह मांगो आहाज़ क्या करता है। वह चिन्ह मांगने से मना कर देता है। वह ईश्वर के निमंत्रण को अस्वीकार करता है। और वह जैसा नबी इसायाह ने उससे कहा उसके विपरीत करता है। ईश्वर ने नबी इसायाह के द्वारा उससे कहा कि जो राजा उनके विरुद्ध चढ़ाई कर रहे हैं वे ये सोच रहे हैं कि वे उसे पराजित कर देंगे, पर प्रभु ऐसा नहीं होने देंग। आहाज़ प्रभु पर भरोसा नहीं करता। राज्यों के ग्रन्थ १६:७ में हम पढ़ते हैं राजा आहाज ने अस्सूर के राजा से संधि करके आपने भरोसा उसमें जताया। उसने अपने ईश्वर का दस मानने की जगह तिगलक पिलेसर का दस माना. 

अब हम कहानी को फास्ट फॉरवर्ड करके 725 सदी आगे आ जाते हैं जहाॅं एक अन्य किरदार हमें देखने को मिलता हैं वो भी दाउद के घराने और वंश का ही है। लेकिन यह कोई राजा नहीं पर साधारण बढई हैं। और वह अपने को बहुत ही गंभीर व  दुविधाजनक व जटिल परिस्थिति में पाता है। उसकी समस्या किसी देश के लिए खतरा और दुश्मनों का आक्रमण नहीं पर यह समस्या उसके लिए बहुत ही मायने रखती थी। और वो समस्या थी कि उसकी सगाई या मंगनी एक कन्या से हुई थी जो कि कुंवारी है पर उसे अब बताया गया है कि वह अब गर्भवती है। वह कहती है कि यह किसी पुरूष से नहीं है।  जिस पर जोसफ पूरी तरह से हिल गया होगा। पर ईश्वर की कृपा ने उसे संभाला। इसायाह की भविष्यवाणी कीपरिपूर्णता  मरियम में हो रही है यह सन्देश अहाज और जोसफ की दानों घटनाओं को जोडता है। आहाज ने चिन्ह को लेने के लिए मना कर दिया पर योसफ उसे स्वीकार करता है। जैसा स्वर्गदूत ने कहा वैसे ही मरियम को वह अपने यहां ले आता है। आज ख्रीस्त जयंति की तैयारियां करते समय हम किसका किरदार अदा करने वाले हैं? आहाज़ का या फिर जोसफ का? जब हम आहाज़ की तरहदुश्मनों से, समस्याओं से घिर जाते हैं तो ऐसी परिस्थिति में हम आहाज़ की तरह ईश्वर  की आज्ञा की अवहेलना करते है या फिर जोसफ की तरह ईश्वर  की बात मानकर जैसा ईश्वर  बोलते हैं वैसा ही करते हैं। ईश्वर  के वचन आज भी वही हैं जो उसने जोसेफ से कहे - मत डरो.....ईश्वर  हमारे साथ है ......ईश्वर  का बेटा 2000 साल पहले आया, हम सब को अपने पापों से बचाने आया, वह कलीसिया के साथ रहता है, पवित्र संस्कारों और वचनों के माध्यम से। वह हमार जीवन के हर पहलु, हर परिस्थिति में हमारे साथ है। ताकि वह हमें अपने सामर्थ्य, प्रेम व शांति से भर दे। दूसरे पाठ में संत पौलुस कहते हैं - मुझे प्रेरित बनने का वरदान मिला है, जिससे मैं उनके नाम पर गैर यहूदियों में प्रचार करूं और वे लोग विश्वास की अधिनता स्वीकार करें। 

 आज के पाठों के दोनों किरदारों में यही तो फर्क है एक ने ईश्वर  की अधीनता को अस्वीकार किया तो दूसरे ने उसे स्वीकार किया, स्वीकार ही नहीं अंगीकार भी किया। संत जोसफ ने असंभव पर विश्वास  करके अपने को ईश्वर  की इच्छा के प्रति समर्पित कर दिया तो उसे वह महान कृपा मिली जिसके लिए कितने ही राजा और नबी तरसते थे - ईश्वर के पुत्र को अपने हाथों में उठाना। ईश्वर के पुत्र को अपनी गोद में खिलाना। शरीर बने अनादि काल से विद्यमान वचन को अपने बेटे के रूप में पालन पोषण करना। ईश्वरकी योजना के मुताबिक मसीहा तो मरियम के गर्भ में पवित्र आत्मा के सामर्थ्य से आ चुके थे और वे तो जन्म लेते ही परन्तु यदि जोसफ ईश्वर की आज्ञा की अवहेलना करके मरियम को अपने यहां नहीं लाता तो जो परम सौभाग्य उसे मिला उससे वह वंचित हो जाता। मुक्तिदाता का पालक पिता बनने का सौभाग्य। इस क्रिसमस के सीज़न क्या हम इस सौभाग्य को प्राप्त करना चाहेंगे। क्या हम उस गौषाला में मरियम और जोसफ के साथ खडे होकर उस आसमानी जलाल निहार पायेंगे। खुदा का बेटा जो इंसान बन गया है क्या हम उसके करीब आकर मरियम और जोसफ के साथ उसका स्पर्ष कर पायेंगे?

संत मारकुस 3ः34 में येसु ने कहा है - "ये हैं मेरी माता और मेरे भाई। जो ईश्वर  की इच्छा पूरी करता है, वही है मेरा भाई, मेरी बहन और मेरी माता।"

प्रभु येसु हमें अपने स्वर्गीक पिता के उस विशाल स्वर्गीय परिवार के सदस्य बनाने इस संसार में आये हैं। वह हमें इस संसार की, पाप व बुराई व शैतान की दसता से मुक्त कर अपने स्वर्गिक पिता के दत्तक पुत्र पुत्रियां बनाना चाहते हैं - गलातियों 4ः4-5 में प्रभु का वचन कहता है - ‘‘किंतु समय पूरा हो जाने पर ईश्वर ने अपने पुत्र को भेजा। वह एक नारी से उत्पन्न हुए और संहिता के अधिन रहे जिससे वह संहिता के अधीन रहने वालों को छुडा सके और हम ईश्वर के दत्तक पुत्र - पुत्रियां बन जायें।

एक ही शर्त है ईश्वर की अधीनता स्वीकार करना, ईश्वर का आज्ञा के अनुसार चलना, ईश्वर  की मरजी को पूरा करना।

इस क्रिसमस पर हम क्या बनना चाहते हैं - येसु के परिवार के लोग या फिर महज कोईदर्शक, या फिर महज एक उत्सव मनाने वाली भीड। जो दुनियाभर की सजावट करती है, दुनिया भर के पकावान बनाती है। मंहगे-मंहगे कपडे पहनते हैं और केक काटकर पाटीयां मनाते हैं? या फिर येसु के परिवार के सदस्य बनकर मरियम और  युसूफ के साथ उनके करीब रहे व उनके दर्शन से अपना जीवन धन्य कर लें. आमेन 

Monday, 9 December 2019

आगमन का तीसरा इतवार 15 दिसम्बर 2019


इसायाह 35ः1-6,10
याकूब 5ः7ः10
मत्ती 11ः2-11

आज आगमन का तीसरा रविवार है। कलीसिया की परम्परा के अनुसार तीसरा रविवार आनन्द  
Gaudete Sunday अर्थात् आनन्द व ख़ुशी  का रविवार कहलाता है। आज के पाठ हमें खुश  रहने व आनन्द मनाने को कहते हैं। हम सब इन दिनों क्रिस्मस की तैयारियों में व्यस्त हैं। जिन लोगों के ऊपर पारिवारिक जिम्मेदारियां है उन्हें इन दिनों कई प्रकार की चिंताएं सताती होंगी। बहुत सारी खरीदी करना है, घर की सफाई-पुताई, बच्चों के नए कपडे, आदि विभिन्न चिंतायें। पर आज का  वचन कहता है कि चिंतित व दुःखी न हों। इस दुनियां में यूं देखें तो दुःखों की कमी नहीं है। हर घर में दुःख, हर परिवार में दुःख। कोई अपनी बिमारी से दुःखित है तो कोई अपनी लाचारी से, कोई किसी के दबाव में दुःखित है तो कोई किसी आभाव में दुःखित है। कोई गरीबी के कारण तो कोई नौकरी नहीं मिलने के कारण। कई कारण हैं दुःखी होने के। उन सब लोगों के लिए प्रभु का वचन आज बस यही कहता है - ‘‘डरो मत, देखो, तुम्हारा ईश्वर  आ रहा है।’’ जि हां वह ईश्वर आ रहा है जिसका नाम इम्मानुएल है। वो हमारे साथ रहने आ रहा है। वो हमें यह कहने आ रहा है कि थके मांदे और बोझ से दबे हुए लोगों तुम सब के सब मेरे पास आओ मैं तुम्हें विश्राम दूंगा।

