Saturday, 15 April 2017

पास्का पर्व , 2017

मेरे प्रिय भाईयों बहनों आज की पूजनविधि में  हम प्रभु के पुनरूत्थान पर मनन चिंतन करेंगे। योहन  11,33 में वचन कहता है - पुनरूत्थान और जीवन मैं हूँ। .......
हमने बीते दिनों में प्रभु येसु के दुखभोग एवं मरण की यादगारी मनाई। उनकी मृत्यु के बाद  उनके कुछ शिष्यों  ने उनकी पवित्र लाश  उतारी और उन्हें कब्र में रख दिया। प्रभु येसु के विरोधियों ने उनकी कब्र पर बडा सा पत्थर रखकर उस पर मूहर लगा दी यह सोचकर कि इसने पहले से कहा था कि वह तीसरे दिन जी उठेगा। न जाने कब उन के शिष्य आयेंगे और इसकी लाश  को ले जायेंगे। प्रभु के विरोधियां ने सोचा सारी कहानी का अंत वहां हो गया। सब कुछ खत्म हो गया। लेकिन हम प्रेरित चरित  2, 24 में हम पढते हैं, जहां संत पेत्रुस कहते हैं  - ‘‘ ईश्वर  ने मृत्यु क बंधन खोलकर उन्हें पुनर्जीवित किया। यह असंभव था कि प्रभु येसु मृत्यु के वश  में रहे।’’ मृत्यु के अधीन, उसके अधिकार में उसके बंधन में रहना प्रभु येसु के लिए असंभव था।

प्रभु येसु के शिष्यों के अंदर भी डर था। और इसिलिए वे लोग भी सोच रहे थे कि सारी कहानी खत्म हो गई है, और वे जाकर एक कमरे में अपने-आप को बंद कर के छिप गये। अपने आप में ग्लानी महसूस कर रहे थे। अपने किये कार्यों पर ग्लानी व दुःख महसूस कर रहे थे कि दुखित क्षणों में हमने प्रभु को छोड दिया। हमने प्रभु का तिरस्कार किया। सबों पर उदासी छायी हुई थी। सब डरे हुए थे एक बंद कमरे में, मानो वे मरे हुए थे। 

संत योहन 20, में हम पढते हैं उनके बंद कमरे में पुनर्जिवित प्रभु येसु प्रवेश करते  हैं। और पुनर्जिवित प्रभु येसु का सामर्थ्य उस कमरे में भर जाता है। उनका प्रकाश  उस कमरे में भर जाता है। उनका जीवन उस कमरे में भर जाता है। इस तरह 2 तिमथी 1,10 में वचन कहता है - ‘‘ईसा ने मृत्यु का विनाश किया और अपने सुसमाचार के द्वारा अमर जीवन को अलोकित किया है।’’ जो शिष्य डरे हुए थे, असुरक्षा मसूस कर रहे थे कमरे में बंद थे, उन में प्रभु येसु ने एक नये जीवन का संचार किया। वे मरे -मरे थे उन पर प्रभु येसु ने जीवन का संचार किया। उनके उपर जो ग्लानी की भावना थी दुख से भरे थे, उन्हें प्रभु येसु ने आनन्द से भर दिया। जैसे कि एक पौधा, जो पानी के आभाव में मुरझा रहा हो, सूखने-सूखने को हो और अचानक उसे पानी किल जाए तो  वह फिर से खिल उठता है। हरा-भरा हो जाता है वैसे ही प्रभु के  शिष्यों में नई जान आ जाती है।

हम सुसमाचार में पढते हैं कि प्रभु येसु के प्रिय  शिष्याओं  में से एक मरियम मगदलेना और कुछ नारियां प्रभु येसु की कब्र की ओर जाती है। प्रातः का समय था वे आपस में सोच रहे थे कि हमारे लिए कौन कब्र को खोल देगा ताकि हम उनकी लाश  पर इत्र लगाएं। और ऐसा सोचते हुए वे कब्र के पास जा रही थी, सुसमाचार हमें बताता है कि जब वे वहां पहुंचती है तो कब्र खुली हुई थी। मरियम दौड कर आयी पेत्रुस और योहन को बुला लाई उन्होंने भी देखा कि कब्र खुली है और येसु की लाश  उसमें  नहीं है। और वह वहीं खडी रह गई और रोने लगी। तो स्वर्ग दूतों ने पूछा नारी क्यों रोती हो। उसने कहा कि क्योंकि वे मेरे गुरू की लाश  को ले गए हैं और  मैं नहीं जानती कि वह कहां है। बाद में प्रभु येसु स्वयं उससे पूछते हैं, नारी तुम क्यों रोती हो! और वह वही जवाब देती है। अंत में प्रभु येसु उन्हें नाम लेकर उसे पुकारते हैं "मरियम " और मरियम प्रभु येसु को पहचान लेती है। पुनर्जीवित प्रभु येसु का सामार्थ्य उसके अंदर प्रवेश  कर जाता है।

इस तरह हम देखते हैं कि सुसमाचार में पढते हैं कि करीब चालिस दिनों तक प्रभु येसु अपने शिष्यों के साथ रहे और उनको बार-बार विविध रूपों में दर्शन  देते हुए इस बात का अनुभव करा रहे थे कि देखो मैं मर गया था लेकिन अभी जी गया हूँ। जैसा कि प्रकाशना 1 :18 ग्रंथ में हम पढते हैं - ‘‘जीवन का स्रोत मैं हूँ। मैं मर गया था और देखो, मैं अनन्त काल तक जीवित रहूँगा। मृत्यु और अधोलोक की कुंजियां मेरे पास है।  तो इस प्रकार करीब चालिस दिन तक प्रभु येसु ने बारम्बार अपनेशिष्यों को दर्शन  देकर इस बात का अनुभव कराया कि वे  जीवित हैं  और पुनरूत्थान पर उनका विश्वास  दृढ करवाया। और उनका जीवन परिवर्तित हो गया। 

प्रभु येसु के पुनरूत्थान ने उनके जीवन को परिवर्तित कर दिया। उनका जीवन दर्षन ही बदल गया। जीवन को देखने का नज़रिया बदल गया। उनके लिए जीवन का एक नया रास्ता खुल गया। और प्रभु के पुनरूत्थान का अनुभव इतना गहरा था कि हमें वचन बताता है कि वे जाकर प्रचार करने लगे।  फिलिपियों 3,10 में संत पौलुस कहता है - "मैं यही चाहता हूं कि येसु मसीह को जानूं और उनके पुनरूत्थान के सामार्थ्य का अनुभव करूं।’’
संत पेत्रुस प्रे. च. 2, 23-24 में प्रभु येसु के पुनरूत्थान का साक्ष्य देते हैं। यह पहला उपदेश  था और प्रभु के शिष्यों का  पहला प्रचार। उनके उपदेश की विषय-वस्तु और केंद्र प्रभु का पुनरूत्थान था। वे पुनर्जीवित प्रभु का गहरा अनुभव लोगों के साथ बांटते हैं। प्रे. च. 4, 35 में हम पढते हैं - प्रभु येसु के शिष्य बडे सामार्थ्य के साथ प्रभु येसु के पुनरूत्थान का साक्ष्य देते थे और उन पर बडी कृपा बनी रहती थी। जब हम भी पुनर्जीवित येसु का साक्ष्य देंगे हम पर भी प्रभु की कृपा बनी रहेगी।

 हम ईसाईयों को चाहिए कि हम पुनर्जीवित मसीह का साक्ष्य देंवे। कभी-कभी देखने में आता है कि हम प्रभु मसीह के क्रूस पर बलिदान तक ही अपने साक्ष्य को सीमित रखते हैं। और प्रभु येसु के बलिदान के बारे में हम साक्ष्य देते हैं। पर सच्चे  मसीही वो हैं जो प्रभु येसु के पुनरूत्थान के बारे में साक्ष्य देते हैं। आज गैर ख्रीस्त  से भी यदि हम पूछें कि आप ईसा मसीह के बारे में क्या जानते हैं तो वे बतायेंगे कि उन्होंने सत्य, अहिंसा, दया, प्रेम व क्षमा के मार्ग की न केवल शिक्षा  दी परन्तु अपने जीवन में उसे आत्मासात भी किया। उन्होंने क्रूस पर मरते समय भी अपने विरोधियों को क्षमा दी आदि। पर बहुत ही विरले हम उनके मुख से प्रभु के पुनरूत्थान के बार में सुनेंगे। क्यों? क्यों लोग प्रभु के पुनरूत्थान से अनभिज्ञ है? क्योंकि हम पुनर्जीवित प्रभु का साक्ष्य नहीं देते।    1 कुरिं 15,17 में वचन कहता - ‘‘यदि येसु मसीह का पुनरूत्थान नहीं हुआ है तो हमारा विश्वाश  व्यर्थ है।’’ हम मसीहियों के विश्वाश  का आधार है प्रभु येसु का पुनरूत्थान। हम किसी मरे हुए व्यक्ति की आराधना नहीं कर रहे हैं। हम पत्थरों अथवा मूर्तियों की नहीं,  हम एक ज़िदा खुदावन्द की आराधना करते हैं।  हम पुनर्जीवित येसु मसीह की आराधना करते हैं। जितनी यह बात  हमारे जीवन मजबूत होती जायेगी उतना आधीक हम प्रभु येसु के जीवन  का अपने जीवन में अनुभव करने लगेंगे। तो हम हर मसीही पुनर्जीवित येसु के साक्षी हैं। और हमें प्रभु येसु के पुनरूत्थान का साक्ष्य देना है।

यह साक्ष्य हमें  हमारे कर्मों एवं वचनों दोनों से देना है। हमें पुनर्जीवित मसीह की घोषणा करना है। हमें लोगों को यह बतलाना है कि हमारा प्रभु जिंदा खुदा  है। और अपने कर्मों द्वारा भी यह दिखलाना है कि हमारा प्रभु हममें, हमारे अन्दर, हमारे जीवन में जिंदा है। गलातियों  को लिखे  पत्र 
2 :20 में  में संत पौलुस कहते हैं - ‘‘मैं मसीह के साथ क्रूस पर मर गया हूँ। मैं अब जीवित नहीं रहा, बल्कि मसीह मुझ में जीवित है।’’ पुनर्जीवित मसीह मुझमें जीवित है। वो मेरे अंदर कार्य कर रहा है। वो मेरे अंदर अपने राज्य के फल उत्पन्न कर रहा है। कब्र से निकलकर वो मेरे जीवन में समाहित हो गया है। हम सब संत पौलुस के साथ आज यही बोलें - मुझमें अब से येसु जिंदा है। मेरा प्रभु मुझमें ज़िंदा है. मसीह का जीवन मुझमें मुझमें है।  मसीह का खून मेरे रगों में बह रहा है.  और यदि मसीह मुझमें जीवित है तो फिर मेरे कार्य, मेरी बातें, मेरा व्यवहार और मेरे विचार भी मसीह की तरह ही होना चाहिए। प्रभु का पुनरूत्थान मनाते समय यही भावना और यही घोषणा हम सब की होनी चाहिए। आमेन।

Saturday, 8 April 2017

Introduction for Palm Sunday Liturgy in Hindi

दुःखभोग अथवा खजूर रविवार


आज से वर्ष का सबसे महत्वपूर्ण पुण्य सप्ताह आरंभ होता है। विशेषकर अगला गुरूवार, शुक्रवार, शनिवार तथा रविवार वर्ष-भर में सबसे पवित्र दिन हैं। इन दिनों में घटी मानव इतिहास की सबसे मुख्य व केंद्रिय घटना ईशपुत्र येसु मसीह के दुःखभोग, मरण एवं पुनरूत्थान को माता, कलीसिया पुनः हमारे सामने रखती है। हम ख्रीस्तीय न केवल इन घटनाओं को ही देखें, परन्तु प्रार्थना तथा दृढ़निश्चय के साथ पूरी तरह उनमें सक्रिय रूप भाग लें।
आज का दिन प्रभु के दुःखभोग का खजूर रविवार कहा जाता है। हम पवित्र सप्ताह केवल प्रभु येसु मसीह की येरूसालेम यात्रा के ही कारण नहीं, वरन् उनके मनुष्य रूप में आने के उद्देश्य याने उनके दुःखभोग,मरण और पुनरूत्थान के कारण ही मनाते हैं। बेथानिया से जुलूस में राजा अपने राजाभिषेक एवं गद्दी पर बैठने येरूसालेम आये,परन्तु इस राजा का मुकुट काँटों का मुकुट है और उसकी गद्दी क्रूस है।

आज की प्रार्थनाएँ, भजन, पाठ तथा क्रियाएँ, यह सब बताती हैं कि हम सबके सामने प्रभु के प्रति अपना विश्वास व श्रद्धा प्रकट करते हैं। हम अपने उस राजा के साथ जुलूस में जाते हैं जिन्होंने हमारे लिए एक घमासान लड़ाई लड़ी। इसीलिए खजूर, जो विजय का चिह्न है, अपने हाथ में लेकर हम जुलूस निकालते हैं।

आज की धर्म-विधि में सब से पहले खजूरों को आशिष दी जाती है।तब पवित्र सुसमाचार से प्रभु येसु के येरूसालेम प्रवेश का वर्णन पढ़ा जाता है।
सचमुच हम आज भी उसी येसु मसीह के जुलूस में जाते हैं जिनके साथ उस पहले खजूर रविवार के दिन यहूदी लोग गए थे। येसु हमारे बीच तीन प्रकार से उपस्थित हैं-क्रूस पर चिन्ह के रूप में, उनके प्रतिनिधि पुरोहित के रूप में और हम सब के रूप में जो उनके नाम पर यहाँ एकत्रित हुए हैं।

यह जुलुस हमारे उस अंतिम जुलूस की निशानी है जिसमें हम प्रभु येसु के साथ स्वर्गीय येरूसालेम में सदा के लिए प्रवेश करेंगे।

अब हम उस प्रथम खजूर रविवार की याद करें जिस दिन प्रभु येसु मसीह स्वयं अपने शिष्यों के साथ बेथानिया से येरूसालेम गये थे। वे क्यों वहाँ गए? राजा बनने? किसी भी हालत में, सांसारिक राजा बनने नहीं।
उनका मुकुट काँटों का मुकुट था। वे हमारे लिए दुःख भोगने और मर जाने के लिए गए और अपने इस घोर दुःखभोग एवं मरण द्वारा पुनरूत्थान के लिए गए। हमारी मुक्ति उनका अनुसरण करने पर निर्भर है, यदि हम उनके साथ जी उठना चाहते हैं तो हमें उनके साथ मरना भी है। इसीलिए आज की मिस्सा की पहली प्रार्थना में हम इस प्रकार निवेदन करते हैंः-
‘‘उनके दुःखभोग के अनुसार चलने पर हमें उनके पुनरूत्थान के भी भागी बना दें।’’

खजूर की डालियों के साथ भजन गाते हुए हमारा जुलूस, आज की मिस्सा का प्रवेश गान है। मिस्सा हमें कलवारी पहाड़ी पर हुए मुक्ति कार्य की याद दिलाती व उसे सांस्कारिक चिन्हों के रूप में सजीव करती है, जबकि खजूरों के साथ जुलूस, मुक्तिदाता के पुनरूत्थान का विजय-स्मृति चिन्ह है। घर जाकर हम अपनी खजूर की डालियाँ आदर के साथ कमरों में लगे क्रूस पर लगा देंगे क्योंकि उन्हें धर्म-मण्डली की विशेष आशिष मिली है। वहाँ से ये हमें प्रभु येसु के प्रति अपनी भक्ति व श्रद्धा की याद दिलाती रहें।
पास्का का अपना पाप-स्वीकार हमें पुण्य बृहस्पतिवार के मिस्सा के पूर्व ही करना चाहिए। शनिवार तक ठहरना पवित्र सप्ताह की कृपाओं से अपने आप को वंचित रखना होगा।

