Saturday, 31 December 2016

New Year Mass , ईश माता का पर्व

1 जनवरी ईश माता का पर्व
2017

आज हम नये साल की शुरूआत ईष माता मरियम के पर्व के साथ करते हैं। मा मरियम कृपाओं से भरपूर की गयी थी। उनको प्राप्त सब कृपाओं में ईष्वर की माता बनना सब सबसे श्रेष्ठ था। मरियम की महानता इसमें है कि उनके हाँ कहने पर हमारी मुक्ति का द्वार खुल गया। उन्होंने कहा ‘‘देख, मैं प्रभु की दासी हूँ तेरा कथन मुझमें पूरा हो जाए’’ और उसी क्षण शब्द ने उनके गर्भ में देहधारण किया; उसी क्षण ईष्वर का शब्द उनके गर्भ में शरीर धारण कर मनुष्य बन गया। इस प्रकार मरियम ईष्वर की माता बन गई; हमारे मुक्तिदाता की माता बन गई और हमारी मुक्ति में एक महान सहायक बन गई।
ईष-माता का समारोह यद्यपि कलीसिया के आरम्भ से  मनाया जाता रहा है किंतु इसे हमारे काथलिक धर्मसिद्धांत के रूप में मान्यता एफेसुस की परिषद में सन् 431 में दिया गया। हम संत योहन के सुसमाचार में पढते हैं कि - ‘‘आदि में शब्द था, शब्द ईष्वर के साथ था और शब्द स्वयं ईष्वर था। उसके द्वारा सब कुछ उत्पन्न हुआ और उसके बिना कुछ भी उत्पन्न नहीं हुआ........ष्(और उसी) शब्द ने शरीर धारण कर हमारे बीच निवास किया।’’ योहन 1ः1, 14 याने प्रभु येसु, पिता के एकलौते पुत्र अनादि वचन है जो आदि में पिता के साथ विद्यमान था, जिसे ‘‘समय पूरा हो जाने पर ईष्वर ने इस संसार में भेजा। वह एक नारी से उत्पन्न हुआ और संहिता के अधीन रहा, जिससे वह संहिता के अधीन रहने वालों को छुडा सकें और हम ईष्वर के दत्तक पुत्र-पुत्रियां बन जाये’’ ( गला 4ः4-5) इसका मतलब ये हुआ कि प्रभु येसु स्वयं ईष्वर थे जो अनन्तकाल से विद्यमान है। तथा मानव मुक्ति के लिए वे स्वयं एक मनुष्य बन गये। मनुष्य बनने के लिए ईष्वर ने एक कुँवारी को अपने बेटे की माँ बनने के लिए चुना। इसलिए माँ मरियम ईष्वर की माँ है। उनके शरीर में रहकर ईष्वर जो अदृष्य थे; जिसका शरीर नहीं था एक शरीर धारण करते हैं। यही कलीसिया का विष्वास है; यही पवित्र बाईबल हमें सिखलाती है। किंतु चौथी व पांचवीं शताब्दी में कुछ भ्रांत धारणाओं का उदय हुआ। कुछ लोगों ने गलत षिक्षा का प्रचार करना प्रारम्भ कर दिया। मुख्य विवाद इस बात को लेकर था कि येसु ख्रीस्त सममुच में ईष्वर थे या फिर मनुष्य थे। कुछ लोगों का मत था कि येसु केवल ईष्वर थे मनुष्य नहीं थे और कुछ का मानना था कि वे मनुष्य थे ईष्वर नहीं थे। इनमें आरियुस व नेस्टेरियुस दो प्रमुख व्यक्ति थे। आरियुस का मानाना था कि येसु ख्रीस्त ईष्वर नहीं है उनमें कोई दिव्यता नहीं है वे तो ईष्वर एक रचना है। एक ऐसा समय था जब येसु का कोई अस्तित्व नहीं था। तब ईष्वर ने किसी अन्य तत्व से उसकी रचना की। यदि येसु ईष्वर नहीं है तो माता मरियम ईष्वर की माता नहीं कही जा सकती। कलीसिया ने 325 ईसवीं में नाइसिया में इस गलत षिक्षा का खंडन किया व यह प्रतिपादित किया कि ‘‘हम एक ही येसु ख्रीस्त में, जो सभी युगों के पहले पिता से उत्पन्न है। वह ईष्वर से उत्पन्न ईष्वर, प्रकाष से उत्पन्न प्रकाष सच्चे ईष्वर से उत्पन्न सच्चा ईष्वर है। वह बनाया हुआ नहीं, उत्पन्न हुआ है।’ इसी प्रचीन  विष्वास को हम हर रविवार को दोहराते हैं।  दूसरे व्यक्ति थे नेस्टिरियुस उसका मानना था कि येसु ख्रीस्त में दो प्रकार के व्यक्त्वि थे एक तो दिव्य अथवा ईष्वरीय व्यक्ति दूसरा मानवीय व्यक्ति तथा मरिमय केवल मानवीय येसु की माँ थी ईष्वरीय येसु की नहीं इसलिए वह ख्रीस्त की माता है ईष माता नहीं। 341 में एफेसुस की महासभा में इस गलत षिक्षा का खंडन किया और कहा ‘‘ उसका और पिता का तत्व एक है...वह हम मनुष्यां के लिए और हमारी मुक्ति के लिए स्वर्ग से उतरा और पवित्र आत्मा के द्वारा कुँवारी मरियम से शरीर धारण कर मनुष्य बन गया। याने प्रभु येसु पूरी तरह से ईष्वर है और पूरी तरह से मनुष्य। जब ईष्वर के शब्द ने माँ मरियम के गर्भ में प्रवेष किया तो प्रभु येसु की ईष्वरीयता व उनकी मानवता का एक व्यक्ति प्रभु येसु ख्रीस्त में विलय हो गया। पवित्र त्रित्व के दूसरा व्यक्ति जो ईष्वर था अब उनमें एक स्वभाव जुड गया और वो स्वभाव था मानवीय स्वभाव। तो हम पूरी तरह से ये कह सकते हैं कि माता मरियम ईष्वर की माँ है।
ईष माता होने के साथ ही साथ वो हम सब की, सारी कलीसिया की माँ है। वह हमारे ख्रीस्तीय जीवन का आदर्ष है। उनमें कोई दिव्यता नहीं थी ईष्वरीयता नहीं थी। वह तो नाज़रेथ की एक साधारण सी बालिका थी परन्तु ईष्वर ने उसे अपने एकलौते पुत्र की माँ बना दिया। इस प्रकार वह सब मानवों में सर्वश्रेष्ठ बन गयी। प्रभु येसु कहते हैं संत लूकस 7ः28 में ‘‘ मैं तुमसे कहते हूँ मनुष्यों में योहन बपतिस्ता से बडा कोई नहीं। फिर भी, ईष्वर के राज्य में जो सब से छोटा है, वह योहन बपतिस्ता से बडा है।’’ हम जानते हैं कि माँ मरियम ने ईष्वर की माँ बन जाने पर भी कोई घमंड नहीं किया। उन्होंने स्वयं को एक दासी ही माना और स्वर्गदूत से कहा ‘देखिए र्मैं प्रभु की दासी हूँ आपका कथन मुझमें पूरा हो जाये। माँ मरिमय अपने जीवन द्वारा हमें दीनता का पाठ पढाती हैं। वो प्रभु येसु की सबसे पहली व सर्वोत्तम षिष्या थी। बेतलेहेम  से लेकर कलवारी तक उसने येसु का अनुसरण किया। और हमें येसु के सच्चे षिष्य बनने का रास्ता दिखलाया।
वह न केवल येसु की माता है वरन हम सब की माता है क्योंकि स्वयं येसु ने क्रूस पर से उन्हें हमारी माता के रूप में हमें सौंपा है। हम संत योहन के सुसमाचार में पढते हैं येसु संत योहन से कहते हैं - ‘‘यह तुम्हारी माता है’’ और माँ मरियम से कहते हैं - ‘‘यह आपका पुत्र है’’ (यो 19ः27)। और वचन आगे कहता है उस समय से उस षिष्य ने अपने यहाँ उसे आश्रय दिया।’’ संत योहन ने क्या किया? तब से माँ मरियम को अपने घर में जगह दी। अपनी ही माँ के रूप में, अपने ही परिवार के एक सदस्य के रूप में। हम सब यदि यसु की माँ को अपनी माता मानते हैं, स्वीकरते हैं तो हमें भी उन्हें अपने घरों में ले जाना होगा। माता मरियम को हमारे परिवारों में जगह देना होगा; हमारे परिवार के ही एक सदस्य के रूप में माँ को स्वीकार करना होगा। क्योंकि उनके पुत्र यही आखिरी ख्वाहीष थी अपनी माँ को लेकर कि उसका हर अनुयायी उनकी माँ को अपनी माँ समझे व उसे अपने घर ले जाये। उसने अपनी माँ को हमें इसलिए दे दिया कि वह हमारे साथ रहकर हमारी ज़रूरतों में हमारे लिए प्रार्थना करती रहे। वह हमारी परिवार में रहकर हमारे परिवारों को नाज़रेथ के पवित्र परिवार की तरह एक पवित्र व आदर्ष परिवार बनानें में हमारी मदद करे। हमें धर्म मार्ग पर चलाये व शैतान के प्रलोभनों से हमारी रक्षा करे क्योंकि ईष्वर ने शैतान की सारी शक्तियों को माँ मररियम के पैरों तले डाल दिया है।
ख्रीस्त में प्यारे भाईयों और बहनों प्रभु येसु द्वारा हमें प्रद्त इस अमुल्य उपहार को हम हमारे घरों में, हमारे परिवारों में कैसे रख सकते हैं। मैं सोचता हूँ पवित्र रोज़री माला से उत्तम और कोई साधन नहीं जिसके द्वारा हम माँ मरियम को अपने घरों में बुला सकते हैं उनका आह्वान कर सकते हैं, उनसे प्रार्थना की अरज कर सकते हैं। जिस घर में रोज़री माला विनती होती है माँ मरियम उस घर में रहती है, उस घर का, उस परिवार का एक अभिन्न अंग बनकर। उनकी प्रार्थनायें माँ प्रभु तक जल्दि पहुँचा देती है।
आईये हम माँ मरियम को अपने घरों में जगह दें, रोज उनका स्मरण करें, वो ईष्वर की माता व हम सब की माता है।

Thursday, 22 December 2016

ख्रीस्त जयंती समारोह, 2016


इसायाह 9:2-7
तितूस 2:11-14
लूकस 2:1-14
प्रभु येसु मसीह में, ईश्वर  मनुष्य के रूप में सिर्फ प्रकट नहीं हुआ, अपितु वह  स्वयं मनुष्य बन गया। उसने इंसान का शरीर धारण कर पूरी तरह से हमारी तरह इस धरा पर जीवन व्यतित किया। उन्हांने मानवीय हाथों से काम किया, अपने मानवीय दिमाग से सोचा, और एक मानवीय हृदय से प्रेम किया। वह एक कुंवारी से जन्मा, उन्होंने अपने आपको पाप को छोड बाकि सब बातों में हमारे समान बना लिया।
चरवाहों ने गडरियों से कहा मैं आज सब के लिए एक बडे ही आनन्द का शुभ संदेश  सुनाता हूँ। प्रभु के जन्म का संदेश , सारी दुनिया के लिए है। प्रभु के वचन, उनका सुसमाचार हर एक इंसान के लिए है। जो संदेश  प्रभु येसु लेकर आये वो सिर्फ यहूदियों अथवा ईसाईयों के लिए नहीं परन्तु सारी मानवजाती के लिए है। प्रभु येसु ने स्वयं सारे फलिस्तीन देश  में घूम-घूम कर इस शुभ संदेश  को लोगों को सुनाया।  उन्होंने अपने स्वार्गारोहण से पहले अपने शिष्यों से कहा - ‘‘तुम जाकर सब राष्ट्रों को शिष्य  बनाओ और उन्हें पिता, पुत्र, और पवित्र आत्मा के नाम पर बपतिस्मा दो। मैंने तुम्हें जो-जो आदेश  दिये हैं, तुम उनका पालन करना उन्हें सिखलाओ। और याद रखो मैं संसार के अंत तक सदा तुम्हारे साथ हूँ।’’ आज प्रभु येसु का जन्म हुआ है। हमारे लिए मुक्ति का आगमन हुआ है। सारे संसार के लिए मुक्ति का आगमन हुआ है। इस संदेश  को हमें हमारे परिवारों, व सगे संबंधियों तक ही सीमित नहीं रखना है। परन्तु इसे सबको बताना है।
खि््रास्त जयंति प्रभु के साथ घनिष्टता का पर्व है। ईश्वर के साथ इंसान का जो घनिष्ट संबंध था वह आदि माता पिता के पाप के कारण खत्म हो गया था। जब आदम ने पाप किया तो वह ईष्वर से छिप गया (उत्पत्ति 3:8),। उसी प्रकार, जब काईन ने अपने भाई की हत्या की तो वह ईष्वर से दूर भाग गया (उत्पत्ति 4:16)। इंसान पाप पर पाप करता रहा है, परन्तु ईष्वर फिर भी वफादार बना रहा। हमारे मुक्ति इतिहास में यदि हम देखेंगे तो पायेंगे कि वह ईष्वर मानव के साथ रहने के लिए तडपता रहा। हमको पुनः अपने से मिलाने के लिए जब ईष्वर ने प्राचीन काल में अब्राहम को चुना तो उन्होंने उनको अपनी उपस्थिति में चलते रहने को कहा (उत्पत्ति 17ः1)। जब इस्राएलियों को मिस्र की गुलामी से छुडाया तब वह ईष्वर उनके साथ-साथ चला। चालीस वर्षों की लम्बी मरूस्थलीय यात्रा में ईष्वर उनके साथ विधान की मंजूषा में प्रतिकात्मक रूप से विद्यमान रहा । जब ईस्राएली लोग प्रतिज्ञात देष में आकर बस गये तब ईष्वर मंदिर में उनके बीच में उपस्थित रहता था। पुराने विधान में वह विभिन्न रूपों में अपनी प्रजा के साथ रहा। इब्रानियों के नाम पत्र 1ः1 में वचन कहता है- ‘‘प्राचीन काल में ईष्वर बारम्बार और विविध रूपों में हमारे पुरखों से नबियों द्वारा बोला था। अब अन्त में वह हमसे पुत्र द्वारा बोला है। खि््रास्त जयंति के दिन कुछ असाधरण सा हुआ। उस दिन ईष्वर साक्षत रूप में हमारे बीच आ गये। वह ईष्वर जो कभी जलती हुई झाडी, कभी बादल के खम्बे, तो कभी विधान की मंजूषा, कभी मंद समीर तो कभी गर्जन के रूप में लोगों के पास आता था, अब वह स्वयं मनुष्य बनकर हमारे बीच में आ गया। ‘‘षब्द ने शरीर धारण कर हमारे बीच निवास किया।’’ येसु ‘इम्मानुएल’ है जिसका अर्थ है ईष्वर हमारे साथ। वो आ, यहां हमारे बीच में विद्यमान है। जीवित प्रभु येसु आज हमारे साथ है।
आजकल हमारे क्रिसमस की विडम्बना यह है कि हम हमारे क्रिसमस समाराहों से प्रभु येसु को दूर कर दे रहे हैं। कई बार हमारे पास सांता क्लॉज़ रहता है, क्रिसमस ट्री रहती है, मीठे पकवान रहते हैं, मित्रगण रहते हैं। लेकिन बालक येसु के लिए कोई जगह नहीं। पवित्र बाइबल में सबसे हृदय विदारक वाक्य यह है - उनके लिए सराय में कोई जगह नहीं थी।(लूकस 2ः7)। पूरे ब्रह्माण्ड को रचने वाले के लिए कहीं जगह नहीं थी। सारी धरती और जो कुछ भी उसमें है, उसके मालिक के लिए कहीं जगह नहीं थी। जिस यहूदी जाती के उद्धार के लिए के लिए वे आये, उनके घरों में, उनके देष में उनके लिए जगह नहीं थी। उन्होंने मुक्तिदाता को स्वीकार नहीं किया। उन्होंने उसे क्रूस पर चढा कर मार डाला। सदियों से आज तक यही होता आ रहा है। करीब तीन सौ सालों तक रोमी साम्राज्य में प्रभु येसु के लिए कोई जगह नहीं थी। उनके अनुयायों पर अत्याचार किये जाते रहे। जापान, चीन, कोरिया, और वियेतनाम में कई सालों तक प्रभु के लिए कोई स्थान नहीं था। और उन सभी देषों व राज्यों में प्रभु येसु के लिए कोई स्थान नहीं जहाँ पर मिषनरियों, अथवा प्रभु के अनुयायों को उनके जन्म का, उनके राज्य का सुसमाचार सुनाने नहीं दिया जाता। हम पापियों को बचाने के लिए, पाप में भटकती मानवता की खोज में वे अपना स्वर्गीय सुख छोडकर इस धरा पर आए हैं। मुझे बचाने, मेरा उद्धार करने, पिता के साथ मेरा मेल-मिलाप कराने के लिए प्रभु येसु मेरे पास आ आये हैं।  वे मेरे दिल के द्वार पर आकर आज खटखटा रहे हैं। जो कोई द्वार खोलेगा प्रभु उनके यहां, उनके जीवन में आयेंगे। यदि हमारा कोई मित्र बड़े दूर से हमसे मिलने आता है और हम यदि उसके लिए दरवाज़ा नहीं खोलते तो  सोचो उन्हें कैसा लगेगा! उसी प्रकार सोचिये, कितने दुःख की बात होगी यदि हम हमारे प्रभु ईश्वर जो सिर्फ और सिर्फ हमारे लिए हमारे प्रति अपने असीम प्यार का इज़हार  करने के लिए हमारे पास आये है, यदि हम हमारे जीवन में उन्हें  स्वीकार नहीं करेंगे तो उन्हें कैसा लगेगा!। यदि उद्धार पाना है तो उन्हें अपने जीवन में स्वीकार करना ही होगा। उन्होंने कहा है- ‘‘मार्ग सत्य और जीवन में हूँ, मुझसे होकर गये बिना कोई भी पिता के पास नहीं आ सकता।’’ आईये आज प्रभु येसु को हमारे दिल में हमारे जीवन में हम जगह दें। उन्हें हमारे दिलों की गौषाला में जन्म लेने दें।
प्यारे भाईयों और बहनों हम जानते हैं कि जो जन्म लेता है वो बढता भी है। एक षिषू जन्म लेता है उसकी वृद्धी होती है, विकास होता है। यदि हम कहते हैं कि प्रभु येसु ने हमारे दिल में हमारे जीवन में जन्म लिया है तो फिर हमें उन्हें हमारे जीवन में बढने देना चाहिए। जब प्रभु येसु हममें बढेंगे तो हम, धीरे-धीरे उनके समान बनने लगेंगे और वे हमें एक दिन पूरी तरह से बदल देंगे। आईये बालक येसु को हमारे दिलों में आकर जन्म लेने दें व उन्हें हमारे जीवन में बढने दें ताकि हमारे मानोभाव उनके मनोभावों के सदृष बन जाये, हमारे विचार उनके विचारों के समान बन जाये, हमारी वाणी उनकी वाणी के समान बन जाये, हमारा व्यवहार उनके व्यहकार के समान बन जाये। आज प्रभु येसु को अपने जीवन में पाकर हम संत पौलुस के समान कहें - ‘‘मुझमें अब मैं नहीं, प्रभु येसु मुझमें जीवित है’’ (गलातियों 2:20)।   आमेन।













