वर्ष का 17 वां इतवार
1 राजा 3:5, 7—12
रोमियों 8:28—30
मत्ती 13:44.52
प्यारे विश्वासियों आज का वचन हम विश्वासियों के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण और गंभीर है। आज हम, हमारे अस्तित्व और जीने के उद्देश्य के बारे में मनन चिंतन करेंगे। आज हम मनन चिंतन करेंगे कि हमारे जीवन का अंतिम लक्ष्य क्या है? मेरे जीवन की आखिरी अभिलाषा क्या है?
हम बाजारवाद, भोतिकतावाद, और उपभोक्तावाद के जमाने में जी रहे हैं। बाजार हमारे सामने ज़रूरी और गैर ज़रूरी सब प्रकार की चीज़ों का आकर्षण पेश करता है। आकर्षक और लुभावने विज्ञापन हमें मोहित कर लेते हैं और हम उस आकर्षण के पीछे भागते रहते हैं। हमें लगता है कि बाज़ार के ये उत्पाद हमारी आवश्क्ताओं की पूर्ती करेंगे, परन्तु हमारी आवश्क्तायें कभी खत्म नहीं होती। हमें कभी संतुष्टि नहीं मिलती। हम यह सोच कर कोई क्रीम खरीदते हैं कि उससे हमारी त्वचा गोरी हो जायेगी और हम अधिक सुंदर दिखेंगे, पर दस बार वह क्रीम लगाने पर भी संतुष्टी नहीं मिलती। हममें और सुंदर और गोरा होने की चाहत रहती है। कहीं मोटापा दूर करने की दवाई तो कहीं गंजापन दूर करने की दवाई, कहीं सफेद बाल काले करने की दवाई, तो कहीं कद/ लंबाई बढाने की दवाई। बहुत कुछ जतन करने के बाद भी असंतुष्टि बरकरार रहती है। एक खालीपन, एक अधुरापन, एक यह भावना कि मुझमें कुछ कमी है, मैं पूर्ण नहीं, मुझमें दूसरों जैसी सुंदरता, मैं अच्छा नहीं दिखता, मुझमें दूसरों जैसा आकर्षण, दूसरों जैसा रूतबा, नहीं, मेरा घर दूसरों के जैसा भव्य नहीं, मेरी गाडी मेरे पडोसी से अच्छी नहीं, मेरी नौकरी दूसरों से बेहतर नहीं, मेरा व्यापार दूसरों से ज्यादा नहीं फल—फूल रहा, मुझे दूसरों का प्यार नहीं मिलता, मुझे कोई चाहता नहीं, इत्यादि इत्यादि इसकी लिस्ट अनएंडिंग है। असंतुष्टि, आभाव, खालीपन, खोखलापन, बहुत कुछ होने और हासिल करने पर भी संतुष्टि नहीं।
ये है — ये दिल मॉंगे मोर वाली फिलोसोफी । इस प्रकार मनुष्य अपना बहुत सारा समय, धन, और ऊर्जा ऐसी वस्तुओं को हासिल करने में लगा देते हैं जो टिकाऊँ और पूर्ण सुंतुष्टि देने वाली नहीं हैं।
क्या ऐसी कोई जादू की छडी है, जो हमारी सारी अभिलाषायें पूरी कर सकती है? क्या ऐसा कोई जादुई चिराग है जो हमें पूर्ण संतुष्टि दे सकता है? ऐसा कुछ है जिसे पाने के बाद हमारे अंदर पूर्ण संतुष्टि की अनुभुति होगी तथा हम और कुछ की भी अभिलाषा नहीं करेंगे? no mobiles, no friends, no closeness, nothing. ऐसा कोई तलस्मि है जिसके छू ने के बाद हमारी सारी लालसायें मिट जायेंगी।
यदि आज साक्षात ईश्वर आपके सामने हाज़िर हो जाये और आपसे पूछे में आपकी हर मुराद पूरी करूँगा तो आप क्या माँगोगे? ? ? कोरोना महामारी से मुक्ति? अच्छा स्वास्थ्य? या फिर एक अच्छी नौकरी? बहुत सारी दौलत? एक अच्छी गाडी? परीक्षाओं में सफलता? नाम, शान, और शौहरत? क्या मॉंगोगे?