खजूर रविवार, २०१७ का प्रवचन



इसायाह ५०, ४-७
फिलिपियों २,६-७
मत्ती २६, १४-६६

येसु का येरूसलेम में प्रवेश  करना बहुत ही महत्वपूर्ण है। क्योंकि यह यहूदियों के पास्का पर्व का समय था। प्रभु येसु येरूसलेम में प्रवेश  करते हैं क्योंकि उनका समय आ चुका था। 21 मार्च 2017 को न्युयाॅर्क के एक यहूदियों के प्रार्थना गृह में बम होने की अपवाह के बाद उस प्रेमिस से प्री-सकूल के बच्चों को आनन-फानन में सुरक्षित स्थानों पर पहुंचाया गया। इस प्रकार की कई घटनाओं के बारे में हम पढते और सुनते हैं। कहीं तुफान अथवा भूकम्प की से बचने के लिए लोग अपने घरों को अपने आशियांनों को छोडकर सुरक्षित स्थानों पर जाते हैं तो कहीं आतंकियों या फिर विरोद्धी सेना से बचने के लिए सुरिक्षत स्थानों को तलाशते हैं। क्योंकि हम सब मौत से डरते हैं। हम मरने से डरते हैं। कोई ज़्याद तो कोई कम, पर मौत से डर हर-किसी को लगता है। साधरणतः सभी अपने जीवन को सुरक्षित रखना चाहते हैं। हम जीना चाहते हैं। हम नहीं जानते कि हम कब तक जीयेंगे पर जीवन से हमें प्रेम है। परन्तु प्रभु येसु इस संसार में इस लिए आये कि वे मारे जायें। वो मौत को गले लगाकर मौत को हराने के लिए इस संसार में आये। वे इसलिए आये कि उनके मारे जाने से हमें जीवन मिले। उन्होंने मरना स्वीकार किया ताकि हम जीवित रहें।
वे इस मौत को एक मज़बूरी के तौर पर नहीं, परन्तु पिता की मर्जी व उसकी को योजना को पूर्णता तक पहुुँचाने के लिए स्वीकार करते हैं। उनके जीवन का मकसद ही यह था कि वो अपने स्वर्गीक पिता की इच्छा को पूरा करे। संत योहन 4, 34 में वे कहते हैं - ‘‘जिसने मुझे भेजा है उसकी इच्छा पर चलना और उसका कार्य पूरा करना, यही मेरा भोजन है।’’ पिता की इच्छा को, पिता की मरजी़ को, पिता की चाह को पूरा करना ही प्रभु येसु का भोजन था। पिता की इच्छा क्या थी? संत पौलुस हमें बतलाते हैं रोमियों 3, 25 में - ‘‘ईश्वर ने चाहा कि ईसा अपना रक्त बहा कर पाप का प्रायष्चित करें और हम  विश्वास  द्वारा उसका फल प्राप्त करें।’’ यह है पिता ईश्वर  की इच्छा। प्रभु येसु अपने पिता की इच्छा को पूरा करने के लिए व्याकुल थे। संत लूकस 12,50 में प्र्रभु कहते हैं - ‘‘मुझे एक और बपतिस्मा लेना है और जब तक वह नहीं हो जाता, मैं कितना व्याकुल हूँ।" हम सब जानते हैं कि प्रभु येसु ने अपनी सेवकाई प्रारम्भ करने के पहले यर्दन नदी में योहन बपतिस्ता से बपतिस्मा लिया था जो कि जल का बपतिस्मा था। अब वे रक्त का बपतिस्मा ग्रहण करने के लिए व्याकुल थे। एक ऐसा बपतिस्मा जो सारे संसार के पापों की क्षमा के लिए वे लेने वाले थे। वे इस दुनिया के, व सारी मानव जाती के नये पुराने सब पापों को सूली पर अपना खून बहाकर माफ करने वाले थे। व सबके पापों का दाम चुकाने वाले थे। इस पवित्र बलिदान के द्वारा वे पिता से हम  सब का पुनः मेल कराने वाले थे। सारी कायनात के उद्धार को संपन्न करने वाले थे। एक महान बलिदान देने वाले थे। इसलिए जब समय पूरा हुआ तो वे अपने इस अंतिम मिशन  की ओर चल पडते हैं। योहन 13, 1 में हम पढते हैं - ‘‘ईसा जानते थे कि मेरी घडी आ गयी है और मुझे यह संसार छोडकर पिता के पास जाना है। वे अपनों को, जो इस संसार में थे, प्यार करते आये थे और अब अपने प्रेम का सब से बडा प्रमाण देने वाले थे।’’ आज हम उस दिन की याद करते हैं जब प्रभु अपने प्रेम का सब से बडा प्रमाण देने के लिए येरूसलेम की ओर बढते हैं। हमारे प्रति पिता के प्रेम का सबूत देने के लिए वे उस नगर में प्रवेश  करते हैं जहाँ उनके प्राणों के दुश्मन उन्हें  क्रूरतापूर्वक मार डालने की योजनायें बना रहे थे।
आज प्रभु येसु, सुसमाचार की सच्चाई को अपने आपमें धारण करते हैं और उसकी घोषणा करते हैं। उन्होंने अपने षिष्यों से कहा था - ‘‘जब तक गेहूं  का दाना जमीन पर गिरकर मर नहीं जाता वह तब तक अकेला रहता है, पर जब वह मर जाता है तब वह बहुत फल उत्पन्न करता है।’’ येसु स्वयं वह बीच है जो येरूसलेम की उस प्रचीन भूमि पर गिरा। ये वही गेंहूँ का दाना है जो मरकर बहुत फल उत्पन्न करता है, जो मुक्ति के फल उत्पन्न करता है। अतः मानवों की मुक्ति के लिए उनका मरना आवश्यक  था ।
हम हमारी मृत्यु से दूर भागते हैं। परन्तु प्रभु येसु अपनी मौत को ख़ुशी  से गले लगाने के लिए येरूसालेम में प्रवेश  करते हैं। वे मौत के भय से पीछे नहीं हटते। क्योंकि वे अपनी मौत की कीमत जानते थे। वे जानते थे कि उनका हर दुख, हर दर्द, हर एक कोडों की मार, उनका हर घांव, काटों वो ताज, और हाथ पैरों की वो कीलें ये सब मानव के पापों की मुक्ति के लिए आवश्यक  हैं। प्रभु येसु के लिए अपने मानवीय जीवन से महान है पापी आत्माओं का उद्धार।
प्रभु येसु स्वर्ग के राज्य की स्थापना करने के लिए इस जहान में आये थे। जब यर्दन नदी में अपने बपतिस्मा के बाद उन्होंने सुसमाचार का प्रचार प्रारम्भ किया उनका पहला सन्देश यही था। पश्चाताप करो, स्वर्ग का राज्य निकट आ गया है। विभिन्न कहानियों एवं दृष्टांतों द्वारा वे इस राज्य के बारे में लोगों को समझते रहे। पर लोग उन्हें सही अर्थों में समझ नहीं पाये। क्योंकि ईश्वर  का राज्य संसार के राज्यों और ईश्वर  का शासन सांसारिक राजाओं के शासन से बहुत ही भिन्न है। यह हिंसा एवं खुन खराबे के साथ सत्ता हासिल करने वाला राज्य नहीं। यह निर्बलों पर निरंकुष शासन करने वाला राज्य नहीं। यह गरीबों और बेसहारों का शोषण करने वाला राज्य नहीं। परन्तु यह है विनम्रता, अंहिसा, प्रेम, दयालुता और क्षमा का राज्य। दुनिया के राजा अपने साम्राज्य के विस्तार के लिए हथियार बंद सेनाओं के साथ अपने दुष्मनों पर चढाई करते हैं। पर आज सारी दुनिया का राजा निहत्थे ही महज बारह अनुयायों के साथ पूरे संसार पर विजय पाने चल पडा है। उनको रथ, घोडों अथवा पालकी की ज़रूरत नहीं क्योंकि उनका राज्य इस दुनिया के दिखावटी वैभव पर टिका हुआ नहीं है। ये विनम्रता का राज्य है इसलिए उनके लिए एक तुच्छ समझा जाने वाला जानवर, गधा ही काफी था। वे गधे की सवारी करते हुए, विनम्रता का पाठ पढाते हुए वे येरूसलेम की ओर निकल पडे हैं। आज के दूसरे पथ में संत पौलुस हमें बताते हैं - "उन्होंने दास का रूप धारण कर तथा मनुष्यों के समान बन कर अपने को दीन-हीन बना लिया है। और मनुष्यों का रूप धारण करने के बाद वह मरण तक, हाँ क्रूस के मरण तक, आज्ञाकारी बन गये ओर इस प्रकार उन्होंने अपने को और भी दीन बना लिया है। इसलिए ईश्वर  ने उन्हें महान बना दिया है।"
जैसा कि प्रारम्भ में बताया गया है कि ये सब उस समय सम्पन्न होता है जब यहूदी लोग अपना वार्षिक पास्का पर्व मनाने पवित्र नगरी येरूसलेम आते हैं। यह पर्व मिस्र देश  से उनकी आज़ादी की धार्मिक यादगारी पर्व है जब ईश्वर  ने उन्हें मेमने के रक्त के चिन्ह द्वारा दूत की तलवार एवं फिराऊँ की गुलामी से बचाया था। ये उनकी मुक्ति का पर्व था। नये विधान का मेमना, प्रभु येसु शैतान रूपी फिराऊँ और पाप रूपी मिस्र से सारी मानव जाती को छुडाने के लिए इसी समय को चुनता हैं। हज़ारों यहूदी तीर्थ यात्रा करते हुए येरूसलेम पहुंच रहे थे। उसी बीच गधे पर सवार यहूदियों का राजा येरूसलेम की ओर बढ़ता है। तीर्थ यात्री उनके सामने रास्ते पर अपने कपडे बिछाते एवं जैतुन की डालियां लहराते हुए अपने राजा का स्वागत करते व भजन गाते हुए कहते हैं - होसन्ना, होसान्ना, होसान्ना, धन्य है वह जो प्रभु के नाम पर आते हैं स्वर्ग प्रभु को होसान्ना!!!
आज हम प्रभु येसु के साथ उस भीड में  उनके पीछे-पीछे येरूसलेम की पवित्र नगरी मेंप्रवेश  करें। आज से हम पवित्र सप्ताह का आरम्भ कर रहे हैं। यह वास्तव में अति पवित्र सप्ताह है। यह वह मुल्यवान समय है जब हमारी मुक्ति का कार्य सम्पन्न हुआ। विभिन्न प्रकार के लोग इस भीड मे प्रभु के साथ येरूलेम में प्रवेश  कर रहे हैं। हम भी इस भीड के साथ पवित्र नगरी मेंप्रवेश  करें। और हमारी मुक्ति के उन मुल्यवान पलों को हमारे जीवन में जिंदा करें। सैकडों की भीड जो आज होसान्ना गा रही है, जो आज प्रभु की तारीफ कर रही है, तीन दिनों के बाद - इसे क्रूस दो, इसे क्रूस दो कह कर चिल्लाएगी। तीन सालों तक उनके करीब रहकर उनके वचनों को सुनने वाले व चिन्ह और चमत्कार देखने वाले शिष्य  भाग खडे होंगे, सबसे भरोसेमंदशिष्य  पेत्रुस, याकूब और योहन गेथसेमनी की प्राणपीडा के समय प्रार्थना करके उन्हें ढाढस बंधाने की जगह, सो जायेंगे। पिलातुस उन्हें निर्दोष मानकर रिहा करने का मन बनाने पर सारे यहूदी नेता और भीड उनके विरूद्ध एक स्वर में उन्हें क्रूस देने की गुहार लगाएंगे। उनके साथ मर जाने की बात कहने वाला पेत्रुस उन्हें पहचानने तक से इनकार कर देगा। उनका ही करीबी मित्र चाँदी के चंद सिक्कों के बदले उन्हें बेच देगा। झूठादोषारोपण, अन्यायपूर्ण दंड़, सैनिकों की क्रूरता, उनके द्वारा किया गया अपमान, सब के द्वारा ठुकराया गया एक अभागे इंसान से येसु कलवारी के पहाड़ पर मुक्ति का महायज्ञ सम्पन्न करने जा रहे हैं। उनके इन अत्यंत दुःखमयी पलों में उनकी प्यारी माँ मरिया, कुछ धार्मिक स्त्रियाँ, संत योहन, अरिमिथिया का युसूफ एवं निकोदेमुस उनके आस-पास रहते हैं। जब हम प्रभु के साथ मुक्ति के इन पलों को मनाने जा रहे हैं तो हम अपने आप से पुछें कि मैं किसका किरदार अदा करने जा रहा हूँ? उस धोखेबाज भीड का जो कभी होसन्ना तो कभी क्रूस देने की बात कहती है? या उन शिष्यों  का जो डर के मारे उन्हें छोडकर भाग खडे होते हैं अथवा उन्हें पहचाने से भी इनकार कर देते हैं? या फिर उन सैनिकों का जो अपने ही प्रभु ईश्वर पर हाथ उठाते हैं, जो अपने ही मुक्तिदाता पर कोडे बरसाते हैं? या फिर माता मरियम, धार्मिक नारियों एवं संत योहन का जो कि प्रभु के इन असहय दुखों की घडी में उनके साथ रहे व उनके दुखों में भागीदार हुए? या फिर उस भले डाकू का जो यह कहता है कि प्रभु आप जब अपने राज्य में आयेंगे तो मुझे याद कीजिएगा। सारी जिंदगी बुराईयों में बिताने के बाद भी अंतिम क्षणों का उसका पश्चाताप उसे स्वर्ग दिला देता है। प्रभु उससे कहते हैं आज ही तुम मेरे साथ स्वर्ग में होंगे। उसने विश्वास  किया कि येसु उसको अनन्त मृत्यु से बचा सकते हैं। वचन कहता है रोमियों 3, 25 में - ‘‘ईश्वर  ने चाहा कि ईसा अपना रक्त बहा कर पाप का प्रायष्चित करें और हम विष्वास द्वारा उसका फल प्राप्त करें।’’ आइये हम हमारे कमजोर टूटे व जर्जर विश्वास  को बटोरते हुए, अपनी बिखरी हुई मानवता को समटते हुए इस पवित्र एवं मुक्ति के सप्ताह में प्रवेश करें। प्रभु के साथ हमारी मुक्ति के उन पलों को सजीव करें, जब हमारे प्रभु येसु ने दुःख भोगा, क्रूस पर चढाये गये मर गये, दफनाये गये व तीसरे दिन वे फिर जी उठे।
आमेन।




Saturday, 25 March 2017

चालीसे का चौथा रविवार, 22 March 2020

1 सामुएल 16, 1- 7.10-13
एफेसिओ 5, 8-14
योहन 9, 1-41
आध्यात्मिक अंधापन 
आज के मनन चिंतन के लिए हमारे पास है एक अंधे व्यक्ति के चंगा किये जाने का सुसमाचार पाठ है। प्रभु येसु जन्म से अंधे एक व्यक्ति को चंगाई प्रदान करते हैं। फरीसी और शास्त्री इस चंगाई को लेकर बडा बवाल खडा कर देते हैं। और प्रभु येसु पर विश्राम दिवस को अपवित्र करने का आरोप लगाते हैं। अंत में वे उस व्यक्ति को सभागृह से बहिष्कृत कर देते हैं। चंगा करते समय वह व्यक्ति नहीं जान रहा था कि जिसने उसे चंगा किया है वह कौन है। बाद में प्रभु येसु उससे मिलते हैं और अपने आपको उस पर प्रकट करते हैं, और वह प्रभु की आराधना करता है। योहन इस चमत्कार के द्वारा हमारे सामने लोगों के आध्यात्मिक अंधेपन पर प्रकाश  डालता है तथा प्रभु येसु को संसार की ज्योति के रूप में प्रस्तुत करता है।
बडी रोचक बात यह है कि यहां चमत्कार का विवरण केवल दो वाक्यों में समाप्त हो जाता है लेकिन उस चमत्कार को लेकर जो विवाद खडा होता है उसका विवरण 39 वाक्यों में किया गया है।

वह व्यक्ति शारीरिक रूप से अंधा था जिसे प्रभु दृष्टि प्रदान करते हैं और वह देखने लगता है। उसी प्रकार प्रभु चाहते थे कि फरीसी और शास्त्री लोग जो कि आध्यात्मिक रूप से अंधे हैं वे आध्यात्मिक दृष्टि प्राप्त करें। पर वे अपने अकडपन व जिद्द के कारण नहीं सुधर पाये। फरीसियों का धार्मिक रवैया बडा विचित्र था। वे सोचते थे कि वे धर्मग्रंथ के ज्ञाता हैं। उन्हें सब कुछ मालुम है। बाकि लोग कुछ भी नहीं जानते हैं। वे सबसे धार्मिक एवं ज्ञानी लोग हैं। अपने इसी रवैये के चलते वे हमेश  दूसरों में दोष निकालने व उन पर उंगली उठाने की ताक में लगे रहते थे। यही उनका अध्यात्मिक अंधापन है। उनको दूसरों की अच्छाई कभी नज़र नहीं आती। प्रभु  येसु ने जो भलाई का काम किया उस अंधे व्यक्ति के लिए वो उन्हें नहीं दिखा। उन्हें दिखा तो सिर्फ विश्राम दिवस का कानून कि उस दिन कोई काम न करे।

आध्यात्मिक अंधापन कई प्रकार का हो सकता है। जैसा कि हमने पहले पाठ में सुना जब समुएल  दाऊद राज-अभिषेक करने गया तो उसने यशेए  के बडे बेटे को देखा, उसके रंग-रूप, और लम्बे कद को देखकर सोचता है कि वही ईश्वर का अभिषिक्त है। परन्तु प्रभु उनसे स्पष्ट शब्दों में कहते हैं - ‘‘उसके रूप-रंग और लम्बे कद का ध्यान न रखो। मैं उसे नहीं चाहता। प्रभु मनुष्य की तरह विचार नहीं करता। मनुष्य तो बाहरी रूप -रंग देखता है, किंतु प्रभु हृदय देखता है।’’