आज का समाज, आज की ये दुनिया सुख की तलाश  में है। सारी भाग दौड, दिनभर की मेहनत, खून पसीना एक करना, ये सब इसिलिए तो हम करते हैं कि हमारा गुजारा सुखपूर्वक हो सके कि हम एक आरामदायक जीवन बिता सकें। इस दुनिया में सुख व शांति तो हर कोई खोजता है परन्तु हर कोई इसे प्राप्त नहीं कर पाता। क्योंकि हम गलत जगह पर इसे ढूंढते हैं। अधिक धन दौलत होने से इंसान धनी ज़रूर बन सकता है लेकिन वो सुखी हो इसकी कोई ग्यारन्टी नहीं। हम देखते हैं कि इस दुनिया में कई बड़ी बड़ी हस्तियां होती है कई अरबपति और करोड़पति होते हैं पर क्या कभी किसी ने अपने धन से अपने जीवन या उम्र का एक पल भी बढ़ाया है?  

जब मैं  हॉस्टल में पढाई करता तहत तब हमारी हॉस्टल के पास बहार एक एक विक्षिप्त याने कि पागल व्यक्ति रहता था, जिसे मैं मेरे बचपन से देखता आ राह था, उसका कोई घर नहीं था, वह कभी नहाता नहीं, ठंड हो, गरमी हो या फिर बरसात वह जहां जगह मिली सो जाता था, उसके कपडे फटे हुए थे। फिर भी वह जिंदा था। हम हज़ारों सफाई के जतन करने के बाद भी बिमार हो जाते हैं पर वह कूडे के ठेर पर सोकर भी स्वस्थ रहता था। मेरे लिए यह एक किसी रहस्य से कम नहीं। मन में एक सवाल उठता है- आखिर उसकी ठंड से गरमी से व बिमारी से रक्षा कौन करता है?  वचन कहता है - ‘‘हमारे प्रभु ईश्वर के सदृष कौन है? वह उच्च सिहांसन पर विराजमान हो कर स्वर्ग और पृथ्वी, दोनों पर दृष्टि रखता है। वह धूल में से दीन हीन को और कूडे पर से दरिद्र को ऊपर उठाता है।’’ स्तोत्र113ः7
सच्ची ख़ुशी और शांति प्रभु से ही आती है। वही हमारा उद्धार कर सकता है। हमारी सब प्रकार की चिंताओं, परेषानियों, समस्यओं का एकमात्र समाधान प्रभु येसु मसीह ही है। जिनके आने की हम तैयारी कर रहे हैं। आज का पहला पाठ हमसे कहता है - जब प्रभु आ जायेंगे तब अंधों की आंखें देखने और बहरों के कान सुनने लगेंग। लंगडा हरिण की तरह छलांग भरेगा और गुंगे की जीभ आनंद का गीत गायेगी।’’ सुसमाचार में हमने सुना कि योहन बपतिस्ता अपने शिष्यों  को प्रभु येसु के पास ये पता करने भेजते हैं कि वही मसीहा हैं जो आने वाले हैं या फिर वे किसी और का इंतजार करें। इस पर प्रभु येसु उनसे कहते हैं - तुम जो देख रहे हो वही जा कर बता दो - अंधे देखते लंगडे चलते गूंगे बोलते और मूर्दे जिंदा हाते हैं। और दरिद्रों को सुसमाचार सुनाया जाता है।
प्रभु येसु हम सब की विभिन्न प्रकार की दुर्बलताओं, कमजोरियों व जो कुछ कमी हममें हैं उनकी पूर्ति करने आये हैं। वे हमें सब रूप से परिपूर्ण बनाने आये हैं। इस परिपूर्णता के राज्य में प्रवेष करने के लिए हममें योहन बपतिस्ता जैसी विनम्रता का होना अति आवश्यक। वह अपने आप को प्रभु येसु के सामने कुछ भी नहीं मानते हैं। उनका जूता उठाने के योग्य भी नहीं। योहन बपतिस्ता के पास भी बहुत ही शक्ति थी। ईश्वरीय  अनुग्रह था पर वह उस पर दंभ नहीं भरता। सृष्टि के प्रारम्भ में लूसीफेर को भी ईश्वर ने असीम शक्ति व सामार्थ्य दिया। किंतु उसने उसका दुरउपयोग किया। वह प्रभु से भी बडा बनना चाहता था। लेकिन उसका क्या हाल होता है हम सब जानते हैं। प्रभु येसु कहते हैं कि योहन मनुष्यों में योहन बपतिस्ता से बढकर कोई नहीं। पर जो भी स्वर्गराज्य में छोटा है वह योहन से भी बडा है। प्रभु को वचन कहता है - ईष्वर घमंडियों का विरोध करता, किंतु विनम्र लोगों पर दया करता है। आप शक्तिशाली ईश्वर  के सामने विनम्र बने रहें, जिससे वह आप को उपयुक्त समय में ऊपर उठाए। आप अपनी सारी चिंताए उस पर छोड दो, क्यांकि वह आपकी सुधि लेता है’’ (1 पेत्रुस 5ः5-7)। हम प्रभु के सामने झूकना सिखें। क्योंकि उनके बिना हमारा जीवन कुछ भी नहीं। आज का वचन उन बच्चों के लिए उन नव जवानों के लिए एक चुनौति भरा है जिन्हें प्रार्थना करना, भक्ति करना, चर्च जाना आदि गुजरे जामाने की चिजें लगती है। समय रहते ये पहचान लिजीए कि हम प्रभु पर उन की दया पर ही निर्भर है अन्यथा हमारा कोई भी अस्तीत्व नहीं है।
खुश  रहने का सर्वोत्तम तरीका है प्रभु पर आश्रित होना। आईये हम हामारी सारी चिंताएं प्रभु पर छोड दें वह हमारी सुधि लेता है। आमेन।