आगमन का तीसरा रविवार

इसायाह 35ः1-6,10
याकूब 5ः7ः10
मत्ती 11ः2-11

आज आगमन का तीसरा रविवार है। कलीसिया की परम्परा के अनुसार तीसरा रविवार आनन्द ळंनकमजम ैनदकंल अर्थात् आनन्द व खुषी का रविवार कहलाता है। आज के पाठ हमें खुष रहने व आनन्द मनाने को कहते हैं। हम सब इन दिनों क्रिस्मस की तैयारियों में व्यस्त हैं। जिन लोगों के ऊपर पारिवारिक जिम्मेदारियां है उन्हें इन दिनों कई प्रकार की चिंताएं सताती होंगी। बहुत सारी खरीदी करना है, घर की सफाई-पुताई, बच्चों के नए कपडे, आदि विभिन्न चिंतायें और डिमोनेटाइज़ेषन ने तो बहुतों का बजट ही गडबडा दिया है। हाथ में कैष नहीं, अपनी मेहनत की कमाई का उपयोग आप ही नहीं कर पा रहे हैं। ऐसे में चिंतित होना तो स्वाभाविक है। वचन कहता है कि चिंतित व दुःखी न हों। इस दुनियां में यूं देखें तो दुःखों की कमी नहीं है। हर घर में दुःख, हर परिवार में दुःख। कोई अपनी बिमारी से दुःखित है तो कोई अपनी लाचारी से, कोई किसी के दबाव में दुःखित है तो कोई किसी आभाव में दुःखित है। कोई गरीबी के कारण तो कोई नौकरी नहीं मिलने के कारण। कई कारण हैं दुःखी होने के। उन सब लोगों के लिए प्रभु का वचन आज बस यही कहता है - ‘‘डरो मत, देखो, तुम्हारा ईष्वर आ रहा है।’’ जि हां वह ईष्वर आ रहा है जिसका नाम इम्मानुएल है। वो हमारे साथ रहने आ रहा है। वो हमें यह कहने आ रहा है कि थके मांदे और बोझ से दबे हुए लोगों तुम सब के सब मेरे पास आओ मैं तुम्हें विश्राम दूंगा।
आज का समाज, आज की ये दुनिया सुख की तलाष में है। सारी भाग दौड, दिनभर की मेहनत, खून पसीना एक करना, ये सब इसिलिए तो हम करते हैं कि हमारा गुजारा सुखपूर्वक हो सके कि हम एक आरामदायक जीवन बिता सकें। इस दुनिया में सुख व शांति तो हर कोई खोजता है परन्तु हर कोई इसे प्राप्त नहीं कर पाता। क्योंकि हम गलत जगह पर इसे ढूंढते हैं। अधिक धन दौलत होने से इंसान धनी ज़रूर बन सकता है लेकिन वो सुखी हो इसकी कोई ग्यारन्टी नहीं। पिछले सप्ताह हमारे देष की एक बहुत बडी हस्ती की मृत्यु हो गई। अपनी करोडों की सम्पत्ति व सबसे बढिया डॉक्टर्स होने के बावजुद भी उनकी जान नहीं बच सकी। वहीं हमारे थांदला शहर में एक विक्षिप्त याने कि पागल व्यक्ति जिसे मैं मेरे बचपन से देखता आ राह था, उसका कोई घर नहीं था, वह कभी नहाता नहीं, ठंड हो, गरमी हो या फिर बरसात वह जहां जगह मिली सो जाता था, उसके कपडे फटे हुए थे। फिर भी वह जिंदा था। हम हज़ारों सफाई के जतन करने के बाद भी बिमार हो जाते हैं पर वह कूडे के ठेर पर सोकर भी स्वस्थ रहता था। मेरे लिए यह एक किसी रहस्य से कम नहीं। मन में एक सवाल उठता है- आखिर उसकी ठंड से गरमी से व बिमारी से रक्षा कौन करता है?  वचन कहता है - ‘‘हमारे प्रभु ईष्वर के सदृष कौन है? वह उच्च सिहांसन पर विराजमान हो कर स्वर्ग और पृथ्वी, दोनों पर दृष्टि रखता है। वह धूल में से दीन हीन को और कूडे पर से दरिद्र को ऊपर उठाता है।’’ स्तोत्र113ः7
सच्ची खुषी और शांति प्रभु से ही आती है। वही हमारा उद्धार कर सकता है। हमारी सब प्रकार की चिंताओं, परेषानियों, समस्यओं का एकमात्र समाधान प्रभु येसु मसीह ही है। जिनके आने की हम तैयारी कर रहे हैं। आज का पहला पाठ हमसे कहता है - जब प्रभु आ जायेंगे तब अंधों की आंखें देखने और बहरों के कान सुनने लगेंग। लंगडा हरिण की तरह छलांग भरेगा और गुंगे की जीभ आनंद का गीत गायेगी।’’ सुसमाचार में हमने सुना कि योहन बपतिस्ता अपने षिष्यों को प्रभु येसु के पास ये पता करने भेजते हैं कि वही मसीहा हैं जो आने वाले हैं या फिर वे किसी और का इंतजार करें। इस पर प्रभु येसु उनसे कहते हैं - तुम जो देख रहे हो वही जा कर बता दो - अंधे देखते लंगडे चलते गूंगे बोलते और मूर्दे जिंदा हाते हैं। और दरिद्रों को सुसमाचार सुनाया जाता है।
प्रभु येसु हम सब की विभिन्न प्रकार की दुर्बलताओं, कमजोरियों व जो कुछ कमी हममें हैं उनकी पूर्ति करने आये हैं। वे हमें सब रूप से परिपूर्ण बनाने आये हैं। इस परिपूर्णता के राज्य में प्रवेष करने के लिए हममें योहन बपतिस्ता जैसी विनम्रता का होना अति आवष्यक। वह अपने आप को प्रभु येसु के सामने कुछ भी नहीं मानते हैं। उनका जूता उठाने के योग्य भी नहीं। योहन बपतिस्ता के पास भी बहुत ही शक्ति थी। ईष्वरीय अनुग्रह था पर वह उस पर दंभ नहीं भरता। सृष्टि के प्रारम्भ में लूसीफेर को भी ईष्वर ने असीम शक्ति व सामार्थ्य दिया। किंतु उसने उसका दुरउपयोग किया। वह प्रभु से भी बडा बनना चाहता था। लेकिन उसका क्या हाल होता है हम सब जानते हैं। प्रभु येसु कहते हैं कि योहन मनुष्यों में योहन बपतिस्ता से बढकर कोई नहीं। पर जो भी स्वर्गराज्य में छोटा है वह योहन से भी बडा है। प्रभु को वचन कहता है - ईष्वर घमंडियों का विरोध करता, किंतु विनम्र लोगों पर दया करता है। आप शक्तिषाली ईष्वर के सामने विनम्र बने रहें, जिससे वह आप को उपयुक्त समय में ऊपर उठाए। आप अपनी सारी चिंताए उस पर छोड दो, क्यांकि वह आपकी सुधि लेता है’’ (1 पेत्रुस 5ः5-7)। हम प्रभु के सामने झूकना सिखें। क्योंकि उनके बिना हमारा जीवन कुछ भी नहीं। आज का वचन उन बच्चों के लिए उन नव जवानों के लिए एक चुनौति भरा है जिन्हें प्रार्थना करना, भक्ति करना, चर्च जाना आदि गुजरे जामाने की चिजें लगती है। समय रहते ये पहचान लिजीए कि हम प्रभु पर उन की दया पर ही निर्भर है अन्यथा हमारा कोई भी अस्तीत्व नहीं है।
खुष रहने का सर्वोत्तम तरीका है प्रभु पर आश्रित होना। आईये हम हामारी सारी चिंताएं प्रभु पर छोड दें वह हमारी सुधि लेता है। आमेन।

Saturday, 3 December 2016

आगमन का दूसरा रविवार year A

इसायाह 11:1-10
रोमियो 15:1-9
मत्ती 3:1- 12

आज आगमन का दूसरा रविवार है। जैसा कि हम आगमन काल में प्रभु येसु के प्रथम आगमन की यादगारी में , उनके देहधारण का पर्व मनाने की तैयारी करते हैं। मसीहा के आगमन के बारे में बताते हुए नबी इसायस आज के पहले पाठ मे हमसे कहते हैं कि ‘‘वे न तो जैसे-तैसे न्याय करेगा, और न सुनी-सुनाई के अनुसार निर्णय देगा। वह न्यायपूर्वक दीन-दुःखियों के मामलों पर विचार करेगा और निष्पक्ष हो कर देष के दरिद्रों को न्याय दिलायेगा।’’(इसायाह 11:3-4)। जि, हाँ प्रभु हमारा न्याय करने आ रहे हैं वे हमारे बाहरी रंग रूप का नहीं बल्कि हमारे अंतःकरण का न्याय करेंगे। आज के सुसमाचार में हमने सुना योहन बपतिस्ता कहते हैं - ‘‘वे हाथ में सूप ले चुके हैं, जिससे वे अपना खलिहान ओसा कर साफ करें। वे अपना गेहूँ बखार में जमा करेंगे। वे भूसी को न बुझने वाली आग में जला देंगे।’’
यहाँ प्रभु अपनी प्रजा की तुलना गेहूँ की फसल से करते हैं। प्रभु अपने द्वितीय आगमन के दिन गेंहू को भूसी से अलग कर देंगे। प्रभु कुकर्मियों को धर्मियों से अलग कर देंगे। धर्मी रूपी गेहूँ स्वर्ग के बखारों में जमा किये जायेंगे व पापी रूपी भूसी को कभी न बुझने वाली आग में फेंक दिया जायेगा।
नबी इसायस आज के पहले पाठ में कहते हैं की जब मसीहा का आगमन होगा तो उनके  राज्य में भेडिया मेमने के साथ रहेगा, चीता बकरी की बगल में लेट जायेगा, बछडा तथा सिंह-शावक साथ-साथ चरेंगे और बालक उन्हें हांँक कर ले चलेगा। गाय और रीछ में मेल-मिलाप होगा और उनके बच्चे साथ-साथ रहेंगे। दुधमुँहा बच्चा नाग के बिल के पास खेलता रहेगा और बालक करैत की बाँबी में हाथ डालेगा।
इस भविष्यवाणी का क्या अर्थ है? क्या शेर जो कि एक माँसाहारी जीव है घास खाना प्रारम्भ कर देगा? क्या भेडिया सच में मेमने के साथ चरने लगेगा? मैं नहीं सोचता। यहाँ नबी दो प्रकार के जन्तुओं के बारे में बतलाते हैं। एक तो वे हैं जो भोले-भाले व निष्कपट हैं जैसे - मेमना, बकरी, बछडा, बालक, दुधमुँहा बच्चा। और दूसरे वे हैं जो कि हिंसक व जहर उगलने वाले हैं जैसे- भेडिया, चीता, सिंह, रीछ, और नाग। ये जानवर दो प्रकार के लोगों की ओर संकेत करते हैं अर्थात एक वे लोग जो मन के निर्मल, भोले-भाले व निष्कपट हैं तथा दूसरे वे लोग जो विभिन्न प्रकार की हिंसा, आंतक, दुष्मनी के ज़हर एवं वेमनस्य से भरे हुए हैं। नबी कहते हैं कि प्रभु के राज्य में ये सब लोग एक साथ प्रेम-भाव व मेलजोल से रहेंगे। और जब प्रभु येसु ने अपने राज्य की स्थापना की तो ऐसा ही हुआ। साउल जो कलीसिया का कट्टर विरोधी था जो प्रभु के भक्तों के विरूद्ध जहर उगलता था, जिसका नाम सुनते है ही लोग काँपने लगते थे, जब उसने प्रभु को पहचाना, जब उसने प्रभु के राज्य को अपने जीवन में स्वीकार किया तो वे पूर्ण रूप से बदल गये। उन्होंने न केवल हिंसा के मार्ग को छोडा लेकिन वे उसी प्रभु के जिसके वे विरोधी थे एक उत्साही प्रचारक बन जाते हैं। वही लोग जो उनसे डरते थे अब उनके पास आकर प्रभु की वाणी सुनने लगते। यही है भेडिये का मेमने के साथ रहने का अर्थ। प्यारे भाईयों और बहनों, प्रभु येसु हमसे कहते हैं कि मैं ने तुम्हें भेडियों के बीच भेडों की तरह भेजा है। आज कई प्रकार के खुंखार भेडिये एवं प्रभु के लोगों के विरूद्ध हिंसा का जहर उगलने वाले कई साँप विद्यमान हैं। वचन कहता है हमें इनके साथ मेल-मिलाप व भाईचारे के साथ रहना है। जिस प्रेम, शांति व एकता के राज्य को प्रभु येसु इस दुनिया में लेकर आये थे उसे यहाँ हमारे बीच साकार करने की जिम्मेदारी हम सब की है। हमें अंधकारमय इस जग में प्रभु की ज्योति जलाना है। हमें पृथ्वी के नमक और संसार की ज्योति बनना है। हमें हिंसा, द्वेष एवं दुष्मनी घावों को प्रेम, क्षमा एवं मित्रता से भरना है।
इस संदर्भ में मैं हमारे ही धर्मप्रान्त के उदयनगर पल्ली की वह घटना याद करता हूँ जहाँ  सि. रानी मरिया को कुछ असामाजिक तत्वों ने मारवा दिया। लेकिन उनकी हत्या की सुपारी लेने वाले समंदरसिंह के जीवन में एक अमुलभूत परिवर्तन आया। उसके जिस खूनी हाथों से उसने रानी मरिया को बडी क्रूरतापूर्वक मौत की निंद सुला दिया था, उसी हाथों में रानी मरिया की बहन ने राखी बांध कर उसे पूर्ण रूप से क्षमा करते हुए अपना भाई बना लिया। अब वही हत्यारा सिस्टर के परिवार का एक सदस्य बन गया है। वह केरल उनके माता-पिता से मिलने जाता है, सिस्टर लोगों के उदयनगर स्थित कॉन्वेंट में उनके साथ भोजन करता है। मैं सोचता हूँ नबी इसायस इसी प्रकार के एक दिन की भविष्यवाणी करते हैं। हर एक ख्रीस्तीय भाई बहन इसी लिए बुलाए गये हैं। हमें पापमय भटकती हुई मानवता को प्रभु के पास लाना है, सबों को प्रभु का मार्ग दिखलाना है। लेकिन दूसरों को सुधारने से पहले हमें अपने भीतर झांक कर देखना चाहिए, कहीं न कहीं हमारे अंदर भी एक खुंखार भेडिया, एक हिंसक शेर, अथवा एक जहरीला सांप छिपा हुआ है। हम स्वयं अपने भाई-बहनों को नीचा दिखाने, दूसरों की इज्जत धूल में मिलाने, दूसरों की उन्नती पर ईर्ष्या से जलने एवं अपने स्वार्थ की पूर्ति के लिए कई प्रकार के गलत कदम उठाने का काम करते हैं। सबसे पहले हमें सुधरने की जरूरत है। हम सब अपने पापों पर पश्चाताप करें क्योंकि स्वर्ग का राज्य निकट आ गया है। प्रभु हमारे पास जल्द ही आने वाले हैं। इसिलिए संत योहन बपतिस्ता कहते हैं - प्रभु का मार्ग तैयार करो, उसके पथ सीधे कर दो। आईये हम हमारे अंदर से सब प्रकार की बुराइयों को दूर करें,  हमारे बात, विचार, व्यहार, एवं कार्य जो प्रभु को हमारे जीवन में आने में बाधक हैं, हमारे जीवन से दूर कर दें। और उनकी जगह हम भलाई के कुछ काम करें, किसी की मदद करें, किसी के जीवन में खुशियाँ लाएं। आमेन।


