Friday, 31 July 2020

18th Sunday in Ordinary Time (Cyle - A) Hindi Reflection by Fr. Preetam

इसायाह 55:1—3

रोमियों 8:35,37—39

मत्ती 14:13—21

प्रभु के जिंदा कलाम की सेवकाई में मैं आप सबों की खिदमत में फिर से हाज़िर हुआ हूॅं। आईये हम हमारे जीवित ईश्वर का धन्यवाद करें उनकी महिमा और आराधना करें। मैं उम्मीद करता हूॅं कि येसु के प्रेम और अनुग्रह में आप सब सलामत होंगे। खुदावन्द येसु का सामर्थ्यवान हाथ आप सबों को संभाले रखे।

प्यारे मित्रों आज हम प्रभु के जिन पवित्र वचनों पर मनन चिंतन करने जा रहे हैं उनको हमने लिया है इसायाह 55:1—3, रोमियों 8:35,37—39, और मत्ती 14:13—21 से।

पिछले सप्ताह हमने मनन चिंतन किया कि मनुष्यों के जीवन में बहुत सारी लालसायें, इच्छाएं और अभिलाषायें हैं। और हमने इस पर भी विचार किया कि दुनिया की कोई भी चीजें हमें पूर्ण संतुष्टि नहीं दे सकती। हमारी पूर्ण तृप्ति और संतुष्टि ईश्वर में निहीत है। आज के वचनों के द्वारा प्रभु हमंा बताना चाहते हैं कि जब हम अपने जीवन में खालीपन, अधूरापन, खोखलापन, अकेलापन, परित्यत, और बेचैन महसूस करते हैं तो हमें शाँति, आराम ओर परितृप्ती की खोज में और कहीं नहीं परन्तु उनके पास जाना है।

प्रभु का निमंत्रण सबों के लिए खुला हुआ है। वे कहते हैं — ''तुम सब, जो प्यासे हो, पानी के पास चले आओ। जिसके पास रूपया नहीं है हो, तो भी आओ और मुफ्त में अन्न खरीद कर खाओ।''

हमारे जीवन की विभिन्न आवश्क्तओं में हम किसकी शरण जाते हैं? आज हम अपने आप से पूछें मैंने मेरे जीवन की प्यास बुझाने के लिए क्याक्या किया है? कौनकौन से रास्ते अपनाये हैं? कोई धनदौलत इकट्ठा करने में अपनी संतुष्टी ढूंढते हैं तो कोई अच्छा पद या औहदा पाने में, कोई फैशनेबल कपडे पहनने में, तो कोई मेक अप करने में, कोई नाम कमाने में तो कोई प्रसिद्ध होने में, अपनी संतुष्टि तलाशते हैं। कोई नशा करके खुद को संतुष्ट करता है तो कोई शारीरिक वासनाओं को पूरा करके। सब कुछ ट्राय कर लिया पर परफेक्ट सोल्युशन नहीं मिला।

संत योहन के सुसमाचार के 4 थे अध्याय में हम पढते हैं एक स्त्री के बारे में जो याकूब के कुवें पर भरी दुपहरी में पानी भरने आती है। उस स्त्री ने अपने जीवन में संतुष्टि पाने के बहुत सारे प्रयास किये पर सारे प्रयास खोखले साबित हुए। यह सोच कर कि शारीरिक वासनाओं की तृप्ति से वह जीवन का सुख प्राप्त कर सकती है, उसने पाँच व्यक्यिों के साथ पति पत्नि का रिश्ता जोडा, संतुष्टि नहीं हुई तो उस रिश्ते को तोडा। आज हम में से कितनों के जीवन की हकीकित है ये एक दोस्त से दूसरा दोस्त, एक रिश्ते से दूसरा रिश्ता, एक काम से दूसरा काम.....जिंदगी कुछ तो ढूंढ रही है पर उसे वो मिल नहीं रहा है। आज के वचन मेें प्रभु कहते हैं —''जो भोजन नहीं है, उसके लिए तुम लोग अपना रूपया क्यों खर्च करते हो? जो तृप्ति नहीं दे सकता उसके लिए क्यों परिश्रम करते हो?'' इसा. 55:2