Monday, 2 December 2019

आगमन का दूसरा रविवार 8 दिसंबर 2019


इसायाह 11:1-10
रोमियो 15:1-9
मत्ती 3:1- 12

आज आगमन का दूसरा रविवार है। जैसा कि हम आगमन काल में प्रभु येसु के प्रथम आगमन की यादगारी में , उनके देहधारण का पर्व मनाने की तैयारी करते हैं। मसीहा के आगमन के बारे में बताते हुए नबी इसायस आज के पहले पाठ मे हमसे कहते हैं कि ‘‘वे न तो जैसे-तैसे न्याय करेगा, और न सुनी-सुनाई के अनुसार निर्णय देगा। वह न्यायपूर्वक दीन-दुःखियों के मामलों पर विचार करेगा और निष्पक्ष हो कर देष के दरिद्रों को न्याय दिलायेगा।’’(इसायाह 11:3-4)। जि, हाँ प्रभु हमारा न्याय करने आ रहे हैं वे हमारे बाहरी रंग रूप का नहीं बल्कि हमारे अंतःकरण का न्याय करेंगे। आज के सुसमाचार में हमने सुना योहन बपतिस्ता कहते हैं - ‘‘वे हाथ में सूप ले चुके हैं, जिससे वे अपना खलिहान ओसा कर साफ करें। वे अपना गेहूँ बखार में जमा करेंगे। वे भूसी को न बुझने वाली आग में जला देंगे।’’
यहाँ प्रभु अपनी प्रजा की तुलना गेहूँ की फसल से करते हैं। प्रभु अपने द्वितीय आगमन के दिन गेंहू को भूसी से अलग कर देंगे। प्रभु कुकर्मियों को धर्मियों से अलग कर देंगे। धर्मी रूपी गेहूँ स्वर्ग के बखारों में जमा किये जायेंगे व पापी रूपी भूसी को कभी न बुझने वाली आग में फेंक दिया जायेगा।
नबी इसायस आज के पहले पाठ में कहते हैं की जब मसीहा का आगमन होगा तो उनके  राज्य में भेडिया मेमने के साथ रहेगा, चीता बकरी की बगल में लेट जायेगा, बछडा तथा सिंह-शावक साथ-साथ चरेंगे और बालक उन्हें हांँक कर ले चलेगा। गाय और रीछ में मेल-मिलाप होगा और उनके बच्चे साथ-साथ रहेंगे। दुधमुँहा बच्चा नाग के बिल के पास खेलता रहेगा और बालक करैत की बाँबी में हाथ डालेगा।
इस भविष्यवाणी का क्या अर्थ है? क्या शेर जो कि एक माँसाहारी जीव है घास खाना प्रारम्भ कर देगा? क्या भेडिया सच में मेमने के साथ चरने लगेगा? मैं नहीं सोचता। यहाँ नबी दो प्रकार के जन्तुओं के बारे में बतलाते हैं। एक तो वे हैं जो भोले-भाले व निष्कपट हैं जैसे - मेमना, बकरी, बछडा, बालक, दुधमुँहा बच्चा। और दूसरे वे हैं जो कि हिंसक व जहर उगलने वाले हैं जैसे- भेडिया, चीता, सिंह, रीछ, और नाग। ये जानवर दो प्रकार के लोगों की ओर संकेत करते हैं अर्थात एक वे लोग जो मन के निर्मल, भोले-भाले व निष्कपट हैं तथा दूसरे वे लोग जो विभिन्न प्रकार की हिंसा, आंतक, दुष्मनी के ज़हर एवं वेमनस्य से भरे हुए हैं। नबी कहते हैं कि प्रभु के राज्य में ये सब लोग एक साथ प्रेम-भाव व मेलजोल से रहेंगे। और जब प्रभु येसु ने अपने राज्य की स्थापना की तो ऐसा ही हुआ। साउल जो कलीसिया का कट्टर विरोधी था जो प्रभु के भक्तों के विरूद्ध जहर उगलता था, जिसका नाम सुनते है ही लोग काँपने लगते थे, जब उसने प्रभु को पहचाना, जब उसने प्रभु के राज्य को अपने जीवन में स्वीकार किया तो वे पूर्ण रूप से बदल गये। उन्होंने न केवल हिंसा के मार्ग को छोडा लेकिन वे उसी प्रभु के जिसके वे विरोधी थे एक उत्साही प्रचारक बन जाते हैं। वही लोग जो उनसे डरते थे अब उनके पास आकर प्रभु की वाणी सुनने लगते। यही है भेडिये का मेमने के साथ रहने का अर्थ। प्यारे भाईयों और बहनों, प्रभु येसु हमसे कहते हैं कि मैं ने तुम्हें भेडियों के बीच भेडों की तरह भेजा है। आज कई प्रकार के खुंखार भेडिये एवं प्रभु के लोगों के विरूद्ध हिंसा का जहर उगलने वाले कई साँप विद्यमान हैं। वचन कहता है हमें इनके साथ मेल-मिलाप व भाईचारे के साथ रहना है। जिस प्रेम, शांति व एकता के राज्य को प्रभु येसु इस दुनिया में लेकर आये थे उसे यहाँ हमारे बीच साकार करने की जिम्मेदारी हम सब की है। हमें अंधकारमय इस जग में प्रभु की ज्योति जलाना है। हमें पृथ्वी के नमक और संसार की ज्योति बनना है। हमें हिंसा, द्वेष एवं दुष्मनी घावों को प्रेम, क्षमा एवं मित्रता से भरना है।
इस संदर्भ में मैं हमारे ही धर्मप्रान्त के उदयनगर पल्ली की वह घटना याद करता हूँ जहाँ  सि. रानी मरिया को कुछ असामाजिक तत्वों ने मारवा दिया। लेकिन उनकी हत्या की सुपारी लेने वाले समंदरसिंह के जीवन में एक अमुलभूत परिवर्तन आया। उसके जिस खूनी हाथों से उसने रानी मरिया को बडी क्रूरतापूर्वक मौत की निंद सुला दिया था, उसी हाथों में रानी मरिया की बहन ने राखी बांध कर उसे पूर्ण रूप से क्षमा करते हुए अपना भाई बना लिया। अब वही हत्यारा सिस्टर के परिवार का एक सदस्य बन गया है। वह केरल उनके माता-पिता से मिलने जाता है, सिस्टर लोगों के उदयनगर स्थित कॉन्वेंट में उनके साथ भोजन करता है। मैं सोचता हूँ नबी इसायस इसी प्रकार के एक दिन की भविष्यवाणी करते हैं। हर एक ख्रीस्तीय भाई बहन इसी लिए बुलाए गये हैं। हमें पापमय भटकती हुई मानवता को प्रभु के पास लाना है, सबों को प्रभु का मार्ग दिखलाना है। लेकिन दूसरों को सुधारने से पहले हमें अपने भीतर झांक कर देखना चाहिए, कहीं न कहीं हमारे अंदर भी एक खुंखार भेडिया, एक हिंसक शेर, अथवा एक जहरीला सांप छिपा हुआ है। हम स्वयं अपने भाई-बहनों को नीचा दिखाने, दूसरों की इज्जत धूल में मिलाने, दूसरों की उन्नती पर ईर्ष्या से जलने एवं अपने स्वार्थ की पूर्ति के लिए कई प्रकार के गलत कदम उठाने का काम करते हैं। सबसे पहले हमें सुधरने की जरूरत है। हम सब अपने पापों पर पश्चाताप करें क्योंकि स्वर्ग का राज्य निकट आ गया है। प्रभु हमारे पास जल्द ही आने वाले हैं। इसिलिए संत योहन बपतिस्ता कहते हैं - प्रभु का मार्ग तैयार करो, उसके पथ सीधे कर दो। आईये हम हमारे अंदर से सब प्रकार की बुराइयों को दूर करें,  हमारे बात, विचार, व्यहार, एवं कार्य जो प्रभु को हमारे जीवन में आने में बाधक हैं, हमारे जीवन से दूर कर दें। और उनकी जगह हम भलाई के कुछ काम करें, किसी की मदद करें, किसी के जीवन में खुशियाँ लाएं। आमेन।
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प्रवचन - २ 
आगमन का दूसरा सप्ताह हमें ख्वाब देखने का आह्वान करता है। बडे़ सपने देखने को कहता है। आज प्रभु अपने वचनों के द्वारा हमें अपने मन व दिलों को संकीर्णता से उभरकर विस्तृत व विषाल मन व हृदय वाले बनने का आह्वान करते हैं। हमारे दैनिक जीवन की छोटी-बडी समस्याओं, चुनौतियों एवं बुराईयाँ बाहर निकलकर ईष्वर के बडे न्यौते को स्वीकार करते हुए, उनके एक बडे वादे को अपने जीवन में समाहित करने के लिए प्रभु आज हमें बुलाते हैं। प्रभु येसु मसीह में ईष्वर हमें एक सपनों का संसार देने वाले हैं। नबी इसायाह हमें अपने दिमाग में कल्पना करने को कहते हैं एक ऐसा राजा की जो ईष्वर के आत्मा के प्रज्ञा, बुद्धि, सुमति, धैर्य, ज्ञान, तथा ईष्वर-भक्ति से भरपूर होगा। और उसका राज्य पूर्ण शाँति व बेखौफ सहअस्तित्व का राज्य होगा जहाँ प्रकृति में पूर्ण मेल-मिलाप व एकता होगी। और उसके राज्य में सब प्रकार की संपन्नता और भरपूरी होगी। पुराने विधान के सब नबियों ने इस राज्य की भविष्वाणी अपने-अपने शब्दों में की है। पवित्र बाइबल के अंतिम नबी योहन बपतिस्ता  आज के सुसमाचार में इस राजा के तत्कालिक आगमन और उसके राज्य के बारे में बाताते हैं और अपने प्रवचन में वे जोडते हैं कि वह तुम्हें जल व पवित्र आत्मा से बपतिस्मा देंगे। तो इस नये राज्य में हम सब प्रज्ञा, बुद्धि, सुमति, धैर्य, ज्ञान, तथा ईष्वर-भक्ति से भर जायेंगे। पर इसके लिए योहन बपतिस्ता हम से कहते हैं कि हमें उस राज्य में शामिल होने के लिए अपने आप को तैयार करना होगा। अपने पश्चाताप द्वारा अपने मन व हृदय में उस राजा के लिए जगह तैयार करने की ज़रूरत है। और उसके लिए हमें अपने दिलों को बदलना होगा, पश्चाताप करना होगा। योहन बपतिस्ता हमें उस राज्य का रसास्वादन करने के लिए, उस राज्य के आनन्द के सहभागी बनने के लिए अपने पुराने मार्गां, पुराने चाल-चलन को बदलने के लिए आह्वान करते हैं। उनका आह्वान है - पश्चाताप करो। स्वर्ग का राज्य निकट आ गया है। प्रभु का मार्ग तैयार करो, उसके पथ सीधे कर दो। 
पश्चाताप का सच्चा अर्थ क्या है? पश्चाताप का सच्चा अर्थ है अपने जीवन के उन मार्गांे को छोडना जो हमें अपने प्रभु से दूर ले जा रहे थे और उस उस राह को चुनना जो हमें ईष्वर के करीब लाती है। पश्चाताप का सच्चा अर्थ है जिन पापमय राहों को हम छोडकर आये हैं उन पर फिर कदम न रखना। पश्चाताप का सच्चा अर्थ है बुराई की राहों की भयानकता को जानकर, उन पर चलने से होने वाले हमेषा के विनाष को पहचानकर उन्हें हमेषा के लिए छोडकर ऐसी राहों को अपनाना जो अनंत जीवन देती है। 
आईये आज हम नबी इसायाह जिस ईष्वर के राज्य की भविष्यवाणी कर रहे हैं उस राज्य की प्रजा बनने के लिए अपने को तैयार करें। इस राज्य की प्रजा बनने के लिए हमें अपने अंदर छिपे भेडिये, चीते, रीछ, सिंह, नाग व करैत जैसे हिंसक व सब प्रकार की बुराई और नुकसान पहुंचाने वाली मानसिकता व व्यवहार को त्यागना होगा। जैसा कि योहन बपपिस्ता ने कहा है प्रभु के पथ सीधे कर दो। आईये हम हमारे जीवन के सभी टेडे रास्ते सीधे करें और प्रेम, शांति और आनन्द के राजा येसु मसीह को अपने जीवन में जन्म लेने दें। ताकि वो हमें अपने राज्य की प्रजा बना सकें। आमेन। 