हम भी इस प्रकार के अंधेपन के शिकार कई बार हो जाते हैं। हम बाहरी तौर पर देखकर लोगों के ऊपर निर्णय देते हैं। हम वास्तविकता को जाने बगैर ही कई बार लोगों के विरूद्ध बातें करते हैं। उन्हें कोसते हैं, उन पर दोष लगाते हैं। और फरीसियों की तरह ये सोचते हैं कि हम सब कुछ जानते हैं। हमें सब पता है। ऐसे लोगों का दृष्टिकोण यही रहता है कि जो वे देखते और सोचते हैं वही सच्चाई है। अपनी संकीर्ण सोच के पैमाने से सब लोगों को देखते व जज करते हैं।
शारीरिक अंधेपन को दूर करना शायद आसान है लेकिन अध्यात्मिक अंधापन दूर करना मुश्किल काम है। क्योंकि शारीरिक रूप से अंधे व्यक्ति को तो यह मालूम रहता है कि वह अंधा है। वह इस सच्चाई को स्वीकार करता है। लेकिन आध्यात्मिक रूप से अंधे लोग इस बात को स्वीकार नहीं करते कि वे अंधे हैं। इसलिए उनका सुधार बहुत मुश्किल रहता है। आध्यात्मिक रूप से अंधे लोग बेहद स्वार्थी होते हैं। उन्हें अपने जीवन से बाहर कुछ दिखाई नहीं देता। उन्हें समाज में हो रहे पाप नहीं दिखते, गरीबों के आँसू, बेसहारों की पीडा, व दलितों की दयनीय स्थिति नज़र नहीं आती। उन्हें दिखता है तो सिर्फ अपना स्वार्थ। वे अंधकार में जीवन जीते हैं। हम जानते हैं कि जहाँ अंधकार है वहां कुछ देख नहीं पाते। परन्तु जहाँ प्रकाश है वहां सब कुछ साफ-साफ दिखाई देता है। इसलिए आज के दूसरे पाठ में प्रभु येसु हम से कहते हैं - ‘‘आप लोग पहले अन्धकार थे, अब प्रभु के शिष्य होने के नाते ज्योति बन गये हैं। इसलिए ज्योति की संतान की तरह आचरण करें।’’ हम प्रभु येसु के शिष्य  होने के नाते अंधकार को पार कर ज्योति में आ गये हैं। प्रभु येसु कहते हैं - ‘‘संसार की ज्योति मैं हूँ। जो मेरा अनुसरण करता है, वह अंधकार में भटकता नहीं रहेगा। उसे जीवन की ज्योति प्राप्त होगी’’ (योहन 8,12)। जो प्रभु येसु में विश्वास करते हैं, जो कोई उनका अनुसरण करते हैं वे पापमय अंधकार में नहीं भटकेंगे। प्रभु येसु की यह ज्योति हमें कहाँ से प्राप्त होगी।? स्तोत्र 119,105 में वचन कहता है - ‘‘तेरा वचन मुझे ज्योति प्रदान करता और मेरा पथ आलोकित करता है।’’ जि हाँ प्रभु के वचन हमारे जीवन के लिए ज्योति हैं। यदि हम हमारे जीवन का आध्यात्मिक अंधापन दूर करना चाहते हैं तो हमें हर बात हर चीज़, वचन के उजाले में देखने की ज़रूरत है। कुछ करने या बोलने के पहले हम वचन के पैमाने पर हर चीज़ को तोलें ।

आईये हम वचन की रोशनी में जीवन की हर घटना को देखने की कोशिश करें। जब तक हम प्रभु के वचनों को पढेंगे नहीं, उनके ऊपर मनन चिंतन नहीं करेंगे हम अंधकार में ही भटकते रहेंगे। वचन को सिर्फ पढने मात्र से हमें दिव्य ज्योति प्राप्त नहीं होगी। प्रभु कहते हैं - ‘‘तेरी शिक्षा का पालन करने से ही नवयुवक निर्दोष आचरण कर सकता है’’ (स्तोत्र 119, 9)। और संत याकूब हमें हिदायत देते हैं - आप लोग अपने आप को धोखा न दें। वचन के श्रोता ही नहीं, बल्कि उसके पालनकर्ता भी बनें’’ (याकूब 1,22)। केवल वचन पढकर अथवा सुनकर ये न सोचें कि हम ने हमारा कर्तव्य पूरा कर लिया। हमें रौशनी मिल गयी है,ं हमें ज्योति मिल गयी है। वचन के श्रोता बनने भर से हमारा जीवन आलोकित नहीं होता उसका पालन करने से वचन की रौशनी हमारे जीवन में प्रभावशाली होती है।। आईये, हम तपस्या के इन दिनों में, प्रभु वचन से अपनी आध्यात्मिक भूख व प्यास मिटायें। व प्रभु के वचन को पढकर, उसे सुनकर अपने जीवन में उस वचन को काम करने दें। ताकि हम सचमुच में ज्योति की संतान के रूप में इस संसार में रह सकें। आमेन।



Friday, 17 March 2017

चालीसे का तीसरा रविवार

निर्गमन 17, 1-7
रोमियो 5, 1-11

योहन 4, 5-42

 ख्रीस्त में प्यारे भाईयों और बहनों, आज के पाठों के अनुसार हम विशेष  रूप से दो बिंदुओं पर मनन चिंतन करेंगे 1) संकट में ईश्वर  पर भरोसा और 2) प्रभु येसु, संजीवन जल

1) संकट में ईश्वर पर भरोसा
आज के पहले पाठ में हमने मरूस्थल में इस्राएली लोगों की परीक्षा के बारे में सुना। करीब 430 सालों की मिस्र की गुलामी के बाद ईश्वर उन पर तरस खाकर उन्हें मूसा की अगुवाई में स्वतंत्र कराता है। उन्हें महान चिन्ह व चमत्कार दिखलाते हुए यह आश्वासन देता है कि मैं सर्वशक्तिमान ईश्वर तुम्हारे साथ हूँ। जब तक सब कुछ ठीक चल रहा था कोई शिकायत नहीं थी, परन्तु जब उन पर संकट आया, उनका विश्वास डगमगाने लगा। जब मरूभूमि में उन्हें पानी नहीं मिला तो वे मूसा व ईश्वर के विरूद्ध भुनभुनाने लगे। समुद्र में रास्ता बनाकर उन्हें बचाने वाले ईश्वर पर से उनका भरोसा शीघ्र ही उठ गया। तब ईश्वर ने मूसा को आदेश  दिया कि वह चट्टान पर अपना डंडा मारे और तुरन्त ही वहां से पानी की धारा बह निकली। सबों ने पानी पिया व अपनी प्यास बुझाई। प्रभु ने उस समय उनकी प्यास तो बुझाई लेकिन अपनेे अविष्वास का खामियाजा उन्हें भुगतना पडा। उनमें से एक भी प्रतिज्ञात देष में प्रवेष नहीं कर सका। सिर्फ उनकी संतानें वहां पहुँची।
हम भी कितनी बार हमारे जीवन में दुःख व संकट के बादल मंडराने पर इस्राएली लागों की भांति ईश्वर के विरूद्ध कुडकुडाते हैं, और शिकायत करते हैं। हम प्रभु से कहते हैं देख कि हम दुख संकट में है और तू देखता ही नहीं। हम आभावों में जी रहे हैं और तू हमारी तरफ ध्यान ही नहीं देता! क्या प्रभु सचमुच हमारे दुख-संकट को नहीं देखता? क्या वह हमारी पीडाओं से अपना मुंह मोड लेता है? हरगीज़ नहीं। वह हमसे कहता है येरमियाह 49, 16 में - ‘‘मैं ने तुम्हें अपनी हथेलियों पर अंकित किया है, तुम्हारी चार दिवारी निरन्तर मेरी आँखों के सामने है।’’ हमारा घर, हमारी चार दिवारी हमेशा  उसकी निगाह में है। ऐसा कुछ भी नहीं जो उनकी जानकारी के बिना हमारे साथ घटित होता हो। इसीलिए भजनकार, भजनसंहिता 139 में कहता है - ‘‘ईश्वर तू मुझे जानता है। मैं चाहे लेटूँ या बैठूँ, तू जानता है। . . . मैं चाहे चलूँ या लेटूँ, तू देखता है।’’ जि हाँ  प्यारे भाईयों और बहनों ईश्वर हर समय हमें देखता है। इसलिए संकट के समय भी हमें धैर्यपूर्वक उस ईश्वर पर भरोसा रखना चाहिए। उनका वचन कहता है इसायाह 49, 8 में - ‘‘मैं उपयुक्त समय में तुम्हारी सुनुँगा, मैं कल्याण के दिन तुम्हारी सहायता करूँगा।’’ प्रभु अपने समय व अपनी योजना के मुताबिक हमारे जीवन में कार्य करेगा। और उसकी योजनाए हमेशा  हमारे हित में ही होती है। वे कहते हैं - ‘‘क्योंकि मैं तुम्हारे लिए निर्धारित अपनी योजनाएँ जानता हूँ, तुम्हारे हित की योजनाएँ, अहित की नहीं, तुम्हारे लिए आशामय भविष्य की योजनाएँ’’ (यिरमियाह 29,11)। वचन कहता है - ‘‘तुम प्रभु पर अपना भार छोड दो, वह तुम को सम्भालेगा। वह धर्मी को विचलित नहीं होने देगा’’ (स्तोत्र 55,23) इसलिए हम सदैव  ईश्वर पर अपना पूर्ण भरोसा बनाये रखें। क्यांकि जो कोई ईश्वर पर भरोसा रखता है वचन कहता है वह उस पेड के सदृष है जो जल स्रोत के पास लगाया गया है, जिसकी जडें पानी के पास फैली हुई है। वह कडी धूप से नहीं डरता...वह सूखे के समय भी चिंता नहीं करता (यिर 17,7-8)। प्रभु पर भरोसा रखने वाला जलस्रोत के निकट लगे पेड के समान निष्चिंत रहता है। हम भी प्रभु पर भरोसा रखें व निश्चिन्त रहें।

२)  प्रभु येसु मसीह जीवन का जल
हमने पहले पाठ में सुना कि इस्राएली लोगों को ईश्वर ने मरूभूमि में चमत्कारिक ढंग से जल पिलाया था। यह जल तो सिर्फ उनकी शारीरिक अथवा भौतिक प्यास ही बुझा पाया। लेकिन आज के सुसमाचार में हमने सुना प्रभु येसु समारी स्त्री से कहते हैं - ‘‘जो मेरा दिया हुआ जल पिता है, उसे फिर कभी प्यास नहीं लगेगीं, जो जल मैं उसे प्रदान करूँगा, वह उस में स्रोत बन जायेगा, जो अनन्त जीवन के लिए उमडता रहता है।’’ प्रभु येसु अपने शिष्यों  के साथ येरूसालेम की ओर जा रहे थे। वे समारिया होते हुए जाते हैं। यात्रा करते-करते वे थक जाते हैं और याकूब के कुएँ पर पानी पीने जाते हैं। वहांँ भरी दुपहरी में एक स्त्री जो समाज में बदनाम व कलंकित थी, पानी भरने आती है। हमें ज्ञात हो कि पानी भरने का समय या तो सुबह या फिर शाम को होता है, जहांँ कई स्त्रीयाँ पनघट पर इकट्ठा होती और बतयाती हैं। पर यह स्त्री अकेले एकान्त समय में आती है। वह अन्य लोगों के सामने बाहर निकलने का साहस भी नहीं कर सकती थी, क्योंकि वह भीतर ही भीतर टूट चुकी थी। पाँच पुरूषों के साथ रहने के बाद भी जीवन में कुछ अधूरापन व खालीपन महसूस करती थी, अपने अंदर एक असंतोष महसूस करती थी। उसके जीवन में वास्तव में एक गहरी प्यास थी जिसे बुझाने के कई तरीके उसने अपनाये, पर वह प्यास बुझी नहीं।
प्रभु येसु कहते हैं कि मैं भला गडेरिया हूँ। मैं वह गडेरिया हूँ जो निन्यानबे भेडों को छोडकर एक भेड जो भटक गई है उस की खोज में जाता है। अपने इसी वचन को आज प्रभु उस याकूब के कुएँ पर पूरा करते हैं। वहाँ, दोपहर की धूप में उन्होंने अपनी एक भटकी हुई भेड को पा लिया। प्रभु येसु ने उस स्त्री से संवाद किया व धीरे-धीरे उसके पुराने पापमय जीवन के घावों पर मरहम लगाते हुए उसे संजीवन जल के पास आने व मुक्ति के झरने से पीकर पूर्ण रूप से तृप्त होने का निमंत्र दिया। प्रभु के वचनों को सुनकर उस स्त्री में अनन्त जीवन के जल के लिए प्यास जागृत हुई। वह स्त्री जो दुनिया के सुखों में संतुष्टी ढूंढती थी, अब जीवन का अर्थ समझने लगती है। वह जान जाती है कि ये भौतिक सुख क्षणिक है और इनसे कुछ लाभ नहीं। वहीं प्रभु येसु में उसने अनन्त जीवन के सुख का राज पा लिया। वह बोल उठती है मुझे वह जल दीजिए, जिससे फिर कभी प्यास न लगे। जिस अनन्त जीवन के जल की बात आप कर रहे हैं, मुझे वह दे दीजिए। मैं पूर्ण रूप से परितृप्त होना चाहती हूँ।
प्यारे भाईयों और बहनों, आज चालीसे के तीसरे रविवार में प्रभु हम सब से यही कह रहे हैं - ‘‘यदि कोई प्यासा हो तो वह मेरे पास आये। जो मुझ में विश्वास करता है, वह अपनी प्यास बुझाये’’ (योहन 7,37-38)। 
 नबी इसायस ने इस जल के बारे में भविष्यवाणी की थी और कहा था- ‘‘तुम आनन्दित होकर मुक्ति के स्रोत में जल भरोगे’’ (इसा 12, 3)। यह मुक्ति का स्रोत, उद्धार का झरना स्वयं हमारे मुक्तिदाता येसु मसीह ही हैं। प्रकाशना ग्रंथ में संत योहन एक दिव्य दृष्य के बारे में बतलाते हुए कहते हैं - ‘‘इसके बाद मुझे संजीवन जल की नदी दिखायी, जो ईश्वर और मेमने के सिंहासन से बह रही थी।’’ यह वही झरना है जो हमारी मुक्ति के लिए प्रवाहित होता है। यही वो जीवन की धरा है जो येसु मसीह के ह्रदय से निकलती है.  संत योहन 19, 34 में हम इसके बारे में पढते हैं - ‘‘एक सैनिक ने उनकी बगल में भाला मारा और उस में से तुरन्त रक्त और जल बह निकला।’’ 
प्यारे भाईयों और बहनों, हम देखते हैं आजकल पीने का पानी भी बोटलों में बंद, बाज़ारों में बिकता है। पर उद्धार का यह जल मुफ्त है। जिस जल को पीने के बाद भी मृत्यु से नहीं बचा जा सकता वह पैसों में मिलता है, पर मौत के बाद भी अनन्त जीवन देने वाला जल, फ्री में मिल रहा है। वचन कहता है - ‘‘आल्फा और ओमेगा, आदि और अंत मैं हूँ। मैं प्यासे को संजीवन जल के स्रोत से मुफ्त में पिलाऊँगा। यह विजयी की विरासत है। मैं उसका ईश्वर हुऊँगा और वह मेरा पुत्र होगा। (प्रका. 21,6)। नबी इसायाह के ग्रंथ 55, 1-3 में प्रभु कहता है ‘‘तुम सब जो प्यासे हो, पानी के पास चले आओ। यदि तुम्हारे पास रूपया नहीं है, तो भी आओ। जो भोजन नहीं है उसके लिए तुम रूपया क्यों खर्च करते हो? जो तृप्ति नहीं दे सकता है, उसके लिए परिश्रम क्यों करते हो? मेरी बात मानो। कान लगाकर सुनो और मेरे पास आओ। मेरी बात पर ध्यान दो और तुम्हारी आत्मा को जीवन प्राप्त होगा।‘‘
प्रभु ने उस स्त्री से कहा कि यदि तुम ईष्वर का वरदान पहचानती और यह जानती कि वह कौन है, तो तुम उस से माँगती और वह तुम्हें संजीवन का जल देता तुम मुझसे माँगती और मैं तुम्हें संजीवन का जल देता। माँगो और तुम्हें दिया जायेगा। जो कोई अमरता का जीवन चाहते हैं आईये हम संजीवन जल के झरने प्रभु येसु के पास चलें और उनसे वह जल माँगे जिसे पीने के बाद फिर प्यास नहीं लगती, जिसे पीने के बाद इस जीवन की सारी झंझटे समाप्त हो जाती है, जिसे पीने के बाद जीवन सफल हो जाता है। आमेन।