आज के पहले पाठ में यहोवा ईश्वर राजा सुलेमान को दर्शन देकर कहते हैं — ''बताओ, मैं तुम्हें क्या दूँ?'' इस पर राजा सुलेमान ने ऐसी कोई चीज़ नहीं मॉंगी जो उनकी दुनियाई लालसा पूरी करती हो। उन्होंने न दौलत, न शौहरत और न ही विशाल राज्य की कामना क जो कि एक राजा की सबसे बडी ख्वाहिश रहती है। राजा सुलेमान ने प्रभु से विवेक अथवा प्रज्ञा की की कामना की। और प्रभु ने उन्हें वह प्रज्ञा प्रदान की जिसका सामना दुनिया का कोई भी बुद्धीमान व्यक्तित नहीं कर सकता था। इसके अलावा प्रभु ने उन्हें वो सब दिया जो उनके लिए ज़रूरी था —धन, दौलत, राज्य और सब कुछ।
आज के सुसमाचार में हम पढते हैं खज़ाने और मोती का दृष्टॉंत; कोई मनुष्य किसी खेत में खज़ाना छिपा हुआ पाता है और वह अपना सब कुछ बेच कर उस खेत को खरीद लेता है ताकि वह उस खज़ाने को हासिल कर सके। और दूसरे दृष्टॉंत में कोई शख्स बेशकीमती मोत्ती पाने पर अपना सब कुछ बेच कर उस मोत्ती को खरीद लेता है।
इन दो दृष्टॉंतों के द्वारा प्रभु हमें आज एक बहुत बडी सीख दे रहे हैं। स्वर्ग का राज्य हमारे लिए एक छिपे हुए खज़ाने की नाई है। एक बेशकीमती मोत्ती की नाई है जिसके सामने जिसके सामने मेरी बरसों की कमाई दौलत, मेरी सारी जायदाद और जो कुछ भी मेरे पास है सबकी कीमत बस शून्य रह जाती है। सुसमाचार हमें बतलाता है कि जैसे ही वह व्यक्ति खज़ाना या मोत्ती पाता है वह अपना सब—कुछ बेचकरके उसे हासिल कर लेता है। उस खाज़ाने को पाने के लिए वह व्यक्ति अपना सब कुछ बेच देता है, उस मोत्ती को पाने के लिए वह व्यक्ति अपना सब कुछ बेच देता है।
क्या मैंने स्वर्गराज्य को हासिल करने के लिए अपना सब कुछ दे डाला है? क्या मैं स्वर्ग के राज्य को मेरी सारी संपत्ती, मेरे परिवार, और अपनी सभी अभिलाषाओं से ऊपर मानता हूॅं? क्या स्वर्ग राज्य को हासिल करने के लिए मैं अपना सब—कुछ छोडने को तैयार हूँ?
प्रभु येसु ने स्पष्ट रूप से कहा है — ''जो अपने पिता या अपनी माता को मुझ से अधिक प्यार करता है, वह मेरे योग्य नहीं। जो अपने पुत्र या अपनी पुत्री को मुझ से अधिक प्यार करता है, वह मेरे योग्य नहीं। और इस लिस्ट में हम और भी बहुत कुछ जोड सकते हैं जिसे हम अपना कहते हैं और जिसके पीछे हम हमारा समय, धन और ऊर्जा लगाते हैं। आज के संदर्भ में इस वचन की व्यख्या ऐसे की जा सकती है जो ईश्वर से ज्यादा किसी फिल्म स्टार या खिलाडी को अधिक महत्व देता है, अपने जीवन के उसूल वह इन लोगों से सिखता है, उनके डाइलोग, उनकी स्टाईल, उनका पहनावा, उनकी हेयर स्टाईल और सबसे बढकर उनके जैसा दिखने और बनने की ख्वाहिश रखता है, वह येसु के योग्य नहीं, वह स्वर्ग राज्य के योग्य नहीं; जो अपनी नौकरी, अपने पेशे, अपने व्यापार या अपनी खेती को ईश्वर से ज्यादा महत्व देता है, वह स्वर्ग के राज्य के योग्य नहीं; जो अपने मोबाइल, अपने लैपटोप और अन्य उपकरणों को ईश्वर से अधिक समय और महत्व देता है वह येसु के योग्य नहीं। जो अपने यार दोस्तों के साथ घुमने—फिरने, मस्ती मजाक करने, और ऐश की जिंदगी को पहला स्थान देता है वह ईश्वर के योग्य नहीं। याने कुल मिलाकर हमने ईश्वर की जगह किसी भी व्यक्ति और चीज़ को दे दी है तो हम स्वर्ग राज्य के लायक नहीं हैं।