Wednesday, 27 November 2019

आगमन का पहला इतवार 1 दिसम्बर 2019 Year A

इसायाह 2:1-5
रोमियों 13:11-14

मत्ती 24:37-44 

आज के पहले पाठ में हमने नबी इसायाह को यह कहते सुना - ‘‘आओ हम यहोवा के पर्वत पर चढ जायें, याकूब के ईश्वर  के मंदिर चलें।" नबी ऐसा क्यों कहते है? हमें पर्वत पर क्यों चढना है? क्योंकि वही हमारे जीवन का अखिरी मकसद है। वही हमारे जीवन का एकमात्र लक्ष्य है। संत योहन के सुसमाचार 17:14 में प्रभु येसु पिता से हमारे बारे में कहते हैं कि हम इस संसार के नहीं है। और आगे वे कहते हैं कि ‘‘ पिता! जिस तरह तू मुझ में है और मैं तुझ में, उसी तरह वे भी हम में एक हो जायें, पिता! मैं चाहता हूँ कि तूने जिन्हें मुझे सौंपा है, वे जहाँ मैं हूँ, मेरे साथ रहें जिससे वे मेरी महिमा देख सकें, जिसे तूने मुझे प्रदान किया है।’’ यही कारण है कि नबी हमें प्रभु के निवास की ओर जाने के लिए आमंत्रण देते हैं । 



आज के दूसरे पाठ के वचन बहुत ही महत्वपूर्ण एवं प्रभावी है क्योंकि इन्हीं वचनों के द्वारा संत अगस्तीन का मन परिवर्तन हुआ था। वे एक बगीचे में टहल रहे थे। वे काफी निराश  व दुःखी थे क्योंकि एक पवित्र जीवन जीने के  उनके  सारे प्रयास विफल हो चुके थे। वो अपने  दिल व मन को टटोलते रहे। कब तक? आखिर कब तक? कल? कल? आज, अभी क्यों नहीं? वो मनन चिंतन करते हुवे, स्वयं से लाखों सवाल पुछते हुवे रोने लगे। तब उन्हें एक आवाज यह कहते हुए सुनाई पडी - ‘‘लो और पढो‘‘ ‘‘लो और पढो’’ ये आवाज एक बच्चे की सी थी। उन्होंने रोमियों के नाम संत पौलुस का पत्र निकाला और ठीक आज हमने जो दूसरा पाठ सुना वही पढा और ईश वचन ने उसके दिल का स्पर्श  किया। वचन ने उनके जीवन को बदल दिया

आज का सुसमाचार हमें जागते रहने को कहता है। इसका मतलब यह है कि हमें एक जागृत  अंतरआत्मा के साथ जिना है। हमें हमारी अंतरआत्मा के साथ छेडखानी नहीं करनी चाहिए न ही हमें हमारी अंतर आत्मा को सोने अथवा मरने देना है। हमें भले और बूरे में स्पष्ट अंतर मालुम होना चाहिए। हमें पाप को पाप और अच्छाई को अच्छाई के रूप में देखना आना चाहिए। हमें हमारे अंदर, हमारे जीवन में बुराईयों को कम करते हुए भलाई को बढावा देना चाहिए। जागृत रहने का मतलब यह भी होता है कि हम हमारे आस-पास, होने वाली घटनाओं से, जीवन की सच्चाई से आंँखें न मूंदे। लोगों के  दुःख-दर्दों से उनकी पीडाओं से हम नजरें न फेंरे बल्कि उनके दुःखों में भागीदार होकर उनके दुःखोें को, उनके जीवन के बोझ को हल्का करने की कोशिश  करें।