वह समारी नारी येसु के पास आई और येसु ने उसे वो पानी दे दिया जिसने उसके जीवन की सारी प्यास बुझा दी। जब उस नारी को अनन्त जीवन के जल का ज्ञान मिला, उसने अपना घडा वहीं छोड दिया और वह यह खुशखबरी सुनाने अपने नगर को दौड़ पडी।

संत लूकस 10:41 में प्रभु येसु मारथा से कहते हैं — ''मारथा, मारथा तुम बहुत सी बातों के विषय में चिंतित और व्यस्त हो; परन्तु एक ही बात आवश्यक है। मरियम ने सब से उत्तम भाग चुन लिया है; वह उस से नहीं लिया जायेगा।'' हम भी दुनिया में बहुत सारी बातों को लेकर चिंतित हैं। जैसा कि नबी इसायाह कहते हैं हम जो भोजन ही नहीं है उसके लिए रूपया खर्च कर रहे हैं और जो संतुष्टि ही नहीं दे सकता उसके लिए मेहनत कर रहे हैं।

प्रभु कह रहे हैं कि दुनिया भर की भागदौड, कामधंधा सब अपनी जगह ठीक है परन्तु एक ही बात आवश्यक है जो कि मरियम ने चुन लिया है। मरियम ने क्या चुन लिया है? येसु के कदमों में बैठना और उनके वचनों को सुनना। ''तुम जो प्यासे हो पानी के पास चले आओ'' मरियम प्यासी थी इसलिए वह संजीवन जल के झरने के पास चली आई। उसने येसु की वाणी से अपनी भूख, अपनी प्यास बुझाई।

नबी आमोस 8:11 — ''वे दिन आ रहे हैं जब मैं इस देश में भूख भेजूँगा — रोटी की भूख और पानी की प्यास नहीं, बल्कि प्रभु की वाणी सुनने की भूख और प्यास।''

आज के सुसमाचार में हम पढते हैं लोगों की एक भारी भीड़ येसु की वाणी सुनने के लिए येसु की खोज में गलीलिया की झील के किनारे पहुँच जाती है। वे दिन भर येसु की वाणी सुनते रहे। उन्हें घर जाने और या फिर खुद के खानेपीने के बंदोबस्त की भी फिक्र नहीं थी। क्योंकि वे येसु की वाणी सुनकर मंत्र मुग्य हो रहे थे। दिन भर आत्मिक भोजन याने वचनों से उनकी सबसे पहली और अहम आत्मिक भूख मिटाकर प्रभु येसु शाम हो जाने पर उनकी शारीरिक भूख भी मिटाते हैं। रोटियों के चमत्कार के द्वारा Yesu panch hazar se bhi adhik logo ko bhar pet bhojan karate hain. येसु उस भीड को नश्वर रोटी से तृप्त करके आने वाले समय में वे उन्हें अनष्वर रोटी याने अपने शरीर व देह से तृप्त करने के लिए तैयार करते हैं। संत योहन के सुसमाचार में हम पढते हैं कि रोटियों के चमत्कार के बाद येसु कफरनाहुम चले जाते हैं और लोग रोटियों के चमत्कार से प्रभावित होकर वहाँ भी पहुँच जाते हैं। तब प्रभु उन्हें नश्वर रोटी से परे जाने और अनन्त जीवन की रोटी खाकर अपनी आत्मा को अमरता में ले जाने का निमंत्रण देते हैं। वे कहते हैं — ''नश्वर भोजन के लिए नहीं, बल्कि उस भोजन के लिए परिश्रम करो, जो अनन्त जीवन के लिए बना रहता है और जिसे मानव पुत्र तुम्हें देगा।'' (योहन 6:27)। तब लोगों ने उनसे कहा प्रभु! आप हमें सदा वही रोटी दिया करें। उन्होंने उत्तर दिया — ''जीवन की रोटी मैं हूँ। jo मेरे पास आता है, उसे कभी भूख नहीं लगेगी और जो मुझ में विश्वास करता है, उसे कभी प्यास नहीं लगेगी।'' (योहन 6:35) और आगे वे हमें बतलाते हैं — ''जो मेरा माँस खाता और मेरा रक्त पीता है, उसे अनन्त जीवन प्राप्त है और मैं उसे अंतिम दिन पुनर्जीवित कर दूंगा; क्योंकि मेरा माँस सच्चा भोजन है और मेरा रक्त सच्चा पेय। तो नबी इसायाह के ग्रंथ में जो निमंत्रण ईश्वर हमें दे रहा है वह और किसी भोजन और पेय के लिए नहीं परन्तु येसु के शरीर और रक्त से अपनी आध्यात्मिक भूख और प्यास मिटाने का आह्वान है, जिसे प्रभु येसु ने प्रभु भोज के रूप में हमें प्रदान करते हुए कहा कि तुम मेरी स्मृति यह किया करो। आज भी प्रभु येसु पवित्र यूखरिस्त में अपना सच्चा शरीर और सच्चा रक्त हमें खाने व पीने को देते हैं। आज भी उनका आह्वान यही है — तुम जो प्यासे हो पानी के पास चले आओ तुम जो भूखे हो मुफ्त में अपनी भूख मिटाओ।