Friday, 25 November 2016

आगमन का पहला रविवार


इसायाह 2:1-5
रोमियों 13:11-14
मत्ती 24:37-44 

आज के पहले पाठ में हमने नबी इसायाह को यह कहते सुना - ‘‘आओ हम यहोवा के पर्वत पर चढ जायें, याकूब के ईश्वर  के मंदिर चलें। नबी ऐसा क्यों कहते है? हमें पर्वत पर क्यों चढना है? क्योंकि वही हमारे जीवन का अखिरी मकसद है। वही हमारे जीवन का एकमात्र लक्ष्य है। संत योहन के सुसमाचार 17:14 में प्रभु येसु पिता से हमारे बारे में कहते हैं कि हम इस संसार के नहीं है। और आगे वे कहते हैं कि ‘‘ पिता! जिस तरह तू मुझ में है और मैं तुझ में, उसी तरह वे भी हम में एक हो जायें, पिता! मैं चाहता हूँ कि तूने जिन्हें मुझे सौंपा है, वे जहाँ मैं हूँ, मेरे साथ रहें जिससे वे मेरी महिमा देख सकें, जिसे तूने मुझे प्रदान किया है।’’ यही कारण है कि नबी हमें प्रभु के निवास की ओर जाने के लिए आमंत्रण देते हैं । 
आज के दूसरे पाठ के वचन बहुत ही महत्वपूर्ण एवं प्रभावी है क्योंकि इन्हीं वचनों के द्वारा संत अगस्तीन का मन परिवर्तन हुआ था। वे एक बगीचे में टहल रहे थे। वे काफी निराश  व दुःखी थे क्योंकि एक पवित्र जीवन जीने के  उनके  सारे प्रयास विफल हो चुके थे। वो अपने  दिल व मन को टटोलते रहे। कब तक? आखिर कब तक? कल? कल? आज, अभी क्यों नहीं? वो मनन चिंतन करते हुवे, स्वयं से लाखों सवाल पुछते हुवे रोने लगे। तब उन्हें एक आवाज यह कहते हुए सुनाई पडी - ‘‘लो और पढो‘‘ ‘‘लो और पढो’’ ये आवाज एक बच्चे की सी थी। उन्होंने रोमियों के नाम संत पौलुस का पत्र निकाला और ठीक आज हमने जो दूसरा पाठ सुना वही पढा और ईश वचन ने उसके दिल का स्पर्ष किया। वचन ने उनके जीवन को बदल दिया. 
आज का सुसमाचार हमें जागते रहने को कहता है। इसका मतलब यह है कि हमें एक जागृत  अंतरआत्मा के साथ जिना है। हमें हमारी अंतरआत्मा के साथ छेडखानी नहीं करनी चाहिए न ही हमें हमारी अंतर आत्मा को सोने अथवा मरने देना है। हमें भले और बूरे में स्पष्ट अंतर मालुम होना चाहिए। हमें पाप को पाप और अच्छाई को अच्छाई के रूप में देखना आना चाहिए। हमें हमारे अंदर, हमारे जीवन में बुराईयों को कम करते हुए भलाई को बढावा देना चाहिए। जागृत रहने का मतलब यह भी होता है कि हम हमारे आस-पास, होने वाली घटनाओं से, जीवन की सच्चाई से आंँखें न मूंदे। लोगों के  दुःख-दर्दों से उनकी पीडाओं से हम नजरें न फेंरे बल्कि उनके दुःखों में भागीदार होकर उनके दुःखोें को, उनके जीवन के बोझ को हल्का करने की कोशिश  करें।
 संत पौलुस लिखते हैं - ‘‘नींद से जागने की घडी आ गयी है। रात प्रायः बीत चुकी है, दिन निकलने को है, इसलिए हम, अंधकार के कार्यों को त्याग कर, ज्योति के अस्त्र-श स्त्र धारण कर लें। हम दिन के योग्य आचरण करें। ?’’ किसी भी प्रकार का बूरा काम अंधकार का काम है। बपतिस्मा के समय हमें, अथवा हमारे माता-पिता के हाथों में एक जलती हुई मोमबत्ती दी गई थी। और पुरोहित ने हमसे कहा था कि आप ख्रीस्त की ज्योति से ज्योर्तिमय हो गये है फलतः ज्योति के पुत्र -पुत्रियों की भांँति निरंतर आचरण करिये, अपने विश्वस  का दीपक जलाए रखिए और जब प्रभु आवें, तो सब संतो के  साथ, स्वर्गिक भवन में उसका स्वागत करें। कहाँ गया वो करार जिसे हमने प्रभु के सामने किया था? कहाँ गई वो प्रतिज्ञा? हम अपने आप से पुछें - क्या मैं प्रभु ख्रीस्त की उस ज्योति को प्रज्वलित रख पाया हूँ? क्या उस ज्योति से मैं, ओरों के जीवन में प्रकाश कर पाया हूँ? या फिर मेरा जीवन अंधकार के संसार में कहीं खो सा गया है, मैं अंधकार के कार्यों में इतना मगन हो गया हूँ कि मुझे उस ज्योति का ख्याल ही नहीं रहा? यदि हमें सचमुच में यह लगता है कि अंधकार का, विभिन्न प्रकार की बुराईयों का हमारे जीवन में कब्ज़ा  है, यदि हमें लगता है कि हमने हमारे जीवन की ज्योति प्रभु येसु से काफी दूरियाँ बना ली है,तो आगमन का  यह समय हमारे लिए सबसे उपयुक्त समय है, प्रभु  के पास लौट आने के लिए। प्रभु आज हमसे कह रहे हैं पहले की अपेक्षा, जिस दिन हमने बपतिस्मा ग्रहण किया था, जिस दिन हमने विश्वास  ग्रहण किया था उसकी तुलना में आज मुक्ति हमारे अधिक निकट है (रोमियो13ः11)। प्रभु कहते हैं जो हुआ सो हुआ। अपने बीते दिनों को लेकर अपने आप को मत कोसो। जो बित गया सो बित गया। तुम्हारे जीवन की काली रात अब बीत चुकी है, नवजीवन का सूरज अब निकलने को है। ‘‘इसलिए अन्धकार के कार्यों को त्याग कर, ज्योति के अस्त्र-सस्त्र धारण कर लो।’’ प्रकाश ना ग्रन्थ ३:२  में प्रभु हमसे कहते हैं - ‘‘जागो, तुम में जो जीवन शेष है और बुझने-बुझने को है, उस में प्राण डालो।’’हम  हमारे विश्वाश  व सतकर्मों की जो ज्योति बुझने-बुझने को हो आईये उसमें एक नई जान भर दें। प्रभु कहते हैं - ‘‘तुमने शिक्षा  स्वीकार की और सुनी, उसे याद रखो, उसका पालन करो और पश्चताप  करो। यदि तुम नहीं जागोगे, तो मैं चोर की तरह आऊँगा और तुम्हें मालूम नहीं हैं कि मैं किस घडी आऊँगा’’ (प्रकाषना 3:3)। 
ख्रीस्त में प्यारे भाईयों और बहनों आगमन के इस पवित्र काल में प्रभु हमारे जीवन में आकर हमें नया बनाना चाहते हैं। वे कहते हैं - ‘‘मैं तुम्हें एक नया हृदय प्रदान करूँगा और तुम में एक नया आत्मा रख दूंगा। मैं तुम्हारे शरीर से पत्थर का हृदय निकाल कर तुम लोगों को रक्त-मांस का हृदय प्रदान करूंँगा’’ (एजेकिएल36ः26)। प्रभु कहते हैं - ‘‘तुम अपने पूवर्जों के समान मत बने रहो। प्राचीनकाल में उन्होंने नबियों की चेतावनी सुनी थी, किंतु उन्होंने न सुना, न कुछ ध्यान दिया था’’ (जकर्या 1:4)। 
 आईये हम उनके समान न बनें। इस पवित्र समय का हम पूरा आध्यात्मिक लाभ उठावें। हम अपने पापों पर पश्चाताप करते हुए, अपनी गलतियों के लिए प्रभु से क्षमा मांगते हुए, प्रभु के पवित्र पर्वत की ओर आगे बढें। आईये उस मुक्तिदाता मसीहा केदर्शन  करने के लिए अपने आप को तैयार करें, जो आने वाला है। नबी इसायाह आज के पहले पाठ में कहते हैं कि वह मसीहा ‘‘राष्ट्रों पर शासन करेगा और देशों  के झगडे़ मिटायेगा। लोग अपनी तलवारों को पीट-पीटकर फाल और भाले को हंँसिया बना लेंगे। राष्ट्र एक दूसरे पर तलवार नहीं चलायेंगे और युद्ध की विद्या समाप्त हो जायेगी। याकूब के वंश ! हम प्रभु की ज्योति में चलते रहेें।’’ आज एक राष्ट्र दूसरे राष्ट्र पर हावी हो रहा है; कहीं आतंकियों के द्वारा खून खराब तो कहीं धर्म जाती को लेकर झगडे लड़ाई प्रभु ने जिस  प्रेम व शांति का राज्य के विषय इस कहा है वह  स्थापित होगा जब हम उस मसीहा को हमारे जीवन में बुलायेंगे, जब हम हमारा यह जीवन उनके वचनों के मुताबित उनकी इच्छा के अनुसार बितायेंगे। प्रभु हमारे द्वारा इस जग में प्रेम व शांति का राज्य स्थापित करेंगे। हम उनकी प्रजा इसकेलिए अपने आप को प्रभु को सौंप दें। उन्हें हमारे जीवन का उपयोग करने दें। उन्हें हमारे जीवन के द्वारा एक नयी सृष्टि, एक नये संसार का निर्माण करने दें। जहांँ न युद्ध होगा न लडाई, न ईष्र्या न द्वेष, न लालच और न भ्रष्टाचार। आईये हम सब मिलकर प्रभु के उस राज्य के आगमन की तैयारी करें। आमेन।

  
   

Friday, 18 November 2016

ख्रीस्त राजा का महोत्सव 20 Nov, 2016


2 सामुएल:1-3
कलोसियों 1:12-20
लूकस 23:53-43

आज हम राजाधिराज प्रभु येसु का माहोत्सव मना रहे हैं आज के दूसरे पाठ में हमने सुना कि प्रभु येसु ‘‘अदृष्य ईश्वर के प्रतिरूप तथा समस्त सृष्टी के पहलौटे हैं, क्योंकि उन्हीं के द्वारा सब कुछ की सृष्टी हुई है... वह समस्त सृष्टी के पहले से विद्यमान है और समस्त सृष्टी उन में ही टीकी हुई है।...इसलिए वह सभी बातों में सर्वश्रेठ है। ईश्वर ने चाहा कि उनमें सब प्रकार की परिपूर्णता है’’ (कोलो 1:15-18)। इसलिए प्रभु येसु एक सर्वश्रेष्ठ व सर्वोपरी राजा है। पर वे कहते हैं - ‘‘मेरा राज्य इस संसार का नहीं है। यदि मेरा राज्य इस संसार का होता तो मेरे अनुयायी लडते और मैं यहूदियों के हवाले नहीं किया जाता। परन्तु मेरा राज्य यहाँ का नहीं है’’ (योहन 18:36)। यह साफ तौर पर ज़ाहिर है कि येसु का राजत्व इस संसार के लिए नहीं है। वे दुनिया के सब राजाओं से भिन्न हैं। उनका राज-मुकुट काँटों का था; जो राजकीय वस्त्र उन्हें पहनाया गया था, वो मज़ाक व बेइज्जती का प्रतीक लाल चौगा था; उनका राजदंड था सरकंडा जिसे दुशमनों ने उनके ही सिर मारा था। ख्रीस्त ने, न तो दुनिया के जाने-माने राजाओं की श्रेणी में खुद को गिने जाने का दावा किया और न ही किसी राजा की बराबरी करना चाहा। उन्होंने हर प्रकार के सांसारिक वैभव व शानो-शौकत  को ठुकरा दिया। उनका जन्म एक छोटी सी गौशाला में हुआ क्योंकि उनके लिए सराय में जगह नहीं थी (लुक 2:7), उनके सार्वजनिक जीवन की शुरूआत के पहले जब शैतान उन्हें ‘‘अत्यंत ऊँचे पहाड पर ले गया और संसार के सभी राज्य और वैभव दिखला कर बोला, ‘यदि आप दंडवत कर मेरी आराधना करें, तो मैं आप को यह सब दे दूँगा।’ येसु ने उत्तर दिया, ‘‘हट जा शैतान क्योँकि  लिखा है - अपने प्रभु  ईश्वर की आराधना करो और केवल उसी की सेवा करो’’ (मत्ती 4ः8-10)। आज के सुसमाचार में हमने सुना कि जब सैनिकों ने उनकी हंसी उडाते हुए उनसे कहा है - ‘‘यदि तू यहूदियों का राजा है तो अपने को बचा।’’ पर प्रभु ने वहां पर भी अपने निजी महिमा दिखाने के लिए अपनी शक्ति का प्रदर्शन  नहीं किया।
जब हमारे प्रभु ने पाँच रोटियों और दो मछलियों से पाँच हज़ार लोगों को भोजन कराया, तो लोग उन्हें राजा बनाना चाहते थे। लेकिन प्रभु येसु राजा बनने से इनकार कर देते हैं क्योंकि वे उन्हें सांसारिक राजा बनाना चाहते थे (योहन 6:15)। उनका राज्य इस दुनिया के राजायों जैसा धन-दौलत, शक्ति, सेना, साम्राज्य, ज़मीन-जायदाद वाला राज्य नहीं है। वे कहते हैं मेरा राज्य इस दुनिया का नहीं है (योहन 18:36)। जिस राज्य की प्रभु येसु बात कर रहे थे उसे न तो पिलातुस, न यहूदी और दुनिया की कोई भी ताकत मिटा सकती है। उनका राज्य विश्वासियों के दिलों में स्थापित किया गया है। सम्राटों पर सम्राट पैदा हुए व प्रभु येसु को लोगों के दिलों के सिहासन से हटाने की नाकामियाब कोशिश  की; कई प्रकार की भ्रांत व भटकाने वाली शिक्षायें व सिद्धांत आये, व राजनैतिक शक्तियों व असामाजिक ताकतों ने प्रभु येसु को लोगों के दिलों से दूर करने की लाखों कोशिश   की व आज तक कोशिश की जा रही हैं पर सब व्यर्थ है। पिछले एक दो सालों से इस्लामिक स्टेट के आतंकियों ने कई मासूम व निर्दोष ईसाईयों का संहार किया; हमारे देश  में ओडिशा  के कंधमाल जिले में हजारों ईसाईयों का खून बहाया गया परन्तु कोई भी लोगों के दिलों से येसु को अलग नहीं कर सके। और कभी कर भी नहीं पायेंगे। क्योंकि प्रभु येसु वह राजा है जिनके पास सर्वोच्च शक्ति है। वे सारे ब्रह्माण्ड के राजा है। संत मत्ती के सुसमाचार 28:18 में प्रभु ने कहा है - ‘‘मुझे स्वर्ग में और पृथ्वी पर पूरा अधिकार मिला है।’’
प्रभु एक ऐसे राज्य के राजा हैं जो इस संसार का नहीं है। उनका राज्य स्वर्ग का राज्य है। ये राज्य हम मनुष्यों की आसान पहुँच से दूर था। इसलिए हमारे राजा स्वयं इसे हमारे करीब लेकर आये हैं। प्रभु के आगमन पर संत योहन बपतिस्ता कहते हैं - ‘‘समय पूरा हो चुका है। ईष्वर का राज्य निकट आ गया है’’ (मारकुस 1:15)। प्रभु येसु के इस धरा पर आगमन के साथ ईश्वर  का राज्य हमारे निकट, हमारे बीच आ गया। और इसमें प्रवेश  करने के लिए वचन कहता है - ‘‘पश्चाताप करो और सुसमाचार में विश्वास  करो’’ (मारकुस 1:15)। यदि हमें ख्रीस्त राजा की प्रजा बनना है, शैतान व उसके पाप व अंधकार के राज्य तथा उसकी शक्तियों से छुटकरा पाना है तो हमें हमारे गुनाहों पर पश्चताप करना होगा व सुसमाचार में विश्वास करना होगा, स्वयं को ईश्वर के आत्मा व उसके सामाथ्र्य के सम्मुख समर्पित करना होगा। ईश्वर के राज्य की स्थापना करने का आधार है इन्सान का ईश्वर से मेल-मिलाप कराना। उस सदियों पुराने रिश्ते को पुनः जोडना जिसे हमारे आदि माता-पिता के पाप के द्वारा तोड दिया गया था। इस मेल-मिलाप का जिम्मा हमारे प्रभु येसु, हमारे राजा ने अपने ऊपर ले लिया है। उन्होंने अपने दुःखभोग, मरण एवं पुनरूत्थान द्वारा पिता से हमारा मेल कराया है। प्रभु येसु हमारे लिए क्रूस पर इसलिए मरे कि शैतान के राज्य का अंत हो जाये और प्रभु हम सब पर, हमारे दिलों पर हमेशा शासन करते रहें। बपतिस्मा में प्रभु येसु को धारण करके हम ज्योति की संतान बन गये हैं संत पौलुस हमसे कहते हैं ‘‘भाईयों आप लोग अंधकार में नहीं हैं ... आप सब ज्योति की संतान है,...हम रात या अंधकार के नहीं हैं’’ (1 थेस. 5:4)। अतः यदि हम ख्रीस्त राजा की प्रजा बन गये हैं, तो हम सब का ये फर्ज़ बनता है, कि हम उसके राज्य को फैलायें।
आज का यह पर्व ‘ख्रीस्त राजा की जय!‘ ‘प्रभु हमारा राजा है!‘ आदि नारे लगाने व गीत गाने भर तक सीमित नहीं रहना चाहिए। प्रभु आज हमें हमारी आध्यात्मिक निंद से जगाना चाहते हैं। प्रभु हमें अंधकार की शक्तियों से लडने को कहते हैं। प्रभु कहते हैं - ‘‘आप संयम रखें और जागते रहें। आपका शत्रु, शैतान, दहाडते हुवे सिंह की तरह विचरता है और ढूँढता रहता है कि किसे फाड खाये। आप विष्वास में दृढ़ रहकर उसका सामना करें’’ (1 पेत्रुस 5:8)। क्योंकि हम देखते हैं कि आज शैतान विभिन्न रूपों में अपने राज्य का विस्तार करते जा रहा है। किसी भी दिन का अखबार उठा कर देख लिजिए 70 से 80 प्रतिषत खबरें शैतान के राज्य से ताल्लुक रखती हैं - कहीं लडाई तो कहीं दंगे, कहीं बलात्कार तो कहीं हत्या, कहीं आतंकी हमला तो कहीं नरसंहार, कहीं चोरी तो कहीं धर्म के नाम पर खून-खराबा, कहीं ठगबाजी तो कहीं राजनैतिक सत्ता के लिए बेईमानी, धोखाधडी व झूठ फरेब। शैतान धीरे-धीरे अपने वर्चस्व, व अपने राज्य का विस्तार करते जा रहा है। उसके लुभावने प्रलोभनों से वह अधिक से अधिक लोगों को अपनी ओर खींच रहा है। इसलिए प्रभु ने हमें अपने राज्य की एक निष्क्रिय  प्रजा बनने के लिए नहीं बुलाया है, परन्तु हम सब को एक सक्रिय सैनिक बनकर शैतान के विरूद्ध लडने के लिए बुलाया है। प्रभु का वचन कहता है - ‘‘आप लोग प्रभु से और उसके अपार सामर्थ्य  से बल ग्रहण करें, आप ईश्वर के अस्त्र-सस्त्र धारण करें, जिससे आप शैतान की धूर्तता का सामना करने में समर्थ हों . . . और अन्त तक अपना कर्तव्य पूरा कर विजय प्राप्त करें’’ (एफे. 6ः10-13) शैतान का सामना करने उसके राज्य पर विजय पाने के लिए हमें लाठी, डंडे, तलवार, बंदुक, व गोला-बारूद आदि की ज़रूरत नहीं। हमें ईश्वर के अस्त्र-सस्त्रों को धारण करने की ज़रूरत है। और ये अस्त्र-सस्त्र क्या हैं? संत पौलुस हमें बतलाते हैं ईश्वर के अस्त्र-सस्त्र हैं - सत्य का कमरबंद, धार्मिकता का कवच, शान्ति व सुसमाचार के जूते, विश्वास  की ढाल, मुक्ति का टोप व आत्मा की तलवार अर्थात ईश वचन।
 हमारे दिलों के राजा आज हमारे दिलों के द्वार पर आकर खडे होकर कह रहे हैं  - ‘‘मैं द्वार के सामने खडा हो कर खटखटातो हूँ। यदि कोई मेरी वाणी सुन कर द्वार खोलेगा, तो मैं उसके यहाँ आ कर उसके साथ भोजन करूंगा और वह मेरे साथ’’ (प्रकाशना 3:20)। प्रभु हमारे दिलों में जबरदस्ती करके नहीं आते, जब तक हम हमारे दिलों को उनके लिए नहीं खोलेंगे वे अंदर नहीं आयेंगे। हमारे दिलों का द्वार खोलने के लिए हमें, सबसे पहले सारी बूरी बातों, बूरे विचारों, व बूरी भावनाओं को हमारे दिलों से दूर करना होगा और उनकी जगह दुसरों के प्रति प्रेम, दया, करूणा, क्षमा व भाईचारी की भावनाओं से हमारे दिलों को सुसज्जित करना होगा। तभी हमारे दिलों के राजा प्रभु येसु ख्रीस्त हमारे भीतर आकर हमारे हृदयों के सिंहासन पर विराजमान होंगे और तब हम सच्चे अर्थों में कह पायेंगे कि ‘‘वह प्रभुओं का प्रभु और राजाओं का राजा है’’ (प्रकाशना 17:14)।
आमेन।