 संत पौलुस लिखते हैं - ‘‘नींद से जागने की घडी आ गयी है। रात प्रायः बीत चुकी है, दिन निकलने को है, इसलिए हम, अंधकार के कार्यों को त्याग कर, ज्योति के अस्त्र-शस्त्र धारण कर लें। हम दिन के योग्य आचरण करें। ?’’ किसी भी प्रकार का बूरा काम अंधकार का काम है। बपतिस्मा के समय हमें, अथवा हमारे माता-पिता के हाथों में एक जलती हुई मोमबत्ती दी गई थी। और पुरोहित ने हमसे कहा था कि आप ख्रीस्त की ज्योति से ज्योर्तिमय हो गये है फलतः ज्योति के पुत्र -पुत्रियों की भांँति निरंतर आचरण करिये, अपने विश्वस  का दीपक जलाए रखिए और जब प्रभु आवें, तो सब संतो के  साथ, स्वर्गिक भवन में उसका स्वागत करें। कहाँ गया वो करार जिसे हमने प्रभु के सामने किया था? कहाँ गई वो प्रतिज्ञा? हम अपने आप से पुछें - क्या मैं प्रभु ख्रीस्त की उस ज्योति को प्रज्वलित रख पाया हूँ? क्या उस ज्योति से मैं, ओरों के जीवन में प्रकाश कर पाया हूँ? या फिर मेरा जीवन अंधकार के संसार में कहीं खो सा गया है, मैं अंधकार के कार्यों में इतना मगन हो गया हूँ कि मुझे उस ज्योति का ख्याल ही नहीं रहा? यदि हमें सचमुच में यह लगता है कि अंधकार का, विभिन्न प्रकार की बुराईयों का हमारे जीवन में कब्ज़ा  है, यदि हमें लगता है कि हमने हमारे जीवन की ज्योति प्रभु येसु से काफी दूरियाँ बना ली है,तो आगमन का  यह समय हमारे लिए सबसे उपयुक्त समय है, प्रभु  के पास लौट आने के लिए। प्रभु आज हमसे कह रहे हैं पहले की अपेक्षा, जिस दिन हमने बपतिस्मा ग्रहण किया था, जिस दिन हमने विश्वास  ग्रहण किया था उसकी तुलना में आज मुक्ति हमारे अधिक निकट है (रोमियो13ः11)। प्रभु कहते हैं जो हुआ सो हुआ। अपने बीते दिनों को लेकर अपने आप को मत कोसो। जो बित गया सो बित गया। तुम्हारे जीवन की काली रात अब बीत चुकी है, नवजीवन का सूरज अब निकलने को है। ‘‘इसलिए अन्धकार के कार्यों को त्याग कर, ज्योति के अस्त्र-सस्त्र धारण कर लो।’’ प्रकाश ना ग्रन्थ ३:२  में प्रभु हमसे कहते हैं - ‘‘जागो, तुम में जो जीवन शेष है और बुझने-बुझने को है, उस में प्राण डालो।’’हम  हमारे विश्वाश  व सतकर्मों की जो ज्योति बुझने-बुझने को हो आईये उसमें एक नई जान भर दें। प्रभु कहते हैं - ‘‘तुमने शिक्षा  स्वीकार की और सुनी, उसे याद रखो, उसका पालन करो और पश्चताप  करो। यदि तुम नहीं जागोगे, तो मैं चोर की तरह आऊँगा और तुम्हें मालूम नहीं हैं कि मैं किस घडी आऊँगा’’ (प्रकाशना 3:3)। 

ख्रीस्त में प्यारे भाईयों और बहनों आगमन के इस पवित्र काल में प्रभु हमारे जीवन में आकर हमें नया बनाना चाहते हैं। वे कहते हैं - ‘‘मैं तुम्हें एक नया हृदय प्रदान करूँगा और तुम में एक नया आत्मा रख दूंगा। मैं तुम्हारे शरीर से पत्थर का हृदय निकाल कर तुम लोगों को रक्त-मांस का हृदय प्रदान करूंँगा’’ (एजेकिएल36ः26)। प्रभु कहते हैं - ‘‘तुम अपने पूवर्जों के समान मत बने रहो। प्राचीनकाल में उन्होंने नबियों की चेतावनी सुनी थी, किंतु उन्होंने न सुना, न कुछ ध्यान दिया था’’ (जकर्या 1:4)। 

 आईये हम उनके समान न बनें। इस पवित्र समय का हम पूरा आध्यात्मिक लाभ उठावें। हम अपने पापों पर पश्चाताप करते हुए, अपनी गलतियों के लिए प्रभु से क्षमा मांगते हुए, प्रभु के पवित्र पर्वत की ओर आगे बढें। आईये उस मुक्तिदाता मसीहा केदर्शन  करने के लिए अपने आप को तैयार करें, जो आने वाला है। नबी इसायाह आज के पहले पाठ में कहते हैं कि वह मसीहा ‘‘राष्ट्रों पर शासन करेगा और देशों  के झगडे़ मिटायेगा। लोग अपनी तलवारों को पीट-पीटकर फाल और भाले को हंँसिया बना लेंगे। राष्ट्र एक दूसरे पर तलवार नहीं चलायेंगे और युद्ध की विद्या समाप्त हो जायेगी। याकूब के वंश ! हम प्रभु की ज्योति में चलते रहेें।’’ 
आज एक राष्ट्र दूसरे राष्ट्र पर हावी हो रहा है; कहीं आतंकियों के द्वारा खून खराब तो कहीं धर्म जाती को लेकर झगडे लड़ाई प्रभु ने जिस  प्रेम व शांति का राज्य के विषय इस कहा है वह  स्थापित होगा जब हम उस मसीहा को हमारे जीवन में बुलायेंगे, जब हम हमारा यह जीवन उनके वचनों के मुताबित उनकी इच्छा के अनुसार बितायेंगे। प्रभु हमारे द्वारा इस जग में प्रेम व शांति का राज्य स्थापित करेंगे। हम उनकी प्रजा इसकेलिए अपने आप को प्रभु को सौंप दें। उन्हें हमारे जीवन का उपयोग करने दें। उन्हें हमारे जीवन के द्वारा एक नयी सृष्टि, एक नये संसार का निर्माण करने दें। जहांँ न युद्ध होगा न लडाई, न ईर्ष्या न द्वेष, न लालच और न भ्रष्टाचार। आईये हम सब मिलकर प्रभु के उस राज्य के आगमन की तैयारी करें। आमेन।

फादर प्रीतम वसुनिया 
इंदौर धर्मप्रांत 

Have a very fruitful Advent Season. 

Wednesday, 20 November 2019

ख्रीस्त राजा का पर्व : हिंदी प्रवचन , 23 Nov, 2019



आज हम राजाधिराज प्रभु येसु का माहोत्सव मना रहे हैं आज के दूसरे पाठ में हमने सुना कि प्रभु येसु “अदृष्य ईश्वर के प्रतिरूप तथा समस्त सृष्टी के पहलौटे हैं, क्योंकि उन्हीं के द्वारा सब कुछ की सृष्टी हुई है... वह समस्त सृष्टी के पहले से विद्यमान है और समस्त सृष्टी उन में ही टीकी हुई है।...इसलिए वह सभी बातों में सर्वश्रेठ है। ईश्वर ने चाहा कि उनमें सब प्रकार की परिपूर्णता है” (कोलो 1:15-18)। इसलिए प्रभु येसु एक सर्वश्रेष्ठ व सर्वोपरी राजा है। पर वे कहते हैं – “मेरा राज्य इस संसार का नहीं है। यदि मेरा राज्य इस संसार का होता तो मेरे अनुयायी लडते और मैं यहूदियों के हवाले नहीं किया जाता। परन्तु मेरा राज्य यहाँ का नहीं है’’ (योहन 18:36)। यह साफ तौर पर ज़ाहिर है कि येसु का राजत्व इस संसार के लिए नहीं है। वे दुनिया के सब राजाओं से भिन्न हैं। उनका राज-मुकुट काँटों का था; जो राजकीय वस्त्र उन्हें पहनाया गया था, वो मज़ाक व बेइज्जती का प्रतीक लाल चौगा था; उनका राजदंड था सरकंडा जिसे दुशमनों ने उनके ही सिर मारा था। ख्रीस्त ने, न तो दुनिया के जाने-माने राजाओं की श्रेणी में खुद को गिने जाने का दावा किया और न ही किसी राजा की बराबरी करना चाहा। उन्होंने हर प्रकार के सांसारिक वैभव व शानो-शौकत को ठुकरा दिया। उनका जन्म एक छोटी सी गौशाला में हुआ क्योंकि उनके लिए सराय में जगह नहीं थी (लुक 2:7), उनके सार्वजनिक जीवन की शुरूआत के पहले जब शैतान उन्हें ‘‘अत्यंत ऊँचे पहाड पर ले गया और संसार के सभी राज्य और वैभव दिखला कर बोला, ‘यदि आप दंडवत कर मेरी आराधना करें, तो मैं आप को यह सब दे दूँगा।’ येसु ने उत्तर दिया, ‘‘हट जा शैतान क्योँकि लिखा है - अपने प्रभु ईश्वर की आराधना करो और केवल उसी की सेवा करो’’ (मत्ती 4:8-10)। आज के सुसमाचार में हमने सुना कि जब सैनिकों ने उनकी हंसी उडाते हुए उनसे कहा है - ‘‘यदि तू यहूदियों का राजा है तो अपने को बचा।’’ पर प्रभु ने वहां पर भी अपने निजी महिमा दिखाने के लिए अपनी शक्ति का प्रदर्शन नहीं किया।