Saturday, 11 March 2017

2nd sunday of Lent

उत्पत्ति ग्रंथ 12, 1-4
2 तिमिथी 2 1, 8-10
मत्ती 17, 1-9

एकान्तवास, प्राकृतिक सुंदरता, प्रार्थना एवं भक्ति तथा इश्वरीय अनुभव प्राप्त करने के लिए कई जवान लडके लडकियाँ कॉन्वेंट अथवा विभिन्न मठों में प्रवेष लेते हैं। इस दुनिया की भीड-भाड एवं शोर-गुल से अलग एकांत में प्रभु भक्ति में समय बिताने का अपना अलग ही आनन्द रहता है। कई बार लोग अपने व्यस्ततम जीवन से उबकर एकान्त स्थानों पर, प्रकृति के आंचल तले, सकून और शांति पाने के लिए जाते हैं। कई लोग आश्रमों अथवा इस प्रकार के आध्यात्मिक स्थलों पर जाकर प्रार्थना में समय बिताना पसंद करते हैं, जहां उन्हें ईष्वरीय उपस्थिति का अभास होता है। कई बार फादर सिस्टर्स जो शिक्षा, स्वास्थ्य एवं समाजिक उत्थान की विभिन्न गतिविधियों में व्यस्त रहते हैं, अपना कुछ समय रिट्रीट एवं प्रार्थना में बिताने के लिए, वे एक शांतिपूर्ण स्थानों पर जाते हैं, जहां वे प्रार्थना एवं मनन ध्यान करते हुए ईष्वर की उपस्थिति का अनुभव करते व ईश्वर से आध्यात्मिक संवाद करते हैं। आजकल रिट्रीट एवं आध्यत्मिक साधना के लिए ऐसे कई केंद्र खोले जा रहे हैं जहां लोग आकर कुछ समय बिताते व अपने जीवन की विभिन्न समस्याओं का निदान पाते हैं। कई लोग इन स्थानों पर आकर अपना पुराना जीवन बदल कर एक नई जिंदगी की शुरूआत करते हैं। कई अपनी पुरानी बूरी आदतों व पापमय जीवन को छोडकर एक नया जीवन ग्रहण कर वापस लौटते हैं। कई लोग अपनी रिट्रीट समाप्त हो जाने पर भी वहां से जाना नहीं चाहते। उन्हें वह स्थान, वहां का प्रार्थनामय माहौल, ईष्वरीय अनुभूति और आत्मिक सुकून अच्छा व सुखद लगता है। उन्हें वापस उस माहौल में जाने से डर  लगता है जहां बुराईयों का संसार है, जहां चुनौतियां है, जहां जीवन का संघर्ष है। वैसा ही आज के सुसमाचार में प्रभु येसु के षिष्यों के साथ होता है।
प्रभु येसु अपने तीन षिष्यों, पेत्रुस, याकूब और योहन को उनके सामने एक रहास्योद्घाटन करने के लिए ताबोर पर्वत पर ले जाते हैं। जब वे उस पहाड पर ही थे कि उनके सामने प्रभु येसु का मुखमंडल सूर्य की तरह दमक उठा और उनके वस्त्र प्रकाष के समान उज्वल्ल हो गये। शिष्यों को मूसा और एलियस येसु के साथ बातचित करते दिखाई पडे तथा उन्होंने आसमान से एक वाणी को यह कहते सुना - यह मेरा प्रिय पुत्र है, मैं इस पर अन्यन्त प्रसन्न हूँ, इसकी सुनो। इन तीन षिष्यों के लिए यह दिव्य दृष्य काफी चौंकाने वाला था क्योंकि अब तक उन्होंने प्रभु येसु को एक साधारण पुरूष के रूप में ही देखा था। उन्होंने उन्हें इस महिमा में नहीं देखा था। प्रभु येसु जान बूझकर अपने षिष्यों को यह दिव्य दृष्य दिखाना चाहते थे ताकि निकट भविष्य में जब वे यहूदियों द्वारा पकडाये व क्रूस पर दर्दनाक मौत मरेंगे, तब उनका मन विचलित न हो जाए। तब उन्हें यह दिव्य दृष्य याद रहे कि प्रभु येसु सिर्फ एक साधरण इंसान नहीं है। वे सच्चे ईष्वर और सच्चे मनुष्य हैं। इस मानव रूप में उनके दुख भोगने के बाद वे अपार महिमा में जी उठेंगे। सांसारिक दुखों व कष्टों के बाद महिमामय आनन्द व उल्लास है। पर वे अपने शिष्यों से इस बात के विषय में उनके पुररूत्थान तक किसी से बात नहीं करने की समझाईष देते हैं। क्योंकि वे ये नहीं चाहते थे कि उनके अनुयायी सिर्फ उनकी महिमा व दिव्य शक्ति को देखकर उनका अनुसरण करे। वे यह चाहते थे कि उनके अनुयायी अपने दैनिक जीवन का क्रूस उठाकर उनका अनुसरण करे। सब लोग यह जानें कि येसु के पीछे जाना मतलब दैनिक जीवन के दुख-दर्द सहते हुए, उनके साथ चलना है। येसु के साथ चलने वाले हर विष्वासी को क्रूस को गले लगाते हुए आगे बढना है। बिना क्रूस के पुनरूत्थान संभव नहीं। स्वर्ग में जाकर ईष्वर की महिमा के भागिदार बनने का कोई शॉर्ट कट नहीं है। इस जीवन के उतार चढाव को पार करते हुए ही हम वहां तक पहुंच सकते हैं। प्रभु कहते हैं स्वर्ग का द्वारा एक संकरा द्वार है। जि हां स्वर्ग का द्वार केवल संकरा ही नहीं, इस मार्ग में पत्थर हैं, कांटे हैं और मुसिबतों के पहाड भी हैं।
तीन षिष्यों को ताबोर पर्वत पर ईष्वरीय उपस्थिति वाला अनुभव बहुत अच्छा लगा। वे आत्मविभोर हो जाते हैं और उन्हें लगता है कि वहीं ऐसे सुखद अनुभव में ही रह जायें। पेत्रुस प्रभु से कहते हैं कि हम यहीं रह जायें। आप कहे तो तीन तम्बूओं की व्यस्था कर दूं। वे वहां बहुत सुरक्षित व आरामदायक महसूस कर रहे थे। वे पहाड के नीचे जाकर विरोधी तत्वों जैसे शास्त्री एवं फरिसीयों का सामना करना नहीं चाहते थे। वे भीड जो कि दिन रात प्रभु के पीछे रहती थी उससे बचना चाहते थे। प्रभु पेत्रुस के प्रस्ताव पर प्रतिक्रिया नहीं देते। प्रभु उन्हें लेकर सीधे पहाड के नीचे की ओर चल देते हैं। और उन्हें अपने दुःखभोग मरण एवं पुररूत्थान के बारे में बतलाते हैं। प्रभु यह नहीं चाहते थे कि वे उस ईष्वरीय अनुभव में ही खोए रहें बल्कि जीवन की सच्चाई से भी रूबरू हों। जिस ईष्वरी महिमा व प्रभु की पावन  उपस्थिति का अनुभव उन्हें हुआ उसे वे अपनी परिपूर्णता में इस जीवन के बाद प्राप्त करेंगे। लेकिन तब तक पिता ने जो मिषन उन्हें सौंपा है उसे उन लोगों को पूरा करना है। और इस मिषन को पूरा करने के लिए जीवन में आये हर दुःख व कष्ट को सहना है। प्रभु येसु तो अपना मिषन पूरा करने के लिए पूरी तरह से तैयार थे, यहां तक कि क्रूस पर मरने के लिए भी। इसलिए वे अपने षिष्यों को भी उसी प्रकार पूरी तरह से तैयार रहने की शिक्षा दे रहे थे।
आज प्रभु हम सबसे यही आह्वान करते हैं कि हम हमारे दैनिक जीवन के क्रूस से दूर न भागें। जिस प्रकार से प्रभु ने उसे अपने जीवन में स्वीकार किया हम भी उसे स्वीकार करें। हमारे जीवन में भी हम कई बार व्यक्तिगत प्रार्थनाओं में मिस्सा बलिदान में, तीर्थ स्थानों में या फिर आध्यात्मिक साधनाओं (रिट्रीट) आदि में कई प्रकार के ईष्वरीय आध्यात्मिक अनुभव प्राप्त करते हैं। हमें उसी माहौल में रहना अच्छा लगता है। पर हमें यह याद रहे कि प्रभु हमें ऐसे अनुभव इसलिए देते हैं कि हम हमारे इस दुनियाई जीवन की समाप्ति के बाद इसे परिपूर्णता में प्राप्त करें। ये उस स्वर्गीय आनन्द व शांति का एक अंश मात्र है जिसे ईष्वर हमें भरपूरी से देने वाले हैं। उस भरपूर ईष्वरीय अनुभव को प्राप्त करने के लिए हमें पहाड से नीचे उतरकर जीवन की सच्चाई से रूबरू होते हुए, शैतान और उसकी ताकतों से लडते हुए, सब प्रकार के प्रलोभनों व बुराईयों पर विजय पाते हुए प्राप्त करना होगा। इसलिए हम हमारे जीवन में प्रभु के लिए समय निकालें। प्रभु के साथ लीन होकर अपने जीवन की कठानिईयों व चुनौतियों का सामना करने के लिए पर्याप्त शक्ति व कृपा हासिल करें। तथा उस कृपा के साथ हम प्रभु येसु के समान जीवन में आए हर क्रूस को गले लगाते हुए उनका अनुसरण करें। तभी हमें उनके ही समान मुक्ति का मुकूट हासिल होगा।

आमेन। 

Saturday, 4 March 2017

चालीसे का पहला रविवार, A




ख्रीस्त में प्यारे भाईयों और बहनों, ईष्वर ने आदम और हेवा को बनाया, उन्हें पृथ्वी पर विचरने वाले हर जीव जन्तुओं पर अधिकार दिया, और उनसे यह उम्मिद की गयी कि वे बदले में ईष्वर के प्रति आज्ञाकारी व ईमानदार रहें। बल्कि हमारे आदि माता-पिता ने ईष्वर प्रदत वरदानों के घमंड में ईष्वर की आज्ञा का उल्लंघन किया जिसका परिणाम उन्हें और उनकी संतानों को भुगतना पडा और आज तक संसार भुगत रहा है। इस बात पर खेद प्रकट करना हमारा हक बनता है कि हमारे आदि माता-पिता ने बहुत ही मुर्खतापूर्ण और दुर्भाग्यपूर्ण कार्य किया है। लेकिन हम क्या कर रहे हैं? हम उनसे कितने भिन्न हैं। हम हमारे दैनिक जीवन में ईष्वर की दया व कृपा को विभिन्न रूपों में देखते व अनुभव करते हैं। लेकिन हम फिर भी बहुत बार ईष्वर की आज्ञाओं का उल्लंघन करते तथा हमारे आदि माता-पिता से भी अधिक मुर्खतापूर्ण व दुर्भाग्यपूर्ण कार्य करते हैं। क्या ये हमारे लिए शर्म व खेद की बात नहीं?
जिस प्रलोभन एवं परीक्षा का सामना प्रभु येसु ने किया वे हमारे लिए एक प्रोत्साहन एवं सांत्वना का स्रोत हैं। यदि हमारे प्रभु एवं गुरूवर येसु को स्वयं प्रलोभनों के दौर से गुजरना पडा तो हम भी परीक्षा एवं प्रलोभन मुक्त जीवन की उम्मीद नहीं कर सकते। मूल रूप से हमारे प्रलोभन भी वही है जो आदम हेवा के सामने थे और जो प्रभु येसु के सामने थे। हेवा को सबसे पहले वह फल सुंदर और स्वादिष्ट दिखा। उसे देखने में सुंदर दिखा और उसने सोचा देखने में इतना सुन्दर है तो खाने में कितना स्वादिष्ट होगा। वैसे ही प्रभु येसु के सामने सबसे पहला प्रलोभन शारीरिक भूख मिटाने का था।  शैतान ने उनसे कहा कि वह अपनी दिव्य शक्ति से पत्थर को रोटी बनाकर खा ले क्योंकि वह भूखा है। आज हमारा यह शरीर कई प्रकार की भूखों को शांत करने के लिए हमें बाध्य करता है। हमारी पंचेंद्रियां विभिन्न प्रकार से तृप्त होना चाहती हैं। हमारे समाने विभिन्न प्रकार की भूख रहती है। आँखों की भूख - दूसरों को वासना भरी निगाहों से देखने की भूख, अष्लील चीज़ें देखने और पढने की भूख, अच्छा से अच्छा स्वादिष्ट भोजन करने की भूख, दैहिक वासना की भूख, सच्ची - झूठी तारीफ सुनने की भूख। आरमदायक घर व सुख-सुविधा की भूख।
फिर शैतान ने हेवा को ईष्वर के बाराबर हो जाने का प्रलोभन दिया। उसने येसु को भी सारी दुनिया का वैभव दे देने का प्रलोभन दिया। और आज भी वह हमें विभिन्न प्रकार से बडे-बडे वादे करके प्रलोभित करता रहता है। खोखली तारीफ एवं बडापन दिखाने का प्रलोभन, चार जन की भीड में प्रषंसा पाने का प्रलोभन, स्कूल में अव्वल आकर घमंड करने का प्रलोभन और धन व शक्ति का प्रलोभन। आवष्यक्ता से अधिक धन और हैसियत से अधिक मान-सम्मान पाने, सत्ता हथियाने एवं दूसरों पर शासन करने की लालच में इंसान कुछ भी कर गुजरने को तैयार हो जाता है। क्योंकि इंसान कमजोर प्राणी है। मत्ती 26,41 में वचन कहता है - अत्मा तो तत्पर है लेकिन शरीर दुर्बल है। हम दुर्बल शरीर वाले प्राणी हैं।
स्तोत्र 141 में वचन कहता है मेरे हृदय को बुराई की ओर झूकने न दे। कितनी वास्तविकतापूर्ण प्रार्थना है ये। हमारे चारों ओर बुराई है। न केवल आज बल्कि उस जमाने में भी इसलिए स्त्रोतकार कहता है मेरे हृदय को बुराई की ओर झूकने न दे। मत्ती 6 और लूकस 11 में हम पढते हैं कि प्रभु येसु ने अपने षिष्यों को एक प्रार्थना सिखाई। यह सबसे उत्तम प्रार्थना है। हे हमारे पिता............और हमें परीक्षा में न डाल परन्तु बुराई से हमें बचा। कितनी सुंदर प्रार्थना है। यह सबसे आदर्ष, सुंदर और सबसे शक्तिषाली प्रार्थना है। प्रभु ने कहा हे पिता हमें परीक्षा में न डाल परन्तु बुराई से बचा। प्रभु येसु कहते हैं तुम्हें बार बार इस तरह प्रार्थना करने की आवष्यक्ता है। क्योंकि सबसे पहले हमारा झूकाव पाप की ओर है।
हम उत्पत्ति 8 में पढते हैं सारे संसार मे पाप भर गया था और ईष्वर ने प्रलय भेजा लेकिन ईष्वर ने नूह और उसके परिवार को बचा लिया और प्रलय के बाद नूह ने ईष्वर के लिए बली चढाई और ईष्वर ने यह कहा कि अब से में मनुष्यों को अभिषाप नहीं दूंगा। क्योंकि बचपन से ही मनुष्यों की प्रवृति पाप की ओर है। इसलिए प्रभु हमसे कहते हैं तुम्हें निरन्तर प्रार्थना करनी है। हे पिता हमें परीक्षा में न डाल।
दूसरी तरफ हम देखते हैं मत्ती 18, 7 में प्रभु कहते हैं कि प्रलोभन अनिवार्य है। प्यारे भाईयों बहनों प्रलोभन देने वाला हर समय हमारे चारों ओर मंडराते रहता है। वह हर समय क्रियाषिल रहता है। संत पेत्रुस 5, 8 में कहते हैं कि आपका शत्रु शैतान दहाडते सिंह की तरह विचरता रहता है। और ढूंढता रहता है कि किसे फाड खाये। तो हमारा शत्रु शैतान ढूंढते रहता है कि किसे फाड खायें। हमें हर समय अंधकार की शक्तियों से लडना पडता है, जैसे कि एफेसियों 6 में लिखा है। हर समय विभिन्न नकारात्मक आत्माओं से लडना पडता है। लालच की आत्मा, गुस्से की आत्म, उदासी की आत्म, आलस की आत्मा, निराषा की आत्मा । हमें इनसे लडना पडता है। हमारा जीवन एक लंबा युद्ध है और इस युद्ध में हमेषा प्रभु से प्रार्थना करते रहना है कि हे प्रभु हमें परीक्षा में न डाल परन्तु बुराई से हमें बचा। 12 कुरिंथयों 11,14 में संत पौलुस कहते हैं कि आप लोग इस चीज से अष्चर्यचकित न हों कि शैतान कभी-कभी स्वर्गदूत का रूप ले सकता है। कभी हमारे सामने आकर्षक बातें आकर्षक चीजें आकर्षक लोगों को ला सकता है। हमें भ्रमित कर सकता है। इस दुनिया में बहुत सारे लोग ऐसी परिथितियों में भ्रमित हो जाते हैं और आसानी से शैतान के चुंगूल में पड जाते है। इ।सलिए हमें हर समय प्रार्थना करने की ज़रूरत है। कि हे प्रभु हमें परीक्षा में न पडने दे। आज हम ऐसे संसार में रह हैं जहां सबसे ज्यादा प्रलोभन देने वाली बातें और चीजें हैं। योहन 17,15-16 में प्रभु ने हमस ब के लिए प्रार्थना की कि पिता मैं नहीं कहता कि उन्हें संसार से उठा ले। वे संसार में हैं लेकिन उन्हें बुराई से बचा। हम विष्वासी इस संसार में हैं लेकिन यह स्वभाविक है हम इस संसार की बुराईयों में फंस जाते है।
प्रलोभनों से विजय पाने का रास्ता प्रभु येसु हमें दिखलाते हैं। और वह है उपवास, प्रार्थना और ईष वचन का पठन एवं मनन चिंतन। जब प्रभु येसु की परीक्षा ली गयी उससे पहले वे मरूभूमि में चालीस दिनों तक उपवास व प्रार्थना कर रहे थे। और शैतान के हर बहकावे का वे वचन की शक्ति से सामना कर रहे थे। हम सब कमजोर हैं इसलिए हमें प्रभु से शक्ति प्राप्त करने की ज़रूरत है।
आईये हम प्रभु से प्रार्थना करें। हमें परीक्षा में न पडने दे परन्तु सब बुराईयों से हमें बचा, आमेन।