Saturday, 29 October 2016

वर्ष का 31 वां रविवार

जकेयुस एक धनी व्यक्ति थे। वे येसु को देखना चाहते थे। आखिर क्यों, यह हमें नहीं मालुम। पर इतना तो स्पष्ट है कि येसु से मिलने के बाद जो आनन्द और संतुष्टि उनको मिली, उसके सामने उनकी सारी धन-सम्पत्ति और ऐषो आराम फीकी पड गयी और उन्होंने अपनी संपत्ति का आधा हिस्सा गरीबों में बाँट दिया।
जकेयुस के जीवन में शायद बहुत ज्यादा निराषा थी वह बेचैन था या फिर उसमें एक ऐसा खालीपन था जिसे उसकी सारी धन-दौलत नहीं भर सकी। वह येसु को देखना चाहता था न कि मिलना। पर येसु ने उससे मिलना चाहा क्योंकि वे खोये हुओं की खोज में आये थे। प्रभु येसु ने ज़केयुस से कहा, आज इस घर में मुक्ति का आगमन हुआ है। प्रभु येसु इस दुनिया में मुक्ति लेकर आयें हैं। यह दुनिया का सबसे बडा मिषन है। यूँ तो लोग कई सारे बडे-बडे  मिषनों पर निकले हैं जैसे सिकन्दर महान पूरी दुनिया पर विजय पाने के मिषन पर निकला; प्लूटो, अरस्तु व सुक्रात जैसे महान दार्षनिक ज्ञान के खोज की मिषन पर निकले; कोलम्बस एक नये संसार की खोज के मिषन पर निकला आदि। परन्तु प्रभु येस,ु भटके हुओं खोजने, के लिए स्वर्ग से निकल पडे (लूक 19ः10)। उन्होंने दुख भोगा व सूली पर मर गये इसिलिए कि वे भटकी हुई मानव जाती को बचा सके। पाप में नष्ट हो रहे अपने बच्चों को बचाने के लिए ही वह इस संसार में आये हैं। संत योहन के सुसमाचार 10ः10 मे प्र्रभु कहते हैं “चोर केवल चुराने, मारने और नष्ट करने आता है। मैं इसलिए आया हूँ कि वे जीवन प्राप्त करें - बल्कि परिपूर्ण जीवन प्राप्त करें।“ वह हमें सब प्रकार की परिपूर्णता देने इस संसार में आये हैं। हमारी वह परिपूर्णता वे पुनः लौटाने आये हैं जो हमारे आदि माता-पिता को दी गई थी, जिसे उन्होंने आदि पाप के कारण खो दिया था।
 प्रभु येसु ने ज़केयुस के मन को प्रकाषित किया व उसके अस्तित्व के दायरे को प्रभु ने बढा दिया। वह अपने से, अपने स्वार्थ से ऊपर उठकर दूसरों के बारे में सोचता है, दूसरों की ज़रूरतों का ख्याल करने लगता है। वह बोल उठता है कि “प्रभु! देखिए, मैं अपनी आधी सम्पत्ति गरीबों को दे दूँगा और जिन लोगों के साथ बेईमानी की है, उन्हें उनका चौगुना लौटा दूँगा“ (लूक 19ः8)। ज़केयुस एक लालची, लोभी, और महान ठग, जिसे हमेषा दूसरों के जेब के पैसे ही दिखाई देते थे, वो तो हमेषा दूसरों को लूटने का ही सोचता रहता था आज अपनी आधी सम्पत्ति गरीबों को देने की बात करने लग जाता है। आज हमने तो दो फीट ज़मीन के लिए एक भाई को दूसरे भाई की हत्या करते देखा है, महज कुछ हजार रूपयों के लिए मार-पीट होते देखा है। पर यह व्यक्ति अपनी आधी सम्पत्ति गरीबों को यूँ ही देने को तैयार हो जाता है।  प्रभु येसु से मिलने के बाद जो आनन्द और संतुष्टि उनको मिली, उसके सामने उनकी सारी धन-सम्पत्ति और ऐषो आराम फीकी पड गयी। प्रभु येसु में उसने अपने जीवन के लिए एक बेषकीमती धन पा लिया। अब उसे ये आभास होने लगा कि मेरे जीवन में जो अधूरापन था उसकी पूर्ति करने वाला येसु ही है। इतना धन होने के बाद भी कुछ खालीपन लग रहा था पर येसु के मिलने से सब कुछ पूरा हो गया। अब येसु के सिवाय मुझे कुछ भी नहीं चाहिए। मेरा धन भी अब मेरे लिए उतना महत्वपूर्ण नहीं रहा। मैं मेरे भंडारों को खाली कर दूँगा। आधी संपत्ति गरीबों को दे दूँगा और जिनको मैंने ठगा है उनको चार गूना वापस कर दूँगा। मुझे अब कुछ नहीं चाहिए। मैंने प्रभु को पा लिया है। प्रभ से मिलना कितनी ही सुखद बात है, यह पौलुस अपने पत्र में लिखते हैं - ‘‘मैं प्रभु ईसा मसीह को जानना सर्वश्रेष्ठ लाभ मानता हूँ और इस ज्ञान की तुलना में हर वस्तु को कूडा ही मानता हूँ (फिलिपी 3ः8) स्तोत्र 34ः8 में वचन कहता है ‘‘चखकर देखो, प्रभु कितना भला है।’’ संत मत्ती 13ः45 में हम एक दृष्टांत पढते हैं जिसमें प्रभु कहते हैं - “स्वर्ग का राज्य उस उत्तम मोती खोजने वाले व्यापारी के सदृष है। एक बहुमुल्य मोती मिल जाने पर वह जाता और अपना सब कुछ बेच कर उस मोती को मोल ले लेता है।“ जकेयुस को वह उत्तम मोती मिल गया और उसे अब वह खोना नहीं चाहता।
प्रभु ने जकेयुस से कहा ‘‘जकेयुस नीचे उतरो!’’ येसु से मिलने के लिए, येसु को देखने के लिए हमें उन पेडों से उतरना होगा जिनकी डालियों पर हम चिपके हुए हैं। ईष्वर प्रेम और आनन्द का भंडार है। पर उस भंडार से कुछ भी लेने के लिए हमें अपने घमंड के पेड से, नाम और यष के पेड से, वासना और झूठे अभिमान के पेड से उतरना होगा।
आज प्रभु हम सब से इस समय यही कह रहे हैं - जल्दी से नीचे उतरो, मुझे तुम्हारे यहाँ आना है। प्रभु पवित्र परम प्रसाद में हम सब के दिलों में आना चाह रहे हैं। वही प्रभु जिन्होंने ज़केयुस के घर में प्रवेष कर उसे मुक्ति का संदेष सुनाया हमें भी यही कहना चाहते हैं कि आज इस व्यक्ति के जीवन में मुक्ति का आगमन हुआ है। हम मेसे कितने लोग प्रभु के इस निमंत्रण को स्वीकार करके जकेयुस की भांति अपने जीवन को पूरी तरह से बदले को तैयार हैं?
आइये हम प्रार्थना करें।
हे प्रभु ईष्वर! मेरे जीवन से हर प्रकार स्वार्थ, लोभ, लालच और घमंड को निकाल दे। मुझे दीन-हीन बना दे कि तुमसे मैं जीवन में सच्चे आनन्द को प्राप्त कर सकूँ जिसको पाने के लिए मैं इधर-उधर भटकता रहा हूँ। हे प्रभु आपको देखने के लिए मेरी आत्मा में प्यास बढाईये।
आमेन

Saturday, 22 October 2016

वर्ष का 30 वां रविवार

नम्रतापूर्ण प्रार्थना प्रभु प्रिय है 

प्रवक्ता ग्रन्थ 35: 12-14, 16-18 
2 तिमथी 4:6-8,16-18 
लूकस 18:9-14 

आज की पूजन विधी के वचनों द्वारा प्रभु हमें यह बतलाना चाहते हैं कि प्रभु के राज्य में दीनहीन दरिद्रों व विनम्र हृदय वाले लागों का विशेष स्थान है। आज के पहले पाठ में वचन कहता है - प्रभु पददलितों की पुकार सुनता है। वह विनय करने वाले अनाथ अथवा अपना दुखडा रोने वाली विधवा का तिरस्कार नहीं करता। . . . जो सारे हृदय से प्रभु की सेवा करता है, उसकी सुनवाई होती है उसकी पुकार मेघों को चीर कर ईश्वर  तक पहुँचती है। प्रभु हृदय से, एक  सच्चे मन से की गई हर प्रार्थना का उत्तर देता है और हमें न्याय दिलाता है। 

आज के सुसमाचार में हमने एक फ़रीसी व नाकेदार के बारे में पढा, ये दोनों प्रार्थना करने मंदिर जाते हैं। फ़रीसी मंदिर में प्रार्थना करने तो जाता है लेकिन प्रार्थना नहीं करता है। वह प्रभु से कुछ निवेदन नहीं करता। वह तो सिर्फ अपनी तारीफों के पूल  बांँध रहा था। सुसमाचार कहता है कि वह बिना न्याय मिले मंदिर से वापस जाता है। वह खाली हाथ ही वापस लौट जाता है क्योंकि प्रभु की आशीष पाने के लिए उसके पास स्थान ही नहीं था। उसका पूरा जीवन व हृदय स्वयं से, अपने ही अहम् से भरा था। वह फ़रीसी उस ईंट, पत्थर के मंदिर में तो खडा परंतु  उसके  दिल के मंदिर से प्रभु काफी दूर थे ।

वहीं दूसरी ओर नाकेदार को न्याय मिलता है। उसकी प्रार्थना सुनी जाती है। उसे प्रभु की आशीष प्राप्त होती है। वह पाप मुक्त होकर मंदिर से वापस जाता है क्योंकि वह प्रभु के सामने झूक कर विनम्रतापूर्वक प्रार्थना करता है। उसने दूसरों के ऊपर दोष लगाने के बजाय स्वयं की गिरेबांह में झांक कर देखा। और वह अपने पापों पर पश्चाताप करता है। यूँ तो  नाकेदार दूर खडा होकर प्रार्थना करता है पर वह प्रभु के अति करीब था। प्रभु का वचन स्तोत्र 32ः18 में कहता है “प्रभु दुखियों से दूर नहीं है। जिनका मन टूट गया, प्रभु उन्हें संभालता है।" इसका मतलब ये है कि जो दिल से पश्चाताप  करता है, व प्रभु की अपार दयालुता पर भरोसा करता है। प्रभु उनके करीब है। नाकेदार अपनी छाती पीटते हुए कहता है - “हे ईश्वर ! मुझ पापी पर दया कर"। वह स्वयं की तारीफ नहीं करता लेकिन ईश्वर  की प्रशंसा  करता है। वह स्वयं को महिमा मंडित करके अपने को सबसे पहले  नहीं रखता। वह ईश्वर  की महानता को जानता व समझता है। वह जानता है कि ईश्वर महान व दयालुता का धनी है।

विनम्रता किसी भी प्रार्थना की नींव अथवा आधार है। हर प्रार्थना यह दर्शाती  है कि हम कमज़ोर व निर्बल प्राणी है। हमें ईश्वर की दया व कृपा की ज़रूरत है। हम हमारे बल पर, हमारी ताकत पर कुछ भी नहीं कर सकते।
इसलिए प्रार्थना करते समय सबसे पहले हमें हमारी मानवीय कमज़ोरियों को प्रभु के सामने कबूल करना चाहिए व हमारी भूल चुकों के लिए प्रभु से माफी मांगना चाहिए जैसा कि उस नाकेदार ने किया। इसिलिए हम हर मिस्सा बलिदान की शुरूआत में दयायाचना करते हैं। पापों पर पश्चाताप कर हम पिता, पुत्र और पवित्र आत्मा ईश्वर से मिलने के योग्य बन जाते हैं। तब साफ मन व हृदय से हम ईश्वर से वार्तालाप करने के लिए तैयार हो  जाते हैं। और एक स्वच्छ हृदय से निकली प्रार्थना को प्रभु स्वीकार करते हैं। इसलिए चाहे हमारी सामुदायिक प्रार्थना हो या फिर व्यक्तिगत हमें हमेशा  पहले अपने पापों की क्षमा याचना करनी चाहिए। एक बार एक व्यक्ति आद्यत्मिक साधना के बाद जब वापस लौटा तो लोगों ने उससे पूछा - “क्या आप पहले पापी थे?“ उसने जवाब दिया - “जि हाँ।“ उन्होंने फिर उनसे पूछा - “क्या आप अब भी पापी हो?“ और उसने फिर वही जवाब दिया - “जि हाँ।“ इस पर लोग उसकी हंँसी उडाते हुए कहने लगे कि रिट्रीट में भाग लेने से फिर क्या फरक पडा? उसने उन्हें एक सुंदर जवाब दिया - “ फ़र्क तो है! पहले मैं पाप की ओर भागा चला जाता था और अब मैं पाप से दूर भागा चला जा रहा हूँ।"
हमें ईश्वर एवं लोगों के सामने विनम्र बनना चाहिए। यदि हम किसी पद पर हैं तो हमें जल्दीबाजी में किसी भी की छोटी-छोटी गलतियां व कमज़ोरियों के लिए उन पर दोष नहीं लगाना चाहिए। क्योंकि हम स्वयं भी अपने आप में परिपूर्ण नहीं है। हमारी अपनी भी कई कमज़ोरियां है। प्रभु का वचन कहता है कि आप अपने सौंपे हुए लोगों पर अधिकार जता कर नहीं, बल्कि झूंड के लिए आदर्श बनकर जीवन बिताओ (1 पेत्रुस 5ः3)। क्योंकि हमारे गुरू और प्रभु स्वयं भी “सेवा कराने नहीं बल्कि सेवा करने व बहुतों के उद्धार के लिए अपने प्राण अर्पित करने आये हैं“ (मत्ती 20ः28)।
कोई संत है अथवा सज्जन है इसकी पहचान उसकी विनम्रता से हो जाती है। संत बेरनादेत पढाई में बहुत ही कमज़ोर बालिका थी उसकी शिक्षिका ने उससे कहा था कि तुम किसी काम की नहीं हो, पढना तुम्हारे बस की बात नहीं। उस मुर्ख कही जाने वाली लडकी को ही माता मरियम ने कई बार दर्शन  दिये। वे कहती हैं उनका जीवन मात्र एक झाडू के समान हैं। जिस प्रकार से झाडू की जब-जब ज़रूरत पडती उसका उपयोग किया जाता है व फिर उसे कोने रख दिया जाता है। उसी प्रकार वे कहती हैं कि ईश्वर ने माता मरियम के द्वारा संदेश  देने के लिए उनका उपयोग किया व अब उन्हें एक कोने में रख दिया है और वे इस कोने में बहुत खुश है। प्रभु को जब ज़रूरत पडेगी तो वह उन्हें फिर से उठायेगा और अपने राज्य के लिए उपयोग करेगा। हमें भी अपने आप आपको ऐसा ही समझना चाहिए - ईश्वर के हाथ में एक साधन जैसा-  एक बांसुरी, अथवा एक पेन जैसे, वो जैसी धुन बजाना चाहे, वो बजाये अथवा जो भी वो लिखना चाहे वो लिखे. आमेन ।  

