Friday, 3 July 2020

14 th Sunday in Ordinary Time, 5 July 2020



Zec 9:9-10
Rom 8: 9, 11-13
Mt. 11:25-30

आज के पहले हम पाठ में इस्राएल के राजा के गधे पर सवारी करने के बारे में सुनते हैं। किसी राजा का एक गधे की सवारी करना उसकी विनम्रता का प्रतीक माना जाता था।  आज के सुसमाचार में प्रभु येसु भी स्वयं को स्वाभाव से विनम्र और विनित बताते हैं। जब प्रभु येसु अपनी मृत्यु के पहले, येरुसलेम में आने वाले मसीहा वा राजा के रूप में महिमामय प्रवेश कतरे हैं, तब वे अपनी इस विनम्रता को एक गदही के बछड़े की सवारी करके प्रकट करते हैं।     
पवित्र बाइबिल में गरीब और दीन-हीन लोग प्रभु के चुने हुए व आशीषित लोग माने गए हैं।  खासकर के लूकस के सुसमाचार में प्रभु येसु के बाल्यकाल की घटनाओं में हम पाते है कि कैसे दींन - हीनों की ज़िन्दगी में प्रभु की आशीष मिलती है , जैसे: -  मरियम और ज़करियस दोनों गरीब और दुर्भाग्यवान थे; मरियम को  अपने बेटे को जन्म देने के लिए ढंग की जगह भी नहीं मिलती; बालक येसु के प्रथम दर्शन हेतु गरीब चरवाहे आते हैं; संत जोसफ बालक येसु को मंदिर में चढ़ाते समय कोई बड़ी भेंट नहीं दे पाता वह कपोतों का एक जोड़ा ही चढ़ा पाता  है, जो कि एक गरीब की भेंट मानी जाती है; मंदिर  में विधवा अन्ना और बूढ़ा सिमयोन ये सब थे गरीब व दींन -हीन पर इनकी ज़िन्दगी में बहुत ही अनुग्रह था, प्रभु की आशीष थी।  माता मरियम ने इस तथ्य की अभिव्यक्ति अपने भजन में कुछ इन शब्दों में की - "उसने घमंडियों को तितर-बितर क्र दिया है। उसने शक्तिशालियों को उनके आसानों से गिरा दिया और दिनों को महान बना दिया है। " (लूकस 1:51-52) 

 आज का दूसरा पाठ रोमियों अध्याय आठ से लिया गया है। इसमें ‘‘आत्मा‘‘ शब्द का प्रयोग बीस बार किया गया है। आज के चार वाक्यों में ‘‘आत्मा‘‘ शब्द 6 बार आया है। यह संत पौलुस की उस शिक्षा का प्रमाण है जो आध्यात्मिकता से सम्पन्न है। संत पौलुस हमें चेतावनी देते हैं कि हमें सांसारिकता से ऊपर उठकर आध्यात्मिकता को महत्व देना है, शारीरिक जीवन की तुलना में आत्मिक जीवन को प्राथमिकता देना चाहिये। अगर हम शरीर की इच्छा के अनुसार जीयें तो शरीर के कर्जदार बन जायेंगे। हम खीस्तीय बपतिस्मा स्वीकार कर चुके हैं। बपतिस्मा संस्कार में हम सबके सब पाप की ओर से मर चुके हैं। हमारा पुराना स्वभाव उन्हीं के साथ क्रूस पर चढ़ाया जा चुका है, जिससे पाप का शरीर मर जाये और हम फिर पाप के दास न बनें। इसलिये हमें आत्मा से प्रेरित होकर जीवन बिताने के लिये संत पौलुस सलाह देते हैं। 

शरीर के कुकर्मों का आशय सिर्फ दैहिक वासनाओं  की पूर्ति ही नहीं संत पौलुस इसका दायरा विस्तृत हुए गलातियों  को लिखे पत्र 5: 19 में बतलाते हैं - "शरीर के कुकर्म प्रत्यक्ष हैं - अर्थात व्यभिचार, अशुद्धता, लम्पटता, मूर्तिपूजा, जादू-टोना, बैर, फूट , ईर्ष्या, क्रोध, स्वार्थपरता, मनमुटाव, दलबंदी, द्वेष, मतवालापन, रंगरेलियाँ, और इस प्रकार की बातें।  याने हम जो कुछ भी अपने खुद  के स्वार्थ की पुत्री के लिए करते हैं , वे सब पापमय हैं।  