Tuesday, 28 February 2017

पवित्र राख बुधवार , 1 March, 2017



जोएल २, १२-१८
२ कुरिन्थियों ५, २०-६ ,२
मत्ती ६, १-६, १६-१८

उपवास के आह्वान के साथ आज हम दुःखभोग काल का आगाज़ कर रहे हैं। आत्मा के  शुद्धिकरण एवं प्रभु तथा एक-दूसरे के साथ मेल-मिलाप करने का यह उपयुक्त समय है। यह अनुग्रह का समय है, आत्माओं के उद्धार का समय है, यह अन्यंत कीमती समय है। इसे हम यूँ ही न जाने दें। आज के दूसरे पाठ में प्रभु हमसे कहते हैं - ‘‘आप को ईष्वर की जो कृपा मिली है, उसे व्यर्थ न जाने दें; क्योंकि वह कहता है - उपयुक्त समय में मैंने तुम्हारी सुनी; कल्याण के दिन मैंने तुम्हारी सहायाता की। और देखिए, अभी उपयुक्त समय है, अभी कल्याण का दिन है’’ (2 कुरिंथियों 6, 2) पाप से विकृत हमारे मानवीय स्वभाव को आज एक सही दिषा की ज़रूरत है। पाप की अज्ञानता में खोए मानव को आज प्रभु की ज्योति की ज़रूरत है। रोम. 3,23 में वचन कहता है - ‘‘क्योंकि सब ने पाप किया और सब ईष्वर की महिमा से वंचित हो गये। ईष्वर की कृपा से सबों को मुफ्त में पापमुक्ति का वरदान मिला है।’’ हममें शायद ही कोई ऐसा होगा जो निष्पाप है, जिसने कभी पाप ही नहीं किया हो। हम सब पापी हैं। और यदि हम यह स्वीकार करते हैं कि हम सब पापी हैं, हम ईष्वर की महिमा से वंचित हैं, अनन्त जीवन हमारे हाथों से फिसलता जा रहा है, हम प्रभु से दूर होते जा रहे हैं, हमारा जीवन अनन्त विनाष की ओर खींचा चला जा रहा है तो अब यह उचित समय है, हमारे उद्धार का समय है। आज हम प्रभु की यह वाणी ध्यान से सुने जिसे हमें प्रभु आज के पहले पाठ के माध्यम से कह रहे हैं - ‘‘अब तुम लोग उपवास करो और रोते तथा शोक मनाते हुए पूरे हृदय से मेरे पास लौट आओ। अपने वस्त्र फाड कर नहीं, बल्कि हृदय से पश्चाताप करो और अपने प्रभु ईष्वर के पास लौट जाओ; क्योंकि वह करूणामय, दयालु, अत्यन्त सहनषील और दयासागर है।’’
चालीसे का यह पवित्र समय हमारे लिए प्रार्थना एवं उपवास करते हुए अपने पापों पर पष्चताप करने का उचित समय है। प्रार्थना और उपवास का क्या संबंध है। उपवास हमारी प्रार्थनाओं को अधिक प्रभावषाली बनाता है। कई बार हमारे जीवन में हम ऐसी परिस्थितियों के दौर से गुजरते हैं जहाँ कुछ चीज़ अथवा कुछ काम कर पाना हमारी शक्ति के परे हो जाता है। हम प्रार्थना करते हैं, दुआयें मांगते हैं, चर्च जाते हैं, फिर भी हमारा काम नहीं होता है। हम हार जाते हैं, टूट जाते हैं। एक बार प्रभु के चेलों के साथ भी ऐसी ही हुआ। संत मारकुस के सुसमाचार 9, 14-29 में हम इस घटना के बारे में पढते हैं जहांँ जहाँ प्रभु येसु अपने रूपान्तरण के बाद अपने षिष्यों के पास लौटते हैं तो उन्हें एक बडी उलझन मंे पाते हैं। एक व्यक्ति अपने बेटे को जो कि अपदूतग्रस्त था उनके पास लाता है और प्रभु के षिष्य लाख कोषिष करने के बाद भी उसे नहीं निकाल पाये। आखिर में उसे प्रभु के पास लाया जाता है और प्रभु उसे चंगाई प्रदान करते हैं। तब षिष्यों ने प्रभु से अपनी असमर्थता का कारण पूछा तो प्रभु ने कहा - ‘‘प्रार्थना और उपवास के सिवा और किसी उपाय से यह जाति नहीं निकाली जा सकती’’ (मार्क 9, 29)। हमारे जीवन में कुछ बुराईयाँ ऐसी होती है, जो जीवनभर पीछा नहीं छोडती। हम हजारों कोषिष करते हैं, पर फिर भी हम उन पापोें अथवा बुराईयों के दास बने रहते हैं। कई ऐसे व्यक्तियों को मैंने देखे है जो विभिन्न प्रकार की बूरी आदतों जैसे नषापान, गाली देना, दूसरों की बुराई करना, वासना के गुलाम बन जाना आदि के ऐसे गुलाम बन जाते हैं कि वे चाह कर भी उनसे मुक्ति एवं छुटकारा नहीं पा सकते। हम मेसे भी कई विभिन्न प्रकार के ऐसे पुराने से पुराने बंधनों से बंधे हुए हैं। बुराईयों ने हमारे ऊपर अधिकार करके रखा है। बुरी आदतें, बुरे विचार हमारे जीवन को चलाती हैं। यदि हम मेसे कोई है जिसे लगता है कि मेरे पापों का, मेरे पापमय स्वभाव का, मेरी बुरी आदत का कोई निदान नहीं हैैं। तो इस चालीसे के समय में उपवास रखकर प्रार्थना करते हुए हम अपनी कमज़ोरियों को प्रभु को समर्पित करें। वह अपने वादे का पक्का है। कोई बंधन ऐसा नहीं जिसे प्रभु येसु नहीं तोड सकते, कोई भी बुरी आदत ऐसी नहीं है जिससे मसीह हमें निजात नहीं दिला सकते। वचन कहता है - ‘‘उसके पुत्र के जीवन द्वारा निष्चय ही हमारा उद्धार होगा‘‘ (रोम 5, 10)। ‘‘वह अपने शरीर में हमारे पापों को क्रूस के काठ पर ले गये, जिससे हम पाप के लिए मृत हो कर धार्मिकता के लिए जीने लगें। आप उनके घावों द्वारा भले चंगे हो गये हैं’‘ (1 पेत्रुस 2, 24) हमारी हर एक कमज़ोरी को, हर एक दुर्बलता प्रभु येसु अपने क्रूस के ऊपर ले जाते हैं और उनके खून बहाये जाने से हमें चंगाई मिलती है, हमें छुटकारा मिलता है। ईष्वर ने हमें अंधकार की अधीनता से निकाल कर अपने प्रिय पुत्र के राज्य में ले आया। उस पुत्र के द्वारा हमारा उद्धार हुआ है, अर्थात् हमें पापों की क्षमा मिलती है।
चालीसा काल प्रभु के पुनरूत्थान के पर्व की तैयारी का समय है। हम इस समय हमारे पापमय मृत्यु के जीवन को त्यागकर प्रभु के साथ एक नवीनता का जीवन प्रारम्भ करने की तैयारी करते हैं। पवित्र कलीसिया इस पवित्र समय में पुण्य कमाने के तीन प्रमुख मार्ग हमें बतलाती है। पहला है - उपवास व त्याग करते हुए अपने किये हुए पापों पर पष्चताप करना व पापमय जीवन को त्यागते हुए प्रभु के करीब आना। दूसरा - प्रार्थना में जीवन बिताना और तीसरा है - दान देना। इन सब पुण्यकर्मों को करने का हमारा उद्देष्य हमारे सामने बिल्कुल साफ होना चाहिए। हमारे धर्म कर्मों की जानकारी सिर्फ मुझे और मेरे प्रभु को हो। हमारा उपवास, हमारी प्रार्थना दूसरों को प्रभावित करने के लिए नहीं लेकिन प्रभु को प्रसन्न करने के लिए होना चाहिए। यदि हम दूसरों को दिखाने के लिए, दूसरों की वाह-वही लूटने के लिए, दूसरों से तारीफ पाने के लिए हमारे धर्म-कर्म करते हैं तो आज का सुसमाचार हमसे कहता है हम हमारे स्वर्गीक पिता के पुरस्कार से वंचित हो जायेंगे। प्रार्थना का उद्देष्य यह नहीं कि मैं धार्मिक कहलाऊँ पर यह कि मैं प्रभु से अपना संबंध जोडूं। दान देने का उद्देष्य यह नहीं कि दूसरे लोग यह मेरी उदारता को जानें पर यह कि मेरे द्वारा किसी गरीब, किसी बेसहारा, किसी पीडित की मदद हो जाये। मेरा धन, मेरी शक्ति व गुण दूसरों के काम आये। मेरे उपवास का मतलब यह नहीं कि लोग मेरी धार्मिकता से वकिफ़ हो जायें पर यह कि मेरी शारीरिक भूख मुझमें अध्यात्मिक भूख जगाये। रोटी की भूख मुझमें प्रभु व उसके वचनों की भूख जगाये। और मेरे उपवास व त्याग से जो कुछ बचता है उससे मैं किसी ज़रूरतमंद की मदद करूंँ। आने वाले इन चालीस दिनों में यदि मैं इन बातों पर ध्यान देता हूँ तो यह पावन समय मेरे लिए बहुत ही अर्थपूर्ण व प्रभु की आषिष व कृपा का एक स्रोत बनकर मेरे जीवन में मसीह के उद्धार व मुक्ति को प्राप्त करने में मेरी सहायाता करेगा।


Saturday, 25 February 2017

सामान्य काल का ८ वा रविवार




इसायाह 49, 14-15
1 कुरिथियों 4, 1-5
मत्ती 6, 24-34
चिंता, डर और ख्याल हर किसी की जिंदगी का एक भाग है। छोटी से छोटी समस्या भी हमें परेशान कर देती हैं। ये हमसे हमारा चैनो-सकून छीन लेती हैं। चिंता हमारे मन में कडवाहट, गुस्सा क्रोध एवं चिडचिडापन लाती हैं और दूसरों के साथ हमारे संबंधों को कमजोर बनाती हैं। लालच एक दूसरी मानवीय कमज़ोरी है, जो हमारे जीवन से खुशियों को नदारद कर देती है। अधिक से अधिक हासिल करने की लालसा इंसान को ऐसी चीज़ों के लिए बांवरा होने को मजबूर कर देती है जो उसके जीवन के लिए वास्तव में उतनी ज़रूरी नहीं होती।

मन में असुरक्षा की भावना उन्हें अपने उस भविष्य के लिए चीजें जमा कर के रखने को मजबूर करती हैं जो अनिश्चिताओं से भरा है। आने वाले पल मेरे साथ क्या होने वाला मैं यह नहीं जानता फिर भी उस पल को संवारने के लिए, उस आने वाले पल और आने वाले कल की खुशियों के लिए, मैं मेरे वर्तमान की खुशियों को कुर्बान कर देता हूँ। जो खुशियाँ, जो सुकून आज मेरी जिंदगी में है, कल मुझे मिले या न मिले पर मैं उस निश्षित कल के लिए वर्तमान में जो सुख, जो शांति, जो तस्सली है उसका भी आनन्द नहीं ले पाता। यह है हमारे जीवन की विडम्बना।

प्रभु कहते हैं खेत के फूलों और आकाश के पक्षियों से सिखो जिन्हें अपने कल की कोई चिंता नहीं, वे अपने वर्तमान को खुल की जीते हैं। प्रभु कहते हैं अपने जीवन की हद से भी ज़्यादा चिंता मत करो, न अपने भोजन की, कि क्या खायें, और न अपने शरीर की कि क्या पहनें।  प्रभु येसु हमारे जीवन की मूलभूत आवश्यक्ताओं से पूरी तरह से वाकिफ़ हैं। कठोर परिश्रम करके अपनी जीविका चलाने का महत्व उन्हें भी पता है। तीस साल तक मरियम और युसूफ के साथ नाज़रेथ में रहते समय उन्होंने भी अपने पालक पिता के साथ पसीना बहाया था और अपनी रोजी रोटी कमाई थी। जब प्रभु हम से कहते हैं - ‘‘चिंता मत करो’’ तो उनका कहने का मतलब यह नहीं है कि हम हमारा काम धंधा करना, मेहनत करना, सब छोड दें और आराम से अपने-अपने घरों में बैठे रहें। और प्रभु स्वर्ग से हमारे लिए रोटियाँ बरसायेंगे। नहीं ऐसा हरगीज नहीं है। प्रभु का वचन साफ़ शब्दों में हम से कहता हैं 2 थेसलनिकियों 3,10-12 में - ‘‘जो काम नहीं करना चाहता, उसे भोजन नहीं दिया जाये। हम ऐसे लोगों से मसीह के नाम पर यह आदेश देतें हैं और उनसे अनुरोध करते हैं कि वे चुपचाप काम करते रहें और अपनी कमाई की रोटी खायें।’’

मैं आप लोग से कुछ सवाल करना चाहता हूँ। आप में से कितने लोग काम करने वाले है? नौकरी या व्यवसाय करते हैं? .................... तो अपनी रोजी रोटी का इंतज़ाम आप करते हैं? आपके पास, या आपके घर में जो कुछ है वो या तो आपका कमाया हुआ है या फिर आपके माता-पिता या पुर्वर्ज़ों की देन है। है ना?

ख्रीस्त में प्यारे भाईयों और बहनों, प्रभु येसु जब हम से कहते हैं कि चिंता मत करो तो अपनी इस शिक्षा के द्वारा वे हमारी इस बहुत बडी गलत फ़हमी को दूर करना चाहते हैं कि हमारे जीवन के लिए ज़रूरी चीज़ें हम खुद जुटाते हैं, बच्चे हम पैदा करते हैं, कोई बिमार होता है तो उसका इलाज हम करवाकर उसे ठीक हम करते हैं, पढाई करके पास हम होते हैं और हम हमारी अपनी योग्यताओं के दम पर नौकरी पाते हैं और हमारे जीवन के लिए कमाई करते हैं आदि। जो कुछ दिखता है और जो वास्तविकता है उसमें बहुत फर्क है। हमारे जीवन की तमाम ज़रूरतों को पूरा करने के पीछे एक अदृष्य शक्ति दिन रात लगी रहती है जिसे देखते नहीं और नज़र अंदाज कर देते हैं।

हम इस वास्तविकता को नकारते हैं कि जो कुछ हमारे पास है वह विधाता ने दिया है और जो कुछ हमें हासिल होने वाला है वह भी विधाता ही हमें देगा। यदि इस सच्चाई को हम स्वीकार कर लेते हैं तो हमारे जीवन में कोई चिंता नहीं रहेगी। हमें चिंता इसलिए होती है कि हम हमारी क्षमताओं, और हमारे पास उपलब्ध साधनों पर भरोसा करते हैं। हमारी क्षमताएं, और योग्यताएं अपरिपक्व व सीमित होती हैं जो अनिष्चितताओं और शंकाओं को जन्म देती हैं। हम जानते हैं कि विभिन्न बिमारियों का ईलाज़ आॅपरेशन से सम्भव है। एक छोटा सा भी आॅपरेशन ही क्यों न हो, और हमारे पास आॅपरेशन के लेटेस्ट साधन और सबसे ज्यादा़ अनुभवी डाॅक्टर ही आॅपरेशन क्यों न कर रहा हो, हमारी चिंता के टावर खडे हो जाते हैं। जब तक आॅपरेशन थिएटर से मरीज़ सकुशल वापस नहीं निकलता हमारे दिल की धडकनें तेज हो जाती है और हमारी सांसें रूक सी जाती है। हमारी चिंता का विषय यह शंका होती है कि आॅपरेशन सफल होगा कि नहीं? डाॅक्टर हमारे परीजन को बचा पायेगा कि नहीं? दवाईयाँ प्रभावशाली साबित होगी या नहीं? इत्यादि। इस दुनिया व दुनिया की किसी भी चीज़ पर भरोसा करना व उस पर निर्भर रहना चिंताओं को जन्म देता है। क्योंकि जैसा कि मैंने कहा वे सीमित व अपरिपक्व है। इसलिए प्रभु येसु हमसे कहते हैं कि हम इस दुनिया की चिज़ों की चिंता करके व्यर्थ में समय व ऊर्जा नष्ट न करें बल्कि निरन्तर ईश्वर के राज्य और उसकी धार्मिकता की खोज में लगे रहंे, और ये चीज़ें तुम्हें यों ही मिल जायेगी। हमारा पूरा ध्यान ईश्वर पर व उसके राज्य पर केंद्रित होना चाहिए। चिंता करने से हममें से कोई अपनी आयु घडी भर भी नहीं बढा सकता। व्यर्थ चिंता करने से कोई अपना भाग्य नहीं बदल सकता। हमारे चिंता करने से हमारा ही मन विचलित हो जाता है। अशांति व बचैनी बढती है।

प्रभु कहते हैं हम इंसान ही अपने जीवन के लिए चिंतित रहते हैं। पशु-पक्षी व वनस्पती ऐसा नहीं करते। वे पूरी तरह से प्रभु पर निर्भर रहते हैं। उनके मन में कोई आशंका नहीं होती। स्तोत्र ग्रंथ 8, 6 में प्रभु का वचन कहता है कि प्रभु ने इंसान को सृष्टि के मुकुट के रूप में बनाया है। यानी इंसान ईश्वर की सर्वश्रेष्ट कृति है। यदि ईष्वर इस दुनिया के हर जीव जंतु को सृष्टि के प्रारम्भ से संभालता आ रहा है, वह चिडियों को दाने देता और मरूभुमि में भी वनस्पिति उगाता है, तो फिर इनंसान को जिसे उसने सृष्टि के शीर्ष के रूप में बनाया है वह क्यों नहीं संभालेगा। उसने तो हमारे उद्धार के लिए अपने एकलौते बेटे तक को कृर्बान कर दिया तो फिर वह हमारी दुनियाई ज़रूरतों को पूरा क्यों नहीं करेगा। वह आज हमसे कहता है - ‘‘स्त्री अपना दुधमुहा बच्चा भुला सकती है पर मैं तुम्हें कभी नहीं भुलाऊंगा। मैंने तुम्हें अपनी हथेलियों पर अंकित किया है’’ (इसा 49,16)। जि हाँ, वह हमें कभी नहीं भुलाएगा, उन्होंने अपनी हथेली पर हमारा चेहरा अंकित किया है। जब भी नज़र हथेली पर पडती है वे हमें देखते हैं। हमारे साथ जो कुछ भी घटित होता है उसे वे देखते हैं। वे कहते हैं तुम्हारी चारदीवारी निरन्तर मेरी आंँखों के सामने है। इसलिए हम न डरें, न ही घबरायें, प्रभु पर, सिर्फ प्रभु पर अपना पूरा भरोसा बनाये रखें। वही हमें संभालता है। आमेन।



