Saturday, 15 October 2016

वर्ष का 29 वां रविवार

वर्ष का 29 वां रविवार

निर्गमन 17ः8-13
2 तिम 3ः14-2
लूक 18ः1-8

आज के पहले पाठ में हमने सुना कि मूसा जो कि इस्राएलियों का अगुवा था, मैदान में जाकर युद्ध लडने के बजाय पर्वत पर चढकर प्रार्थना करता है। अचरज की बात ये है कि जब तक मूसा हाथ उठाकर प्रार्थना करता रहता है, तब तक इस्राएली विजय होते हैं और जब प्रार्थना बंद हो जाती है तब उनकी हार होती है। ये न केवल एक ऐतिहासिक घटना है बल्कि हमारे जीवन की एक वास्तविकता है। हमारी मुक्ति के इस मार्ग में प्रार्थना ही एक ऐसा शक्तिषाली साधन है जो हमें, हमारे जीवन में आने वाली हर मुसीबत व बाधा के ऊपर विजय प्राप्त करने में हमारी सहायता करता है। हम सब हमारे प्रतिज्ञात देष स्वर्ग की ओर यात्रा कर रहे हैं। बहुत ही शक्तिषाली दुष्मन हमारी इस राह में बाधा डालने के लिए खडे हैं। हमें कई अमालेकियों से युद्ध करना है। हमारे शत्रुओं का सामना करने के लिए हमें बहुत ही शक्तिषाली हथियार की आवष्यक्ता है और वह हत्यार है प्रार्थना। मूसा, हारून व हूर के साथ पहाड पर हाथ उठाकर दिन ढलने तक प्रार्थना करते रहे। ये हमारे जीवन की ओर इंगित करता है। हमें हमारी जिंदगी का सूरज ढलने तक प्रार्थना करते रहना है। जब मूसा पर्वत पर प्रार्थना कर रहा था तब योषुआ नीचे रण भूमि में युद्ध लड रहा था। यह हमें यह सिखलाता है कि प्रार्थना के साथ ही साथ हमारा मानवीय प्रयास भी अति आवष्यक है। यदि कोई प्रार्थना करे कि प्रभु हमारी गरीबी दूर दीजिए, हमें सम्पन्न बनाईये और वह व्यक्ति रोज़ घर में ही बैठा रहता हो, अथवा कोई ये प्रार्थना करे कि प्रभु हमारे परिवार में शांँति रहे और वह व्यक्ति रोज़ शराब पीकर घर आता है तो शायद प्रभु भी उनके लिए कुछ नहीं कर पायेंगे। प्रभु की कृपा व हमारा प्रयास दोनों का होना अति आवष्यक है।
सुसमाचार में हमने सुना कि एक विधवा ऐसे न्यायकर्ता के पास जाकर बारम्बार न्याय के लिए आग्रह करती है जो कि अधर्मि था। वह न तो प्रभु से डरता था और न ही किसी की परवाह करता था। परन्तु वह उस विधवा को न्याय दिलाता है क्योंकि वह बार - बार उसके पास आया करती थी। और प्रभु येसु हमसे कहते हैं कि यदि वह अधर्मी न्यायकर्ता उस विधवा की माँग पूरा करते हुए उसे न्याय दिला सकता है तो “क्या ईष्वर अपने चुने हुए लोगों के लिए न्याय की व्यवस्था नहीं करेगा, जो दिन रात उसकी दुहाई देते रहते हैं?“ हमें हमेषा प्रभु से प्रार्थना करनी चाहिए कि हमें परीक्षा में मत डाल परन्तु सब प्रकार की बुराईयों से हमें बचा (मत्ती 6ः13)। 1 थेसलनिकियों 5ः16 में प्रभु का वचन कहता है - “आप लोग हर समय प्रसन्न रहें, और निरन्तर प्रार्थना करते रहें।“ इस संसार की चुनौति भरी राहों पर मुसिबतों का सामना करते हुए आगे बढने के लिए नित्य प्रार्थना की बहुत ही आवष्यक्ता है। प्रार्थना का गहरा अनुभव ही इंसान को प्रभु की सुरक्षा व सहायता पर दृढ भरोसा रखने में सहायक सिद्ध हो सकता है। इसलिए प्रार्थना एक आध दिन का काम नहीं होना चाहिए। मुसिबत में प्रार्थना की और बाद में अगली मुसिबत तक छूट्टी, ऐसा नहीं होना चाहिए। प्रभु कहते हैं “जागते रहो और प्रार्थना करते रहो, जिससे तुम परीक्षा में न पडो“ (मत्ती 26ः41)। याने परीक्षा में पडने पर नहीं, मुसीबत में फँसने पर नहीं परन्तु परीक्षा से पहले ही प्रार्थना करो, मुसीबत से पहले ही प्रार्थना करो। इस संदर्भ में कबीरदासजी का एक दोहा याद आता है
सुख में सुमिरन सब करे दुःख में करे न कोई।
जो सुख में सुमिरन करे तो दुःख काहे को होई।
इसिलिए संत पौलुस एफेसियों से अग्रह करते हैं कि “आप लोग हर समय आत्मा में सब प्रकार की प्रार्थना तथा निवेदन करते रहें।“ (एफेसियों 6ः18)।
हमें प्रार्थना को सिर्फ हमारे जीवन का एक भाग नहीं, अपितु हमारे पूरे जीवन को प्रार्थनामय बनाना चाहिए। हमेषा प्रार्थना करने का मतलब यह नहीं कि हम कुछ प्रार्थनाएं रटते फिरें। पर मतलब यह है कि हमारे जीवन का हर क्षण हर पल प्रार्थनामय बनायें। प्रार्थना का मतलब होता है ईष्वर के साथ संपर्क साधना, उनसे बातें करना, उन्हें अपने सुख-दुःख की कहानी सुनाना व उनसे उनके वचनों को सुनना। प्रार्थनामय जीवन का सर्वोत्तम उदाहरण स्वयं प्रभु येसु हैं। वे नित्य अपने स्वर्गिक पिता के सम्पर्क में बने रहते थे। इसिलिए उन्हें दुःखों का वह प्याला पीने के लिए व हमारी मुक्ति के लिए पर्याप्त शक्ति व सहायता पिता ने प्रदान की।
ऐसा नहीं है कि हम प्रार्थना के द्वारा ईष्वर की ईच्छा को बदल देते हैं पर प्रार्थना हमें ज़रूर बदल देती है। प्रार्थना ईष्वर को हमारे जीवन में कार्य करने के लिए हमारे मन व दिल को खोल देती है। प्रार्थना हमें यह भी याद दिलाती है कि हम अपने आप में परिपूर्ण नहीं हैं। हम हमारे जीवन के लिए, जीवन की विभिन्न आवष्यक्ताओं के लिए ईष्वर पर अश्रित रहते हैं। जब हमें यह लगता है कि हमारी प्रार्थना का उचिज जवाब नहीं मिल रहा है ऐसी परिस्थिति में भी प्रभु येसु हमें प्रार्थना करते रहने का आष्वासन देते हैं। बिना विचलित हुए प्रार्थना करते रहने से हमारी ईच्छा शक्ति मज़बुत व हमारा विष्वास गहरा हो जाता है, ठीक वैसे ही जैसे नित्य व्यायाम करने से हमारा शरीर, मांस पेषियाँ, हृदय, व फेफडे मज़बूत हो जाते हैं।   ़
आईये आज हम प्रभु से वही कृपा माँगें जिससे परिपूर्ण होकर वे अपने स्वर्गीय पिता से नित्य बातें करते थे। आईये हम भी हमारा यह ख््रास्तीय जीवन व्यर्थ के सोच-विचार व बातों में नष्ट करने के बजाय, प्रभु स्मरण करते हुए बितायें। हमें ये ज्ञात रहे कि प्रभु जीवन के हर क्षण हर पल हमारे साथ रहते हैं। हम उनसे संपर्क बनाये रखें। उनसे वर्तालाप करते रहें। प्रभु नबी यरमियाह के ग्रंथ में हमसे वादा करते हैं कि ‘‘जब तुम मुझे पुकारोगे और मुझसे प्रार्थना करोगे, तो मैं तुम्हारी प्रार्थना सुनूँगा’’ यरमियाह 29ः12।

Saturday, 1 October 2016

वर्ष का 27 वां रविवार

27 वां रविवार
हब 1:2-3,2:2-4
तिम 1:6-8,13-14
लुक 17:5-10

प्रभु ने कहा है और हमने सुना है, आज के सुसमाचार में - “यदि तुम्हारा विष्वास राई के दाने के बराबर भी होता और तुम शहतूत के इस पेड से कहते, उखड कर समुद्र में लग जा, तो वह तुम्हारी बात मान लेता।“ संत मत्ती के सुसमाचार में इसी संदर्भ में प्रभु कहते हैं कि यदि तुम्हारा विष्वास राई के दाने के बराबर भी हो तो तुम इस पहाड से कहते कि वह समुद्र में जाकर गिर जाये तो ऐसा ही होता। यहां पर प्रभु अलंकारिक भाषा का प्रयोग कर रहे हैं। उनके कहने का तात्पर्य यह है कि यदि हमारे पास थोडा सा भी विष्वास है तो हम बडे से बडे मुसिबतों का पहाडों का ढा सकते हैं। बडी सी बडी बिमारियों से चंगाई पा सकते हैं। बस दिल में विष्वास होना चाहिए।
सुसमाचार के प्रचारकों के जीवन में राई के दाने के बराबर प्रार्थनामय विष्वास ने मुसिबतों व परेषानियों के दिग्गज पहाडों का धराषाही कर दिया। हम प्रेरित चरित में पढते हैं कि राजा हेरोद ने याकूब और उसके भाई योहन की हत्या के बाद संत पेत्रुस को बंदी बना लिया था तथा उन्हें कडी सुरक्षा के घरे में कारावास में बंद कर दिया। वो उन्हें भी मौत के घाट उतार देना चाह रहा था। प्रेरित चरित 12ः5 में हम पढते हैं “जब पेत्रुस पर इस प्रकार बंदीगृह में पहरा बैठा हुआ था, तो कलीसिया उसके लिए आग्रह के साथ प्रार्थना करती रही।“ कलीसिया पूर्ण विष्वास व आग्रह से प्रभु से प्रार्थना करती रही और तब प्रभु एक महान चमत्कार दिखाते हैं। प्रभु का दूत कारावास में से चमत्कारिक ढंग से उन्हें बाहर निकाल ले जाता है। संत मत्ती 19ः26 में वचन कहता है - “ईष्वर के लिए सब कुछ सम्भव है।“ तथा मत्ती 17ः20 में वचन कहता है कि यदि तुम्हारे पास विष्वास है तो तुम्हारे लिए भी कुछ भी असम्भव नहीं है।
आज के पहले पाठ में वचन हमसे कहता है कि धर्मी अपने विष्वास के कारण जीता है। नबी ये शब्द उन लोगों को तब सुनाये जाते हैं जब बाबुल के राजा नबूकदनेज़र ने येरूसलेम पर हमला किया, प्रभु के मंदिर को तहस-नहस कर दिया, प्रभु की वेदी को अपवित्र किया, कईयों का खून बहाया व कईयों को गुलाम बनाकर बाबुल के निर्वासन में ले गया। इस्राएली लोग अपने आप को हारे हुए, निस्सहाय, व परित्यक्त महसूस कर रहे थे। तब नबी उनसे कहते हैं कि आप लोगों ने अपने दुष्मन के हाथों गहरे घाव पाये हैं परन्तु फिर भी आप विकट परिस्थिति में भी प्रभु में प्रति विष्वास बनाये रखो। वही तुम्हारा उद्धार करेगा।
विष्वास करने के लिए नम्रता बहुत ज़रूरी है। वही व्यक्ति विष्वास में दृढ़ हो सकता है जो यह स्वीकार करता है कि मेरी क्षमताएँ सीमित है, मेरे साधन सीमित है, परन्तु प्रभु के पास असीमित सम्भावनायें है। हम जहाँ सोचना बंद करते हैं प्रभु वहाँ से शुरूआत करते हैं। जब हम सोचते हैं मुसिबतों की आँधी इतनी अधिक है कि हमारे जीवन का चिराग और आगे जल नहीं पायेगा। तब प्रभु कहते हैं मैं इस दीपक को अपनी हथेलियों से ढंक कर रखता हूँ तू मुझपर भरोसा रखकर आगे बढ़। जब हम जीवन में निराष व हताष हो जाते असफलताओं का पहाड हम टूट पडता है। हमें आगे बढने के लिए कोई रास्ता, कोई विकल्प नहीं सुझता तब प्रभु हमसे कहते हैं कि सारी सफलताओं और खुषियों की चाभी मेरे पास है। तू मुझ पर विष्वास रख यदि एक दरवाज़ा बंद होता है तो मैं तेरे लिए दस दरवाजे़ खोल दूँगा।
विष्वास की ताकत को मैं ने मेरे जीवन में कई दफा़ अनुभव किया है। मैं मेरे जीवन की एक घटना को आप लोगों के साथ साझा करना चाहता हूँ। बात उन दिनों की है जब मैं आष्टा में ईष शास्त्र का अध्ययन कर रहा था। आस-पास के किसानों की गेंहू-चने की फसल पक कर तैयार थी। कईयों ने फसल काट ली थी, पर खेत में ही पूले पडे हुए थे। करीब दोपहर के समय काले, घने बादल, बिजली व गरजन के साथ बारीष का माहौल बन गया। जैसे ही हमारी क्लास खत्म हुई बूँदा बांँदी शुरू हो गई। मैं ने मेरे एक दोस्त से कहा देख बारीष हो रही है अब बेचारे किसानों का क्या होगा। मेरे साथी ने मुझसे कहा लेट अस प्रे फॉर देम। पता नहीं मुझमें ऐसा हुआ कि मैं सीधे अपने कमरे में भागकर गया। अपने नोट्स टेबल पर रखे व वहीं घूटनों टेकर अनुरोध के साथ प्रार्थना करने लगा कि प्रभु तून ही इन गरीबों को यह फसल दी है। तू ही तो इनका रखवाला है। प्रभु इन पर दया दृष्टि डाल और यह बारीष अभी इसी वक्त रोक दे। अन्यथा इनकी फसल बरबाद हो जायेगी। और प्रभु ने प्रार्थना सुन ली। मुझे खुद ही विष्वास नहीं हो रहा था कि वास्तव में थोडे ही समय में बादल छंट गये और सब कुछ सामान्य हो गया।
आज के सुसमाचार में विष्वास की शक्ति के बारे में बताने के बाद प्रभु हमें विनम्रतापूर्ण सेवा के बारे में बताते हैं। प्रभु कहते हैं कि एक सेवक अपने स्वामी की भरपूर सेवा करने के बाद कभी धन्यवाद की आषा नहीं करता क्योंकि वह तो यह कहता है कि मैं ने तो मेरा कर्तव्य मात्र पूरा किया है। प्रभु हमसे भी यही कहते हैं कि हम प्रभु व उसके लोगों की दिलो जान से सेवा करने के बाद यही कहें -‘हम तो अयोग्य सेवक भर हैं; हमने अपना कर्तव्य मात्र पूरा किया है। कल हमने बालक येसु की संत तेरेसा का पर्व मनाया। वे अपने जीवन में हर एक छोटे से बडे काम को बडी ही तत्परता, लगन व प्रेम से करती थी। हर कार्य करते समय वह यही सोचती थी कि वह उसके द्वारा प्रभु की ही सेवा कर रही है। प्रभु ने हम सब को ऐसी ही विनम्र सेवा करने के लिए बुलाया है।
आईये  प्रभु हम प्रभु के षिष्यों के साथ प्रार्थना करें जैसा कि आज के सुसमाचार में उन्होंने किया - ‘‘प्रभु हमारे विष्वास को बढाईये।’’ तथा प्रभु व लोगों की सेवा करने में हम उदार, प्रेमी व पूर्ण रूप से समर्पित बन जायें।

Saturday, 24 September 2016

वर्ष का 26 वां रविवार , वर्ष c

आमोस 6ः1. 4-7
1 तिमथी 6ः11-16
लूकस 16ः19-31

आज के सुसमाचार में हमने पढा, एक धनी व गरीब कंगाल लाज़रूस के बारे में। इस दृष्टाँत में गौर करने लायक बात यह है कि गरीब का नाम इसमें दिया गया है - ‘लाज़रूस’ पर धनवान का कोई नाम नहीं दिया गया। इस दुनिया में धनवानों का बडा नाम होता है, उनकी पहचान होती है, उनकी शौहरत होती है, और गरीब बेनाम, तिरस्कृत, व निंदीत लोग होते हैं। पर स्वर्ग राज्य के माप-दंड हमारे माप-दंड से भिन्न हैं। ख््रास्त में प्यारे भाईयां और बहनों जब नाम की बात आती है तो मेरा ध्यान प्रकाषना ग्रंथ की ओर जाता है, जहाँ अंतिम न्याय के बारे में बताते हुवे संत योंहन कहते हैं कि “जिसका नाम जीवन ग्रंथ में लिखा हुआ नहीं मिला, वह अग्निकुंड में डाल दिया गया“ (प्रकाषना ग्रंथ 20ः15)। आज के सुसमाचार को पढ कर ऐसा लग रहा था, जैसे प्रभु येसु जीवन की पुस्तक से पढ रहे हैं, उसमें लाज़रूस नामक कंगाल का तो नाम है पर उस धनी का नहीं है। और वह धनी अब हमेषा के लिए बेनाम रहेगा। जीवन ग्रंथ से उसका नाम मिटा दिया गया है। यही उसके विलासितापूर्ण जिंदगी व गरीबों के प्रति उदासिनता का पुरस्कार है।
प्रभु आज के सुसमाचार के द्वारा उस धनी के धन की उतनी निंदा नहीं करते जितनी उसके गरीबों के प्रति उदासीनतापूर्ण व्यवहार की। उसके पास गरीबों व तडपते लोगों के लिए कोई जगह नहीं थी। गरीब लाज़रूस को रोज दिन अपनी खाने की मेज़ के सामने भूख से तडपते देख कर भी वह उसकी पीडा से अनजान रहा। शायद उसने कभी भूख क्या होती है, उसका अनुभव ही नहीं किया था। क्योंकि वह रोज दिन दावत उडाता था। आज की दुनिया में ऐसे लोगों की कमी नहीं है। शोपिंग मॉल में जाना, 5 रू. की चाय को 50 रू. देकर पीना, मंहगे व फैषन वाले कपडे पहनना, ए.सी. वाली आरामदायक कार में घुमना ये सब उन्हें बेहद पसंद है। पहली मंजिल तक सिढी चढकर जाना उनसे नहीं होता, उन्हें लिफ्ट चाहिए होती है। पर वहीं दिन भर ईंट, रेत व सिमेंट की बोरी उठाकर पहली दूसरी और तीसरी मंजिल तक सिढी चढने वाले मज़दूरों पर उन्हें रहम नहीं आती। यदि वे घडी भर भी बैठ गये तो उनपर डाँट व गालियों का पहाड टूट पडता है। बिना ए.सी. की कार में सवारी करना उनके लिए एक मुष्किल काम होता है, लेकिन दिनभर कडी धूप में ठेलागाडी धकेलकर सब्जी बेचने वाले गरीब से 20 रू. किलो वाली सब्जी 15 रू. में मोल -भाव करते उन्हें न तो शरम आती है और न ही उनके दिल में मानवता जागती है। ऐसे कई उदाहरण दिये जा सकते हैं। आज के पहले पाठ में ऐसे ऐषो आराम की जिंदगी जिने वालों पर गहरा प्रहार किया गया है और कहा गया है कि इनके भोग-विलास का अंत हो जायेगा।
धनी लोग ईष्वर के प्रति अपने दिलों को बंद कर लेते हैं। वे सिर्फ इस जीवन के सुखों से तृप्त हैं। वे अपने भावी जीवन को भूल जाते हैं। वे अपना हृदय गरिबों के प्रति बंद कर देते हैं। वे अपने में ही सीमित रहना चाहते हैं।
लज़रूस उन लाखों करोडों बिमार, पीडित, दुखित, समाज द्वारा ठुकराये, तिरस्कृत, व शोषित लोगों का प्रतिनिधित्व करता है जिनकी पुकार सुनने वाला कोई नहीं। वे न तो अपने अधिकारों के लिए रैली निकालते और न ही उसके लिए सभायें करते हैं। वे सदियों से अपने इन दुःख दर्दों को अपना भग्य समझकर चुपचाप सहते आये हैं। संत लूकस के सुसमाचार 9ः24 में प्रभु का वचन कहता है - “जो अपना जीवन सुरक्षित रखना चाहता है वह उसे खो देगा और जो मेरे कारण अपना जीवन खो देता है वह उसे सुरक्षित रखेगा।“ उस धनी व्यक्ति ने अपना जीवन सुरक्षित रखने की कोषिष की, लेकिन अंत में जीवन. . .अनन्त जीवन उसके हाथों से फिसल जाता है, वह अपना अनन्त जीवन का पुरस्कार खो देता है वहीं लाज़रूस उसे हासिल करता है।
प्रभु आज के वचनों द्वारा हमें मुख्यरूप से निम्न तीन बातें बतलाना चाहते हैं?
पहली बात - हमसे ज्यादा गरीब व ज़रूरतमंद लोगों के प्रति हम उदार व दयालु बनें उनके दुख दर्दों को दरकिनार न करें, अपितु उन्हें समझने की कोषिष करें, उनके प्रति सहानुभुति व प्रेम की भावना रखें।
दूसरी बात - कि पश्चाताप का अवसर हमारे अंतिम सांस लेने तक ही हमें मिलता है। प्रभु हमें हमारे मरण तक सुधरने का अवसर देते हैं। लेकिन मरने के बाद हमें कोई मौका नहीं मिलने वाला। जैसा कि उस धनी के साथ हुआ।
तीसरी बात - हमारे सुधार के लिए हमें धर्ममार्ग पर चलाने के लिए हमारे पास प्रभु के वचन हैं। हमें रोज़ उन्हें पढना व उन पर मनन करना चाहिए। पिता इब्राहिम उस धनी से कहते हैं कि तुम्हारे भाईयों के पास मूसा का ग्रंथ है, वे उसे पढकर, सुधर जायें। इस पर हव धनी बोलता है कि वे कहाँ धर्मग्रंथ पढते व उसको सुनते हैं। याने उनके पास धर्मग्रंथ था लेकिन उन्होंने उसे न तो पढा और न सुना। इसलिए उसमें सदबुद्धी नहीं आयी, उसने दया, करूणा व प्रेम का पाठ नहीं पढा। अन्यथा वह उस गरीब की प्रति दया दिखाता और फलस्वरूप स्वर्गराज्य में प्रवेष करता। उसे भी पिता इब्राहिम की गोद में स्थान मिलता। हम भी हमारे घरों में रखी पवित्र बाइबल की धूल साफ कर उसे उठाकर रोज पढें। उसमें हमारे अनन्त जीवन का पूरा राज छिपा हुआ है। वही हमें उद्धार व मुक्ति के मार्ग पर ले जायेगा। आमेन।