जब हमारे प्रभु ने पाँच रोटियों और दो मछलियों से पाँच हज़ार लोगों को भोजन कराया, तो लोग उन्हें राजा बनाना चाहते थे। लेकिन प्रभु येसु उनके बीच से निकलकर वहां से चले जाते हैं।क्योंकि वे उन्हें सांसारिक राजा बनाना चाहते थे (योहन 6:15)। उनका राज्य इस दुनिया के राजायों जैसा धन-दौलत, शक्ति, सेना, साम्राज्य, ज़मीन-जायदाद वाला राज्य नहीं है। वे कहते हैं मेरा राज्य इस दुनिया का नहीं है (योहन 18:36)। जिस राज्य की प्रभु येसु बात कर रहे थे उसे न तो पिलातुस, न यहूदी और दुनिया की कोई भी ताकत मिटा सकती है। उनका राज्य विश्वासियों के दिलों में स्थापित किया गया है। सम्राटों पर सम्राट पैदा हुए व प्रभु येसु को लोगों के दिलों के सिहासन से हटाने की नाकामयाब कोशिश की; कई प्रकार की भ्रांत व भटकाने वाली शिक्षायें व सिद्धांत आये, व राजनैतिक शक्तियों व असामाजिक ताकतों ने प्रभु येसु को लोगों के दिलों से दूर करने की लाखों कोशिश की व आज तक कोशिश की जा रही हैं पर सब व्यर्थ है। पिछले कुछ सालों से इस्लामिक स्टेट के आतंकियों ने कई मासूम व निर्दोष ईसाईयों का संहार किया; हमारे देश में ओडिशा के कंधमाल जिले में हजारों ईसाईयों का खून बहाया गया, परन्तु कोई भी लोगों के दिलों से येसु को अलग नहीं कर सके। और कभी कर भी नहीं पायेंगे। क्योंकि प्रभु येसु वह राजा है जिनके पास सर्वोच्च शक्ति है। वे सारे ब्रह्माण्ड के राजा है। संत मत्ती के सुसमाचार 28:18 में प्रभु ने कहा है - ‘‘मुझे स्वर्ग में और पृथ्वी पर पूरा अधिकार मिला है।’’

प्रभु एक ऐसे राज्य के राजा हैं जो इस संसार का नहीं है। उनका राज्य स्वर्ग का राज्य है। ये राज्य हम मनुष्यों की आसान पहुँच से दूर था। इसलिए हमारे राजा स्वयं इसे हमारे करीब लेकर आये हैं। प्रभु येसु अपने  सुसमचार के प्रचार का प्रारंभ ये बोल कर करते हैं -  ''समय पूरा हो चुका है। ईश्वर का राज्य  आ गया है’ (मारकुस 1:15)। प्रभु येसु के इस धरा पर आगमन के साथ ईश्वर का राज्य हमारे निकट, हमारे बीच आ गया। और इसमें प्रवेश करने के लिए वचन कहता है - ‘‘पश्चाताप करो और सुसमाचार में विश्वास करो’’ (मारकुस 1:15)। यदि हमें ख्रीस्त राजा की प्रजा बनना है, शैतान व उसके पाप व अंधकार के राज्य तथा उसकी शक्तियों से छुटकरा पाना है तो हमें हमारे गुनाहों पर पश्चताप करना होगा व सुसमाचार में विश्वास करना होगा, स्वयं को ईश्वर के आत्मा व उसके सामर्थ्य के सम्मुख समर्पित करना होगा। ईश्वर के राज्य की स्थापना करने का आधार है इन्सान का ईश्वर से मेल-मिलाप कराना। उस सदियों पुराने रिश्ते को पुनः जोडना जिसे हमारे आदि माता-पिता के पाप के द्वारा तोड दिया गया था। इस मेल-मिलाप का जिम्मा हमारे प्रभु येसु, हमारे राजा ने अपने ऊपर ले लिया है। उन्होंने अपने दुःखभोग, मरण एवं पुनरूत्थान द्वारा पिता से हमारा मेल कराया है। प्रभु येसु हमारे लिए क्रूस पर इसलिए मरे कि शैतान के राज्य का अंत हो जाये और प्रभु हम सब पर, हमारे दिलों पर हमेशा शासन करते रहें। बपतिस्मा में प्रभु येसु को धारण करके हम ज्योति की संतान बन गये हैं संत पौलुस हमसे कहते हैं ‘‘भाईयों आप लोग अंधकार में नहीं हैं ... आप सब ज्योति की संतान है,...हम रात या अंधकार के नहीं हैं’’ (1 थेस. 5:4)। अतः यदि हम ख्रीस्त राजा की प्रजा बन गये हैं, तो हम सब का ये फर्ज़ बनता है, कि हम उसके राज्य को फैलायें।
 यह पर्व ‘ख्रीस्त राजा की जय!‘ ‘प्रभु हमारा राजा है!‘ आदि नारे लगाने व गीत गाने भर तक सीमित नहीं रहना चाहिए। प्रभु आज हमें हमारी आध्यात्मिक निंद से जगाना चाहते हैं। प्रभु हमें अंधकार की शक्तियों से लडने को कहते हैं। प्रभु कहते हैं - ‘‘आप संयम रखें और जागते रहें। आपका शत्रु, शैतान, दहाडते हुवे सिंह की तरह विचरता है और ढूँढता रहता है कि किसे फाड खाये। आप विश्वास में दृढ़ रहकर उसका सामना करें’’ (1 पेत्रुस 5:8)। क्योंकि हम देखते हैं कि आज शैतान विभिन्न रूपों में अपने राज्य का विस्तार करते जा रहा है। किसी भी दिन का अखबार उठा कर देख लिजिए 70 से 80 प्रतिशत खबरें शैतान और उसके राज्य से ताल्लुक रखती हैं - कहीं लडाई तो कहीं दंगे, कहीं बलात्कार तो कहीं हत्या, कहीं आतंकी हमला तो कहीं नरसंहार, कहीं चोरी तो कहीं धर्म के नाम पर खून-खराबा, कहीं ठगबाजी तो कहीं राजनैतिक सत्ता के लिए बेईमानी, धोखाधडी व झूठ फरेब। शैतान धीरे-धीरे अपने वर्चस्व, व अपने राज्य का विस्तार करते जा रहा है। उसके लुभावने प्रलोभनों से वह अधिक से अधिक लोगों को अपनी ओर खींच रहा है। इसलिए प्रभु ने हमें अपने राज्य की एक निष्क्रिय प्रजा बनने के लिए नहीं बुलाया है, परन्तु हम सब को एक सक्रिय सैनिक बनकर शैतान के विरूद्ध लडने के लिए बुलाया है। प्रभु का वचन कहता है - ‘‘आप लोग प्रभु से और उसके अपार सामर्थ्य से बल ग्रहण करें, आप ईश्वर के अस्त्र-सस्त्र धारण करें, जिससे आप शैतान की धूर्तता का सामना करने में समर्थ हों . . . और अन्त तक अपना कर्तव्य पूरा कर विजय प्राप्त करें’’ (एफे. 6:10-13) शैतान का सामना करने उसके राज्य पर विजय पाने के लिए हमें लाठी, डंडे, तलवार, बंदुक, व गोला-बारूद आदि की ज़रूरत नहीं। हमें ईश्वर के अस्त्र-सस्त्रों को धारण करने की ज़रूरत है। और ये अस्त्र-सस्त्र क्या हैं? संत पौलुस हमें बतलाते हैं ईश्वर के अस्त्र-सस्त्र हैं - सत्य का कमरबंद, धार्मिकता का कवच, शान्ति व सुसमाचार के जूते, विश्वास की ढाल, मुक्ति का टोप व आत्मा की तलवार अर्थात ईश वचन।
हमारे दिलों के राजा आज हमारे दिलों के द्वार पर आकर खडे होकर कह रहे हैं - ‘‘मैं द्वार के सामने खडा हो कर खटखटातो हूँ। यदि कोई मेरी वाणी सुन कर द्वार खोलेगा, तो मैं उसके यहाँ आ कर उसके साथ भोजन करूंगा और वह मेरे साथ’’ (प्रकाशना 3:20)। प्रभु हमारे दिलों में जबरदस्ती करके नहीं आते, जब तक हम हमारे दिलों को उनके लिए नहीं खोलेंगे वे अंदर नहीं आयेंगे। हमारे दिलों का द्वार खोलने के लिए हमें, सबसे पहले सारी बूरी बातों, बूरे विचारों, व बूरी भावनाओं को हमारे दिलों से दूर करना होगा और उनकी जगह दुसरों के प्रति प्रेम, दया, करूणा, क्षमा व भाईचारी की भावनाओं से हमारे दिलों को सुसज्जित करना होगा। तभी हमारे दिलों के राजा प्रभु येसु ख्रीस्त हमारे भीतर आकर हमारे हृदयों के सिंहासन पर विराजमान होंगे और तब हम सच्चे अर्थों में कह पायेंगे कि ‘‘वह प्रभुओं का प्रभु और राजाओं का राजा है’’ (प्रकाशना 17:14)। आमेन।

Tuesday, 12 November 2019

वर्ष का 33 वां रविवार, 17 नवंबर 2019


क्या  दुनिया का अंत आप में खौफ पैदा करता है?