यह तो एक बडी समस्या है। यदि इस मापदंड पर रख कर हमारी जिंदगी को तोला जाये तो हम में से अधिकतर लोग फैल हो जायेंगे। हममें कितने ही लोग हैं जो घंटों मोबाइल पर बिताते पर प्रार्थना के लिए कुछ मिनिट भी निकालना उनके लिए बडा कठीन काम होता है। तीन घंटों तक बिना साँस लिए फिल्म तो देख लेते हैं किंतु दस—पंद्रह मिनिट का प्रवचन झेल पाना बडा मुश्किल होता है। दिन भर फिल्म संगीत सुनते रहेंगे पर अपने उसी मोबाइल पर धार्मिक गीत बजाने में शर्मिंदगी महसूस होती है।
आखिर ऐसा क्यों है? हमारा मन संसार और सांसारिक चीजों में तो बहुत लगता पर ईश्वर में क्यों नहीं लगता या फिर हम ईश्वर की ओर क्यों आकर्षित क्यों नहीं हो पाते? या ईश्वर हमें आकर्षक क्यों नहीं लगता? क्यों आध्यात्मिक बातें बडी बोरिंग व नीरस लगती है?
इस पर मनन — चिंतन करने पर मुझे बस एक ही उत्तर मिलता है और वह है कि हमने ईश्वर को जाना ही नहीं, हमने ईश्वर को पहचाना ही नहीं। ईश्वर की महानता व प्यार की गहराई को यदि हम पहचान पाते तो हम आज के सुसमाचार में बताये गये उस व्यक्ति की तरह अपना सब कुछ छोडकर सिर्फ उस ईश्वर को पाना चाहते, दुनिया के सारे प्यार ठुकराकर सिर्फ येसु प्रेम की चाहत रखते । हममें ईश्वर के प्रति चाहत की कमी है क्योंकि हमने प्रभु को कभी अनमोल मोत्ती या छिपा खजाना नहीं माना। हमारा मन दुनिया में तो बहुत लगता है पर ईश्वर और ईश्वर की बातों में नहीं क्यांकि हमारे लिए ईश्वर कीमती नहीं है। स्वर्ग की बातें हमारे लिए मायने नहीं रखती क्योंकि हमने स्वर्ग की कीमत को नहीं जाना, हमने स्वर्ग के खजाने की कीमत को नहीं जाना। हम कहते हैं कि प्रभु मैं आपसे प्यार करता हूॅं पर वास्तव में हमारे दिल में उनके प्रति प्रेम व चाहत की कमी है। पिछले साल केरल जा रहा था, जब मैं एयरपोर्ट पर था तब मेरे पिछले साल के कार्यक्षेत्र के होस्टल वार्डन का फोन आता है मैं उन से बात कर ही रहा था कि मेरे मन में ख्याल आया कि विडियो कॉल करके मेरे होस्टल के बच्चों को एयरपार्ट और फलाइट्स वगैरह दिखाऊ। मैंने विडियो कॉल किया और बैक कैमरे को एयरपोर्ट इधर—उधर घुमा—घुमा के बच्चों दिखाने लगा कि देखो ये एयरपोर्ट है, ये वैटिंग रूम है इधर गेट है, उधर फलाइट्स उतरती हैं।