Saturday, 18 February 2017

सामान्य काल का 7वां रविवार


लेवी 19, 1-२. 17-18
१ कुरिंथियो 3,16-23
मत्ती 5,38-48

आज का सुसमाचार पाठ बहुत ही चुनौतीपूर्ण शिक्षा हमारे सामने रखता है। प्रभु कहते हैं यदि कोई तुम्हारे दाहिने गाल पर थप्पड मारे, तो दूसरा भी उसके सामने कर दो। इस बात को हमें अक्षरशः लेने की ज़रूरत नहीं। कई बार लोग प्रभु की इस शिक्षा का गलत मतलब निकालते व कई बार इस वचन का प्रयोग मज़ाक के तौर पर करते हैं। यहाँ पर बात महज दूसरा गाल दिखाने की नहीं है, प्रभु इससे भी बढकर हमें एक गहरी शिक्षा देना चाहते हैं। प्रभु यहांँ अपनी शिक्षा को एक मुहावरे के रूप में पेश करते हैं। जब कोई आराम से सोता है तो हम कहते हैं मुहावरे वाली भाषा में कहते हैं कि वह घोडे बेच कर सो रहा है। पर वास्तव में वहाँ न कोई घोडे होते हैं और न ही उन्हें कोई बेचता है। वैसे ही जब प्रभु येसु कहते हैं कि एक गाल पर मारने पर दूसरा दिखा दो। तो इसके पीछे उनका आशय यह नहीं कि बेमतलब लोगों की मार खाते रहो। जब प्रभु येसु को अन्नस और कैफस के सामने न्याय के लिए पेश किया गया था तब उनके गाल पर प्यादे ने थप्पड मारा था। याद रहे प्रभु येसु ने वहाँ उन्हें दूसरा गाल नहीं दिखाया। उन्होंने उससे पूछा - ‘‘यदि मैंने गलत कहा, तो मुझे गलती बता दो और यदि ठीक कहा तो मुझे क्यों मारते हो?’’ (योहन 18, 23). प्रभु की इस शिक्षा का अर्थ यह नहीं कि हम हमारे विराधियों द्वारा किये गये हर जुल्म को मुँह बंद किये सहते रहें। जहांँ कहीं भी अन्याय होता है वहाँ हमें उसके विरुद्ध आवाज उठाना चाहिए। हमें हमारा पक्ष रखने का अधिकार है। एक गाल पे मारने पर दूसरा गाल दिखाने का सीधा सा मतलब है कि हमें हमारे विरोधीजन से बदला नहीं लेना चाहिए। बुराई का सामना हमें अच्छाई के साथ करना चाहिए। बुराई के बदले बुराई और अधिक बुराई को जन्म देगी। ईंट के बदले ईंट और ऑंख के बदले आँख, खून खराबा, हिंसा व अशांति ही लाएंगे। प्रभु का वचन कहता है रोमियो 12, 19-20 में - ‘‘बुराई के बदले बुराई नहीं करें।. . .जहांँ तक हो सके सबो के साथ मेल-मिलाप बनाये रखें। प्रिय भाईयों! आप स्वयं बदला न चुकायें, बल्कि उसे ईश्वर के प्रकोप पर छोड दें; क्योंकि लिखा है - प्रतिशोध मेरा अधिकार है, मैं ही बदला चुहाऊँगा।’’ प्रभु हमें मेल-मिलाप व सुलह का रास्ता दिखाते हैं। नकारात्मक भावनाओं और विचारों का तोड नकारत्कता नहीं है। ‘तुम को देख लुँगा’ वाली भावना आपसी रिशते को खत्म कर देती है। जिस दिन हमारे मन में किसी के प्रति ऐसी भावना आती है, उस दिन से हम शैतान को हमारे अंदर निमंत्रण देते हैं। फिर वह हमारे अंदर रहकर हमें हमारी इस सोच को कार्य रूप में परिणित करने के लिए, उकसाता रहता है। यह नकारात्मकता जो एक साधारण गुस्से से प्रारम्भ होकर बैर में तब्दिल हो जाती है, और मन का बैर एक जहर बनकर दुश्मनी को जन्म देता है। प्रभु का वचन कहता है - अपने शत्रुओं से प्रेम करो। जिस तरह सूरज की भीषण गर्मी जल स्रोतों को सुखा देती है वैसे ही मन में बैर की भावना हमारे दिलों से प्रेम को सुखा देती है। इसलिए यदि हमारे भाई बहनों से तू तू-मैं मैं हो जाये, झगडा लडाई हो जाये तो इसकी नकारात्मकता लंबे समय तक हमारे दिलों में नहीं होनी चाहिए। वचन कहता है - ‘‘यदि आप क्रूध हो जाये तो इसके कारण पाप न करें। सूरज डूबने तक अपना क्रोध कायम नहीं रहने दें'' (एफेसियों 4, 26)। हमारी नकारात्मक भावनाओं का सबसे अच्छा उपचार प्यार है। इसीलिए प्रभु हमसे कहते हैं अपने दुष्मनों से प्यार करो। हमारे दुश्मन कौन हैं? चीनी? पाकिस्तानी? ज़रूरी नहीं। हमारे दुष्मन वे सभी हैं जो हमें पसन्द नहीं करते। हमारे दुष्मन वे हैं जो हमें गुस्सा दिलाते हैं। हमारे दुष्मन वे हैं जो हमें चिढाते हैं, दूसरों के सामने हमारी बुराई व निंदा करते हैं, जो हमें गिराने के लिए षडयंत्र रचते हैं, जो हमारी उन्नती को देखकर जलते हैं। प्रभु न कवल ऐसे लोगों से प्रेम करने के लिए बल्कि उनके लिए प्रार्थना करने के लिए भी कहते हैं। प्रभु ने स्वयं यह किया। सूली पर से अपने दुष्मनों को न केवल क्षमा दी पर उनके लिए प्रार्थना की। संत स्टीफन ने जब यहूदियों ने उन्हें पत्थरों से मारा तब मरने से पहले यही कहा - हे प्रभु यह पाप इन पर न लगा। वासना की आग में जलते हुए एलेक्ज़ांन्ड्रो को जब फूलों सी कोमल व नादान मरिया गोरेती ने उसके पाप में भागीदार होने से इनकार किया तो एलेक्ज़न्ड्रो ने उसकी हत्या कर दी। अस्पताल में अंतिम सांसे लेते हुए मरिया गोरेते कह उठती है। मैं उसे माफ करती हूँ। जब सिस्टर रानी मरिया को उनके दुष्मन ने चाकुओं से गोद कर मरवा डाला तो उसकी बहने सि. सेलमी ने हत्यारे के खुनी हाथों पर राखी बांध कर उसे अपना भाई बना लिया। आज कहने को दुनिया मे ईसाईयों की संख्या बहुत है। पर ईसा के अनुयाईयों की संख्या बहुत कम है। महात्मा गांँधी ने इंग्लैंड में रहते हुए ईसाई धर्म का अध्ययन किया। लेकिन वे कभी एक ईसाई नहीं बनें। क्योंकि उन्होंने देखा कि जिन लोगों पर ईसाई होने के लेबल लगे हैं उनमें ईसा की झलक नहीं दिखाई देती थी, ईसा की शिक्षा ईसाईयों के कार्यों में दिखाई नहीं देती थी। वहीं महात्मा गांधी नाम से नहीं परन्तु अपने कार्यों से ईसा के अनुयायी बन गये। उन्होंने प्रभु ईसा की शिक्षा को अपने जीवन में उतारा। उसे अपने जीवन व कार्यों का सिद्धांत बना लिया। एक गाल पर थप्पड मारने पर दूसरा दिखाने का सिद्धांत महात्मा गांधि के अंहिसावाद का पर्याय बन गया। इसीलिए आज दुनिया उन्हें महान अत्मा कह कर उनका सम्मान करती है।
प्रभु की इन शिक्षाओं को सुनना तो बडा अच्छा लगता है। पर इन पर अमल करना, व अपने जीवन में इन्हें उतारना एक मुशकील काम है। क्योंकि हमारा मानवीय स्वभाव तो अपने दुष्मनों से घृणा, अपने भाईयों से प्रेम करना सिखलाता है। दुष्मनों से प्रेम करना तो ईश्वरीय स्वभाव है। और हमें यही ईष्वरीय स्वभाव प्राप्त करना है। इसीलिए प्रभु येसु आज हमसे कहते हैं - अपने पिता जैसे परिपूर्ण बनो। आईये हम आज हमारे मन की सारी कडवाहट को, सारी नकारात्मकता को, दु्शमनी व घृणा के भावों को हमारे दिलों से निकाल दें ताकि प्रभु हमारे दिलों को अपने प्रेम से भर दें। ताकि हम उनकी तरह हमारे दुशमनों व हमारी विरोधियों से भी प्रेम करे सकें। आमेन।




Saturday, 11 February 2017

समान्य काल का 6वां रविवार



ईष्वर ने इंसान की सृष्टि उनके अनंत सुख व आनन्द में भागीदार होने के लिए की थी परन्तु मानव ने आज्ञा भंग द्वारा उस ईष्वरीय उपहार को खो दिया। हमने अपने स्वर्गीय पिता के उस आरामदायक मकान को ठुकरा कर, ऐसे मकान को अपनाया जहांँ पर सारी सुविधायें होने के बाद भी शांँति व सुकून नहीं। हमारे स्वर्गीय पिता ने हमारे भरण-पौषण की सारी व्यवस्था की परन्तु हमारे आदि माता पिता ने उनकी इस व्यवस्था पर भरोसा नहीं किया। उन्हें लगा कि उस भले और बुरे के ज्ञान के वृक्ष का फल खाकर वे ईष्वर से भी ज्यादा ताकतवर व ज्ञानवान बन जायेंगे। फिर तो उन्हें किसी बात की चिंता नहीं रहेगी। जो था उससे संतुष्ट नहीं हो कर अधिक की लालच में उन्होंने अनंत जीवन को खो दिया। जीवन के सारे रहस्य जान लेने की जिज्ञासा में उन्होंने अपनी जिंदगी एक अनसुलझी पहेली बना लिया। इंसान की जिंदगी एक ऐसी जटील पहेली बन गई कि कब बात बनती कब बिगड जाती हमें पता ही नहीं चलता। सब कुछ ठीक-ठाक चलते-चलते कब मुसीबतों का पहाड टूट पडता है कुछ पता ही नहीं चलता। एक मजदूर दिन भर कडी धूप, ठंड या बारीष में काम करने के बाद रात को रूखा-सुखा खाकर चैन की नींद सोता है पर अरबों खरोबों के मालीक स्वादिष्ट-स्वादिष्ट भोजन खाकर भी तृप्ती का अहसास नहीं करते। उन्हें न रात में नींद आती है और न दिन में चैन। कुल मिलाकर जीवन में कोई स्थिरता नहीं है। अषांति, दुख, विपत्तियां, पीडायें और कष्ट ये सब पाप का परिणाम है।
परन्तु हम जानते हैं कि जीवन की ये उलझनें कुछ ही समय की हैं। जब तक हम इस संसार में हैं हमें इन सब चीज़ों से रूबरू होना पडता है। परन्तु इसके बाद हमें एक ऐसा जीवन मिलेगा जिसकी हम दुनिया में कल्पाना भी नहीं कर सकते। संत पौलुस आज के पहले पाठ में हमसे कहते हैं - ‘‘मैं उन बातों के विषय में बोलता हूँ जिनके संबंध में धर्मग्रंथ यह कहता है- ‘‘ईष्वर ने अपने भक्तों के लिए जो कुछ तैयार किया है, वह किसी ने कभी देखा नहीं, उसके विषय में किसी ने कभी सुना नहीं और कोई उसकी कल्पना कभी नहीं कर पाया।’’ उस स्वर्गीय आनन्द, खुषी एवं ईष्वर के सामिप्य की, उनके प्रांगण में निवास करने के उस अनुभव की हम कल्पना भी नहीं कर सकते। कितना महान, व कितना सुखद होगा हमारा प्रभु के साथ अनन्तकाल तक निवास करना!!!
इस अनन्त सुख के भागीदार बनने के लिए ईष्वर हमें जबरदस्ती नहीं करते, जैसा कि उन्होंने आदि माता-पिता के साथ किया। आज के पहले पाठ में प्रभु का वचन हमसे कहता है - ‘‘ईष्वर के प्रति ईमानदार रहना तुम्हारी इच्छा पर निर्भर है। उसने तुम्हारे सामने अग्नि और जल दोनों रख दिया, हाथ बढाकर कर उन में से एक को चुन लो। मनुष्य के सामने जीवन और मरण दोनों रखे हुए हैं। जिसे मनुष्य चुनता है, उसी वही मिलता जाता है।’’ हमारे सामने सारे विकल्प रखने के बाद प्रेमी पिता हमसे कहते हैं विधिविवरण ग्रंथ 30,19 में - ‘‘मैं तुम्हारे सामने जीवन और मृत्यु, भलाई और बुराई दोनों रख रहा हूँ। तुम लोग जीवन को चुन लो।’’ उन्होंने हमें पूर्ण स्वतंत्रता दी है। पर ये नहीं चाहते कि हम उस स्वतंत्रता का दुरउपयोग कर मृत्यु को चुनें। वे चाहतें हैं कि हम स्वतंत्र रूप से जीवन को चुनें, उस अनन्त जीवन को जिसे हमें दिलाने के लिए हमारे मुक्तिदाता प्रभु येसु इस संसार में आये हैं। आज के सुसमाचार में प्रभु येसु पर्वत प्रवचन में अपने दिव्य वचनों द्वारा उस अनन्त जीवन को प्राप्त करने का मार्ग हमें बतलाते हैं। जैसा कि संत पेत्रुस कहते हैं - ‘‘प्रभु हम किसके पास जायें! आपके की शब्दों में अनन्त जीवन का संदेष है।’’ योहन 6, 68। प्रभु कहते हैं यदि हम स्वर्ग में प्रवेष पाना चाहते हैं तो हमें न केवल अपने भाई-बहनों की हत्या करने से बचना चाहिए परन्तु उनसे बैर घृणा एवं क्रोध करने से भी बचना चाहिए। किसी की हत्या करना जितना गंभीर पाप है, उतना ही गंभीर होता है उनसे क्रोध करना। प्रभु कहते हैं जो सजा हत्यारे को दी जानी चाहिए वही क्रोधी व्यक्ति को भी मिलनी चाहिए। प्रभु हमें अपने भाई बहनों के प्रति प्रेम, क्षमा व एकता बनाये रखने को कहते हैं। जब हम प्रभु की वेदी के पास आते हैं तो अपने भाई-बहनों से किसी प्रकार की कोई षिकायत हमारे अंदर नहीं होनी चाहिए। प्रभु के सम्मुख हमें शुद्ध हृदय लेकर आना चाहिए। मलीन हृदय के साथ चढाई गई भेंट प्रभु को प्रिय नहीं। याद रहे प्रभु ने काईन की भेंट के साथ क्या किया था। जो पाप बाहरी रूप से दिखता है उससे अधिक गंभीर हमारे अंदर के पाप होते हैं। हमारे बूरे विचार हमारे बूरे कर्मों से ज्यादा घातक होते हैं। बूरे कर्म तो बूरे विचारों का प्रकट रूप मात्र है। यदि हम हमारे बूरे विचारों के ऊपर नियंत्रण रख लेते हैं तो हमारे कर्म स्वतः ही अच्छे हो जायेंगे। इसलिए प्रभु कहते हैं कि यदि तुम किसी स्त्री को बुरी निगाह से देखते हो तो तुमने अपने मन में उसके साथ व्यभिचार कर लिया है। प्रभु कहते हैं ऐसी सभी चिजें जो हमें पाप की और खींच ले जाती है, हमें उन्हें त्याग देना, उनके होते हुए नरक में जाने से बेहतर है। आज प्रभु के वचनों को यदि हम हमारे आज की दुनिया से जोडकर देखें तो प्रभु हमसे यही कहेंगे - यदि तुम्हारा मोबाइल तुम्हारे लिए पाप का कारण बनता है तो उसे अपने से दूर रखो, यदि तुम्हारा कम्प्युटर तुम्हें पाप कराता है तो उसे त्याग दो। यदि तुम्हारे दोस्त तुम्हें पाप कराते हैं, तो उन्हें छोड दो। इन सब के साथ नरक में जाने से बेहतर है हम इनके बिना स्वर्ग में जायें।
आज हम पवित्र बालकपन का पर्व मना रहे हैं। आजकल के बच्चों को सही षिक्षा देना हर माता-पिता, षिक्षक-षिक्षिकाओं एवं सब जिम्मेदार लोगों का फर्ज है। उन्हें क्या सही है क्या गलत, कौन सी बातें व कौन सी चिजें उनके लिए लाभदायक हैं और किन चिजों से उन्हें दूर रहना चाहिए ये सब हम ही उन्हें बता सकते हैं। यदि आज हम बच्चों की नींव पवित्रता के ऊपर रखेंगे तो कल हमें एक ऐसा भविष्य मिलेगा जो ईष्वर के राज्य के मुल्यों पर आधारित होगा। जहाँ शैतान के कार्यों का दमन होगा और हमारी संतानें इस दुनिया में प्रभु के नाम व उसके सुसमाचार की एक मिसाल बनकर इस जग में उसके नाम की महिमा को प्रदर्षित करेंगी। आमेन।