प्यारे विश्वासियों हम अपने जीवन में कितने ही निमंत्रण पाते हैं कभी किसी शादी का तो कभी किसी जन्मदिन की पार्टी का तो कभी किसी रिसेप्शन का वगैरह और हम इन पार्टियों में जाकर दावत का मजा लेते हैं। जब निमंत्रण हमारे किसी अजीज मित्र का हो या फिर किसी प्रतिष्ठित व्यक्ति का तो हम उसे ठुकराते नहीं। आज निमंत्रण kisi aur ka nahin par हमें प्रेम करने वाले, हमारे सृजनहार, हमारे तारणहार येसु मसीह का है। क्या मैं येसु के निमंत्रण को हाँ कहने के लिए तैयार हूँ? 

क्या मुझे येसु की वाणी सुनने की भूख और प्यास लगी है? जब मैं उपवास करता हूँ तो शाम तो खाना खाने के लिए बेचैन हो जाता हूँ। हम सब ने इसका अनुभव किया है। जिस तरह से मैं मेरी शारीरिक भूख मिटाने के लिए बेचैन होता हूँ, क्या उसी तरह मुझमें वचन न सुनने van a padhane पर बेचैनी होती है। क्या पवित्र यूखरिस्त ग्रहण na करने के ​कारण मुझे बेचैनी और पीडा होती है? अगर नहीं तो फिर मेरे एक विश्वासी होने में कहीं न कहीं तकनिकी खराबी है। मेरी अध्यात्मिक गाडी सही नहीं चल रही है। खैर इन दिनों कोरोना महामारी के चलते हम चर्च नहीं जा पा रहे हैं और प्रभु का शरीर और रक्त ग्रहण नहीं कर पा रहे हैं। पर उसे न पाकर क्या हम अपने में अधुरापन, और खालीपन महसूस कर रहे हैं? क्या पवित्र यूखरिस्त में येसु को ग्रहण करने के लिए हममें बेचैनी और पीडा है? चलो पवित्र यूखरिस्त हमें इन दिनों नहीं मिल रहा प्रभु का वचन तो हमारे पास है। क्या प्रभु की वाणी को सुनने के लिए, या पढने के लिए मैं तरसता हूँ?