और वो देखो फलाइट टेक आॅफ कर रही है आदि। मैं सोच रहा था बच्चे बहुत उत्सुकता से ये सब देख रहे होंगे और उन्हें आनन्द आ रहा होगा। पर मैं क्या सुनता हूॅं कि एक बालक बोलता है ये सब तो ठिक है फादर जी फ्रंट कैमरा आॅन करो हमें तो आपको देखना है। मैं ने पूछा क्यों मजा नहीं आ रहा? वह बोला बहुत दिन हो गये आपको नहीं देखा, हमें तो आपको देखना है। मैं तो सन्न रह गया। यह एक छोटी सी घटना थी पर मुझे बहुत कुछ सिखा गई। उन बच्चों के लिए एयरपोर्ट की चका—चौंध, हवाई जहाज उतरते चढते देखना, ये सब उतना उत्सुकता का विषय नहीं था जितना उनके लिए फादर को देखना था क्योंकि फादर के प्रति उनके दिल में प्रेम था, एक चाहत थी। क्या हमारे मन में ईश्वर को लेकर इस प्रकार की भावना आती है कि मुझे और कुछ नहीं देखना, मुझे सिर्फ येसु को देखना है? मुझे और कुछ नहीं सुनना मुझे येसु की वाणी सुनना है। मुझे और किसी के प्यार की जरूरत नहीं मुुझे से येसु का प्यार चाहिए, मैं इस दुनिया में सिर्फ येसु को ही पा लूॅं और स्वर्ग राज्य में उनके साथ रहूॅं यही मेरी अंतिम तमन्ना है।
काश कि हम स्वर्ग की कीमत जान पाते, हम स्वर्ग का मूल्य और उसका महत्व समझ पाते हम इस नष्ट होने वाली दुनिया और इस दुनिया की भ्रमित करने वाली व धोखा देने वाली चीजों को अपना दिल नहीं देते। हम मसीह में अपना मन व दिल लगाये रखते।
संत पौलुस फिलिपियों 3:8 में कहते हैं — '' मैं प्रभु येसु मसीह को जानना सर्वश्रेष्ठ लाभ मानता हूॅं और इस ज्ञान की तुलना में हर वस्तु को हानि ही मानता हूॅं। उन्हीं के लिए मैं ने सब कुछ छोड़ दिया है और उसे कुडा मानता हूॅं। संत पौलुस के लिए सिर्फ मसीह को जानना ही सबसे बडा लाभ था बाकि सब कुछ उनके लिए कचरा ही था। ऐसा क्यों? संत पौलुस ने येसु को पहचाना था। उन्होंने येसु में बेशकीमती मोत्ती देखा। पवित्र कलीसिया में कितने ही संत हुए हैं जिन्होंने येसु और उनके राज्य को प्रार्थमिकता दी। संत फ्रांसिस असीसी ने जब येसु को जाना, तो उन्हें पाने के लिए उन्होंने अपना परिवार, माता—पिता, अपनी संपत्ती यहॉं तक की अपने पहने हुए वस्त्रों को भी त्याग दिया। मदर तेरेसा ने जब गरीबों व दीन—दुखियों में येसु को देखा और पहचाना तो उन्होंने अपना सब कुछ छोडकर उन बेसहारों में बसे येसु की सेवा में लग गई। प्रभु येसु ने कहा है — ''तुम सबसे पहले ईश्वर के राज्य और उसकी धार्मिकता की खोज में लगे रहो और सब चीजें तुम्हें यूॅं ही मिल जायेगी।'' (मत्ती 6:33)
ईश्वर की सबसे पहली आज्ञा यही है कि ईश्वर को अपने सारे हृदय, अपनी सारी आत्मा और सारी बुद्धि से प्यार करो।''
आईये प्यारे विश्वासियों हम प्रभु से प्रार्थना करें कि प्रभु हमें उन्हें समझने की कृपा प्रदान करें। हम येसु और उनके राज्य की बातों के महत्व को समझें, उसकी कीमत को जानें यह भी जानें कि इस दुनिया की सारी बातें ईश्वर के सम्मुख कितनी मुल्यहीन और व्यर्थ हैं। प्रभु हमें जीवन में सही का चुनाव करना सिखायें। हम संत पौलुस की तरह यह कह पायें कि मैं प्रभु येसु मसीह को जानना सर्वश्रेष्ठ लाभ मानता हूॅं और इस ज्ञान की तुलना में हर वस्तु को हानि ही मानता हूॅं। उन्हीं के लिए मैं ने सब कुछ छोड़ दिया है और उसे कुडा मानता हूॅं।'' आमेन।
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