Thursday, 16 July 2020

16th Sunday in Ordinary Time Cycle A Hindi Sermon

प्रज्ञा 12:13,16-19 
रोमियों 8:26-27 
मत्ती 13:24-44 
आज का पहला पाठ प्रज्ञा ग्रंथ् से लिया गया है। ऐतिहासिक दृष्टिकोण से यह ग्रंथ प्रभु येसु के जन्म के करीब सौ वर्ष पहले सिकन्दरिया में रहने वाले ग्रीक भाषी यहूदियों के लिए लिखा गया था। आज के पाठ में हम ईश्वर की दयालुता और पापियों को लेकर उनके धीरज के बारे में पढते हैं। पवित्र बाइबल के पन्ने शुरू से लेकर अंत तक पलट के देखने पर ईश्वर का जो स्वभाव हमारे सामने उभर कर आता है वो है कि बाइबल का ईश्वर एक दयालु और करूणामय ईश्वर है। मनुष्य का स्वभाव प्रारम्भ् से ही विद्रोह और अवज्ञा का रहा है। इंसान वही करता है जो ईश्वर की दृष्टी में बुरा है। हमारे आदि माता—पिता से लेकर आज तक इंसान अपने जीवन में कई पाप प्रकार के बूरे काम और पाप करता ही रहता है। और इस पाप की प्रवृति से शायद ही कोई अछुता रहता होगा। संत पौलुस रोमियों को लिखे पत्र 3:23 में कहते हैं — ''सबों ने पाप किया और सब ईश्वर की महिमा से वंचित किये गये।'' वैसे ही संत योहन अपने पहले पत्र 1:8 में कहते हैं — ''यदि हम कहते है कि हम निशष्पाप हैं, तो हम अपने आप को धोखा देते हैं और हम में सत्य नहीं है।'' मैं जब से समदार हुआ हूँ, मैं ने बहुत ही कोशिश की है कि मैं एक निष्पाप और पवित्र जीवन जीयूँ। पर मैं जानता हूँ कि मैं इसमें कभी पूरी तरह से सफल नहीं हो पाया हूँ। क्योंकि जैसा संत पौलुस कहते हैं  रोमियों को लिखे पत्र 7:14—15 में कि मैं प्रकृति और पाप का दास हूँ। . . . क्योंकि मैं जो करना चाहता हूँ, वह नहीं करता बल्कि वही करता हूँ, जिससे मैं घृणा करता हूँं।''
तो यहाँ पर हम देखते हैं कि मनुष्य पाप का दास है। कई बार वह पाप व प्रलोभन के सामने खुद को बेबस पाता है, निस्सहाय पाता है। ठिक उसी प्रकार जैसे हेवा अपनी बेबसी में, शैतान के बहकावे में आकर फल तोडकर खा लेती है। 
ईश्वर मनुष्य की इसी कमज़ोरी का कारण उसके पाप पर पाप करत रहने पर भी उसे तुरन्त नष्ट नहीं करता।  उत्पत्ति् ग्रंथ 8:21 में हम पढते हैं जब नूह के समय में ईश्वर ने मनुष्यों के पाप के कारण समस्त जलप्रलय के द्वारा पापियों का विनाश किया था तब जलप्रलय के बाद ईश्वर ने कहा था — ''मैं मनुष्यों के कारण फिर कभी पृथ्वी को अभिशाप नहीं दूँगा; क्योंकि बचपन से ही उसकी पवृति बुराई की ओर होती है।''
यही सच्चाई है कि ​बचपन से ही हमारा झूकाव पाप की ओर होता है, बुराई की होता है। इसलिए प्रभु हमारी कमज़ोरियों में हम से कठोरता से पेश नहीं आते। स्तोत्र ग्रंथ 103:13 में प्रभु का वचन कहता है — ''पिता जिस तरह अपने पुत्रों पर दया करता है, प्रभु उसी तरह अपने भक्तों पर दया करता है, क्यांकि वह जानता है कि हम किस चीज़ के बने हैं; उसे याद रहता है कि हम मिट्टी हैं।'' यही कारण है प्यारे भाईयों और बहनों कि हमारा ईश्वर हम पर क्रोध करने में देरी करता है। निर्गमन ग्रंथ 34:6 में वचन कहता है — ''प्रभु एक करूणामय तथा कृपालु ईश्वर है। वह देर से क्रोध करता और अनुकम्पा तथा सत्यप्रतिज्ञता का धनी है।''आज के पहले पाठ के द्वारा दयालु ईश्वर का यही चेहरा हमारे सामने लाया गया है जहाँ वचन कहता है — ''तूने पुत्रों को यह भरोसा दिलाया कि पाप के बाद तू उन्हें पश्चाताप का अवसर देगा।''
और आज के सुसमाचार में प्रभु येसु दयालु पिता के इस स्वभाव को एक दृष्टाँत के द्वारा समझाते हैं। प्रभु हमारे सामने आज फिर से एक बोने वाले का दृष्टाँत रखते हैं। आज के दृष्टाँत में बोने वाला अच्छे ​बीज बोता है परन्तु बैरी आकर अच्छे बीजों के बीच जंगली बीज बिखेर कर चला जाता है। इस दुनिया में अच्छे बीच आप और हम हैं। ईश्वर ने हम सब को अच्छा बनाया है; वचन कहता है कि ईश्वर ने मनुष्य को अपने प्रतिरूप बनाया है। हमारे अंदर ईश्वर ने धार्मिकता और पवित्रता के बीज बोये हैं; परन्तु मौका देखकर शैतान हमारे अंदर बुराई के बीज बोकर चला जाता है। और हम तब बुराई करने लगते हैं, हमारा झुकाव पाप की ओर हो जाता है; और जैसे—जैसे बुराई हम में बढती है, हम ईश्वर से दूर होते चले जाते हैं। और जब हम पाप करते हैं तो उसके ऐवज में मौत कमाते हैं। संत पौलुस रोमियों 6:23 में कहते हैं — ''पाप का वेतन मृत्यु है।''  हम यह सब जानकर भी यदि पाप करते हैं तो इसका मतलब यह हुआ कि हम पाप करके अपनी ही आत्मा की मौत कमा रहे हैं। नरक में अनन्तकाल की मृत्यु कमा रहे हैं। 
पर हमारा प्रमी ईश्वर यह कभी नहीं चाहता 

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