हम कब किसी की वाणी, किसी की बात सुनने को तरसते हैं, जब हम उस व्यक्ति से प्यार करते हैं। और जितना अधिक प्यार होगा, उतनी अधिक तीव्रता होगी उस व्यक्ति की बातें सुनने की। यदि में येसु की वाणी सुनने के लिए नहीं तरसता तो इसका सीधा सा मतलब निकलता है कि मुझे येसु से मुहोब्बत नहीं हुई है। मैं उन्हें जानता हूँ, पर प्यार नहीं करता। मैं उन्हें पसंद करता हूँ पर प्यार नहीं करता।

अगर मैं उनके प्यार के सागर में खुद को डुबा देता तो आज मेरे सामने दुनिया की कोई भी ताकत मुझे झुका नहीं सकती, कुछ भी मुझे विचलित नहीं करता, कुछ भी मुझे नहीं डराता। naa corona, naa atank, naa badh aru naa sukha….संत पौलुस आज के दूसरे पाठ में कहते हैं — ''कौन हमें मसीह के प्रेम से वंचित कर सकता है? क्या विपत्ति या संकट? क्या अत्याचार, या भूख, नग्नता, जोखिम या तलवार?

मुझे दृढ़ विश्वास है कि न तो मरण या जीवन, न स्वर्गदूत या नरकदूत, न वर्तमान या भविष्य, न आकाश या पाताल की कोई शक्ति और न समस्त सृष्टि में कोई या कुछ हमें ईश्वर के उस प्रेम से वंचित कर सकता है, जो हमें हमारे प्रभु येसु मसीह द्वारा मिला है।

दुनिया की सारी अभिलाषायें पूरा करने वाला प्रेम, सब कुछ के ऊपर विजय पाने वाला प्रेम, मौत को हराकर हमें जीवन देने वाला प्रेम सिर्फ येसु दे सकते हैं। इस दुनिया की आखिरी सच्चाई और आने वाले जीवन की परिपूर्णता सिर्फ येसु के प्रेम में निहित है। उस प्रेम के खातिर येसु ने  क्रूस पर अपनी कूर्बानी दी है और अपना लहू बहाकर हमें इस संसार व शैतान से बचाया है।  क्या आपने उस प्रेम को पा लिया है? क्या आपने उस प्रेम के सागर में गोता लगाया है? आज प्रभु हमें बुला रहे हैं । जो भी येसु के प्रेम के लिए प्यासे हैं वे उनके पास आ जायें। आईये हम येसु के पास चलें उन्हीं में हमारी पूर्ण तृप्ती है। वही हमारे जीवन की हर समस्या का समाधान, हमारी हर बीमारी का ईलाज़ और हमारे जीवन का आधार है। आमेन।

 

               


Thursday, 23 July 2020

17th Sunday in Ordinary time (A) in Hindi

वर्ष का 17 वां इ​तवार 

1 राजा 3:5, 7—12

रोमियों 8:28—30

मत्ती 13:44.52

प्यारे विश्वासियों का वचन हम विश्वासियों के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण और गंभीर है। आज हम, हमारे अस्तित्व और जीने के उद्देश्य के बारे में मनन चिंतन करेंगे। आज हम मनन चिंतन करेंगे कि हमारे जीवन का अंतिम लक्ष्य क्या है? मेरे जीवन की आखिरी अभिलाषा क्या है?