Saturday, 17 September 2016

वर्ष का 25 वां रविवार

वर्ष का 25वां रविवार

अमोस 8: 4-7
1 तिमथि 2:1-8
लूकस 16:1-13
आज के मनन-चिंतन का विषय है - धन-संपत्ति का सही उपयोग करना एवं ऐसा काम करना जो हमें स्वर्ग राज्य में प्रवेष करने में सहायक हो।
आज के सुसमाचार में प्रभु येसु बेईमान कारिंदा का दृष्टांत सुनाते हैं जिसमें अपनी बेईमानी के कारण उसे उसका मालिक अपने काम से हटाने वाला था। पर वह कारिंदा चतुराई से काम लेता है व अपने भविष्य के जीवन के लिए बडी ही चतुराई से काम करता है। यद्यपि उसने काम बेईमानी का किया फिर भी प्रभु उसके तारीफ करते हैं। अब यह सवाल उठता है कि प्रभु येसु ने इस बेईमान कारिंदे की तारीफ क्यों की? संत लूकस के सुसमाचार 16रू8 में हम देखते हैं कि स्वामी ने बेईमान कारिन्दे को इसलिए सराहा कि उसने चतुराई से काम किया। उसने अपने भविष्य के जीवन के बारे में सोचा कि आगे क्या होगा, प्रभु यहाँ हमें स्वर्ग राज्य के हकदार बनने व स्वर्गराज्य के मूल्यों पर चलने के लिए उस करिंदा की बेईमानी का अनुसरण करने नहीं पर उसकी चतुराई से सिख लेने को कहते हैं। क्योंकि इस संसार की संतान आपसी लेन-देन में ज्योति की संतान से अधिक चतुर हैं। संत मत्ती 10रू16 में प्रभु का वचन कहता है - ‘‘देखो मैं तुम्हें भेडियों के बीच भेडों की तरह भेजता हूँ। इसलिए साँप की तरह चतुर और कपोत की तरह निष्कपट बनो।’’ विरोधी तत्वों के सामने, अत्याचार करने वालों के सामने, हमें सताने वालों के सामने हमें निष्कपट, निर्दोष व पाप रहित बनना है, परन्तु साथ ही हमें सांँप की तरह चालाक बनने को प्रभु कहते हैं। ईष्वर के राज्य स्थापना व उसे प्राप्त करने के लिए हमे मुर्खतापूर्ण काम नहीं चतुराईपूर्ण काम करना चाहिए। प्रभु की दृष्टि में वे लोग मूर्ख हैं जो धन संपत्ति को अपना भगवान मानते हैं। जो अपना विष्वास व भरोसा पर अपने पैसों पर ही रखते हैं।
वास्तव में यदि देखा जाये तो हम हमारी सम्पत्ति के पूर्ण मालिक नहीं है; याने हम ये नहीं कह सकते कि जो कुछ मेरे पास है वह मेरा ही है, मैंने इसे बिना किसी की मदद से प्राप्त किया है। नहीं। सब कुछ प्रभु का है, सच्चा मालिक तो वही है हर चीज़ का। हम तो बस प्रबंधक अथवा कारिन्दा है। (लूकस 19रू11-27)। संत अंब्रोस कहते हैं - ‘‘जब तुम किसी गरीब को कुछ उपहार दे रहे हो तो तुम तुम्हारे अपने में से कुछ भाग उसे नहीं दे रहे हो, पर जो उसका अपना है उसे वापस लौटा रहे हो।’’ किसी दिन एक छोटा बालक अपने पिता के साथ बाज़ार जा रहा था। कडाके की ठंड पड रही थी और लोग घरों से बाहर निकलने से कतरा रहे थे। ऐसे में उन्हें रास्ते में उन्हें एक अत्यंत गरीब महिला दिखाई दी जिसके तन पर नाममात्र के लिए कोई कपडा था। लडके के पिता ने तुरन्त पास वाली दुकान से उसके लिए एक गरम कोट खरीदा और उसे उस महिला को देकर आगे बढ गया। बेटे ने पिताजी से पुछा पिताजी ईष्वर ने क्यों किसी को अमीर तथा किसी को इतना गरीब बनाया। क्या वह सबसे प्यार नहीं करते? इस पर पिताजी ने उससे कहा - ‘‘बेटा ईष्वर सबसे बराबर प्यार करते हैं और शायद गरीबों से और अधिक। और हाँ उनके हिस्से का धन उसने अमीरों को  दिया है ताकि वे उसका उपयोग इन गरीबों के लिए करके अपने लिए पुण्य कमा सकें। याने गरीब जिन्हें हम हीनता की दृष्टि से देखते हैं। जिन्हें हम काम वाली बाई, नौकर, भिखारी, पागल, आदि नामों से पुकारते हैं वे वास्तव में हमारी जिंदगी में फरिष्ते बनकर, हमें स्वर्ग राज्य पहुँचाने में मदद करने आते हैं। इन लोगों के प्रति हमारा नज़रिया क्या है?
आज की दुनिया में ज़्यादतर लोग अधिक से अधिक धन बटोरने, व मुनाफा कमाने लगे हैं। बहुतों के लिए पैसा ही भगवान है। पूरा भरोसा व विष्वास धन-दौलत पर ही टिका रहता है। धन व धनवानों के बारे में संत जेरोम कहते हैं - ‘‘सारा धन अन्याय की उपज है। जो धनी है वह या तो अन्यायपूर्ण आदमी है या फिर किसी अन्यायपूर्ण व्यक्ति का उत्तराधिकारी।’’  
भौतिक चिज़ें संचय करने वालों का अंत दौलत की वेदी पर होगा, लेकिन जो आत्मदान करता है जो दीन-दुःखियों की सेवा करता है, उनकी मदद करता है, वह सच्चे ईष्वर तक पहुँचेगा। भौतिक सम्पत्ति अल्पकालिक है। ऐषो-आराम व मौज मस्ती में उडाये धन से हम दोस्तों व यारों को तो जीत सकते हैं पर वे धन समाप्त होने पर हमें छोडकर चले जायेंगे जैसा कि उडाव पुत्र के साथ हुआ। हमें संत फ्राँसिस असिसी से सिखना चाहिए जिन्होंने, इस जीवन की असारता को त्यागकर आने वाले जीवन की महानता को महत्व दिया। मदर तेरेसा हमारे लिए एक जिवंत उदाहरण है। जिन्होंने परहित में अपना सारा जीवन न्योछावर कर दिया।
जहाँ धन है वहाँ डर है, वहाँ खतरा है। धन की प्राप्त करने की अंधी दौड में कहीं ऐसा न हो कि हम हमारी कारिंदगरी अथवा प्रबंधक के पद से हमें हटा दिया जाये। पैसा केवल अपना ही भविष्य सुनिष्चित कर सकता है। वह हमारा भविष्य सुनिष्चित नहीं कर सकता। यदि हम दुसरों की भलाई में अपनी सम्पत्ति का सदुपयोग करते हैं तो हम उसे हमेषा के लिए बनी रहने वाली संपत्ति के रूप में परिवर्तित कर देते हैं, एक ऐसी संपत्ति जो कि स्वर्ग में हमेषा के लिए जमा रहती है। (मत्ती 6रू19)।
आइए आज हम संत पौलुस के साथ प्रार्थना करें कि जिन लागों को ईश्वर ने सत्ता का कार्यभार सौंपा है वे अपनी जिम्मेदारी पूरी ईमानदारी से निभायें जिससे समाज में अन्याय न फैलें। आइए हम गरीबों के लिए प्रार्थना करें कि वे प्रभु येसु के प्रेम का अनुभव करें। साथ ही हम धनी व्यक्तियों के लिए भी प्रार्थना करें कि ईश्वर उनका हृदय परिवर्तन करें जिससे वे गरीबों का शोषण न करें बल्कि मदद करें। हम स्वयं के लिए प्रार्थना करें कि हमारे खीस्तीय समुदाय में कोई अन्याय न हो। आइए हम सब ईमानदार कारिंदे बनें तथा छोटी से छोटी बातों में भी ईमानदार बने रहें जिसे परमेश्वर ने हमें सौंपा है ताकि हम अनंत जीवन के भागी बन सकें।

Saturday, 10 September 2016

वर्ष का 24 वां सामान्य रविवार, 11 सितंबर, 2016


निर्गमन 32:7-11, 13-14
तिमथि 1:12-17
लुकस 15:1-32

आज के पहले पाठ में हमने सुना प्रभु मूसा से कहते हैं - ‘‘पर्वत से उतरो, क्योंकि तुम्हारी प्रजा जिसे तुम मिश्र से निकाल लाये हो, भटक गयी है।’’ मूसा प्रभु से मुलाकात करने उनकी उपस्थिति में सीनई पर्वत पर था। प्रभु अत्यंक व्याकुल होकर ये कह रहे हैं। ये प्रभु के दिल के अंतःस्थल से निकली उनकी एक दारूण पुकार है। वे क्रोधित होकर उन लोगों का सर्वनाष करना चाह रहे थे परन्तु मूसा ने मध्यस्थता की, लोगों की पेरवी की व उनका बीच-बचाव किया। और प्रभु ने जो धमकी दी थी उसका विचार छोड दिया। क्योंकि ‘‘वह एक अत्यंत दयालु, व करूणामय ईष्वर है। वह सहनषील सत्यप्रतिज्ञ औ प्रेममय ईष्वर है।’’ (स्तोत्र 86ः15) हम सब प्रभु के प्यारे बच्चे हैं। वह नबी इसायस 43ः4 में हमसे कहते हैं तुम मेरी दृष्टि में मुल्यवान हो और महत्व रखते हो, मैं तुम्हें प्यार करता हूँ।‘‘ वो हमें कभी भी खोना नहीं चाहते हैं। संत योहन के सुसमाचार 6ः39 में प्रभु येसु हमसे  कहते हैं - ‘‘जिसने मुझे भेजा, उसकी इच्छा यह है कि जिन्हें उसने मुझे सौंपा है, मैं उनक में से एक का भी सर्वनाष न होने दूँ।’’ और मत्ती 18ः14 में प्रभु कहते हैं - ‘‘इसी तरह मेरा स्वर्गिक पिता नहीं चाहता कि उन नन्हों में से एक भी खो जाये।’’ जि, हाँ, ख््रास्त में प्यारे भाईयों प्रभु को हमेषा हमारा ख्याल रखता है। और जब हम हमारे पापमय जीवन द्वारा उनसे दूर हो जाते हैं, भटक जाते हैं तो वे अत्यंत व्याकूल हो उठते हैं। वे उस चरवाहे कि तरह बेचैन व परेषान हो जाते हैं जिसकी एक भेड जिसे वह बेहद प्यार करता था, खो गई हो अथवा उस स्त्री की तरह जिसने अपने पसीने की कमाई का फल, अपना एक सिक्का खो दिया हो। ये दोनो तब तक उसे खोजते रहते हैं जब तक वे उसे नहीं पाते और पाने पर अन्यंत आनन्दित होते हैं, जष्न मनाते हैं।
प्रभु की वही वाणी जो मूसा को सीनई पर्वत पर सुनाई पडी थी आज हमारे कानों में, कलीसिया के अगुवाओं के कानों में गूँज रही है - ‘‘पर्वत से उतरो, क्योंकि तुम्हारी प्रजा, जिसे तुम मिश्र से निकाल लाये हो, भटक गई है।’’ आज का यह वचन हर एक पुरोहित के कानों में प्रतिध्वनित होना चाहिए। तुम्हारी प्रजा भटक गई, तुम्हारी प्रजा जिसे तुमने बपतिस्मा दिया है, तुम्हारी प्रजा जिसे तुमने संस्कार दिये हैं, व पापमय लालसागर से बाहर ले आये हो, तुम्हारी प्रजा जिसका प्रभु ने तुम्हें चरवाहा नियुक्त किया है वह आज भटक गई है। इसलिए पहाड से उतरो। अपने आरामदायक, शाँतिमय, व सुरक्षित पहाड से नीचे उतरो। अपने स्वार्थ, घमंड, अहंकार के पहाड से नीचे उतरो। और अपनी भटकी हुई भेडों को वापस झूंड में लाओ। क्योंकि पिता की यह इच्छा है कि उनमें से एक भी न खो जाये, उनमें से एक का भी सर्वनाष न हो। संत फोस्तीना को दिये दिव्य दर्षन में प्रभु येसु ने उनसे यही कहा था कि हर किसी को यह याद दिलाओ कि मेरी दिव्य करूणा हर एक जन के लिए है। मैं हर एक आत्मा को अपनी दिव्य करूणा के द्वारा स्वर्ग में ले जाना चाहता हूँ।
प्रभु हमें खोना नहीं चाहते। हम अपने ही कुमर्मां द्वारा, स्वयं खो जाना चाहते हैं, हम स्वयं प्रभु से दूर जाने चाहते हैं, हम हमारा विनाष स्वयं करना चाहते हैं। पर प्रभु हमें बचाना चाहते हैं। मुझे बचपन में पढी हुई ‘‘अब्बू खां की बकरी’’ नामक हिंदी का एक पाठ याद आता है जिसमें चांदनी नाम की अब्बू खां की बकरी जिसे अब्बू बेहद प्यार करते थे अपने बाडे से रस्सी तोडकर भाग जाती है। अब्बू खां उसे ढूंढते-ढूंढते थक जाते हैं। अंधेरा होने तक जंगल में घूम-घूमकर आवाज लगाते हैं। पर चांदनी जवाब नहीं देती। वह एक स्वतंत्र जीवन जीना चाहती थी। वह मालिक की आवाज़ को अनसुना कर देती है। रात को भेडियों से उसका सामना हो जाता है। पूरी रात वह हिम्मत के साथ भेडियों से लडती है लेकिन आखिर में दम तोड देती है। हम सब कमजोर इंसान हैं। हमारा भटक जाना, कभी-कभी प्रभु से दूर जाना स्वाभाविक है परन्तु जिस घडी प्रभु की वाणी हमारे कानों पडती है। जब प्रभु हमें पुकारते हैं हमें उनकी और लौट आना चाहिए। हमें हमारा मन फिरा कर पश्चाताप करते हुए प्रभु से मेल-मिलाप करना चाहिए। अन्यथा हमारा भी हाल चांदनी की तरह होगा। शैतान के हाथ हमें हार का सामना करना पड सकता है। वह हमारे शरीर व आत्मा दोनों का नर्क में सर्वनाष कर सकता है। साथ ही जो भी प्रभु की भेडों के रखवाले नियुक्त किये गये हैं वे भी जागरूक व सतर्क रहें। हर खोई हुई भेड का उनसे लेखा लिया जायेगा।

Saturday, 27 August 2016

वर्ष का २२ वां रविवार 28 August 2016


प्रवक्ता ग्रन्थ ३: १७-१८, २०, २८-२९
इब्रानी १२:१८-१९, २२-२४
लुकस १४:१, ७-१४


ख्रीस्त में प्यारे भाईयों और बहनों आज की धर्मविधि में प्रभु हम सबको अपने समान विनम्र बनने का आह्वान कर रहे हैं। प्रभु कहते हैं ‘‘तुम जितने अधिक बडे हो, उतने अधिक नम्र बनो इस प्रकार तुम प्रभु के कृपापात्र बन जाओगे’’ (प्रव 3:19)
महापुरूषाों की तुलना बहुत बार आम के पेड से की जाती है। आम का पेड जितना अधिक फल देता है उसकी डालियां उतनी ही अधिक नीचे झूक जाती हैं व जितना कम फल रहता है डालियां उतनी अधिक तनी हुई रहती है। जो व्यक्ति वास्तव में जितना अधिक महान होता है वह उतना अधिक विनम्रता दूसरों के सामने झूक जाता है लेकिन जो दुनिया की दृष्टि में स्वयं को बडा दिखाना चाहते हैं वे फलहीन या फिर कम फल वाली डालियों की तरह तन कर अपने आपको जबरन महान सिद्ध करवाने की कोषिष करते हैं।
निति वचन 18:12 में प्रभु का वचन कहता है घमंड विनाष की ओर ले जाता है। और विनम्रता सम्मान की ओर।’’ सम्मान माँगने से नहीं अपने विनम्र सुआचरण से मिलता है। प्रभु का वचन कहता है प्रवक्ता गं्रथ 10:31 में ‘‘पुत्र विनम्रता से अपने स्वाभिमान की रक्षा करो। अपने को अपनी योग्यता के अनुसार ही श्रेय दो।’’ याने मैं जो भी हूँ, जितना पानी में हूँ उससे अधिक दंभ न भरूँ। रहीमदासजी का एक प्रसिद्ध दोहा है
‘‘बडे बडाई न करें बडे न बोले बोल
रहिमन हीरा कब कहे, लाख टका मेरा मोल