Saturday, 4 February 2017

सामान्य काल का 5वां रविवार, 5 फरवरी, 2017

इसायाह 5,7-10
1 कोरिंथियो 2, 1-5
मत्ती 5,13-16
क्या आपने कभी अपने आप से पूछा है कि मैं ईसाई क्यों हूँ? क्या सिर्फ इसलिए कि मैं एक ईसाई परिवार में पैदा हुआ/हुई? क्या यह एक संयोग मात्र है? प्रभु येसु के अनुयायी बनना कोई संयोग नहीं, एक बुलावा है। कई बार जो लोग ईसाई धर्म अपनाते हैं वे यह घोषणा करते हैं कि मैं बिना किसी दबाव के, अपनी पूरी मर्ज़ी व स्वेच्छा से इस धर्म को अपना रहा हूँ। कानूनी तौर पर यह कहना उचित है। परन्तु यह घोषणा वास्तविकता से काफी दूर होती है। कोई भी अपनी मर्ज़ी से ईसा का अनुयायी नहीं बन सकता। प्रभु हमें बुलाता है, हमें वो ही चुनता है। संत योहन 15, 16 में प्रभु कहते हैं - ‘‘तुमने मुझे नहीं चुना, बल्कि मैं ने तुम्हें चुना और नियुक्त किया है, कि तुम जा कर फल उत्पन्न करो।’’ और योहन 6,44 में प्रभु कहते हें - ‘‘कोई मेरे पास तब तक नहीं आ सकता, जब तक कि पिता, जिसने मुझे भेजा, उसे आकर्षित नहीं करता।’’ हमारा ख्रीस्तीय होने का बुलावा कोई आज या कल की बात नहीं है। वचन कहता है रोमियो 8,30 में - ‘‘उसने जिन्हें पहले से निश्चित किया, उन्हें बुलाया भी है।’’ हमारा बुलावा पहले से ही निश्चित किया गया है। हाँ उसने हमें संसार की सृष्टि से पहले से ही चुन लिया है - एफेसियों 1, 4.
इन सब से यह तो स्पष्ट हो जाता है कि मेरा ईसाई होना कोई संयोग अथवा कोई इत्तफाक नहीं है। मैं सदियों पहली बनाई एक योजना के मुताबिक चुना गया हूँ। मुझे ईश्वर ने अपना अनुयायी चुन कर अलग कर लिया है। सारे ब्रह्माण्ड को बनाने व उसे चलाने वाले ईशवर ने मुझे इस जीवन के लिए चुना है। पूरे विश्व का मास्टर प्लान बनाने वाले इश्वर ने यदि मुझे चुना है तो इसके पीछे कोई न कोई उद्देष्य रहा होगा। उसने युँ ही मुझे नहीं चुना होगा! इन दिनों देश के कई राज्यों में चुनाव होने वाले हैं। लोग अपना प्रतिनिधी चुनेंगे। अपने प्रतिनिधी का चुनाव करते समय लोगों के मन में कोई मकसद होता है, कई उम्मिदें रहती हैं, कई अभिलाषायें रहती हैं। जब प्रभु ने हमें अपना बनने के लिए चुना तो हमको लेकर उनके हृदय में भी कई उम्मिदें थीं, किसी विषेश मकसद को लेकर हमें चुना गया था। पर इस दुनिया की भीड में, दुनिया के मेले में, दुनिया की चकाचौंध में, दुनिया के आकर्षण में  हम उस मकसद को हमारी नज़रों से दूर कर देते हैं। आज प्रभु हमारे प्रति जो उम्मीद व आशा करते हैं उसे फिर से हमारे सामने रखते हैं। आज वे हमें याद दिलाते हैं कि उसने हमें क्यों बुलाया है, क्यों चुना है इस दुनिया की भीड मेंसे। आज प्रभु हमसे कहते हैं - ‘‘तुम पृथ्वी के नमक हो। यदि नमक फ़ीका पड जाये तो वह किस से नमकीन किया जायेगा? वह किसी काम का नहीं रह जाता। वह बाहर फैंका और पैरों तले रौदा जाता है। ?’’ यदि हमारे ख्रीस्तीय जीवन में ख्रिस्तीयता नहीं है, हमारे जीवन में ईसाईयत का नमक नही तो हम बेकार हैं। यदि हमें देखकर, औरों को ये न लगे कि हम येसु के अनुयायी हैं। तो फिर हमारा ईसाई होना व्यर्थ है। प्रभु कहते हैं तुम संसार की ज्योति हो। तुम्हारी ज्योति मनुष्यों के सामने चमकती रहे, जिससे वे तुम्हारे भले कार्यों को देखकर तुम्हारे स्वर्गीक पिता की महिमा करें। सुसमाचारीय सदगुण हमारे आचरण में, हमारी बोल-चाल में सदैव झलकना चाहिए। हम जहांँ कहीं भी रहें, जो कुछ भी करें, हमारा जीवन एक दीपक की तरह दमकते रहना चाहिए। हम जानते हैं कि यह संसार विभिन्न प्रकार की बुराईयों एवं पाप के अंधकार से भरा हुआ है। हम उस अंधकार के भागीदार न बनें। वचन कहता है - ‘‘भाईयों और बहनों आप तो अंधकार में नहीं है. . . आप सब ज्योति की संतान हैं’’ (1थेसलनिकियों 5, 4)।  यदि हम वास्तव में ज्योति की संतानें हैं यदि हमें प्रभु ने एक ज्योति बनाकर इस संसार में भेजा है, तो फिर हमारा आचरण वास्तव में एक जलते दीपक समान होना चाहिए। अंधकार में कहीं पर भी यदि एक दीपक जल रहा हो तो वह दिखेगा ज़रूर। यदि हम प्रभु के वचनों के मुताबिक जीवन जियेंगे तो लाखों की भीड में भी हमारी अलग पहचान होगी। प्रभु कहते हैं - ‘‘तुम एक दूसरे को प्यार करो। जिस प्रकार मैं ने तुम लोगों को प्यार किया। यदि तुम एक दूसरे को प्यार करोगे, तो उसी से सब लोग जान जायेंगे कि तुम मेरे शिष्य हो’’ (योहन 13, 34)। कुछ साल पहले डिसाइपलशिप ट्रेनिंग करके एक वर्कशोप था उसमें भाग लेने का मौका मिला। उसमें हमें एक दिन इंदौर शहर में कहीं भी जाकर किसी न किसी ज़रूरतमंद व्यक्ति की मदद करके शाम को वापस जाकर अपने अनुभव सबों के साथ साझा करना था। एम वाई हॉस्पिटल के सामने एक बुजूर्ग व्यक्ति की मदद करते समय किसी ने हम से पूछा आप लोग ईसाई हो क्या? हमने कहा - हांँ, पर आप ऐसा क्यों पूछ रहे हैं? तो उसने उत्तर दिया वे ही ऐसा काम कर सकते हैं। जि हाँ ख्रीास्त में प्यारे भाईयों और बहनों, यदि हम इस दुनिया में ज्योति बनकर जियेंगे तो हमारे कार्यों को देखकर ही लोग हमें पहलचान जायेंगे कि हम ख्रीस्त के अनुयायी हैं। हमें किसी को हमारा बपतिस्मा सर्टिफिकेट दिखाने की ज़रूरत नहीं। हमारे कार्य हमारी और से गवाही देंगे। हर रविवार को मिस्सा में आना मात्र हमें ईसा के अनुयाई नहीं बनाता। उस मिस्सा बलिदान में जो होता है उसे हमारे रोज़ के कार्यों में परिणित करना, हमें वास्तविक ईसाई बनाता है। हर मिस्सा बलिदान में प्रभु येसु अपने आपको तोडकर हमें देते हुए कहते हैं - यह मेरा शरीर है, तुम सब इसे लो और खाओ। इसके द्वारा वे हमें सिखलाते हैं कि हमें भी औरों के लिए अपने शरीर को तोडना है। दूसरों की भलाई के लिए हमारी सुख सुविधावों मेंसे थोडा त्याग कर हमें दूसरों को देना चाहिए, जिस प्रकार से प्रभु अपना सर्वस्व हमारे लिए अर्पित करते हैं। आज के पाठ में प्रभु हमसे कहते हैं - ‘‘अपनी रोटी भूखों के साथ खाओ, बेघर दरिद्रों को अपने यहांँ ठहराओ। जो नंगा है, उसे कपडे पहनाओ और अपने भाई-बहनों से मुख मत मोडो। तब तुम्हारी ज्योति उषा की तरह फूट निकलेगी।’’ हम मेंसे कितने लोग हैं जो वास्तव में भूख लगने पर ही खाना खाते हैं। हमें समय-समय पर खाना मिल जाता है और शायद आवश्यक्ता से भी अधिक मिलता है। पर इस दुनिया में कई लोग हैं जिन्हें भूख लगने पर भी खाना नसीब नहीं होता। ऐसा ही कोई अभागा बच्चा किसी दिन  डॉक्टर के पास जाकर उनसे एक सवाल करता है जिसे सुनकर डॉक्टर की भी आंँखें भर आती है।  वह पुछता है - ’’ऐसी कोई दवाई है, डॉक्टर साहब, जिस से भूख ही न लगे।?’’ किस परिस्थिति व मज़बूरी में यह सवाल किया होगा उसने वही जानता है। भूख की ज्वाला भयानक होती है। आज के पहले पाठ में प्रभु हमें हमारे पास जो कुछ है उसे जिनके पास वास्तव में नहीं है उनके साथ बांँटने का आह्वान कर रहे हैं। क्योंकि देने में जो सुख है वह अपने पास जमा करके रखने में कभी नहीं मिलता, उससे तो बेचैनी और अशांँति ही बढती है। यहांँ देने से मतलब सिर्फ रूपये पैसे दान करने से नहीं है, पर जो कुछ भी हमारे पास है - हमारा समय, हमारा धन, हमारी प्रतिभा, हमारा ज्ञान, हमारी क्षमताऐं, हमारा प्यार, हमारे संसाधन, हमारी गाडी, और हमारा भोजन, और सबसे उत्तम हमारा जीवन। ये सब हम दूसरों के साथ बांटना सिखें। तब हम गर्व के साथ कह सकेंगें कि हम प्रभु येसु के शिष्य हैं। हम उनके दिखाए मार्ग पर चलते हैं। तब हमारी उपस्थिति से ये अंधकारमय संसार जगमगा उठेगा और हम ख्रीास्त की ज्योति के राजदूत बनकर शैतान के अंधकारमय कार्यों को समाप्त कर देंगे। आमेन।  

Saturday, 28 January 2017

वर्ष का चौथा इतवार



सफन्या 2,3-3,12-13
1 कुरिंथ 1, 26-31
मत्ती 5, 1-12


इस दुनिया में हर कोई खुशी और शांति चाहता है। शांति और ख़ुशी की जुगाड में इंसान क्या-क्या नहीं करता। पढाई-लिखाई, मेहनत-मज़दूरी, नौकरी-पैशा अथवा मंदिर, मस्ज़िद और गिरजाघरों के चक्कर भी हम मन मी शांति और खुशी के लिए ही तो लगाते हैं। आजकल टी. वी. चैनलों पर तो ऐसे कई तरीकों एवं मंत्रों का प्रचार-प्रसार होता है जो क्षण भर में हमारे जीवन को बदलने एवं हमारे भाग्य को पलटने का दावा करते हैं। इंसान को धनी बनाने, नौकरी दिलाने व करोबार में सफलता दिलाकर रूपये-पैसे एवं शौहरत दिलाने के खोखले वादे करके लोगों को मोहित करने का बाज़ार आजकल बहुत ही गर्म है। कई लोग इन अंधे विज्ञापनों के जाल में फंसकर अपने जीवन में सफलता और शौहरत की तलाश करते हैं। कई लोग रातों-रातों अमीर बनने के ख्वाब देखकर, तो कई अपने आपको ऊंचाईयों पर पहुँचाने के सपने संजोकर अपना जीवन धन्य बनाने का प्रयास करते हैं। दुनिया की निगाहों में तो वे लोग धन्य व आशिषित कहे जा सकते हैं जिनके पास रूपये-पैसे, धन-दौलत, शानो-शौहरत एवं एक आरामदायक ज़िंदगी जीने के सारे साधन उपलब्ध हैं। परन्तु प्रभु का नज़रिया दुनिया के नज़रिये से भिन्न है। प्रभु की नज़रों में वह व्यक्ति धन्य है जो अपने को दीन-हीन समझता है, जो गरीब है, जो आभावों में जीता है। उसका धन, उसकी दौलत और शौहरत सब कुछ प्रभु ही है। प्रभु की निगाहों में वह व्यक्ति धन्य नहीं है जो खुद को इस समाज में अथवा इस संसार में बहुत बडा मानता हो अथवा बडा बनने का प्रयास करता हो परन्तु वह व्यक्ति प्रभु के लिए धन्य है जो विनम्र है, जो बडा होते हुए भी, बडे पद पर रहते हुए भी स्वयं को सबों का सेवक एवं सबसे छोटा मानता है।
यदि किसी के घर में, परिवार में कोई अनहोनी हो जाती है, किसी की मृत्यु हो जाती है, या फिर कोई घोर विपत्ति हमें घेर लेती है और हम हमारे दुःखों पर शोक मनाते हैं तो दुनिया कहती है - इनका भाग्य खराब है, दुर्भाग्य का पहाड इन पर टूट पडा है अथवा पता नहीं अपने किस कर्म का फल ये भुगत रहे हैं आदि। पर प्रभु कहते हैं धन्य हो तुम जो शोक करते हो, तुम्हें सान्तवना मिलेगी। हमारे दुखों में हमारा प्रभु हमारे साथ रहता है।
गौतम बुद्ध कहा करते थे इस संसार में दुःख का कारण तृष्णा है। आज की युवा पिढी में विभिन्न प्रकार की भूख एवं तृष्णा है धन-दौलत की भूख, विलासितापूर्ण जीवन की भूख, अच्छे घर, अच्छे मकान की भूख, सुख-सुविधाओं की भूख, लेटेस्ट मोबाइल एवं अन्य इलेक्ट्रोनिक गैजेट्स पाने की भूख, पार्टी जाने व मौज मस्ती करने की भूख, प्यार करने व प्यार पाने की भूख। एक तृष्णा मिटती है तो दूसरी पैदा होती है। एक ज़रूरत पूरी होती है दो उसके बदल दस ज़रूरतें और खडी हो जाती है। हमारा खालीपन, जीवन का अधूरापन कभी खत्म नहीं होता। हमारे जीवन के अधूरेपन को सिर्फ प्रभु ही पूरा कर सकते हैं। हमें परिपूर्ण तृप्ति प्रभु ही दे सकते हैं। पर हम उनके लिए तरसते ही नहीं। आज की पीढी में प्रभु के लिए, और धार्मिकता के लिए भूख एवं रूची की कम होती जा रही है। प्रभु कहते हैं जो धार्मिकता के भूखे और प्यासे हैं वे तृप्त किये जायेंगे। संत मत्ती 6, 33 में प्रभु हमसे कहते हैं - तुम सब से पहले ईश्वर के राज्य और उसकी धार्मिकता की खोज में लगे रहो और ये सब चीजे़ं तुम्हें यों ही मिल जायेंगी। हम हमारे मन की शांति और दिल की तसल्ली की तलाश गलत जगहों पर करते हैं इसलिए तृप्ती नहीं मिलती। छोटों से लेकर बडों तक सब जीवन में असंतुष्ट रहते हैं। क्योंकि हम दुनियाई चीज़ों में तसल्ली ढुंढते हैं। हम अनष्वर खज़ाने को छोडकर नष्ट हो जाने वाले खज़ाने में अपना मन लगाते हैं और उसे पाने की कोशिश करते रहते हैं। इस जीवन में सच्चा सुख सिर्फ प्रभु से ही हमें मिल सकता है।
इस दुनिया में कई लोग ऐसे हैं जो किसी की चुगली करके दूसरों के सामने किसी का नाम खराब करते हैं। जलन एवं ईर्ष्या के कारण तथा अपनी स्वार्थ सिद्धी हेतु दो पक्षों में मतभेद, मनमुटाव अथवा झगडा करा देते हैं। ऐसे चापलूस जो खुद को अच्छा दिखाने के चक्कर में दूसरों के रिष्तों में दरार पैदा करते हैं वे प्रभु की संतान नहीं हो सकते। प्रभु की संतान तो वे लोग हैं जो टूटे रिष्तों को जोडने की बात करते हैं, जो मेल मिलाप कराते हैं। प्रभु कहते हैं - ‘‘धन्य है वे जो मेल-मिलाप कराते हैं वे ईशवर के पुत्र-पुत्रियां कहलायेंगे।
कलीसिया पर अत्याचार कोई नई बात नहीं है। कलीसिया के प्रारम्भ से ही प्रभु के भक्तों के ऊपर घोर अत्याचार किया जाता रहा है। स्वयं प्रभु येसु ने घोर अत्याचार सहा एवं सूली पर कुर्बानी दी। उनके बाद उनके शिष्यों ने भी प्रभु के नाम पर आये हर दुःख विपत्ति को खुशी-खुशी झेला और शहादत प्राप्त की। कुछ दिनों पहले सोशयल मिडिया पर एक मेसेज सरक्युलेट हो रहा था जिसमें एक वेबसाइट की लिंक थी, जिस पर जाकर उन इसाईयों को साईन करना था जो सुप्रिम कोर्ट से ईसाई मिशनरियों पर हाथ उठाने वालों को सश्रम कारावास का कानून दिलाने की मांग करते हों। दो हज़ार से भी अधिक ईसाई यह पेटिशन साईन कर चुके हैं। मैं बाइबल का कोई ज्ञाता तो नहीं हूँ पर मेरे सीमित ज्ञान से यह तो कह सकता हूँ कि पवित्र बाइबल में ऐसा करना तो कहीं नहीं सिखाया गया है। प्रभु का वचन कहता है - ‘‘अपने आप को बुद्धिमान न समझें। बुराई के बदले बुराई नहीं करें। दुनिया की दृष्टि में अच्छा आचरण करने का ध्यान रखें। जहांँ तक हो सके अपनी ओर से सबों के साथ मेल-मिलाप बनाये रखें। प्रिय भाईयों आप स्वयं बदला न चुकायें बल्कि उसे ईशवर के प्रकोप पर छोड दें, क्योंकि लिखा है प्रतिषोध मेरा अधिकार है, मैं ही बदला चुकाऊंगा’’ (रोम12, 16-19)। इसलिए धार्मिकता के कारण अत्याचार सहना हमारा दुर्भाग्य नहीं, ये तो हमारा सौभाग्य है। प्रभु कहते हैं - धन्य है वे जो धार्मिकता के कारण अत्याचार सहते हैं स्वर्ग राज्य उन्हीं का है। धन्य हो तुम जब लोग मेरे कारण तुम्हारा अपमान करते हैं, तुम पर झूठे दोष लगाते हैं। खुश हो और आनन्द मनाओ स्वर्ग में तुम्हें महान पुरूस्कार प्राप्त होगा।
आईये ख्रीस्त में प्यारे भाईयों और बहनों हम इस दुनिया के निमित नहीं पर प्रभु के वचनों के अनुसार अपना जीवन जियें। हम दीन-हीन बनें, विनम्र तथा दयालु बनें, मन के निर्मल एवं पवित्र बनें, अपने भाई-बहनों के बीच मेल-मिलाप एवं भाईचारे की एक कडी बनकर लोगों को प्रेम के सूत्र में बांधने की कोशीश करें। और हमेशा प्रभु की व उसकी धार्मिकता की खोज में लगे रहें। तथा प्रभु के नाम पर आने वाले हर कष्ट-पीडा को धैर्य एवं हिम्मत के साथ ख़ुशी-खुशी स्वीकार करें क्योंकि स्वर्ग में हमारे लिए एक महान पुरस्कार हमारा इंतज़ार कर रहा है। आमेन।