हम बाजारवाद, भोतिकतावाद, और उपभोक्तावाद के जमाने में जी रहे हैं। बाजार हमारे सामने ज़रूरी और  गैर ज़रूरी सब प्रकार की चीज़ों का आकर्षण पेश करता है। आकर्षक और लुभावने विज्ञापन हमें मोहित कर लेते हैं और हम उस आकर्षण के पीछे भागते रहते हैं। हमें लगता है कि बाज़ार के ये उत्पाद हमारी आवश्क्ताओं की पूर्ती करेंगे, परन्तु हमारी आवश्क्तायें कभी खत्म नहीं होती। हमें कभी संतुष्टि नहीं मिलती। हम यह सोच कर कोई क्रीम खरीदते हैं कि उससे हमारी त्वचा गोरी हो जायेगी और हम अधिक सुंदर दिखेंगे, पर दस बार वह क्रीम लगाने पर भी संतुष्टी नहीं मिलती। हममें और सुंदर और गोरा होने की चाहत रहती है। कहीं मोटापा दूर करने की दवाई तो कहीं गंजापन दूर करने की दवाई, कहीं सफेद बाल काले करने की दवाई, तो कहीं कद/ लंबाई बढाने की दवाई। बहुत कुछ जतन करने के बाद भी असंतुष्टि बरकरार रहती है। एक खालीपन, एक अधुरापन, एक यह भावना कि मुझमें कुछ कमी है, मैं पूर्ण नहीं, मुझमें दूसरों जैसी सुंदरता, मैं अच्छा नहीं दिखता, मुझमें दूसरों जैसा आकर्षण, दूसरों जैसा रूतबा, नहीं, मेरा घर दूसरों के जैसा भव्य नहीं, मेरी गाडी मेरे पडोसी से अच्छी नहीं, मेरी नौकरी दूसरों से बेहतर नहीं, मेरा व्यापार दूसरों से ज्यादा नहीं फलफूल रहा, मुझे दूसरों का प्यार नहीं मिलता, मुझे कोई चाहता नहीं, इत्यादि इत्यादि इसकी लिस्ट अनएंडिंग है। असंतुष्टि, आभाव, खालीपन, खोखलापन, बहुत कुछ होने और हासिल करने पर भी संतुष्टि नहीं।

 

ये हैये दिल मॉंगे मोर वाली फिलोसोफी इस प्रकार मनुष्य अपना बहुत सारा समय, धन, और ऊर्जा ऐसी वस्तुओं को हासिल करने में लगा देते हैं जो टिकाऊँ और पूर्ण सुंतुष्टि देने वाली नहीं हैं।


क्या ऐसी कोई जादू की छडी है, जो हमारी सारी अभिलाषायें पूरी कर सकती है? क्या ऐसा कोई जादुई चिराग है जो हमें पूर्ण संतुष्टि दे सकता है? ऐसा कुछ है जिसे पाने के बाद हमारे अंदर पूर्ण संतुष्टि की अनुभुति होगी तथा हम और कुछ की भी अभिलाषा नहीं करेंगे? no mobiles, no friends, no closeness, nothing.  ऐसा कोई तलस्मि है जिसके छू ने के बाद हमारी सारी लालसायें मिट जायेंगी।

 

यदि आज साक्षात ईश्वर आपके सामने हाज़िर हो जाये और आपसे पूछे में आपकी हर मुराद पूरी करूँगा तो आप क्या माँगोगे? ? ? कोरोना महामारी से मुक्ति? अच्छा स्वास्थ्य? या फिर एक अच्छी नौकरी? बहुत सारी दौलत? एक अच्छी गाडी? परीक्षाओं में सफलता? नाम, शान, और शौहरत? क्या मॉंगोगे?

 

आज के पहले पाठ में यहोवा ईश्वर राजा सुलेमान को दर्शन देकर कहते हैं — ''बताओ, मैं तुम्हें क्या दूँ?'' इस पर राजा सुलेमान ने ऐसी कोई चीज़ नहीं मॉंगी जो उनकी दुनियाई लालसा पूरी करती हो। उन्होंने दौलत, शौहरत और ही विशाल राज्य की कामना जो कि एक राजा की सबसे बडी ख्वाहिश रहती है। राजा सुलेमान ने प्रभु से विवेक अथवा प्रज्ञा की की कामना की। और प्रभु ने उन्हें वह प्रज्ञा प्रदान की जिसका सामना दुनिया का कोई भी बुद्धीमान व्यक्तित नहीं कर सकता था। इसके अलावा प्रभु ने उन्हें वो सब दिया जो उनके लिए ज़रूरी थाधन, दौलत, राज्य और सब कुछ।