याने जो लोग वास्तव में बडे हैं सम्मानीय हैं वे अपनी बडाई स्वयं नहीं करते जैसा कि हीरा सबसे कीमती चीजों मेंसे एक होने पर भी कभी किसी से नहीं कहता है कि मेरा मूल्य लाखों रूपये है। उसके स्वभाव व उसके गुणों से लोगों को पता चलता है कि हीरा एक कीमती वस्तु है। हम भी ऐसे ही बनें। एक सच्चा गुणवान व्यक्ति जिसे कई उपलबधियाँ प्राप्त है हमेषा यही सोचेगा कि उसकी यह छोटी सी उपलबधि वस्तृत संभावनाओं के सामने कुछ भी नहीं है। अंग्रेजी में एक कहावत है - स्काई  इज़ द लिमिट। याने हमें सिखने, बढने व विकास करने की कोई सीमा नहीं। इसलिए कोई भी अपने आप को परिपक्व, सर्वज्ञाता, सर्वज्ञानी व सबसे बडा विधवान न मानें। हर कोई यह स्वीकार करे कि मैं भी अन्य लोगों की तरह एक साधारण इसान हूँ। मैं भी गलती कर सकता हूँ, मुझमें भी कमज़ोरियां है फिलिपियों को लिखे पत्र 2:3 में संत पौलुस हमें सुन्दर शब्दों में समझाते हुवे कहते हैं - हर व्यक्ति नम्रतापुर्वक दूसरों को अपने से श्रेष्ठ समझे। कोई केवल अपने हित का ही नहीं, बल्कि केवल दूसरों के हित का भी ध्यान रखें। आज दुनिया में लडाई-झगडे, व युद्ध क्यों होते हैं इसी कारण की हम दूसरों को अपने से श्रेष्ठ नहीं देख पाते, हम दूसरों की उन्नती नहीं सह पाते, दूसरों को पनपते व ऊपर उठते नहीं देख पाते। हमारा अहंकार हम पर हावी हो जाता है। प्रभु का वचन हमें कहता है निति वचन 29:23 में मनुष्य का अहंकार उसे नीचा दिखाता किंतु विनम्र व्यक्ति का सम्मान किया जाता है। आज के सुसमचार में प्रभु हमसे कहते हैं कि जब तुम भोज पर आमंत्रित हो, तो पहले से जाकर सम्मानीय स्थानों पर कब्जा मत जमाओ। पीछे आम लोगों के साथ बैठो, तब मालिक यदि आपको सम्मानीय स्थान के योग्य समझेगा तो व तुम्हें आगे की ओर बुलायेगा। तब सब के सामने आपकी इज्जत बढेगी।
इस दृष्टांत के द्वारा प्रभु हमें यह सिखाना चाहते हैं कि हमें हमारे बारे में वास्तविक आंकलन करना चाहिए। दूसरे शब्दों में हमे हमारी औकात पता होना चाहिए। कि हम कौन हैं। विनम्रता का मतलब स्वयं की दूसरों के सामने नीचा दिखाना नहीं होता। विनम्रता मतलब होता है सच्चाई, को सच्चाई के तौर पर ग्रहण करना। मैं तभी एक विनम्र व्यक्ति बन सकता हूँ, जबः
1. मैं दूसरों के गुणों, प्रतिभावों व मुल्यों को पहचानता हूँ। खासकरके उन  गुणों को जो मुझसे बढकर हैं तथा दूसरे व्यक्ति में उन गुणों को, उसकी काबिलियत को देखकर उसकी तारिफ कर सकूँ।
2. खुद के गुणों, प्रतिभावों व क्षमताओं की सीमा को पहचानना कि मैं इतना ही कर सकता हूँ। तथा खुद की हदों के परे कुछ हासिल करने की कोषिष न करना। याने मुझे मेरी कमज़ोरियों, बाधाओं को स्वीकार करना चाहिए कि इससे आगे मुझसे कुछ नहीं होगा।
3. एक विनम्र व्यक्ति के मन में ईष्र्या व जलन की भावना कभी नहीं होती। जब उसकी तुलना में दूसरे लोगों को अधिक चाहा जा रहा है, दूसरा व्यक्ति अधिक फल-फूल रहा है, अधिक प्रसिद्धी प्राप्त कर रहा है तब एक विनम्र व्यक्ति ईष्वर को इसके लिए खुषी पुर्वक धन्यवाद देता है।
विनम्रता महापुरूष की निषानी ही नहीं बल्कि उन्नती व वृद्धी एक मार्ग भी है। जो मैनेजमेंट व प्रोजेक्ट के ऊपर काम करते हैं उसमें वे मुल्यांकन का एक सिद्धांत अपनाते हैं जिसे ैॅव्ज् अनालिसिस कहते हैं। इसमें स्वयं की ैजतमदहजी याने क्षमता, ताकत को आंका जाता है फिर खुद की  याने कमजोरियों को ढूंढा व पहचाना जाता है फिर अपनी क्षमता व कमजोरी के अनुसार भविष्य में सुधार के क्या-क्या अवसर हैं व्चचवतजनदपजपमे है व क्या-क्या बधायें हैं। स्वयं के आध्यात्मिक विकास के लिए यह विधी बहुत ही कारगर सिद्ध हो सकती है। विनम्रता व्यक्ति को अपनी गिरेबांह में झांकने व खुद की कमजोंरियों को देखने व उन्हें अपनी ताकत क्षमाताओं में परिवर्तित करने में मदद करती है। दूसरी ओर जो व्यक्ति घंमडि व अहंकारी है, जो अपनी कमजोरियों को स्वीकार करने को तैयार नहीं उसका जीवन में कभी उद्धार नहीं होगा। ऐसे व्यक्तियों का विकास स्थिर हो जाता है और वे जीवन में बहुत अधिक निराष, व हताष हो जाते हैं। अब प्रष्न यह उठता है कि क्या मैं इतना विनम्र हूँ कि मेरी कमजोरियों को स्वीकार करके उन्हें मेरे विकास के लिए एक माध्यम बना सकूँ। जो कोई इस प्रष्न का उत्तर में देते है प्रभु की कृपा हमेषा उसके साथ है। आमेन।


Saturday, 20 August 2016

वर्ष का 21 वाँ सामान्य रविवार



इसायाह 66:18-21
इब्रानियों 12:7,11-13
लूकस 13:22-30

डामसुस के सांता मार्था के गिरजाघर में संत पिता फ्रांसिस ने कहा था, ‘‘प्रभु येसु के खून से हम सब का उद्धार हुआ है, सब का केवल कैथोलिक ही नहीं सब, हर कोई को उनके खून से मुक्ति मिली है। किसी ने पूछा पिताजी क्या नास्तिकों का भी? वे बोले हाँ नास्तिक भी उनकी मुक्ति के भागीदार हैं। हर कोई और उनका रक्त हमें उनके प्रथम श्रेणी के बच्चों में मिला लेता है। हम उनके रंग-रूप में गढे गये हैं और मसीहा का रक्त हर एक को मुक्ति प्रदान करता है। पर चुनाव या विकल्प हमारा है, हम उस मुक्ति को गले लगायें या फिर ठुकरा दें।
आज के सुसमाचार में प्रभु येसु हमसे कहते हैं कि द्वार तो खुला हुआ है, लेकिन वह संकरा है। संकरे द्वार से प्रवेष करने का पूरा-पूरा प्रयत्न करो।
प्रभु येरूसालेम के रास्ते पर आगे बढ रहे थे कि किसी ने उनसे पूछा, ‘‘गुरूवर क्या थोडे ही लोग मुक्ति पायेंगे?’’ वह व्यक्ति स्वर्ग जाने वालों की संख्या व कौन-कौन उसमें प्रवेष कर पायेगा उसकी जानकारी चाह रहा था। यह बडी दिलचस्प बात है कि प्रभु येसु प्रष्न को एक तरफ कर देते हैं। संख्या जानने की जिज्ञासा के बजाय प्रभु के लिए महत्वपूर्ण बात यह थी कि कि यदि कोई वास्तव में स्वर्ग जाने परमपिता परमेष्वर के साथ बैठकर स्वर्गीय भोज में भाग लेने की रूची रखता है तो उसे आज ही प्रभु के सुसमाचार को सुनने व उसपर चलने के लिए उसे निर्णय लेना पडेगा।
स्वर्ग जाने वाला द्वारा संकरा है लेकिन वह प्रतिबंधित नहीं है। प्रभु येसु के अनुसार यह द्वार सब के लिए खुला हुआ है, कोई प्रतिबंध नहीं, कोई टैक्स नहीं। लेकिन स्वर्ग जाने वाला द्वार संकरा है। फिर भी यह सभी राष्ट्रों के लोगों के स्वागत के लिए पर्याप्त विस्तृत है। शायद येसु को सुनने वालों में से कई उनका निष्कर्ष सुनकर आष्चर्यचकित हो गये होंगे। ‘‘पूर्व और पच्छिम; उत्तर और दक्खिन से लोग आकर परमेश्वर के राज्य के भोज में भागी होंगे। और देखो, जो पिछले हैं वे अगले जायेंगे, और जो अगले हैं वे पिछले हो जायेंगे।’’ जो लोग स्वर्ग में अपना प्रवेष ऑटोमैटिकली हो जायेगा ये सोच कर बैठे थे वे अंत में अपने आप को दरवाजे से बाहर पायेंगे जब दरवाजा बंद कर दिया जायेगा। फिर भी दरवाजा पर्याप्त चौडा है विष्व के हर एक कोने से लोगों को अपने अंदर लेने के लिए। संत योहन ने प्रकाषना गं्रथ में जो दिव्य दर्षन देखा था उसमें वे प्रभु येसु के इन शब्दों की पुष्टी करते हैं जहाँ लिखा है - ‘‘इसके बाद मैंने सभी राष्ट्रों, वंषों, प्रजातियों और भाषाओं का एक ऐसा विषाल जनसमूह देखा, जिसकी गिनती कोई नहीं कर सकता। वे उजले वस्त्र पहने तथा हाथ में खजूर की डालियाँ लिये सिंहासन तथा मेमने के सामने खडे थे। और ऊँचे स्वर से पुकार-पुकार कह रहे थे, ‘‘सिंहासन पर विराजमान हमारे ईष्वर और मेमने की जय!’’ (प्रकाषना 7ः9-10)
अधिकतर यहूदियों ने स्वर्ग को हल्के में लिया बहुतों का ये मानना था कि सभी जो बहुत ही बूरे हैं उनको छोडकर बाकी सब यहूदी स्वर्ग जायेंगे। वे हमेषा अपने आप को स्वर्ग राज्य अंदर के लोग समझते थे। वे अपने आपको उद्धार पाये हुवे लोग समझते थे सिर्फ इसलिए  िकवे यहूदी थे। वे बडे गर्व से कहा करते थे अब्राहम हमारे पिता है।
प्रभु की यह षिक्षा उन यहूदियों के लिए थी के लिए थी जो ऐसी धारणा लिये बैठे थे। परन्तु आज हमारे लिए इसके क्या मायने हैं। ख््राीस्तीय होने के नाते हम सब ईष्वर की प्रजा के सदस्य बन गये हैं। जिस प्रकार इस्राएली लोग सिनाई पर्वत पर एक विधान के तहत अपने खतना द्वारा ईष प्रजा के भागीदार बन गये उसी प्रकार ख्रीस्तीय लोग बपतिस्मा के द्वारा ईष परिवार एवं प्रजा के सदस्य बन गये हैं। पुराने विधान के लोगों के समान हम भी नये विधान के अब्राहम के वंषज हैं। हम भी उनकी तरह विषेषाधिकार प्राप्त लोग बन गये हैं। हम भी स्वर्ग राज्य अंदर के लोग बन गये हैं। अन्य धर्मों एवं पंथों की तुलना में हमारे पास मुक्ति की परिपूर्णता है। लेकिन हम हमारे इस विषेषाधिकार पर ही निर्भर नहीं रह सकते। हम इसके लिए दावा नहीं कर सकते। संत लूकस के सुसमाचार से हम सुनते हैं - ‘‘प्रभु हमने आपके सापने खाया पिया और हमारे बाजारों में आपने उपदेष दिया’’ परन्तु वह तुम से कहेगा, मैं नहीं जानता कि तुम कौन हो।’’ फिर हम कहेंगे प्रभु हमने गिरजाघर में जाकर प्रार्थना की मिस्स बलिदान में भाग लिया नोवेना प्रार्थना की आदि। प्रभु कहेंगे कुकर्मियों तुम मुझ से दूर हट जाओ। क्योंकि यह सच है कि हम प्रभु येसु के द्वारा मुक्त कर दिये गये हैं इसका मतलब ये नहीं कि आराम से बैठ जायें वचन कहता है - ‘‘संकरे द्वार से प्रवेष करने का पूरा-पूरा प्रयत्न करो।’’ हमें प्रयत्न करते रहना है। संकरे द्वार से प्रवेष करने का पूरा - पूरा प्रयत्न करना प्रभु येसु ने हमारे लिए, हमारी मुक्ति के जो किया है उसके प्रति हमारा एक प्रत्यिुतर है। प्रभु ईष्वर ने हम सब से प्रेम किया है वे हमसे हमेषा प्यार करते ही रहते हैं लेकिन यदि हम उनके प्रेम को विनिमय नहीं करते अथवा बदले में प्यार नहीं लौटते तो फिर उनके प्यार का आनन्द हम नहीं ले पायेंगे। मुक्ति की घटना भी ऐसी ही है। यह एक तरफा नहीं है। यदि मुक्ति कार्य एक तरफा होता है तो वह पूर्ण नहीं है। यदि मुक्तिकार्य में सिर्फ येसु ही कार्यरत हैं और ख््राीस्तीय अपनी ओर से इसमें भागीदारी नहीं देते, अपनी ओर से प्रयास नहीं करते तो इसका प्रभाव हमारे जीवन में नहीं आयेगा। द्वितीय वाटीकन महासभा का संविधान ल्युमन जेन्स्युम कहता है कि कोई व्यक्ति यद्यपि वह कलीसिया शरीर का अंग है पर प्रेम व सेवा के मार्ग पर नहीं चलता तो वह कलीसिया की गोद में तो ज़रूर रहता है पर केवल शारीरिक रूप में उसकी आत्मा ईष्वर से दूर है। जो कोई अपने मन वचन व कर्म से ईष्वर के मार्ग पर नहीं चलता उसकी वाणी को सुनकर अपने जीवन द्वारा उसका जवाब नहीं देता तो न केवल उसका उद्धार ही नहीं होगा परन्तु उसका निर्णय बडी ही कठोरता एवं क्रूरता से किया जायेगा। जो बाहर के समझे जाते हैं वे प्रभु भोज के भागीदार बनेंगे और अंदर वाले बाहर कर दिये जायेंगे। इसीलिए आज का वचन कहते है - जो अगले हैं वे पिछले हो जायेंगे और जो पिछले हैं वे अलगे हो जायेंगे। अंतिम न्याय के दिन एक बडा उलट-फेर होगा। जिन्हें हम अंदर देखने का सोच रहे थे होंगे वे बाहर हो जायेंगे। कई बिषप्स, फादर्स सिस्टर्स व दुनिया की दृष्टी में धार्मिक माने जाने वाले ख््राीस्तीय विष्वासीगण। और जिन्हें हम श्रापित नीच व बिना महत्व के सोचते हैं वे ही प्रभु के साथ भोजन की मेज़ पर बैठकर प्रभु भोज का लुफ्त उठायेंगे।
संकरे द्वार का एक अन्य उदाहरण प्रभु हमें दूसरे शब्दों में देते हैं। ‘‘मैं तुमसे यह भी कहता हूँ सूई के नाके से हो कर ऊँट का निकलना अधिक सहज है, किंतु धनी का ईष्वर के राज्य में प्रवेष करना कठिन है।’’ (मत्ती 19:24) रास्ता बडा संकरा है केवल इंसान ही उसमें प्रवेष कर सकता है। धन-दौलत नहीं। यदि किसी को अपने धन पर बहुत अधिक भरोसा है तो वे याद रखें कि संकरे द्वार से प्रवेष करते समय कहीं वहीं अटक के न रह जायें। इसान ही ज्यादा महत्व रखता है धन-दौलत नहीं।
तो आईये हम हमारे जीवन में एक अच्छा इंसान बनें। जो ईष वचन का अपने मन वचन व कर्माें से प्रत्युत्तर देता हो, जो औरों में मसीह का चेहरा देखता हो। जो अपने लिए स्वर्ग में धन  इन्वेस्ट करता हो। ताकि जब हमारा बुलावा आयेगा तो हम बिना बैग, बिना लगेज के उस द्वार से प्रवेष करते हुवे उस राज्य में प्रविष्ठ हो जायें जहाँ हमारे पिता ने हमारे लिए अनन्तकाल तक निवास करने के लिए घर तैयार कर रखा है। जहाँ हम हमारे सृष्टिकर्ता के साथ एक ही टेबल पर बैठकर भोजन करेंगे।
आमेन ।