Saturday, 21 January 2017

वर्ष का तीसरा रविवार, 22 जन 2017



इसायाह 8,23.9,३
1 कुरिन्थियों 1, 10-13.17
मत्ती 4,12-23
आज के पहले पाठ में हम नबी इसायस को यह भविष्यवाणी करते सुनते हैं - अंधकार में भटकने वाले लोगों ने एक महत्ती ज्योति देखी है, अंधकारमय प्रदेष में रहने वालों पर ज्योति का उदय हुआ है। (इसायाह 9,1)। यह ज्योति क्या है? ऐसा कौन सा प्रकाष है जिसके बारे में नबी कह रहे हैं? क्या यह चंद्रमा की रोषनी है या फिर सूरज का तेज प्रकाष? हरगिज नहीं। नबी जिस रोषनी की बात कर रहे हैं वह हज़ारों सूरज की रोषनी से भी तेज है। यह एक ऐसा तेज है जिसके सामने किसी भी प्रकार का अंधकार टिक नहीं सकता है।
उत्पत्ति ग्रंथ 1,1-3 में हम पढते हैं कि प्रारम्भ में पृथ्वी उजाड और सुनसान थी। अथाह गर्त पर अंधकार छाया हुआ था और ईष्वर का आत्मा सागर पर विचरता था। ईष्वर ने कहा प्रकाष हो जाये, और प्रकाष हो गया। प्रकाष ईष्वर की पहली सृष्टि है। प्रभु ने सबसे पहले प्रकाष बनाया। पेड-पौधे और जीव-जन्तु बनाने से पहले ईष्वर ने प्रकाष बनाया क्योंकि यह हर प्रकार के जीवन के लिए एक अति आवष्यक घटक है। पूर्ण अंधकार में जीवन संभव नहीं।
विभिन्न धर्मों में प्रकाष को ईष्वर की उपस्थिति का प्रतीक माना जाता है। पवित्र बाइबल में ईष्वर ने कभी प्रकाष के स्तम्भ के रूप में, कभी जलती झाडी में इस्राएलियों को दर्षन दिये। तथा प्रभु येसु के आगमन के बारे में बतलाते हुए संत मत्ती कहते हैं - अंधकार में रहने वालों ने एक महत्ती ज्योति देखी, मृत्यु के अंधकारमय प्रदेष, में रहने वालों पर ज्योति का उदय हुआ है। अंधकार! अंधकार और कुछ नहीं ज्योति का अथवा प्रकाष का आभाव है। प्रकाष और अंधकार एक साथ नहीं रह सकते। जहाँ प्रकाष है वहांँ अंँधेरा नहीं टिक सकता। प्रभु येसु ख्रीस्त ने कहा है - ‘‘ससार की ज्योति मैं हूँं। जो मेरा अनुसरण करता है, वह अंधकार में भटकता नहीं रहेगा। उसे जीवन की ज्योति प्राप्त होगी’’ (संत योहन 8,12)। जहांँ प्रभु येसु है वहांँ अंँधकार की कोई शक्ति प्रबल नहीं हो सकती। यदि कोई कहता है प्रभु येसु मुझमें है, वो मेरे साथ है और वह पाप के अंँधकार में जीवन बिताता तो वह स्वयं को धोखा देता है। क्योंकि प्रभु येसु वह ज्योति है जिसके प्रकाष में हमें स्वर्ग का मार्ग साफ-साफ दिखाई देता है। जो प्रभु की ज्योति में चलता है पापमय अंधकार में नहीं चल सकता। प्रभु का वचन वह ज्योति है जो हमें सही मार्ग दिखाता हैं।  वचन कहता है - ‘‘तेरी षिक्षा मुझे ज्योति प्रदान करती और मेरा पथ आलोकित करती है’’ (स्तोत्र 119,105)। इसका मतलब यह हुआ कि प्रभु येसु की ज्योति के उजाले में जो जीता है उसे क्या भला क्या बूरा, क्या पाप और क्या धार्मिकता, यह सब साफ-साफ दिखाई देता है। वह न भटकता और न ही ठोकर खाता है। हम अपने आप को ईसाई कहते तो हैं परन्तु यदि हमारा आचरण अंधकारमय है, हमारे कर्म अंधकारमय है तो हम खोखले ईसाई हैं। ईसाई होते हुए भी हम यदि इस दुनिया में अंधकार में जीवन बिताते हैं, तो हमने मसीह को व उसकी षिक्षाओं को नहीं पहचाना। हम प्रभु की ज्योति से अब भी दूर हैं। संत योहन 1,9-12 में वचन हमसे कहता है - ‘‘शब्द वह सच्ची ज्योति था, जो प्रत्येक मनुष्य का अंधकार दूर करती है। वह संसार में आ रहा था। वह संसार में था, संसार उसके द्वारा उत्पन्न हुआ, किंतु संसार ने उसे नहीं पहचाना। जितनों ने उसे अपनाया, और जो उसके नाम में विष्वास करते हैं उन सब को उसने ईष्वर की संतत्ति बनने का अधिकार दिया।’’ सारे संसार को सत्य का प्रकाष देने, सारी मानवता को मुक्ति की राह दिखाने के लिए संसार की ज्योति प्रभु येसु ख्रीस्त संसार में आ चुके हैं। उनकी ज्योति में चलकर अपनी जीवन नैया पार लगाना या फिर पापमय अंधकार में चलकर अपने जीवन को हमेषा के लिए नष्ट करना ये हमारे व्यक्तिगत चुनाव के ऊपर निर्भर करता है। प्रभु हमें पूर्ण स्वतंत्रता देते हैं वे अपनी राहें, अपनी षिक्षाएं हम थोपना नहीं चाहते पर फिर भी वे यही चाहते हैं कि हम हमारी स्वतंत्रता में जीवन का चयन करें। वचन कहता है - ‘‘मैं तुम्हारे सामने जीवन और मृत्यु, भलाई और बुराई रख रहा हूँ। तुम लोग जीवन को चुन लो, जिससे तुम और तुम्हारे वंषज जीवित रह सकें’’ (विधिविवरण 30,19)। ये चयन हमारे लिए, हमारे जीवन के लिए बहुत ही ज़रूरी है। आज के सुसमाचार में हमने सुना प्रभु येसु पेत्रुस और उनके भाई अंद्रेयस, जे़बेदी के पुत्र याकूब और योहन को अपना अनुसरण करने के लिए बुलाते हैं। वे मछुवारे थे और अपनी नाव, जाल व रिष्तेदारों के साथ समुद्र से मछली पकड रहे थे। उनके सामने दो विकल्प थे - अपनी जाल व नाव के साथ अपना मछुवारे का काम जारी रखना या फिर सब कुछ पीछे छोडकर प्रभु येसु का अनुसरण करना। उन्होंने संसार की ज्योति को चुना। हमारे जीवन में हमें पग-पग यह चयन करना है। यदि हमने एक बार येसु को चुना है उनकी षिक्षाओं को चुना है तो हमें जीवन के हर पढाव में उन्हें ही चुनते रहना है। हर एक बुराई, हर एक पाप की परिस्थिति हमारे सामने दो विकल्प खडे करती है। या तो हम बुराई को चुनें या फिर प्रभु के वचनों को, प्रभु की राहों। हम दोनों नहीं चुन सकते। प्रभु कहते हैं - ‘‘कोई भी दो स्वामियों की सेवा नहीं कर सकता या तो वह एक से बैर और दूसरे से प्रेम करेगा या फिर एक का आदर और दूसरे का तिरस्कार करेगा’’ (मत्ती 6,24)। मैं प्रभु की संतान और शैतान की संतान एक साथ नहीं हो सकता। मैं या तो प्रभु का हूँ या फिर शैतान का, मैं या तू प्रभु की राहों पर चलता हूँ या फिर शैतान की। मैं दोनों राहों पर एक साथ नहीं चल सकता। मैं जीवन के मार्ग पर चलता हूँ या फिर मौत के मार्ग पर, धार्मिकता के मार्ग पर या फिर अधार्मिकता मार्ग पर, मैं ज्योति में चलता हूँ या फिर अंधकार में। प्रकाष और अंधकार, पाप व पूण्य, प्रभु व शैतान ये दोनों ताकतें हर पग पर हमें प्रभावित करती हैं और हमें चुनौति देती है। जो कोई पेत्रुस और अंद्रेयस, योहन और याकूब की तरह जीवन के हर पडाव में येसु को चुनेंगे उनके बारे में वचन कहता है - ‘‘ऐसे लोगों पर द्वितीय मृत्यु का कोई अधिकार नहीं है। वे ईष्वर और मसीह के पुरोहित होंगे और उनके साथ . . . राज्य करेंगे’’ (प्रकाषना 20,6)।
आईये हम अंधकार को त्यागकर संसार की ज्योति प्रभु येसु को चुनें, पाप को छोडकर धार्मिकता को चुनें, अनन्त मृत्यु छोडकर अनन्त जीवन को चुनें। आमेन।















Saturday, 14 January 2017

वर्ष का दूसरा रविवार

इसायाह 49,3-6
1 कुरिन्थियों 1-3
योहन
1,29-34

आज के सुसमाचार हमने सुना, योहन बपतिस्ता प्रभु येसु को अपनी ओर आते देख कर उनकी ईशारा करते हुए कहते हैं - ‘‘देखिए यह है ईष्वर का मेमना जो संसार के पाप हर लेता है।’’ हमारा जीवन भी ऐसा ही होना चाहिए, हमें भी अन्य लोगों के सामने प्रभु येसु की ओर ईषारा कर के बताना चाहिए कि यही है ईष्वर का मेमना, यही है उद्धारकर्ता ईष्वर, यही है जो हम सब की नैया को भव पार लगा सकता है, यही है जो हमें पिता के दर्षन करा सकता है और यही है जो हमें स्वर्ग राज्य में ले जा सकता है। प्रभु येसु के सिवा और कोई मार्ग नहीं, प्रभु येसु के सिवा और कोई परिपूर्ण सत्य नही, और उनके बिना कहीं ओर परिपूर्ण जीवन नहीं। उन्होंने कहा है योहन 14ः6 में मार्ग सत्य और जीवन मैं हूँ, मुझसे होकर गये बिना कोई भी पिता के पास नहीं आ सकता। और योहन 10ः10 में वचन कहता है - चोर केवल चारी करने, मारने और नष्ट करने आता है परन्तु मैं इसलिए आया हूँ कि वे जीवन प्राप्त करे और उसे परिपूर्णता में प्राप्त करे।
आज के पहले पाठ में वचन हमसे कहता है कि तुम मेरे दास हो, और आगे वचन कहता है कि तुम्हारा दास बने रहना ही काफी नहीं है। मैं तुम्हें राष्ट्रों की ज्योति बनाऊंगा ताकि मेरी मुक्ति पृथ्वी के सीमांतों तक फैल जाये। हममें और अन्य लोगों में, ख््रास्तीयों में व गैरख््रास्तीयों में जमीन आसमान का फर्क है। हमारे ऊपर ईष्वर के बेटे-बेटियां होने की मुहर लगी हुई है। हम अंधकार से प्रकाष में लाये हुए लोग हैं। संसार सत्य को नहीं पहचानता परन्तु हम सत्य को पहचानते हैं। और वह सत्य है ईष्वर का मेमना प्रभु येसु ख््रास्त जो हमारे उद्धार के लिए बली चढाया गया है। हां इसी नाम से आज के सुसमाचार में संत योहन बपतिस्ता उन्हें पुकारते हैं  - देखिए यह है ईष्वर का मेमना जो संसार के पाप हर लेता है। कुछ दिनों पहले हमने प्रभु येसु के देहधारण अर्थात् ख््रास्त जयंति का पर्व मनाया और हमने यह मनन चिंतन किया की प्रभु येसु हमारे लिए मनुष्य बनकर इस संसार में आये। जब प्रभु येसु हमारे लिए मनुष्य बनकर आये तो फिर आज योहन उन्हें मेमना अर्थात् भेड अथवा बकरी का बच्चा कयों कह रहे हैं?
इस बात को समझने के लिए हमें पुराने विधान एवं यहुदी जाती की मुक्ति इतिहास की गहराई में जाना होगा। जब ईष्वर ने अपनी चुनी हुई प्रजा को मिस्र की गुलामी से आज़ाद करने का निष्चय किया तब उन्होंने हर एक इस्राएली परिवार को अपने-अपने घरों में एक मेेमने का वध करने और उसका रक्त अपने दरवाजों की चौखट पर पोतने का आदेष दिया। क्योंकि उस रात प्रभु का दूत मिस्र का भ्रमण कर मिस्र के सारे पहलोटों को मारने वाला था। प्रभु के दूत ने जिन-जिन घरों की चौखट पर मेमने का रक्त देखा उनको छोड बाकी सबके घरों के पहले बेटों को मार दिया। और इस प्रकार फिराऊ राजा घबराकर उन्हें मिस्र से जाने का आदेष दे देता है। इस प्रकार उनकी धारणा थी कि मेमने के रक्त के द्वारा ईष्वर ने उनका उद्धार किया है।
इस्राएली कैलेंडर के मुताबिक सातवें महिने के दसवें दिन इस्राइली लोग योम किपुर नामक पर्व मनाते हैं। इस दिन वे उपवास एवं प्रार्थना करते हुए अपने पापों के लिए प्रायष्चित करते हैं। इस पर्व के बारे में हम लेवी ग्रंथ 16 में पढते हैं कि इस प्रायष्चित विधी में पुरोहित दो मेेमनों को लेकर आता है। उनमें से एक मेमना जनता के पापों के प्रायष्चित के लिए बली चढाया जाता है, और उसका रक्त लोगों पर छिड़का जाता था तथा दूसरे मेमने के ऊपर इस्राएलियों के सारे कुकर्मों और सब प्रकार के अपराधों को स्वीकार कर, उन्हें उसके सिर पर डाल कर उसे रेगिस्तान में पहुंचा दिया जाता है। उनका मानना था कि वह मेमना उनके पापों को लेकर ऐसे स्थान पर चला गया है जहां से वह वापस नहीं आ सकता अर्थात् वे अपने पापों से पूर्ण रूप से मुक्त हो गए हैं।
परन्तु इब्रानियों के पत्र 10ः4-5 में वचन साफ-साफ कहता है - ‘‘सांडों तथा बकरों का रक्त पाप नहीं हर सकता, इसलिए मसीह ने संसार में आकर यह कहा- ‘‘तूने न तो यज्ञ चाहा और न चढावा, बल्कि तूने मेरे लिए एक शरीर तैयार किया है। . . . ईसा मसीह के शरीर के एक ही बार बलि चढाए जाने के कारण हम ईष्वर की ईच्छा के अनुसार पवित्र किये गये हैं।’’ और इब्रानियों 9ः12 में हम पढते हैं - उन्होंने बकरों तथा बछडों का नहीं, बल्कि अपना रक्त ले कर सदा के लिए एक ही बार परपावन स्थान में प्रवेष किया और इस तरह हमारे लिए सदा-सर्वदा रहने वाला उद्धार प्राप्त किया है।’’
यह है प्रभु येसु को ईष्वर का मेमना कहे जाने का अर्थ। पुराने विधान के मेमनों का रक्त पाप हरने में असमर्थ था परन्तु प्रभु येसु का अति मुल्यवान रक्त हमारे हर गुनाह के दाग को धोने समर्थ है। प्रभु येसु इसिलिए नये विधान का मेमना बनकर बलि चढे ताकि उनके सामार्थ्यवान लहू से हमारा उद्धार हो जाये। मिस्सा बलिदान और कुछ नहीं उसी बलित मेेमने के बलिदान का स्मरण है। वही मेमना नित्य हमारे लिए अपने आपको अर्पित करता है। प्याले में अर्पित दाख का रस उसी मेमने के रक्त में तब्दिल हो जाता है और वह रोटी उसके शरीर में। जो कोई सच्चे मन व पूर्ण तैयारी के साथ मेमने के इस भोज में भाग लेता है, और प्रभु के शरीर एवं रक्त का पान करता है वह उस मुक्ति में भागीदार होता है जिसे प्रभु येसु ने हमें प्रदान किया है।
संत योहन के प्रकाषना ग्रंथ 7ः14 में यह साफ लिखा हुआ है, कि अंतिम महासंकट से अर्थात् नरक में विनाष से केवल वे ही बच सकते हैं, जिन्होंने अपने वस्त्र मेमने के रक्त से धोकर उज्वल कर लिये हैं। इसलिए आईये हम आज जब पुनः एक बार मेमने के भोज में भाग लेने आये हैं, उसके पवित्र लहू में अपने आप को भिगो लें। मुक्ति का लहू, दुनिया का सबसे शक्तिषाली डिटर्जेंट जो पाप के गहरे से गहरे दाग को भी मिटा देता है, आज हमारे लिए बहाया जा रहा है। हम उस लहू से धोकर अपने वस्त्रों को उज्वल कर लें।
आमेन।