आज के सुसमाचार में हम पढते हैं खज़ाने और मोती का दृष्टॉंत; कोई मनुष्य किसी खेत में खज़ाना छिपा हुआ पाता है और वह अपना सब कुछ बेच कर उस खेत को खरीद लेता है ताकि वह उस खज़ाने को हासिल कर सके। और दूसरे दृष्टॉंत में कोई शख्स बेशकीमती मोत्ती पाने पर अपना सब कुछ बेच कर उस मोत्ती को खरीद लेता है।

इन दो दृष्टॉंतों के द्वारा प्रभु हमें  आज एक बहुत बडी सीख दे रहे हैं। स्वर्ग का राज्य हमारे लिए एक छिपे हुए खज़ाने की नाई है। एक बेशकीमती मोत्ती की नाई है जिसके सामने जिसके सामने मेरी बरसों की कमाई दौलत, मेरी सारी जायदाद और जो कुछ भी मेरे पास है सबकी कीमत बस शून्य रह जाती है। सुसमाचार हमें बतलाता है कि जैसे ही वह व्यक्ति खज़ाना या मोत्ती पाता है वह अपना सबकुछ बेचकरके उसे हासिल कर लेता है। उस खाज़ाने को पाने के लिए वह व्यक्ति अपना सब कुछ बेच देता है, उस मोत्ती को पाने केलिए वह व्यक्ति अपना सब कुछ बेच देता है।

 क्या मैंने स्वर्गराज्य को हासिल करने के लिए अपना सब कुछ दे डाला है? क्या मैं स्वर्ग के राज्य को मेरी सारी संपत्ती, मेरे परिवार, और अपनी सभी अभिलाषाओं से ऊपर मानता हूॅं? क्या स्वर्ग राज्य को हासिल करने के लिए मैं अपना सबकुछ छोडने को तैयार हूँ?

प्रभु येसु ने स्पष्ट रूप से कहा है — ''जो अपने पिता या अपनी माता को मुझ से अधिक प्यार करता है, वह मेरे योग्य नहीं। जो अपने पुत्र या अपनी पुत्री को मुझ से अधिक प्यार करता है, वह मेरे योग्य नहीं। और इस लिस्ट में हम और भी बहुत कुछ जोड सकते हैं जिसे हम अपना कहते हैं और जिसके पीछे हम हमारा समय, धन और ऊर्जा लगाते हैं। आज के संदर्भ में इस वचन की व्यख्या ऐसे की जा सकती है जो ईश्वर से ज्यादा किसी फिल्म स्टार या खिलाडी को अधिक महत्व देता है, अपने जीवन के उसूल वह इन लोगों से सिखता है, उनके डाइलोग, उनकी स्टाईल, उनका पहनावा, उनकी हेयर स्टाईल और सबसे बढकर उनके जैसा दिखने और बनने की ख्वाहिश रखता है, वह येसु के योग्य नहीं, वह स्वर्ग राज्य के योग्य नहीं; जो अपनी नौकरी, अपने पेशे, अपने व्यापार या अपनी खेती को ईश्वर से ज्यादा महत्व देता है, वह स्वर्ग के राज्य के योग्य नहीं; जो अपने मोबाइल, अपने लैपटोप और अन्य उपकरणों को ईश्वर से अधिक समय और महत्व देता है वह येसु के योग्य नहीं। जो अपने यार दोस्तों के साथ घुमनेफिरने, मस्ती मजाक करने, और ऐश की जिंदगी को पहला स्थान देता है वह ईश्वर के योग्य नहीं। याने कुल मिलाकर हमने ईश्वर की जगह किसी भी व्यक्ति और चीज़ को दे दी है तो हम स्वर्ग राज्य के लायक नहीं हैं।