आज के तीनों पाठों में हम अंत के बारे में सुनते हैं। पवित्र धर्मग्रंथ बाइबल हमें बताता है कि इस दुनिया का अंत होगा। और अंतिम दिनों में हमें विचलित करने वाली कई घटनायें घटेगी। हमारे सेमिनारी जीवन में एक पूरा साल सिर्फ अध्यात्मिकता के लिए होता है जिसमें हम सालभर बाइबल के गहन पठन, मनन चिंतन प्रार्थना व त्याग तपस्या में बिताते हैं। इसी के तहत, मैं अपने साथियों के साथ वर्ष 2011-12 में आद्यात्मिक साधना केंद्र रिसदा, बिलासपुर में था। और शायद आप लोगों को याद होगा कि उन दिनों 2012 में दुनिया के अंत होने की एक अपवाह फैली थी। जिसे टीवी, अखबार व सोशल मिडिया ने भी बहुत जोर-शोर से उछाला था। मैं वास्तव में इस प्रकार की बातों पर न तो विश्वास करता हूँ और न ही इन्हें अधिक महत्व देता हूँ। पर उस साल हुआ यूँ कि 31 दिसम्बर मध्य रात्री की मिस्सा के बाद बारिश शुरू हुई, इसलिए मिस्सा के तुरन्त बाद हम सब जाकर सो गये। हम जाकर सोये ही थे कि इतनी तेज हवा चलने लगी कि कई खडकी दरवाजे जोर-जोर से टकराने लगे। कुछ खिडिकियों के काँच भी टूट गये। बाहर झाँककर देखा तो बडे-बडे ओले गिर रहे थे। मुझे ये सब देखकर डर लगने लगा, मैं सोचने लगा कि कहीं जो भविष्यवाणी की गयी थी वो सही तो नहीं हो रही है। लेकिन थोडे समय बाद सब कुछ सामान्य हो गया। आज जब मैं उस समय के बारे में सोचता हूँ तो स्वयं से पूछता हूँ कि मुझे आखिर डर किस बात का लग रहा था। मरने का? मरना तो मुझे एक न एक दिन है ही। तो फिर डर किस बात का था? मुझे डर इस बात का था कि मैं तैयार नहीं था। मैं मरने के लिए तैयार नहीं था। मुझे यह भय सता रहा था कि अगर मैं उस घडी मर जाता तो क्या मैं स्वर्ग पहूँच पाता? क्या मैं प्रभु के न्याय-सिंहासन के सामने खडे होकर खुद को निर्दोष साबित करने की स्थिति में था? वो दिन भले ही मेरे जीवन का अंतिम दिन नहीं था पर मेरे अंतिम दिन के बारे में मुझे कुछ सिखा गया।
आज के पहले पाठ में प्रभु का वचन कहता है- ‘‘वह दिन उन्हें भस्म कर देगा। उनका न तो डंठल रह जायेगा और न जड ही।’’ वहीं प्रभु येसु आज के सुसमाचार में कहते हैं - ‘‘राष्ट के विरूद्ध,राष्ट उठ खडा होगा, ... भारी भूकम्प होंगे; जहाँ-तहाँ महामारी तथा अकाल पडेगा। आतंकित करने वाले दृष्य दिखाई देंगे।’’ कुल मिलाकर अंत में एक भयंकर तबाही का मंज़र होगा। अंत के बारे में ये सारी बातें एक सामन्य व्यक्ति को बहुत विचलित कर सकती हैं। परन्तु इन सब भयभीत करने वाली बातों के बाद प्रभु येसु हमें एक बहुत ही सांत्वना भरी बात कहते हैं – “फिर भी तुम्हारे सिर का बाल भी बाँका नहीं होगा। अपने धैर्य से तुम अपनी आत्माओं को बचा लोगे”। कितनी सुन्दर बात प्रभु ने हम से कही है कि इतनी सारी तबाही के बाद भी हमारे सिर का बाल भी बाँका नहीं होगा। आज के पहले पाठ में भी प्रभु ने कहा है – “किंतु तुम जो मुझ पर श्रद्धा रखते हो, तुम्हारे ऊपर धर्म के सूर्य का उदय होगा और उसकी किरणें तुम्हें स्वास्थ्य प्रदान करेंगी। तब तुम उसी प्रकार उछलोगे, जैसे बछडे बाडे से निकल कर उछलने कूदने लगते हैं।“
हम पर, जो उनपर श्रद्धा रखते हैं प्रभु यह कृपा करेंगे और हमें अपने सूर्य जैसे स्वर्गिक प्रकाश में ले जायेंगे। स्वर्गिक आनन्द की तुलना यहाँ बाडे से बाहर निकलने पर मस्ती में उछलते बछडे से की गई है। जिसने अपने बाडे से बाहर निकले बछडे या फिर रस्सी से छोडे गये बछडे को देखा है वही इस आज़दी के आनन्द को समझ सकता है।
परन्तु यह आनन्द हमें यूँ ही नहीं मिल जाने वाला है। संत पौलुस अपने जीवन के अंत में इस आनन्द व मुक्ति के मुकुट को पाने की अभिलाषा रखते हुए कहते हैं – “अब मेरे लिए धार्मिकता का वह मुकुट तैयार है, जिसे न्यायी विचारपति प्रभु मुझे उस दिन (न्याय के दिन) प्रदान करेंगे।”
परन्तु उस मुकुट को प्राप्त करने के लिए वे कहते हैं - उन्हें एक अच्छी लडाई लडनी पडी, उन्हें एक दौड पूरी करनी पडी, और वे पूर्ण रूप से उन सब बातों में वफादार व ईमानदार रहे जिसे प्रभु ने उन्हें सौंपा था। जी हाँ, प्यारे मित्रों, हमें भी हमारे इस दुनियाई जीवन में एक अच्छी लडाई लडनी है। अपने मित्रों व परिजनों से नहीं बल्कि शैतान और उसकी ताकतों से जैसा कि एफेसियों को लिखे पत्र 6:12 में संत पौलुस स्वयं कहते हैं – “हमें निरे मनुष्यों से नहीं, बल्कि अंधकारमय संसार के अधिपतियों, अधिकारियों तथा शासकों और आकाश के दुष्ट आत्माओं से संघर्ष करना पडता है।’’
और आगे संत पौलुस हमें बताते हैं कि हमें कैसे शैतान व उसकी सारी शक्तियों को कुचलना है। उसके लिए हमें आध्यात्मिक हत्यारों से अपने को लेस करना है। ये हत्यार हैं - सत्य, धार्मिकता, सुसमाचार का उत्साह, विश्वास, तथा ईश्वर का का वचन।
पहले पाठ में जिन्हें प्रभु पर श्रद्धा रखने वाले लोग कहा गया है वे वही लोग होंगे जो अपने जीवन संघर्ष में इन अध्यात्मिक हत्यारों का उपयोग करते हुए हमेशा, शैतान का सामना करते हैं और कभी भी उसकी अधीनता स्वीकार नहीं करते। वे सब अंत में महिमा और सम्मान का मुकुट प्राप्त करेंगे। ऐसे लोगों को अंत समय का डर नहीं सताता, वे तो संत पौलुस की तरह बडी उत्सुकता से उस महिमामय समय की राह देखते रहते हैं। हम अपने आप से पूछें, क्या हम संत पौलुस की तरह हमारे अंत का इंतजार करते हैं या फिर हमारे अंत की खबर हमें विचलित कर देती है? आमेन।