Saturday, 6 August 2016

वर्ष का उन्नीसवाँ रविवार



प्रज्ञा ग्रंथ 18:6-9

इब्रानियों 11:1-2

लूकस 12:32-48

आज के वचनों द्वारा प्रभु हमें विश्वास  में मजबूत बनने, उनसे मिलने का बेसब्री इंतजार करने व हमेशा  उनके लिए तैयार रहने का उपदेश देते हैं ।
आज का वचन अब्राहम के विश्वास  का हवाला देते हुए हमें उनके समान विश्वास  बनने को कहता है। उनके सामने कई प्रकार की कठोर परीक्षायें आयी पर वह नहीं डिगा, नहीं डगमगाया। ईष्वर ने अब्राहम के जिस बेटे से असंख्य संतानें उत्पन्न करने का वादा किया था उसे ही बली चढाने का आदेष दिया इस विडम्बना भरी परिस्थिति में भी उसने प्रभु पर भरोसा किया उन्हें मालुम था कि ‘‘ईष्वर मृतकों को भी जिला सकता है’’ (इब्रानियों 11:19)। उसे पता था कि ईष्वर असम्भव को भी सम्भव कर सकता है। इसे कहते हैं विष्वास। आज के पहले पाठ में विष्वास की बहुत ही सुन्दर परिभाषा दी गई है। ‘‘विष्वास उन बातों की स्थिर प्रतीक्षा है, जिनकी हम आषा करते हैं और उन वस्तुओं के अस्तित्व के विषय में दृढ़ धारणा है, जिन्हें हम नहीं देखते।’’
एक बार एक घर में आग लग गई। पूरा घर आग की लपटों से घिरा हुआ था। ऊपरी मंजिल पर एक नन्हीं बालिका सो रही थी। उसके पिता जी नीचे थे। वे उसे नीचे से पुकारते हैं बेटी खिडकी से नीचे कूद जाओ। ऊपर से जवाब आता है, पिताजी मैं आपको नहीं देख पा रही हूँ। पिताजी कहते हैं - बेटी कूद जाओ, नहीं डरो। भरोसा रखो, मैं यहाँ हूँ। बच्ची ऊपर से कूद पडती है और पिता उसे अपनी बाहों में समेट लेते हैं। इसे कहते हैं भरोसा, यही है विष्वास। जब हम विष्वास करते हैं, हम अनिष्चिता के अंधकार में कूद पडते हैं। क्या होगा क्या नहीं, कुछ नहीं पता बस इतना पता रहता है कि मेरा प्रभु मेरे साथ है वह मेरा नुकसान होने नहीं देगा। वचन करता है - ‘‘उसकी लाठी उसके व उसके डंडे पर मुझे भरोसा है’’ (स्तोत्र 23:4)। वह तुम्हारे पैरों को फिसलने नहीं देगा . . . प्रभु ही तुम्हारा रक्षक है वह छाया की तरह तुम्हारे दाहिने रहता है’’ (स्तोत्र 121:2)। ‘‘तुमने सर्वोच्च ईष्वर को अपना शरणस्थान बनाया है। तुम्हारा कोई अनिष्ट नहीं होगा’’ (स्तात्र 91:9-10)।
इस दुनिया में हम ‘‘परदेषी एवं मुसाफिरों के समान’’ हैं (इब्रानियों 11:13)। ‘‘हम हमारा स्वदेष खोज रहे हैं (इब्रानियों 11ः14)। हमारा सारा जीवन हमारे वास्तविक निवास, हमारे वास्तविक घर की ओर एक यात्रा है। हर विष्वासी को अब्राहम की तरह अनजान राहों पर खुदा पर भरोसा करते हुए यात्रा पर निकल पडना चाहिए। हम इस संसार में हमेषा के लिए डेरा नहीं डाल सकते, हमें चलते रहना है। हम इस जग में उस चिडिया के समान है जो कि एक सूखी डाली पर बैठी हुई है। डाली कभी भी टूट सकती है। पर चिडिया को उसकी चिंता नहीं, क्योंकि वह  उडकर कहीं ओर जाने के लिए हमेषा तैयार है। हमें भी वैसे ही हमेषा इस जग से उड जाने के लिए तैयार रहना चाहिए। एक बार संत फिलिप नैरी गली में बच्चों के साथ फुटबाॅल खेल रहे थे। किसी ने उनसे पूछा यदि तुम्हें ये पता चले कि तुम कुछ ही क्षणों बाद मर जाने वाले हो तो तुम क्या करोगे? उन्होंने बडी शालीनता से जवाब दिया - ‘‘मैं बच्चों के साथ फुटबाॅल खेलता रहूँगा।’’ उन्हें कोई परवाह नहीं। क्योंकि वे उस चिडिया की तरह कभी भी उड जाने के लिए तैयार थे।
संतगण ऐसे ही होते हैं वे प्रभु से अपने मिलन को बेताब रहते हैं। वे प्रभु के बुलावे के इंतज़ार में रहते हैं कि कब उनकी आत्मा का समागम उस परमात्मा में हो जाये। स्तोत्र ग्रंथ 42:2-3 में प्रभु भक्त कहता है - ‘‘ईष्वर! जैसे हरिणी जलधारा के लिए तरसती है, वैसी मेरी आत्मा तेरे लिए तरसती है। मेरी आत्मा ईष्वर की जीवन्त ईष्वर की प्यासी है। मैं कब जाकर ईष्वर के दर्षन करूँगा।’’ तथा स्तोत्र 63:2 में वचन कहता है - ‘‘ईष्वर तू ही मेरा ईष्वर है! मैं तुझे ढूँढता रहता हूँ। मेरी आत्मा तेरे लिए प्यासी है। जल के लिए सूखी संतप्त भूमि की तरह, मैं तेरे दर्षनों के लिए तरसता रहता हूँ।’’ प्रभु येसु आज के सुसमाचार में हम से कहते हैं ‘‘तुम लोग उन लोगों की तरह बन जाओ जो अपने स्वामी की राह देखते रहते हैं कि वह बारात से कब लौटेगा, ताकि जब स्वामी आकर द्वार खटखटायगा तो तुरन्त ही उसके लिए द्वार खोल दें’’ (लूकस 12:36)। हमें प्रभु का इंतज़ार करते रहना है। यहूदी लोगों ने कई सालों तक मसीहा के आने का इंतज़ार किया। प्रभु येसु ने स्वयं अपना सार्वजनिक जीवन प्रारम्भ करने व लोगों को स्वर्गराज्य के रहस्यों की षिक्षा देने की शुरूआत करने के लिए 30 सालों तक इंतज़ार किया। पुनरूत्थित प्रभु ने अपने षिष्यों को येरूसालेम में तब तक इंतज़ार करने को कहा जब तक कि वे पवित्र आत्मा की शक्ति से न भर जायें। (प्रे. च. 1:4)। इंतज़ार करने की एक अपनी एक अद्यात्मिकता है। प्रार्थना के द्वारा हम प्रभु को हमारे जीवन में आने के लिए इंतज़ार करते हैं। प्रभु के लिए इंतज़ार करके हम यह ज़ाहिर करते हैं व स्वीकार करते हैं कि प्रभु के बिना हम कुछ नहीं कर सकते। हमें हमारे जीवन में उनकी बेहद ज़रूरत है। इसीलिए हम उनका इंतजार करते हैं। स्तोत्र ग्रंथ 130:5-6 में वचन कहता है - ‘‘मैं प्रभु की प्रतीक्षा करता हूँ। मेरी आत्मा उसकी प्रतिज्ञा पर भरोसा रखती है। भोर की प्रतीक्षा करने वाले पहरेदार से भी अधिक मेरी आत्मा प्रभु की राह देखती है।’’
हम इंतज़ार तभी कर सकते हैं जब हम तैयार हैं। यदि हमारे घर कोई मेहमान आने वाला हो और घर में तैयारियाँ पूरी न हुई हो तो हम यही सोचेंगे कि हमारा मेहमान अभी नहीं पहुंचे, थोडी देर बाद आये ताकि हम तैयारियाँ पूरी कर लें। प्रभु हम से आज के सुसमाचार में कहते हैं - ‘‘तुम. . . तैयार रहो, क्योंकि जिस घडी तुम उसके आने की नहीं सोचते, उसी समय मानव पुत्र आयेगा’’ (लूक 12:40)।
हमें विष्वास की ज़रूरत है। हमें दया, करूणा व प्रेम से संचालित विष्वास की ज़रूरत है जो हमें सच्चे प्रेम से प्रेरित कार्य करने के लिए सिखायेगा। हमें चट्टाने से भी मजबूत व अडिग विष्वास की ज़रूरत है जो आंधी, तुफान एवं बवंडर में भी विचलित नहीं होगा। हमें हिम्मतवान विष्वास की ज़रूरत है जो हमें बिना किसी झिझक के ईष्वर के लिए व आत्माओं की मुक्ति के लिए महान कार्य के लिए प्रेरित करे। हमें वह विष्वास चाहिए जो एक जलती मषाल के समान है जो अंधकार की शक्तियों से लड सकता है, जो अपनी रोषनी से अज्ञानियों को सही राह दिखा सकता है व पापियों को प्रभु के उजाले में ला सकता है, जो कुनकुने हैं उन में विष्वास व प्रभु के प्रेम ज्वाला प्रज्वल्लित कर सकता है, जो पाप में मर चुके हैं उन्हें प्रभु की मुक्ति की एक आषा किरण दिखा सकें तथा अपने मधुर व शक्तिषाली शब्दों से कठोर से भी कठोर दिल को पिघला सकें तथा शैतान का हर समय हिम्मत के साथ सामना कर सकें। जब हमें इस प्रकार का विष्वास मिल जायेगा। तब हम सब प्रभु की उत्कंठा से राह देख सकते हैं। तब हम उसका इंतज़ार कर सकते हैं। संत फिलिप नेरी की तरह तब हम भी तैयार रह सकेंगे। औरख़ुशी-ख़ुशी  उनके राज्य में प्रविष्ठ हो जायेंगे जहाँ हम सब के लिए हमारे प्रभु येसु ने स्थान तैयार कर रखा है।
आमेन।

Saturday, 16 July 2016

वर्ष का सौलहवाँ रविवार, वर्ष - सी

वर्ष का सौलहवाँ रविवार
पहला पाठ उत्पत्ति गं्रथ 18ः1-10
कोलोसियों 1ः24-28
लूकस 1038-42

प्रभु येसु मार्था और मरियम के घर जाते हैं। मार्था अच्छा से अच्छा भोजन तैयार कर उनका अपने घर में स्वागत करती है। वहीं मरियम प्रभु के चरणों में बैठकर उनके वचन सुनती है। यह कहानी भले समारी के दृष्टांँत के तुरन्त बाद आती है। इन दोनों कहानियों से पहले सुसमाचार हमें अनन्त जीवन प्राप्त करने का सूत्र बताता है। और वह सूत्र है अपने प्रभु ईष्वर को अपने सारे हृदय, सारी आत्मा, सारी शक्ति और सारी बुद्धी से प्यार करो और अपने पडोसी को अपने समान प्यार करो’’ (लूक 10ः27)। ऐसा प्रतीत होता है कि इन कहानियों के माध्यम से सुसमाचार लेखक ने प्रभु की इस आज्ञा को रोजमर्रा की जिंदगी में कैसे लागू करना चाहिए इस बात को समझाने की कोषिष की है। जहाँ एक ओर मरियम अपने जीवन से प्रभु को कैसे प्यार करना चाहिए ये सिखाती है वहीं दूसरी ओर भला समारी अपने पडोसियों को किस प्रकार प्यार करना चाहिए ये सिखाता है। ईष्वर को प्रेम करना व अपने पडोसी को प्रेम करना, स्वर्ग राज्य में प्रवेष के लिए ये दोनो महत्वपूर्ण रास्ते हैं।
प्रभु मार्था से कहते हैं कि तुम व्यर्थ ही बहुत सारी चिज़ों की चिंता करती हो। और जो सबसे ज्यादा आवष्यक है उसे भूल रही हो। प्रभु उसके सेवा सत्कार की निंदा नहीं कर रहे थे। सेवा सत्कार भी जरूरी है। आज के पहले पाठ में वचन इसी बात पर जोर देता है। अब्राहम अपने घर आये मेहमानों का बडी आवभगत के साथ स्वागत करता व उनकी मेहमान नवाज़ी करता है। प्रभु येसु स्वयं कई घरों में मेहमान के रूप में गये व लोगों की सेवा सत्कार को स्वीकार किया। उदा. के लिए ज़केयुस (लूक 19ः1-10), मत्ती (मत्ती 9ः9-13), और सिमोन फरीसी (लूक. 7ः36-49) आदि के घर। इसलिए यदि हम कहें कि प्रभु मार्था के कार्यों की निंदा कर रहे थे तो शायद हम गलत हैं। प्रभु मार्था और मरियम के जीवन के उदाहरण से हमें बस यही सिखाना चाहते हैं कि हमें हमारे जीवन में महत्व किस बात को देना है। आज यदि मैं आप से पूछूंँ कि सुबह से लेकर शाम तक की दिनचर्या में आपको सबसे ज़्यादा चिंता किस बात की रहती है। तो विभिन्न के उत्तर मिलेंगे। माता-पिता को बच्चों की, बच्चों को पढाई की, परीक्षा की, होमवर्क की, मज़दूर को काम की, नौकरी करने वालों को पदौन्नती की, सैलरी में इज़फा होने की, गरीब को रोजी-रोटी की आदि विभिन्न चिंतायें। और हम हमारी पूरी जिंदगी इन चिंताओं का हल ढूँढने में बिता देते हैं। परन्तु प्रभु का वचन हमें साफ-साफ कहता है - ‘‘चिंता मत करो - न अपने जीवन निर्वाह की, कि हम क्या खायें और न अपने शरीर की कि हम क्या पहनें...चिंता करने से तुम में कौन अपनी आयु घडी भर बढा सकता है? ... और वचन आगे कहता है तुम्हारा स्वर्गिक पिता जानता है कि तुम्हें इन सब चिजों की ज़रूरत है। तुम सबसे पहले ईष्वर के राज्य और उसकी धार्मिकता की खोज में लगे रहो और ये सब चिजे़ तुम्हें यूँ हीे मिल जायेगी।’’ (मत्ती 6ः25, 32-33)। यही है आज के सुसमाचार की षिक्षा मरियम को दुनियाभर के कामों की चिंता थी परन्तु प्रभु कहते हैं मरियम ने उत्तम भाग चुन लिया।  मरियम ने सिर्फ अच्छा नहीं सर्वोत्तम भाग चुन लिया है। मरियम के लिए प्रभु के चरणों में बैठकर उनके वचनों को सुनना सबसे उत्तम लगा। यह उनका व्यक्गित निर्णय था। उन्होंने बाकि काम काज को अलग रखकर प्रभु येसु के चरणों में बैठकर वचन सुनने का निर्णय लिया।
ख्रीस्त में प्यारे भाईयों और बहनों क्या मरियम येसु के चरणों में बैठकर पिता ईष्वर की महिमा कर रही थी? अथवा क्या प्रभु येसु की वाणी सुनने के बारे में पिता ईष्वर ने धर्मग्रंथ में हमें कोई आदेष दिया है? जि हाँ! ताबोर पर्वत पर उनके रूपान्तरण के समय पिता की वाणी यह कहते हुए सुनाई पडी थी - ‘‘यह मेरा प्रिय पुत्र है। मैं इस पर अत्यंत प्रसन्न हूँ; इसकी सुनो।’’ (मत्ती 17ः5)। जि हाँ प्रभु येसु के वचनों को सुनने के लिए आदेष स्वयं पिता परमेष्वर की ओर से है। और हाँ प्रभु का वचन सुनने से हमारे जीवन में क्या होता है? इसके बारे में आईये हमस ब मनन चिंतन करें।
संत पौलुस रोमियों को लिखे पत्र अध्याय 10ः17 में हमें सिखाते हैं कि प्रभु के वचन सुनने से हममें विष्वास उत्पन्न होता है। ‘‘इस प्रकार हम देखते हैं कि सुनने से विष्वास उत्पन्न होता है और जो सुना जाता है, वह है मसीह का वचन’’ वचन सुनने से हम पवित्र हो जाते हैं - ‘‘मैंने जो षिक्षा तुम्हें दी है उसके कारण तुम शुद्ध हो गये हो’’ (योहन 15ः3)। वचन हमें चंगा करता है - ‘‘उसे किसी जडी -बुटी या लेप से स्वास्थ्यलाभ नहीं हुआ बल्कि प्रभु! तेरे शब्द ने उसे चंगा किया’’ (प्रज्ञा 16ः12)। तथा ‘‘उसने अपनी वाणी भेजकर उन्हें स्वस्थ किया’’ (स्तोत्र 107ः20)। वचन हमारे लिए सच्चा भोजन है जो हमें वास्तविक जीवन सच्चा जीवन प्रदान करता है- ‘‘मनुष्य सिर्फ रोटी से ही नहीं जीता है। वह ईष्वर के मुख से निकलने वाले हर एक शब्द से जीता है’’ (मत्ती 4ः4)। प्रभु के वचन सुनने से हम प्रभु येसु के परिवार के वास्तविक सदस्य बन जाते हैं - ‘‘मेरी माता और मेरे भाई वही हैं जो ईष्वर का वचन सुनते और उनका पालन करते हैं’’ (लूकस 8ः21)। उनके शब्दों में अनन्त जीवन का संदेष छिपा है संत पेत्रुस प्रभु से कहते हैं - ‘‘प्रभु हम किसके पास जायें, आपके ही शब्दों मे अनन्त जीवन का संदेष है’’ (योहन 6ः68)। प्रभु वचन हमे सही मार्ग दिखाता है - ‘‘तेरा वचन मुझे ज्योति प्रदान करता और मेरा पथ आलोकित करता है’’ (स्तोत्र 119ः105)। और जो वचन सुनते हैं उनके लिए प्रभु एक बहुत ही सुन्दर प्रतीज्ञा करते हैं - ‘‘जो मेरी षिक्षा सुनता और जिसने मुझे भेजा उस में विष्वास करता है, उसे अनन्त जीवन प्राप्त है। वह दोषी नहीं ठहराया जायेगा। वह तो मृत्यु को पार कर जीवन में प्रवेष कर चुका है’’ (योहन 5ः24)
आइये हम आज अपने आप से पूछें कि हम हमारे जीवन में प्रभु व उसके वचनों को कितनी प्राथमिकता देते हैं? हमारी रोज़मर्रा की भागदौड भरी जिंदगी में, जहाँ सुबह से लेकर शाम तक हम बस इसी जुगाड में लगे रहते हैं कि हम क्या खायें, क्या पियें, और क्या पहनें, क्या हम प्रभु को उनके वचनों को प्राथमिकता दे पाते हैं? हम मेंसे कितने लोग ऐसे हैं जो रोज पवित्र बाइबल का कम से कम एक वाक्य रोज़ पढता है। और उस पर मनन चिंतन करते हुए व उसके ऊपर अपना जीवन बिताने की कोषिष करता है। यदि हम ये करते हैं तो प्रभु के ये वचन हमारे लिए ही हैं  - ‘‘जो मेरी षिक्षा सुनता और जिसने मुझे भेजा उस में विष्वास करता है, उसे अनन्त जीवन प्राप्त है। वह दोषी नहीं ठहराया जायेगा। वह तो मृत्यु को पार कर जीवन में प्रवेष कर चुका है’’ जि हाँ, वह व्यक्ति मृत्यु को पार कर अनन्त जीवन में प्रवेष कर चुका है।