यह तो एक बडी समस्या है। यदि इस मापदंड पर रख कर हमारी जिंदगी को तोला जाये तो हम में से अधिकतर लोग फैल हो जायेंगे। हममें कितने ही लोग हैं जो घंटों मोबाइल पर बिताते पर प्रार्थना के लिए कुछ मिनिट भी निकालना उनके लिए बडा कठीन काम होता है। तीन घंटों तक बिना साँस लिए फिल्म तो देख लेते हैंकिंतु दसपंद्रह मिनिट का प्रवचन झेल पाना बडा मुश्किल होता है। दिन भर फिल्म संगीत सुनते रहेंगे पर अपने उसी मोबाइल पर धार्मिक गीत बजाने में शर्मिंदगी महसूस होती है।

 

आखिर ऐसा क्यों है? हमारा मन संसार और सांसारिक चीजों में तो बहुत लगता पर ईश्वर में क्यों नहीं लगता या फिर हम ईश्वर की ओर क्यों आकर्षित क्यों नहीं हो पाते? या ईश्वर हमें आकर्षक क्यों नहीं लगता? क्यों आध्यात्मिक बातें बडी बोरिंग नीरस लगती है?


इस पर मननचिंतन करने पर मुझे बस एक ही उत्तर मिलता है और वह है कि हमने ईश्वर को जाना ही नहीं, हमने ईश्वर को पहचाना ही नहीं। ईश्वर की महानता   प्यार की गहराई को यदि हम पहचान पाते तो हम आज के सुसमाचार में बताये गये उस व्यक्ति की तरह अपना सब कुछ छोडकर सिर्फ उस ईश्वर को पाना चाहते, दुनिया के सारे  प्यार ठुकराकर सिर्फ येसु  प्रेम की चाहत रखते । हममें ईश्वर के प्रति चाहत की कमी है क्योंकि हमने प्रभु को कभी अनमोल मोत्ती या छिपा खजाना नहीं माना। हमारा मन दुनिया में तो बहुत लगता है पर ईश्वर और ईश्वर की बातों में नहीं क्यांकि हमारे लिए ईश्वर कीमती नहीं है। स्वर्ग की बातें हमारे लिए मायने नहीं रखती क्योंकि हमने स्वर्ग की कीमत को नहीं जाना, हमने स्वर्ग के  खजाने की कीमत  को नहीं जाना। हम कहते हैं कि प्रभु मैं आपसे प्यार करता हूॅं पर वास्तव में हमारे दिल में उनके प्रति प्रेम चाहत की कमी है। पिछले साल केरल जा रहा था, जब मैं एयरपोर्ट पर था तब मेरे पिछले साल के कार्यक्षेत्र के होस्टल वार्डन का फोन आता है मैं उन से बात कर ही रहा था कि मेरे मन में ख्याल आया कि विडियो कॉल करके मेरे होस्टल के बच्चों को एयरपार्ट और फलाइट्स वगैरह दिखाऊ। मैंने विडियो कॉल किया और बैक कैमरे को एयरपोर्ट इधरउधर घुमाघुमा के बच्चों  दिखाने लगा कि देखो ये एयरपोर्ट है, ये वैटिंग रूम है इधर गेट है, उधर फलाइट्स उतरती हैं।और वो देखो फलाइट टेक आॅफ कर रही है आदि। मैं सोच रहा था बच्चे बहुत उत्सुकता से ये सब देख रहे होंगे और उन्हें आनन्द रहा होगा। पर मैं क्या सुनता हूॅं कि एक बालक बोलता है ये सब तो ठिक है फादर जी फ्रंट कैमरा आॅन करो हमें तो आपको देखना है। मैं ने पूछा क्यों मजा नहीं रहा? वह बोला बहुत दिन हो गये आपको नहीं देखा, हमें तो आपको देखना है। मैं तो सन्न रह गया। यह एक छोटी सी घटना थी पर मुझे बहुत कुछ सिखा गई। उन बच्चों के लिए एयरपोर्ट की चकाचौंध, हवाई जहाज उतरते चढते देखना, ये सब उतना उत्सुकता का विषय नहीं था जितना उनके लिए फादर को देखना था क्योंकि फादर के प्रति उनके दिल में प्रेम था, एक चाहत थी। क्या हमारे मन में ईश्वर को लेकर इस प्रकार की भावना आती है कि मुझे और कुछ नहीं देखना, मुझे सिर्फ येसु को देखना है? मुझे और कुछ नहीं सुनना मुझे येसु की वाणी सुनना है। मुझे और किसी के प्यार की जरूरत नहीं मुुझे से येसु का प्यार चाहिए, मैं इस दुनिया में सिर्फ येसु को ही पा लूॅं और स्वर्ग राज्य में उनके साथ रहूॅं यही मेरी अंतिम तमन्ना है।