Sunday, 3 November 2019

वर्ष का बत्तीसवाँ इतवारचक्र स - #HindiSermon, @AtmakiTalwar.blogspot.com

मृत्यु के बाद पुनरुत्थान एक सच्चाई है 

मक्काबियों 7:1-2, 9-14;

थेसलनीकियों 2:16-3:5
लूकस 20:27-38 या 20:27, 34-38


आज के हमारे मनन चिंतन का विषय है ‘पुनरूत्थान संत लूकस अध्याय 20:27-40 से लिये गये आज के सुसमाचार में सदूकी लोग प्रभु येसु से पुनरूत्थान के विषय में सवाल पूछते हैं। क्योंकि सदूकी समूदाय के लोग पुनरूत्थान में विश्वास नहीं करते। सबसे पहले हम यह जानें कि पुनरूत्थान क्या हैपुनरूत्थानशायद मनुष्य के जीवन के सबसे जटील प्रश्न का जवाब है। मनुष्य के मरने के बाद उसका क्या होता हैइस सवाल का जवाब विभिन्न विचारकों और दार्शनिकों ने विभिन्न प्रकार से दिया है। अलग-अलग धर्मों में भी इसको लेकर अलग-अलग मान्यतायें हैं। इन सारी मान्यताओं को हम दो वर्गों में बॉंट सकते हैंपहलीमरने के बाद पुनर्जन्म लेने की मान्यता। वहीं दूसरी - मरने के बाद किसी दूसरे संसार में चले जाने की मान्यता - स्वर्ग और नरक आदि।

पवित्र बाइबल हमें स्पष्ट रूप से यह बतलाती है कि सारे इंसान जो मरे हैं सब अंतिम दिन जीवित किये जायेंगे। और उसके बाद उनका न्याय होगा। संत मत्ती 25:46 में लिखा है - विधर्मी अनन्त दंड भोगेंगे और धर्मी अनन्त जीवन में प्रवेश करेंगे। इंसान अपने जीवन में कई चीजों से डरता है। उसके सारे डर के पीछे एक बडा डर है जो सब प्रकार के डर की जड है और वो है मौत का डर। हमारे सारे डर कहीं  कहींकिसी  किसी  रूप में इसी डर से जुडे हुए हैं। मौत तो एक ऐसी सच्चाई है जिसका हर किसी को सामना करना ही है।

आज के पहले पाठ में जो कि 2 मक्काबियों 7 से लिया गया है हमने देखा किस प्रकार से सात विश्वासी भाई मौत से डरे बिना अपने विश्वास के खातीर खुशी-खुशी जान दे देते हैं। उनमें वो जज़्बा और हिम्मत कहॉं से आई? उनकी इस विरता के पीछे कौन सी ताकत थी? उनके ही शब्दों में हम इसे समझने की कोशिश करें तो पाते हैं कि पुनरूत्थान में उनका विश्वास ही उन्हें ये हौसला दे रहा था। एक भाई ने कहा - ‘‘तुम हमसे यह जीवन छीन सकते होकिंन्तु संसार का राजाजिसके नियमों के लिए हम मर रहे हैंहमें पुनर्जीवित कर अनन्त जीवन प्रदान करेगा।’’ दूसरा भाई कहता है - ‘‘हमें ईश्वर की प्रतिज्ञा पर भरोसा है कि वह हमें पुनर्जीवित कर देगा।’’ मौत से वही डरता है जो प्रभु पर भरोसा नहीं रखता। मौत से बचकर वही भागना चाहता है जिसके मन में यह भ्रांति है कि वह अपनी ताकतअपने धन संसाधनों से खुद को बचा सकता है।

प्रभु येसु ने कहा है - ‘‘जो अपना जीवन सुरक्षित रखने का प्रयत्न करेगावह उसे खो देगाऔर जो उसे खो देगावह उसे सुरक्षित रखेगा।’’ लूकस 17:33 और मत्ती 10:28 में प्रभु येसु कहते हैं - ‘‘उन से नहीं डरोजो शरीर को मार डालते हैंकिंतु आत्मा को नहीं मार सकतेबल्कि उससे डरोजो शरीर और आत्मा दोनों का नरक में सर्वनाश कर सकता है।’’

मैं यह मानता हूँ मौत के सामने नीडरताएक सच्चे विश्वासी की पहचान है और जो मौत से डरता है उसका विश्वास कच्चा और कमज़ोर है। मृत्यु इस दुनिया रूपी परदेश से हमारे स्वदेश स्वर्ग राज्य लौटने के बीच की कडी है। प्रभु येसु ने कहा है - योहन 12:24 में - ‘गेहूँ का दाना जब तक मिट्टी में गिरकर नहीं मर जातातक वह अकेला ही रहता हैपरन्तु यदि वह मर जाता हैतो बहुत फल देता है।’’

हमारे पूरे मानव मुक्ति के इतिहास  पूरे धर्मग्रंथ का उन्मुखीकरण पुनरूत्थान की वास्तविकता की ओर ही है। जैसा कि रोमियों 5:12 में वचन कहता है - ‘एक ही मनुष्य के द्वारा संसार में पाप का प्रवेश हुआ और पाप के द्वारा मृत्यु का।" इस प्रकार मृत्यु सब मनुष्यों में फैल गईक्योंकि सब पापी हैं। चूँकि हम सब पापी हैं और इस पाप की अवस्था वाले इस संसार में निवास करते हैंहमें उस पार याने परिपूर्ण पवित्रता वाले निवास की ओर जाने के लिए एक गेहॅूं के दाने की तरह मरना आवश्यक है। और यदि हम मरते हैंतो हमारा पुनरूत्थान होना भी आवश्यक हैजैसे कि गेंहूॅं का एक दाना मरकर एक नये पौधे के रूप में पुनरूर्त्थित होता है।

प्रभु येसु ने पुनरूत्थान में हमारे विश्वास को अपनी ही मृत्यु और पुनरूत्थान द्वारा पुख्ता कर दिया है। इसलिए संत पौलुस 1 कुरिंथियों 15:14 में कहते हैं - ‘‘यदि मसीह नहीं जी उठेतो हमारा धर्मप्रचार व्यर्थ है और आप लोगों का विश्वास भी व्यर्थ है।’’ मसीह हमारे लिए मरकर जी उठे इसलिए हमारा धर्मप्रचार सार्थक है और हमारा विश्वास फलवन्त। क्योंकि वचन कहता है - ‘‘जिसने प्रभु ईसा को पुनर्जीवित कियावही ईसा के साथ हम को भी पुनर्जीवित कर देगा।’’ 

अतः प्यारे मित्रों मृत्यु हमारे लिए दुःख और चिंता का विषय नहीं लेकिन आशा और आनन्द का विषय है। इसीलिए मृतकों की मिस्सा में पुरोहित इन शब्दों में प्रार्थना करते हैं - जब मृत्यु के विचार से हम दुःखी होते हैं - तो अमरता की प्रतीक्षा हमें दिलासा देती है। हे पितातेरे भक्तों के लिए मृत्यु-जीवन का विनाश नहींजीवन का विकास हैक्योंकि जब मृत्यु के द्वारा यहॉं का निवास समाप्त हो जायेगा तो हमें स्वर्ग का नित्य निवास प्राप्त होगा। क्योंकि वचन कहता है - ‘‘यदि हम उनके साथ मर गयेतो हम उनके साथ जीवन भी प्राप्त करेंगे।’’ तिमथी 2:11

आईये इसी विश्वास और भरोसे के साथहम एक सच्चे कैथोलिक विश्वास में जीयें और हमारे अपने पिता के घर की ओर नित यात्रा करते हुए आगे बढते रहेंजहॉं पुनरूत्थान के बाद हमारा येसु हमें अनन्त आनन्दमय निवास में ले जाने के लिए तत्पर खडा है। आमेन।


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Yours in Love of Christ,
Fr. Preetam Vasuniya
Diocese of Indore