हमें इन प्रवृतियों का दास बनकर नहीं बल्कि इन से ऊपर उठाकर आत्मा से संचालित जीवन जीना है।  हमारे जीवन में  पापमय प्रवृतियों और आध्यात्मिकता के बीच एक द्वन्द युद्ध निरंतर चलता रहता है।  संत पौलुस इसके विषय में रोमियों को लिखे पत्र अध्याय 7 में वर्णन करते हुए कहते है - "हम जानते हैं कि संहिता आध्यात्मिक है, किन्तु मैं प्रकृति और पाप का का दास हूँ , मैं अपना ही आचरण नहीं समझ पाता। ... क्योंकि भलाई करने की इच्छा तो मुझमें विद्यमान है , किन्तु उसे क्रियान्वित करने की शक्ति नहीं।  मैं जो भलाई चाहता हूँ, वह कर नहीं पाता, बल्कि जो बुराई नहीं चाहता, वही कर डालता हूँ।"

क्या संत  पौलुस की तरह  हम सब भी इस आध्यात्मिक और सांसारिक द्वन्द युद्ध से रूबरू होते ? शायद रोज़ ही।  संत पौलुस की तरह यदि हम अपने पापमय स्वाभाव को येसु मसीह  के साथ क्रूस पर नहीं चढ़ाते तो  हमारा झुकाव  संसार व पाप की और ही रहेगा, शरीर  और शरीर की अभिलाषाओं, संसार  और सांसारिकता की ओर की  रहेगा।  जो अपने जीवन में पवित्र आत्मा की आवाज़ को नज़र अंदाज़ करता है, सुनकर भी अनसुना करता है धीरे -धीरे वह ईश्वरहीनता का एहसास करने लगता है और पाप का गुलाम बन के रह जाता है।  भलाई और बुराई , पाप व धार्मिकता के बीच चुनाव करने के लिए हमें येसु से सीखना है  जो आज के सुसमाचार में हमसे कहते है - "मुझसे सीखो " 

आज के सुसमाचार में प्रभु येसु  कहते हैं , मेरा जुआ अपने ऊपर ले ले और मुझ से सीखो।  यहूदियों के लिए जुआ मूसा की संहिता का प्रतिक था, जिसका पालन करना  कई लोगों के लिए एक बोझ जैसा था, हालाँकि यह ईश्वर का अपनी प्रजा के प्रति प्रेम का प्रतिक व अपने लोगों को ईश्वर से जोड़ने वाली एक कड़ी था। ।  इस सन्दर्भ में प्रभु येसु कहते  हैं मेरा जुआ सहज और मेरे बोझ हल्का है।  प्रभु येसु कोई तानाशाही मालिक या गुरु नहीं थे , पर वे तो सबों के साथ सहानभूति रखने वाले कोमल और विनम्र व्यक्ति थे जिन्होंने अपना जीवन अपने अनुयायों के लिए दे दिया।  उनका जुआ कोई बाहरी कानून  नहीं वरन आत्मा का आतंरिक आवेग है, जैसा कि आज के दूसरे पाठ में संत पौलुस हमसे  कहते हैं।  जो आत्मा के द्वारा संचालित है उनके लिए ईश्वर की इच्छा पूरी करना एक आनंद का विषय होता है।  यह उनके लिए कोई बोझ नहीं लेकिन  ऐसा करके वे अपने  ईश्वर के  प्रति अपना प्रेम ज़ाहिर  करते हैं।  येसु मसीह का अनुसरण करने वाले व्यक्ति के जीवन में ज़रूर उसे अपना जुआ ढोकर चलना है , अपना क्रूस उठाना है।  दुःख, तकलीफ, पीड़ाये, परेशानियाँ , अत्याचार ये सब आना स्वाभाविक है।  पर जो व्यक्ति आत्मा और आत्मिक बातों को अहमियत देता है वह इन सब बातों को अपनी आत्मा के हित में एक आशीष के तौर पर ग्रहण करता है।  

प्रभु येसु का आह्वान है कि हम उनका जुआ अपने ऊपर ले लें।  याने उनका मनोभाव धारण करें।  ज़िन्दगी की हकीकत से रूबरू होने के लिए हम मसीह का नजरिया अपनाएं।  संत पौलुस फिलि 2:5 में कहते हैं - "आप अपने मनोभावों को मसीह के मनोभावों के  अनुसार बना लें। " 

इसलिए मसीह के अनुयायों को मसीह के सामान मनोभाव रख कर दूसरों के साथ व्यव्हार करना चाहिए: किसी के लिये बोझ बनकर नहीं बल्कि दूसरों का बोझ  हल्का करने बनना चाहिए।  ख्रीस्त की प्राथमिकता आत्मा की मुक्ति है। आइए हम हमारे जीवन के हरेक बोझ को इस यूखारिस्तीय समारोह में प्रभु के समक्ष लाये औरविश्वास करें की प्रभु उसेअवश्य हल्का करेंगे। हम एक-दूसरे का बोझ भी परस्पर प्रेम, भाईचारे और परोपकार के माध्यम से हल्का करते रहें व परहित में अपना जीवन बिताएं। आमेन।  

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Have a Blessed Sunday 


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