 

काश कि हम स्वर्ग की कीमत जान पाते, हम स्वर्ग का मूल्य और उसका महत्व समझ पाते हम इस नष्ट होने वाली दुनिया और इस दुनिया की भ्रमित करने वाली धोखा देने वाली चीजों को अपना दिल नहीं देते। हम मसीह में अपना मन दिल लगाये रखते।

 

संत पौलुस फिलिपियों 3:8 में कहते हैं  — '' मैं प्रभु येसु मसीह को जानना सर्वश्रेष्ठ लाभ मानता हूॅं और इस ज्ञान की तुलना में हर वस्तु को हानि ही मानता हूॅं। उन्हीं के लिए मैं ने सब कुछ छोड़ दिया है और उसे कुडा मानता हूॅं। संत पौलुस के लिए सिर्फ मसीह को जानना ही सबसे बडा लाभ था बाकि सब कुछ उनके लिए कचरा ही था। ऐसा क्यों? संत पौलुस ने येसु को पहचाना था। उन्होंने येसु में बेशकीमती मोत्ती देखा। पवित्र कलीसिया में कितने ही संत हुए हैं जिन्होंने येसु और उनके राज्य को प्रार्थमिकता दी। संत फ्रांसिस असीसी  ने जब येसु को जाना, तो उन्हें पाने के लिए उन्होंने अपना परिवार, माता—पिता, अपनी संपत्ती यहॉं तक की अपने पहने हुए वस्त्रों को भी त्याग दिया। मदर तेरेसा ने जब गरीबों व दीन—दुखियों में येसु को देखा और पहचाना तो उन्होंने अपना सब कुछ छोडकर उन बेसहारों में बसे येसु की सेवा में लग गई।  प्रभु येसु ने कहा है — ''तुम सबसे पहले ईश्वर के राज्य और उसकी धार्मिकता की खोज में लगे रहो और सब चीजें तुम्हें यूॅं ही मिल जायेगी।'' (मत्ती 6:33)

ईश्वर की सबसे पहली आज्ञा यही है कि ईश्वर को अपने सारे हृदय, अपनी सारी आत्मा और सारी बुद्धि से प्यार करो।''

 

आईये प्यारे विश्वासियों हम प्रभु से प्रार्थना करें कि प्रभु हमें उन्हें समझने की कृपा प्रदान करें। हम येसु और उनके राज्य की बातों के महत्व को समझें, उसकी कीमत को जानें यह भी जानें कि इस दुनिया की सारी बातें ईश्वर के सम्मुख कितनी मुल्यहीन और व्यर्थ हैं। प्रभु हमें जीवन में सही का चुनाव करना सिखायें। हम संत पौलुस की तरह यह कह पायें कि  मैं प्रभु येसु मसीह को जानना सर्वश्रेष्ठ लाभ मानता हूॅं और इस ज्ञान की तुलना में हर वस्तु को हानि ही मानता हूॅं। उन्हीं के लिए मैं ने सब कुछ छोड़ दिया है और उसे कुडा मानता हूॅं।'' आमेन।